tag:blogger.com,1999:blog-75015819406661571802024-03-13T02:00:46.259-07:00ऐसा देश है मेरा...................।।।।।।।।।।ऐसा देश है मेरा के माध्यम से मैं आप तमाम पाठक से जुड़ने की भरपुर कोशिश कर रहा हूँ चूँकि मैं इस जगत में आपका नया साथी हूँ इसलिए आशा करता हूँ कलम के जरिये उभरे मेरे भावना के पुष्पों को जो मैं आपके हवाले करता हूँ उस पर अपनी प्रतिक्रिया के उपहार मुझे उपहार स्वरूप जरूर वापस करेंगे ताकि मैं आपके लिए कुछ बेहतर लिख सकूँ।
..................................आपकी टिप्पणियों की प्रतीक्षा में
...........................................आपका दोस्त
"""गंगेश"""Gangesh Kumarhttp://www.blogger.com/profile/16191940284702061868noreply@blogger.comBlogger151125tag:blogger.com,1999:blog-7501581940666157180.post-84777292235048187312017-09-07T04:32:00.001-07:002017-09-07T04:32:17.991-07:00क्या पत्रकार भी बड़े और छोटे होते हैं ?<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "mangal" , serif; font-size: 10pt; line-height: 115%;">एक सवाल गौरी लंकेश की हत्या के बाद मेरे जेहन
में बार-बार उठा रहा है कि क्या पत्रकारों की भी दो जाति होती है...क्या पत्रकार
भी बड़े और छोटे होते हैं...क्या पत्रकारों की मौत पर विरोध दर्ज कराने का तरीका
अलग-अलग हो सकता है...क्या पत्रकारों की भी अलग-अलग श्रेणी होती है...क्या
संस्थानों और उनकी स्वयं की हैसियत के हिसाब से किसी पत्रकार के मौत पर विरोध का
स्तर तय किया जाता है...क्या पत्रकारों को भी राजनीतिक संरक्षण की जरूरत है...नहीं
तो फिर अलग-अलग जगहों पर मारे गए पत्रकारों की मौत के लिए विरोध के स्वर अलग-अलग
क्यों</span>? </div>
<div class="MsoNormal">
<br /></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "mangal" , "serif"; font-size: 10.0pt; line-height: 115%;">आपको बता दें कि गौरी लंकेश की हत्या के ठीक एक
दिन बाद बिहार में पत्रकार पंकज मिश्रा को गोली मारी गई लेकिन उसके विरोध के लिए
सड़कों पर ना तो लोग आए ना मीडिया के सूरमा अब आप समझ ही गए होंगे की मेरे अंदर
पत्रकारों को लेकर और पत्रकारिता को लेकर इतने सारे सवाल कैसे खड़े हो गए।</span></div>
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhQJZ6LOGo8mBTYVS71vFN99IEswSE2wXO650nmO8aFIU57gQ_T3qTFl2Pgw_zTdbzZLUPEjSgq9HSACML1APat6YbwKBdgo14Eg0O0jR7NVq4b4a2DIyT_NkWK05WiK4o6GPoxdDWwxdBc/s1600/Gauri+lankesh.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="501" data-original-width="700" height="228" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhQJZ6LOGo8mBTYVS71vFN99IEswSE2wXO650nmO8aFIU57gQ_T3qTFl2Pgw_zTdbzZLUPEjSgq9HSACML1APat6YbwKBdgo14Eg0O0jR7NVq4b4a2DIyT_NkWK05WiK4o6GPoxdDWwxdBc/s320/Gauri+lankesh.jpg" width="320" /></a></div>
<br />
<div class="MsoNormal">
<br /></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "mangal" , "serif"; font-size: 10.0pt; line-height: 115%;">आपको नीचे ऐसे पत्रकारों की सूची और नाम मैं दे
रहा हूं जिनकी मौत की तारीखों को देखकर आप बता दीजिएगा की क्या इन पत्रकारों की
मौत पर ऐसा ही विरोध हुआ था जैसा गौरी लंकेश के मारे जाने पर हुआ था। फिर वो अपने
आप को पत्रकार कहती हैं जबकि उनके चाहने वाले पत्रकार ही उन्हें विचारधाराओं के
नाम के साथ जोड़कर उसका पोषक बताते हैं। लेकिन विरोध तो विरोध है वह करेंगे...
लेकिन उससे भी बेहतरीन बात यह है कि विरोध के लिए जो मंच वह तैयार करेंगे वहां
पत्रकार नहीं बोलेंगे बल्कि नेता और नए युग के भारत के टुकड़े करने के नारे लगाने
वाले नेता गौरी लंकेश की मौत पर लोगों का आह्वान करेंगे। एक पार्टी के उपाध्यक्ष
प्रधानमंत्री से इस मौत पर कुछ नहीं बोलने को लेकर सवाल करने लगेंगे...जबकि उनको
पता है कि जहां लोकेश की हत्या हुई उस राज्य में उनकी सरकार है। कानून और व्यवस्था
की जिम्मेदारी राज्य की होती है। सभी मिलकर इस मौत में हिंदू</span>, <span lang="HI" style="font-family: "mangal" , "serif"; font-size: 10.0pt; line-height: 115%;">संघ
और भगवा आतंकवाद जैसे शब्द जोड़कर अपना विरोध तो दर्ज करा रहे हैं। लेकिन किसी ने
कभी तब क्यों नहीं आवाज उठाई जब और पत्रकारों को नक्सलियों के हाथों मारा गया...जिन
नक्सलियों के ये वाम समर्थित पत्रकार सबसे बड़े पैरोकार बनते हैं...ये उनसे बेधड़क
जंगल में मिल आते हैं...</span></div>
<div class="MsoNormal">
<br /></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "mangal" , "serif"; font-size: 10.0pt; line-height: 115%;">आप सलेक्टिव हो सकते हैं...लेकिन पत्रकारों की
अलग-अलग श्रेणी का निर्माण कर देना एक नई व्यवस्था के साथ विरोध के लिए भी मौत को
अलग-अलग नजरिए से देखना फिर बुद्धिजीवी बन जाना...कहां की बुद्धिमतता है...आप
विरोध करें तो सभी का करें समर्थन करें तो सभी का आप पत्रकार हैं ऐसे में आप किसी
विशेष विचारदारा से बंधकर नहीं रह सकते...आप दक्षिणपंथी विचाराधार के पोषक
हों...या फासिस्ट विचारधारा के...अब आप पत्रकार तो बिल्कुल नहीं हैं....बस आप एसी
बंगलों ऑफिसों में रहकर काम करनेवाले और कैमरे के सामने दिखनेवाले किरदार मात्र
हैं....</span></div>
<div class="MsoNormal">
<br /></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "mangal" , "serif"; font-size: 10.0pt; line-height: 115%;">भारत में </span>1992<span lang="HI" style="font-family: "mangal" , "serif"; font-size: 10.0pt; line-height: 115%;"> से लेकर अब तक </span>19<span lang="HI" style="font-family: "mangal" , "serif"; font-size: 10.0pt; line-height: 115%;">
जाबाज पत्रकारों की जुबान को भ्रष्टाचार और अन्याय के विरूद्ध लड़ते वक्त
हमेशा-हमेशा के लिए बंद कर दी गई। यही नहीं अब तक हजारों पत्रकारों पर जानलेवा
हमले किये गये हैं। कई ऐसे मामले भी हैं जिन्हें प्रकाश में ही नहीं आने दिया गया।
दुर्भाग्यपूर्ण बात यह है कि पत्रकारों की निर्मम हत्या के मामले में अब तक न तो
किसी हत्यारे को सजा ही मिली है और न ही किसी न्याय की गुंजाइश ही की जा सकती है।
बता दें कि बीते साल में कमिटी टू प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट्स ने </span>42<span lang="HI" style="font-family: "mangal" , "serif"; font-size: 10.0pt; line-height: 115%;">
पन्नों की एक रिपोर्ट पेश कर यह खुलासा किया था कि भारत में रिपोर्टरों को काम के
दौरान पूरी सुरक्षा अभी भी नहीं मिल पाती है। रिपोर्ट में खुलासा किया गया था कि </span>1992<span lang="HI" style="font-family: "mangal" , "serif"; font-size: 10.0pt; line-height: 115%;"> के
बाद से भारत में </span>27<span lang="HI" style="font-family: "mangal" , "serif"; font-size: 10.0pt; line-height: 115%;"> ऐसे मामले दर्ज हुए हैं जब पत्रकारों का उनके
काम के सिलसिले में क़त्ल किया गया। लेकिन किसी एक भी मामले में आरोपियों को सजा
नहीं हो सकी है। </span></div>
<div class="MsoNormal">
<br /></div>
<div class="MsoNormal">
13<span lang="HI" style="font-family: "mangal" , "serif"; font-size: 10.0pt; line-height: 115%;"> मई </span>2016<span lang="HI" style="font-family: "mangal" , "serif"; font-size: 10.0pt; line-height: 115%;"> को सीवान में
हिंदी दैनिक हिन्दुस्तान के पत्रकार राजदेव रंजन की गोली मारकर हत्या कर दी गई.
ऑफिस से लौट रहे राजदेव को नजदीक से गोली मारी गई थी. इस मामले की जांच सीबीआई कर
रही है.</span></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "mangal" , "serif"; font-size: 10.0pt; line-height: 115%;">मई </span>2015<span lang="HI" style="font-family: "mangal" , "serif"; font-size: 10.0pt; line-height: 115%;"> में मध्य प्रदेश में व्यापम घोटाले की
कवरेज करने गए आजतक के विशेष संवाददाता अक्षय सिंह की संदिग्ध परिस्थितियों में
मौत हो गई. अक्षय सिंह की झाबुआ के पास मेघनगर में मौत हुई. मौत के कारणों का अभी
तक पता नहीं चल पाया है.</span></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "mangal" , "serif"; font-size: 10.0pt; line-height: 115%;">जून </span>2015<span lang="HI" style="font-family: "mangal" , "serif"; font-size: 10.0pt; line-height: 115%;"> में मध्य
प्रदेश में बालाघाट जिले में अपहृत पत्रकार संदीप कोठारी को जिंदा जला दिया गया.
महाराष्ट्र में वर्धा के करीब स्थित एक खेत में उनका शव पाया गया.</span></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "mangal" , "serif"; font-size: 10.0pt; line-height: 115%;">साल </span>2015<span lang="HI" style="font-family: "mangal" , "serif"; font-size: 10.0pt; line-height: 115%;"> में ही उत्तर
प्रदेश के शाहजहांपुर में पत्रकार जगेंद्र सिंह को जिंदा जला दिया गया. आरोप है कि
जगेंद्र सिंह ने फेसबुक पर उत्तर प्रदेश के पिछड़ा वर्ग कल्याण मंत्री राममूर्ति
वर्मा के खिलाफ खबरें लिखी थीं.</span></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "mangal" , "serif"; font-size: 10.0pt; line-height: 115%;">साल </span>2013<span lang="HI" style="font-family: "mangal" , "serif"; font-size: 10.0pt; line-height: 115%;"> में मुजफ्फरनगर
दंगों के दौरान नेटवर्क</span>18<span lang="HI" style="font-family: "mangal" , "serif"; font-size: 10.0pt; line-height: 115%;"> के पत्रकार राजेश वर्मा की गोली लगने
से मौत हो गई. </span></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "mangal" , "serif"; font-size: 10.0pt; line-height: 115%;">आंध्रप्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार एमवीएन शंकर की </span>26<span lang="HI" style="font-family: "mangal" , "serif"; font-size: 10.0pt; line-height: 115%;">
नवंबर </span>2014<span lang="HI" style="font-family: "mangal" , "serif"; font-size: 10.0pt; line-height: 115%;"> को हत्या कर दी गई. एमवीएन आंध्र में तेल माफिया के खिलाफ लगातार
खबरें लिख रहे थे.</span></div>
<div class="MsoNormal">
27<span lang="HI" style="font-family: "mangal" , "serif"; font-size: 10.0pt; line-height: 115%;"> मई </span>2014<span lang="HI" style="font-family: "mangal" , "serif"; font-size: 10.0pt; line-height: 115%;"> को ओडिसा के
स्थानीय टीवी चैनल के लिए स्ट्रिंगर तरुण कुमार की बड़ी बेरहमी से हत्या कर दी गई.</span></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "mangal" , "serif"; font-size: 10.0pt; line-height: 115%;">हिंदी दैनिक देशबंधु के पत्रकार साई रेड्डी की
छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित बीजापुर जिले में संदिग्ध हथियारबंद लोगों ने हत्या
कर दी थी.</span></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "mangal" , "serif"; font-size: 10.0pt; line-height: 115%;">महाराष्ट्र के पत्रकार और लेखक नरेंद्र दाभोलकर
की </span>20<span lang="HI" style="font-family: "mangal" , "serif"; font-size: 10.0pt; line-height: 115%;"> अगस्त </span>2013<span lang="HI" style="font-family: "mangal" , "serif"; font-size: 10.0pt; line-height: 115%;"> को मंदिर के सामने उन्हें बदमाशों ने
गोलियों से भून डाला.</span></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "mangal" , "serif"; font-size: 10.0pt; line-height: 115%;">रीवा में मीडिया राज के रिपोर्टर राजेश मिश्रा
की </span>1<span lang="HI" style="font-family: "mangal" , "serif"; font-size: 10.0pt; line-height: 115%;"> मार्च </span>2012<span lang="HI" style="font-family: "mangal" , "serif"; font-size: 10.0pt; line-height: 115%;"> को कुछ लोगों ने हत्या कर दी थी.
राजेश का कसूर सिर्फ इतना था कि वो लोकल स्कूल में हो रही धांधली की कवरेज कर रहे
थे.</span></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "mangal" , "serif"; font-size: 10.0pt; line-height: 115%;">मिड डे के मशहूर क्राइम रिपोर्टर ज्योतिर्मय डे
की </span>11<span lang="HI" style="font-family: "mangal" , "serif"; font-size: 10.0pt; line-height: 115%;"> जून </span>2011<span lang="HI" style="font-family: "mangal" , "serif"; font-size: 10.0pt; line-height: 115%;"> को हत्या कर दी गई. वे अंडरवर्ल्ड से जुड़ी कई
जानकारी जानते थे.</span></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "mangal" , "serif"; font-size: 10.0pt; line-height: 115%;">डेरा सच्चा सौदा प्रमुख गुरमीत राम रहीम के
खिलाख आवाज बुलंद करने वाले पत्रकार रामचंद्र छत्रपति की सिरसा में हत्या कर दी
गई. </span>21<span lang="HI" style="font-family: "mangal" , "serif"; font-size: 10.0pt; line-height: 115%;"> नवंबर </span>2002<span lang="HI" style="font-family: "mangal" , "serif"; font-size: 10.0pt; line-height: 115%;"> को उनके दफ्तर में घुसकर कुछ लोगों ने
उनको गोलियों से भून डाला.</span></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "mangal" , "serif"; font-size: 10.0pt; line-height: 115%;">छत्तीसगढ़ में रायपुर में मेडिकल की लापरवाही
के कुछ मामलों की खबर जुटाने में लगे उमेश राजपूत को उस समय मार दिया गया जब वो
अपने काम को अंजाम दे रहे थे।</span></div>
<div class="MsoNormal">
<br /></div>
<div class="MsoNormal">
<br /></div>
<div class="MsoNormal">
<br /></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "mangal" , "serif"; font-size: 10.0pt; line-height: 115%;">समय नाम मीडिया आउटलेट
स्थान</span></div>
<div class="MsoNormal">
27<span lang="HI" style="font-family: "mangal" , "serif"; font-size: 10.0pt; line-height: 115%;"> फरवरी </span>1992 <span lang="HI" style="font-family: "mangal" , "serif"; font-size: 10.0pt; line-height: 115%;">बक्षी तिरथ सिंह हिंद समाज धुरी पंजाब </span></div>
<div class="MsoNormal">
27<span lang="HI" style="font-family: "mangal" , "serif"; font-size: 10.0pt; line-height: 115%;"> फ़रवरी </span>1999 <span lang="HI" style="font-family: "mangal" , "serif"; font-size: 10.0pt; line-height: 115%;">शिवानी भटनागर द इंडियन
एक्सप्रेस नई दिल्ली </span></div>
<div class="MsoNormal">
13<span lang="HI" style="font-family: "mangal" , "serif"; font-size: 10.0pt; line-height: 115%;"> मार्च </span>1999 <span lang="HI" style="font-family: "mangal" , "serif"; font-size: 10.0pt; line-height: 115%;">इरफान हुसैन आउटलुक नई दिल्ली</span></div>
<div class="MsoNormal">
10<span lang="HI" style="font-family: "mangal" , "serif"; font-size: 10.0pt; line-height: 115%;"> अक्टूबर </span>1999 <span lang="HI" style="font-family: "mangal" , "serif"; font-size: 10.0pt; line-height: 115%;">एन.ए. लालरुहु शान मणिपुर </span></div>
<div class="MsoNormal">
18<span lang="HI" style="font-family: "mangal" , "serif"; font-size: 10.0pt; line-height: 115%;"> मार्च </span>2000 <span lang="HI" style="font-family: "mangal" , "serif"; font-size: 10.0pt; line-height: 115%;">अधीर
राय फ्रीलांस
देवघर</span>, <span lang="HI" style="font-family: "mangal" , "serif"; font-size: 10.0pt; line-height: 115%;">झारखंड</span></div>
<div class="MsoNormal">
31<span lang="HI" style="font-family: "mangal" , "serif"; font-size: 10.0pt; line-height: 115%;"> जुलाई </span>2000 <span lang="HI" style="font-family: "mangal" , "serif"; font-size: 10.0pt; line-height: 115%;"> वी. सेल्वराज नक्केरियन पेरामबलुर तमिलनाडु</span></div>
<div class="MsoNormal">
20<span lang="HI" style="font-family: "mangal" , "serif"; font-size: 10.0pt; line-height: 115%;"> अगस्त </span>2000 <span lang="HI" style="font-family: "mangal" , "serif"; font-size: 10.0pt; line-height: 115%;">थूनोजाजम ब्रजमानी सिंह मणिपुर न्यूज़ इम्फाल</span>, <span lang="HI" style="font-family: "mangal" , "serif"; font-size: 10.0pt; line-height: 115%;">मणिपुर </span></div>
<div class="MsoNormal">
21<span lang="HI" style="font-family: "mangal" , "serif"; font-size: 10.0pt; line-height: 115%;"> नवंबर </span>2002 <span lang="HI" style="font-family: "mangal" , "serif"; font-size: 10.0pt; line-height: 115%;">राम चंदर छत्रपति पूर्ण सच सिरसा
हरियाणा </span></div>
<div class="MsoNormal">
7<span lang="HI" style="font-family: "mangal" , "serif"; font-size: 10.0pt; line-height: 115%;"> सितंबर </span>2013 <span lang="HI" style="font-family: "mangal" , "serif"; font-size: 10.0pt; line-height: 115%;"> राजेश वर्मा आईबीएन </span>7 <span lang="HI" style="font-family: "mangal" , "serif"; font-size: 10.0pt; line-height: 115%;"> मुजफ्फरनगर</span>, <span lang="HI" style="font-family: "mangal" , "serif"; font-size: 10.0pt; line-height: 115%;">उत्तर प्रदेश</span></div>
<div class="MsoNormal">
6<span lang="HI" style="font-family: "mangal" , "serif"; font-size: 10.0pt; line-height: 115%;"> दिसंबर </span>2013 <span lang="HI" style="font-family: "mangal" , "serif"; font-size: 10.0pt; line-height: 115%;"> साई रेड्डी देशबंधु
बीजापुर जिला</span></div>
<div class="MsoNormal">
27<span lang="HI" style="font-family: "mangal" , "serif"; font-size: 10.0pt; line-height: 115%;"> मई </span>2014 <span lang="HI" style="font-family: "mangal" , "serif"; font-size: 10.0pt; line-height: 115%;"> तारुन कुमार आचार्य संबाद और कनक टीवी
खल्लीकोट गंजम जिला</span>,<span lang="HI" style="font-family: "mangal" , "serif"; font-size: 10.0pt; line-height: 115%;">ओडिशा </span></div>
<div class="MsoNormal">
26<span lang="HI" style="font-family: "mangal" , "serif"; font-size: 10.0pt; line-height: 115%;"> नवंबर </span>2014 <span lang="HI" style="font-family: "mangal" , "serif"; font-size: 10.0pt; line-height: 115%;"> एम. वी. एन. शंकर आंध्र प्रभा चिलाकल्यिरिपेट
आंध्र प्रदेश</span></div>
<div class="MsoNormal">
8<span lang="HI" style="font-family: "mangal" , "serif"; font-size: 10.0pt; line-height: 115%;"> जून </span>2015 <span lang="HI" style="font-family: "mangal" , "serif"; font-size: 10.0pt; line-height: 115%;">
जगेंद्र सिंह फ्रीलांस शाहजहांपुर उत्तर प्रदेश </span></div>
<br />
<div class="MsoNormal">
5<span lang="HI" style="font-family: "mangal" , "serif"; font-size: 10.0pt; line-height: 115%;"> सितंबर </span>2017 <span lang="HI" style="font-family: "mangal" , "serif"; font-size: 10.0pt; line-height: 115%;">गौरी लंकेश कन्नड़ अखबार बेंगलूरू</span></div>
</div>
Gangesh Kumarhttp://www.blogger.com/profile/16191940284702061868noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7501581940666157180.post-11131783141630122642015-06-15T05:46:00.006-07:002015-06-15T05:48:35.657-07:00डिग्री फर्जी तोमर की निकली, छवि बिगड़ गई केजरीवाल की <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhjfDLBtTif-R4s6b27V_eU5z2jiTPxR5w9KV-5BkvuA13oUaTpunt9xXF-EzCMyMKLSNXP40w4nxABFeDVz-2mwkeAB_VOz7nalg-NQpie30c6DoOMSTg97ZGd-bCXfH-zQ8V-WIaSa2EC/s1600/kejriwal-open-meeting.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="276" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhjfDLBtTif-R4s6b27V_eU5z2jiTPxR5w9KV-5BkvuA13oUaTpunt9xXF-EzCMyMKLSNXP40w4nxABFeDVz-2mwkeAB_VOz7nalg-NQpie30c6DoOMSTg97ZGd-bCXfH-zQ8V-WIaSa2EC/s400/kejriwal-open-meeting.jpg" width="400" /></a></div>
<br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
</div>
<span style="color: #494949; font-family: Raleway, sans-serif; font-size: 21px; font-weight: 600; line-height: 38px; text-align: justify;">फर्जी डिग्री मामले में दिल्ली के कानून मंत्री जितेंद्र सिंह तोमर की गिरफ्तारी ने उपराज्यपाल एलजी और आम आदमी पार्टी सरकार के बीच जंग को और तेज कर दिया है। यही नहीं दिल्ली की अरविंद केजरीवाल सरकार और केंद्र के बीच भी तकरार तेज हो चुकी है। इससे इनकार नहीं किया जा सकता है कि फर्जी कानून और बीएससी डिग्रियों को लेकर कठघरे में खड़े कानून मंत्री का लगातार बचाव करते आ रहे अरविंद केजरीवाल की छवि भी धूमिल हो रही है। सभी दलों और राजनेताओं को सियासी शुचिता का पाठ पढ़ाने में जुटे केजरीवाल को यह जवाब तो देना होगा कि क्या वजह थी कि आरोप लगते ही तोमर को पद से नहीं हटाया गया। आखिर क्यों केजरीवाल अपने कानून मंत्री के बचाव पर इस कदर उतारू थे। वहीं इस पूरे विवाद में केंद्र को घसीटने की टीम केजरीवाल की कोशिशों को भी झटका लगा है। केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने काफी तार्किक तरीके से तोमर के खिलाफ दिल्ली पुलिस की कार्रवाई से खुद को अलग रखा है। जनता के बीच राजनाथ यह संदेश देने में कामयाब रहे कि गृहमंत्रालय गिरफ्तारी के आदेश पारित नहीं करता है। लिहाजा, तोमर की गिरफतारी को लेकर केंद्र को घसीटने की आप की कोशिश को राजनीति से प्ररित होने का साफ संदेश राजनाथ ने दे दिया। एक कहावत है कि ‘बिना आग के धुंआ नहीं उठता’। तोमर की डिग्रियों के फर्जी होने को लेकर अगर आरोप लगे हैं और कोर्ट ने उनकी पुलिस रिमांड भी दे दी है तो कहीं न कहीं यह निहितार्थ तो निकाले ही जा रहे हैं कि दाल में कुछ काला जरूर है।</span><br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhDKgQHhH58SCyIk1UUNfFpFkjbLdA5gdyFgK0-3wsr8nKbP7fiP8gmtJh2GETSluWOOt14HTrMaeFfhZj_n2y7zY9YhV2B6iwJxbIeyZZJv35qTHuDCZqM3e3l1LGIEF6JG_NdTbOfJgJR/s1600/jung-vs-kejriwal.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="276" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhDKgQHhH58SCyIk1UUNfFpFkjbLdA5gdyFgK0-3wsr8nKbP7fiP8gmtJh2GETSluWOOt14HTrMaeFfhZj_n2y7zY9YhV2B6iwJxbIeyZZJv35qTHuDCZqM3e3l1LGIEF6JG_NdTbOfJgJR/s400/jung-vs-kejriwal.jpg" width="400" /></a></div>
<span style="color: #494949; font-family: Raleway, sans-serif; font-size: 21px; font-weight: 600; line-height: 38px; text-align: justify;"><br /></span>
<br />
<div class="theiaPostSlider_slides" id="tps_slideContainer_58069" style="clear: left; list-style: none; margin: 0px; overflow: hidden; padding: 0px; position: relative;">
<div style="left: 0px; overflow: hidden; visibility: visible;">
<div style="color: #494949; font-family: Raleway, sans-serif; font-size: 21px; font-stretch: normal; font-weight: 600; line-height: 38px; margin-bottom: 20px; margin-top: 10px; padding: 0px; text-align: justify;">
वहीं पूर्व आप नेता योगेंद्र यादव की इस बात में भी दम है कि अगर तोमर की डिग्रियां फर्जी नहीं हैं तो उन्हें सार्वजनिक कर डंके की चोट पर आरोप नकारने में दिक्कत क्या है। उन्होंने कहा था कि कोर्ट के पीछे यह सारे मामले को क्यों छिपाया जा रहा है। इस मामले में तोमर का बचाव कर रहे आप नेताओं में आत्मविश्वास का अभाव नजर आना भी फर्जी डिग्री आरोपों को पुख्ता कर रहा है। कुमार विश्वास से लेकर आशुतोष तक कोई भी आप नेता डिग्री सच होने को लेकर बयान देने से बचता ही नजर आ रहा है। डिग्री की सच्चाई पर सिर्फ इतना ही कहा जा रहा है कि यह तो कोर्ट तय करेगी कि सच्चे और झूठे दो तरह के दस्तावेजों में से सही कौन है। संदेश तो यही जा रहा है कि यह सारे आप नेता सिर्फ तोमर की गिरफ्तारी की प्रक्रिया में खामी निकाल रहे हैं और केंद्र के मंत्रियों स्मृति ईरानी और निहालचंद के मुद्दों को उछालकर अपने घर में मौजूदा कमियों को छिपा रहे हैं। एक बात और ध्यान देने की है कि मंगलवार को कोर्ट के रिमांड देने तक आशुतोष और कुमार विश्वास काफी आक्रामक तरीके से पुलिस के रवैये पर प्रहार कर रहे थे। लेकिन तोमर की रिमांड का फैसला आते ही उनके तेवर कुछ ढीले पड़ गए। रिमांड देने का मतलब यही निकाला जाने लगा कि कहीं न हीं कोर्ट दिल्ली पुलिस की तरफ से पेश किए गए साक्ष्यों से संतुष्ट है और इसके आधार पर आगे की जांच को जरूरी समझ रहा है। यही वजह है कि आप नेताओं ने अपनी आक्रामकता में कमी कर ली और शीर्ष न्यायपालिका का दरवाजा खटखटाने की बात करने लगे।</div>
<div style="color: #494949; font-family: Raleway, sans-serif; font-size: 21px; font-stretch: normal; font-weight: 600; line-height: 38px; margin-bottom: 20px; margin-top: 10px; padding: 0px; text-align: justify;">
उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया से पूछा गया तो उन्होंने तोमर के कॉलेज से दिए गए शपथपत्र को सामने कर कह दिया कि इसमें साफ है कि तोमर एलएलबी की तीनों कक्षाओं में उपस्थित रहे थे और परीक्षाओं में उत्तीर्ण भी हुए थे। लेकिन इससे पहले के राममनोहर लोहिया अवध यूनिवर्सिटी की बीएससी डिग्री के फर्जी होने को लेकर जो आरटीआई के दस्तावेज सामने आए थे उस पर सिसोदिया चुप रह गए थे। यह सारा कुछ यही संकेत देता है कि आप नेताओं के भरोसे में ही कमी है और शायद उन्हें समझ में आ रहा है कि उनका बचाव कमजोर पड़ रहा है।</div>
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<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj4TG7eD04jJyo3swe398v22ffLt4QUST4yn150QpUg9m1LwFVVg6CENQIUqN19loVM1JmZnVKQqZXB6fmJ5YSTD2_o2sVhCGCKAme76qbVffgcstw6qfnsymjQ81M0bA3k9MuswJRnYlIg/s1600/Delhi-Law-Minister_Jitender-Singh-Tomar.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="276" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj4TG7eD04jJyo3swe398v22ffLt4QUST4yn150QpUg9m1LwFVVg6CENQIUqN19loVM1JmZnVKQqZXB6fmJ5YSTD2_o2sVhCGCKAme76qbVffgcstw6qfnsymjQ81M0bA3k9MuswJRnYlIg/s400/Delhi-Law-Minister_Jitender-Singh-Tomar.jpg" width="400" /></a></div>
<div style="color: #494949; font-family: Raleway, sans-serif; font-size: 21px; font-stretch: normal; font-weight: 600; line-height: 38px; margin-bottom: 20px; margin-top: 10px; padding: 0px; text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="color: #494949; font-family: Raleway, sans-serif; font-size: 21px; font-stretch: normal; font-weight: 600; line-height: 38px; margin-bottom: 20px; margin-top: 10px; padding: 0px; text-align: justify;">
यही वजह है कि इस पूरे घटनाक्रम को सारे आप नेता एलजी और केंद्र बनाम केजरीवाल सरकार का रंग देने में जुटे हुए हैं। डिग्री विवाद पर केंद्रित करने से ज्यादा आप नेता इसे भ्रष्टाचार पर केजरीवाल के वार का नतीजा बता रहे हैं। सिसोदिया ने कहा भी कि सीएनजी घोटाले की फाईल दोबारा खोले जाने की चर्चा के बाद ही तोमर विवाद को और हवा दी जा रही है। तोमर की गिरफ्तारी को भ्रष्टाचार के खिलाफ मोर्चा खोल रही केजरीवाल सरकार के विरुद्ध बदले की कार्रवाई निरूपित करने में भी आप नेता जुटे हुए हैं। एसीबी के मुखिया को बदले जाने को लेकर भी आप सरकार टकराव की मुद्रा में आ गई थी। कहा जाने लगा था कि एसीबी को अपने निष्ठावान के सुपुर्द कर एलजी भ्रष्टाचारियों को बचाने की कवायद में जुटे हैं। एक तरफ केजरीवाल निराधार आरोप लगाकार यह कोशिश करते हैं कि सभी उसका यकीन बिना सुबूत के कर लें, वहीं दूसरी तरफ तोमर के खिलाफ आ रहे साक्ष्यों को नकारते हुए उनकी गिरफ्तारी को बदले की कार्रवाई बता रहे हैं।</div>
<div style="color: #494949; font-family: Raleway, sans-serif; font-size: 21px; font-stretch: normal; font-weight: 600; line-height: 38px; margin-bottom: 20px; margin-top: 10px; padding: 0px; text-align: justify;">
बहरहाल, विवादों के बीच पिस रही दिल्ली की जनता तो समझ ही रही है कि केजरीवाल और उनकी टीम हर मसले पर सियासत चमकाने की कोशिश भी कर रही है। बड़ा सवाल यह है कि क्या इससे दिल्ली में कामकाज ठप नहीं पड़ गया है और जनता हलकान नहीं हो रही है। जवाब भी साफ है कि विवादों की वजह से जनता को परेशानी हो रही है और विकास की गति मंद हो रही है।</div>
<div style="color: #494949; font-family: Raleway, sans-serif; font-size: 21px; font-stretch: normal; font-weight: 600; line-height: 38px; margin-bottom: 20px; margin-top: 10px; padding: 0px; text-align: justify;">
सवाल यह है कि केजरीवाल हर मुद्दे पर केंद्र से टकराव की नौबत क्यों ला रहे हैं। माना जा रहा है कि उनका निशाना आगे तक है। दिल्ली तो बस एक पड़ाव था और अब पंजाब और दूसरे सूबों में भी आप के पैर जमाने की कोशिश के तहत ही केजरीवाल यह संदेश दे रहे हैं कि वही अकेले भ्रष्टाचार के खिलाफ जंग लड़ने वाले हैं और बाकी सभी इसे बढ़ावा देने वाले हैं। लेकिन तेामर प्रकरण पर केजरीवाल को सफाई देना मुश्किल होगा क्योंकि फर्जी डिग्री मामले में दिल्ली के मुख्यमंत्री उनका बचावकर खुद बुरी तरह फंस गए हैं। तोमर का जुर्म अगर साबित हुआ तो इसकी आंच केजरीवाल पर जरूर आएगी।</div>
<div style="color: #494949; font-family: Raleway, sans-serif; font-size: 21px; font-stretch: normal; font-weight: 600; line-height: 38px; margin-bottom: 20px; margin-top: 10px; padding: 0px; text-align: justify;">
<span style="color: magenta;">गंगेश कुमार ठाकुर</span></div>
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</div>
</div>
Gangesh Kumarhttp://www.blogger.com/profile/16191940284702061868noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7501581940666157180.post-72874237960743321962013-12-16T01:37:00.000-08:002013-12-16T01:37:00.080-08:00बेहतरीन पंक्तियां<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjDw6rsWdTor5kKqJT19EwiZKRUw5RegyBA26GpmnAYr4kfI7ib3lynZofI_qo5FUhyphenhyphenAXZC0aoO7_3ifpKaoph2R9DPtRU3PeyYj3FXdkCqEtpzQQBvFS_iEURVe9IleSWrCQbHAT6cS9Tc/s1600/download.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjDw6rsWdTor5kKqJT19EwiZKRUw5RegyBA26GpmnAYr4kfI7ib3lynZofI_qo5FUhyphenhyphenAXZC0aoO7_3ifpKaoph2R9DPtRU3PeyYj3FXdkCqEtpzQQBvFS_iEURVe9IleSWrCQbHAT6cS9Tc/s1600/download.jpg" /></a></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 16.0pt; line-height: 115%; mso-ascii-font-family: Calibri; mso-ascii-theme-font: minor-latin; mso-bidi-font-family: Mangal; mso-bidi-theme-font: minor-bidi; mso-hansi-font-family: Calibri; mso-hansi-theme-font: minor-latin;"><br /></span></div>
<div class="MsoNormal">
<b><span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 16.0pt; line-height: 115%; mso-ascii-font-family: Calibri; mso-ascii-theme-font: minor-latin; mso-bidi-font-family: Mangal; mso-bidi-theme-font: minor-bidi; mso-hansi-font-family: Calibri; mso-hansi-theme-font: minor-latin;">अलग से राग में
गाना, तेरा अलग ही रंग में रंगना</span><span style="font-size: 16.0pt; line-height: 115%;"><o:p></o:p></span></b></div>
<div class="MsoNormal">
<b><span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 16.0pt; line-height: 115%; mso-ascii-font-family: Calibri; mso-ascii-theme-font: minor-latin; mso-bidi-font-family: Mangal; mso-bidi-theme-font: minor-bidi; mso-hansi-font-family: Calibri; mso-hansi-theme-font: minor-latin;">यही दस्तूर है
दुनिया का कहां इससे तुम अलग होगे</span><span style="font-size: 16.0pt; line-height: 115%;"><o:p></o:p></span></b></div>
<div class="MsoNormal">
<b><span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 16.0pt; line-height: 115%; mso-ascii-font-family: Calibri; mso-ascii-theme-font: minor-latin; mso-bidi-font-family: Mangal; mso-bidi-theme-font: minor-bidi; mso-hansi-font-family: Calibri; mso-hansi-theme-font: minor-latin;">समय की तेजधारा में
जो बहकर सीखते हो तुम</span><span style="font-size: 16.0pt; line-height: 115%;"><o:p></o:p></span></b></div>
<div class="MsoNormal">
<b><span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 16.0pt; line-height: 115%; mso-ascii-font-family: Calibri; mso-ascii-theme-font: minor-latin; mso-bidi-font-family: Mangal; mso-bidi-theme-font: minor-bidi; mso-hansi-font-family: Calibri; mso-hansi-theme-font: minor-latin;">कहां तुम सीख पाते
कभी साहिल पर खड़े होके</span><span style="font-size: 16.0pt; line-height: 115%;"><o:p></o:p></span></b></div>
<div class="MsoNormal">
<b><span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 16.0pt; line-height: 115%; mso-ascii-font-family: Calibri; mso-ascii-theme-font: minor-latin; mso-bidi-font-family: Mangal; mso-bidi-theme-font: minor-bidi; mso-hansi-font-family: Calibri; mso-hansi-theme-font: minor-latin;">अजब की बात पर जो
रोज तुम मुस्कुरा देते हो</span><span style="font-size: 16.0pt; line-height: 115%;"><o:p></o:p></span></b></div>
<div class="MsoNormal">
<b><span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 16.0pt; line-height: 115%; mso-ascii-font-family: Calibri; mso-ascii-theme-font: minor-latin; mso-bidi-font-family: Mangal; mso-bidi-theme-font: minor-bidi; mso-hansi-font-family: Calibri; mso-hansi-theme-font: minor-latin;">कहां बातें कभी तुम
मुस्कुरा के सोचते हो साहिब</span><span style="font-size: 16.0pt; line-height: 115%;"><o:p></o:p></span></b></div>
<div class="MsoNormal">
<b><span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 16.0pt; line-height: 115%; mso-ascii-font-family: Calibri; mso-ascii-theme-font: minor-latin; mso-bidi-font-family: Mangal; mso-bidi-theme-font: minor-bidi; mso-hansi-font-family: Calibri; mso-hansi-theme-font: minor-latin;">सुखद एहसास की गर्मी
ख्यालों में बसाकर तुम</span><span style="font-size: 16.0pt; line-height: 115%;"><o:p></o:p></span></b></div>
<div class="MsoNormal">
<b><span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 16.0pt; line-height: 115%; mso-ascii-font-family: Calibri; mso-ascii-theme-font: minor-latin; mso-bidi-font-family: Mangal; mso-bidi-theme-font: minor-bidi; mso-hansi-font-family: Calibri; mso-hansi-theme-font: minor-latin;">दूसरों पर रोज हंसते
हो कहां खुद पे कभी हंसते</span><span style="font-size: 16.0pt; line-height: 115%;"><o:p></o:p></span></b></div>
<div class="MsoNormal">
<b><span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 16.0pt; line-height: 115%; mso-ascii-font-family: Calibri; mso-ascii-theme-font: minor-latin; mso-bidi-font-family: Mangal; mso-bidi-theme-font: minor-bidi; mso-hansi-font-family: Calibri; mso-hansi-theme-font: minor-latin;">तुम्हारी हर बात
कितने ही सवालों का जवाब बनती</span><span style="font-size: 16.0pt; line-height: 115%;"><o:p></o:p></span></b></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 16.0pt; line-height: 115%; mso-ascii-font-family: Calibri; mso-ascii-theme-font: minor-latin; mso-bidi-font-family: Mangal; mso-bidi-theme-font: minor-bidi; mso-hansi-font-family: Calibri; mso-hansi-theme-font: minor-latin;"><b>अगर दो बातें कभी
तुम मुस्कुरा को जो कर देते</b></span><span style="font-size: 16.0pt; line-height: 115%;"><o:p></o:p></span></div>
<br />
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 16.0pt; line-height: 115%; mso-ascii-font-family: Calibri; mso-ascii-theme-font: minor-latin; mso-bidi-font-family: Mangal; mso-bidi-theme-font: minor-bidi; mso-hansi-font-family: Calibri; mso-hansi-theme-font: minor-latin;"><span style="color: magenta;"><b><i>---गंगेश कुमार
ठाकुर---</i></b></span><o:p></o:p></span></div>
</div>
Gangesh Kumarhttp://www.blogger.com/profile/16191940284702061868noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-7501581940666157180.post-36131909869702705912013-11-28T04:01:00.000-08:002013-11-28T04:01:05.250-08:00‘आप’ ऐसे तो न थे?<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi7DOG8-2Xm8GpdL67SM0q39CAZ261aeWTSDy-QPyq16mr8lykGNp7jSg7CRgy1FjMabPToFaafIzp9MhFg8dQzwsC-VLNglyjgRYTQiVeMKu20hZFl_Eh94JwJQIztYapAI9PD_FNHeTDB/s1600/AAP-380x330.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="277" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi7DOG8-2Xm8GpdL67SM0q39CAZ261aeWTSDy-QPyq16mr8lykGNp7jSg7CRgy1FjMabPToFaafIzp9MhFg8dQzwsC-VLNglyjgRYTQiVeMKu20hZFl_Eh94JwJQIztYapAI9PD_FNHeTDB/s320/AAP-380x330.jpg" width="320" /></a></div>
<div style="background-color: white; border: 0px none; color: #333333; font-family: 'Droid Sans', Arial, Verdana, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 22px; list-style: none; outline: none; padding: 1em 0px; text-align: justify;">
<br /></div>
<div style="background-color: white; border: 0px none; color: #333333; font-family: 'Droid Sans', Arial, Verdana, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 22px; list-style: none; outline: none; padding: 1em 0px; text-align: justify;">
<a href="http://www.boljantabol.com/hindi/aap-party-sting/">http://www.boljantabol.com/hindi/aap-party-sting/</a></div>
<div style="background-color: white; border: 0px none; color: #333333; font-family: 'Droid Sans', Arial, Verdana, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 22px; list-style: none; outline: none; padding: 1em 0px; text-align: justify;">
70 साल के बुढ़े ने देश में भ्रष्टाचार के खिलाफ जिस तरह से लोगों को जगाया वह सचमुच ऐसा मंजर था मानो जयप्रकाश नारायण की वह क्रांति फिर से भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में कई नए चेहरे और एक नई शुरुआत के तौर पर लाई गई हो। लेकिन धीरे-धीरे सत्ता की भूख ने इस आंदोलन को भी दो टूकड़ों में विभक्त कर दिया। आंदोलन की फसल के बीज बोए जाने से उसके लहलहाने तक इसे काटने वाले हाथ कम और उसकी देखभाल करनेवाले हाथ ज्यादा दिख रहे थे। देश की आवाम भी इसमें सहयोग अपना भरपूर सहयोग दे रही थी, लेकिन सत्ता की भूख ऐसी भूख है जिसने इस आंदोलन के दो ऐसे टूकड़े किए कि इस आंदोलन की नाव पर सवारी करनेवाले लोग अपने में ही आरोप-प्रत्यारोप का घिनौना खेल खेलने लगे। खैर मामला सुलझा, एक हिस्से ने धीरे-धीरे ही सही अपने आंदलन को जारी रखा और दूसरा हिस्सा सत्ता में दखल देने के ख्याल से पार्टी बनाकर लोगों के बीच मत मांगने पहुंच गया। जनता को भी लगने लगा था कि कहीं न कहीं दोनों ही का उद्देश्य सही है। अगर कुछ बदलना है तो खुद को सत्ता में लाना होगा और अगर लोगों को जगाना है तो आंदोलन की जरूरत पड़ेगी।</div>
<div style="background-color: white; border: 0px none; color: #333333; font-family: 'Droid Sans', Arial, Verdana, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 22px; list-style: none; outline: none; padding: 1em 0px; text-align: justify;">
लेकिन समय-समय पर इस पार्टी ’आप’ पर जिस तरह के आरोप लगने लगे उसने जनता के दिल से इन लोगों के प्रति हमदर्दी को कम करना शुरू कर दिया। हालांकि फिर भी जनता बदलाव की ख्वाहिशमंद थी सो, कहीं न वह अपना विश्वास ’आप’ में दिखा रही थी। पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव जारी था। दिल्ली जहां लोकतंत्र की जमीन तैयार की जाती है, जहां से पूरे देश की सत्ता के महाभारत का बिगुल फूंका जाता है, जहां से लोकतंत्र निकलकर विदेशी गलियों में हलचल पैदा करता है और जहां के लोकतंत्र की चर्चा के बिना विश्व की राजनीतिक चर्चा अधूरी रहती है। ऐसी धरती पर 4 नवंबर को चुनाव होना तय किया गया। पार्टियां चुनाव प्रचार में जुट गईं। शब्दों की तलवारें गरजने लगी। आरोप-प्रत्यारोप का भाला चुभोया जाने लगा। जुबान से गोलियों की बौछारें होने लगी। यानि राजनीतिक अखाड़े में जुबानी खून-खराबा शुरु हो गया। ऐसे में ’आप’ ने दिल्ली विधानसभा में अपने सत्तर प्रत्याशियों को सभी सीटों पर खड़ा करने का फैसला किया और फैसला भी इसलिए क्योंकि समाज बदलना था, देश बदलना था, सत्ता का सेमीफाईनल यहां से जीतकर देश से भ्रष्टाचार मिटाने का संकल्प की अपनी तैयारी का प्रदर्शन करना था। रास्ता और सोच बिल्कुल सटीक, एकदम ईमानदार सोच। लेकिन इस सोच को तब विराम लगा जब एक मीडिया हाऊस ने ’आप’ के उम्मीदवारों की जुबां और सोच की हकीकत को अपने कैमरे में एक स्टिंग के तौर पर कैद किया। फिर क्या था ईमानदार नेतृत्व भी सवालों के घेरे में। अब आखिर जनता करे भी तो क्या? वो एक ईमानदार नेतृत्व की राह देख रही थी, तो यहां भी धोखा ही मिला। देश में सत्ता का समीकरण जब भी तैयार होता है उसके पहले इतने कीचड़ उछाले जाते हैं कि जनता का भी दामन उनमें से अपने लिए प्रतिनिधियों का चुनाव करने में दागदार हो जाता है।</div>
<div style="background-color: white; border: 0px none; color: #333333; font-family: 'Droid Sans', Arial, Verdana, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 22px; list-style: none; outline: none; padding: 1em 0px; text-align: justify;">
‘आम आदमी पार्टी’ एक बार फिर विवादों में आ गई। इस बार एक स्टिंग ऑपरेशन में पार्टी के कई खास चेहरे फंस गए। इनमें से दो चेहरे हैं जो पार्टी के बिल्कुल खास थे आर के पुरम से प्रत्याशी शाजिया इल्मी और कुमार विश्वास। स्टिंग ऑपरेशनों में इन दोनों पर धन लेने और धन लेने के लिए तैयार होने का आरोप लगाया गया। शाजिया पर आरोप है कि उन्होंने पार्टी की जगह वॉलेंटियर्स को कच्ची रसीदों पर चंदा देने की बात कही जबकि कुमार विश्वास पर आरोप लगे हैं कि उन्होंने शो के लिए पैसे लिए और पेमेंट चेक की जगह कैश में लिया। मीडिया सरकार नाम की संस्था ने शाजिया इल्मी और कुमार विश्वास के साथ-साथ आप पार्टी के कुछ और नेताओं का स्टिंग ऑपरेशन किया। हालांकि आप पार्टी ने मीडिया सरकार के इस स्टिंग को बेबुनियाद और गलत बताया है। मीडिया सरकार ने आप के सात और उम्मीदवारों का स्टिंग ऑपरेशन किया है। इस स्टिंग में कोंडली से आप के उम्मीदवार मनोज कुमार, संगम विहार के उम्मीदवार दिनेश मोहनिया, ओखला के उम्मीदवार इरफान उल्लाह खान, रोहतास नगर के उम्मीदवार मुकेश हुड्डा, पालम से आप उम्मीदवार भावना गौर, देवली के आप उम्मीदवार प्रकाश शामिल हैं। मीडिया सरकार ने दावा किया है कि आप पार्टी के ये नेता कायदे कानून को ताक पर रखकर पैसे के बदले हर उस काम के लिए तैयार हो गये थे जिसका आरोप ये दूसरे नेताओं पर लगाते रहते हैं। अब हकीकत क्या है इसका फैसला तो आप की तरफ से पार्टी के द्वारा दिए जानेवाले बयान पर ही निर्भर करता है। पार्टी के नेता अऱविंद केजरीवाल ने कहा है कि वो पूरा स्टिंग देखने के बाद हीं इस पर कोई फैसला करेंगे या बयान देंगे। हलांकि आप के संयोजक अरविंद केजरीवाल ने कहा कि भ्रष्टाचार से कोई समझौता नहीं होगा और किसी दोषी को बख्शा नहीं जाएगा। उन्होंने इस स्टिंग को पार्टी के खिलाफ साजिश करार दिया। वहीं स्टिंग ऑपरेशन की चपेट में आई ‘आप’ प्रत्याशी शाजिया इल्मी ने विधानसभा चुनाव से अपनी उम्मीदवारी वापस लेने की पेशकश की है। उनका कहना है कि वह नहीं चाहतीं कि उनकी वजह से पार्टी की बेदाग छवि को कोई नुकसान पहुंचे। जब तक इस पूरे मामले में वह पाक-साफ नहीं करार दी जातीं, वह चुनाव नहीं लड़ेंगीं। इसके पहले कांग्रेस और भाजपा भी एक वीडियो के मुद्दे पर अरविंद केजरीवाल की अगुवाई वाली आम आदमी पार्टी (आप) पर निशाना साधा चुकी है, जिसमें दिखाया गया है कि जनलोकपाल विधेयक की खातिर किए गए आंदोलन के दौरान इकट्ठा किए गए धन के आप द्वारा कथित गलत इस्तेमाल पर अन्ना हजारे अपनी नाराजगी जाहिर कर रहे हैं। हालांकि, अन्ना हजारे ने इस पर सफाई दी है कि केजरीवाल और उनके बीच किसी तरह का झगड़ा नहीं है़, सिर्फ मतभेद हैं, जिन्हें दूर किया जा सकता है। खैर मामले की हकीकत कुछ भी हो लेकिन जनता के लिए भरोसे का एक नाम बन गई ‘आप’ के लिए जनता तो बस इतना ही पुछती है कि ‘आप’ ऐसे तो न थे?</div>
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Gangesh Kumarhttp://www.blogger.com/profile/16191940284702061868noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7501581940666157180.post-41135383066806697832013-11-28T03:57:00.001-08:002013-11-28T03:57:55.316-08:00योग्यता नहीं परिवार से सीखकर चलता है भारतीय लोकतंत्र<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiliHoE7rAfeq1ozQfPRW8qt7eB42fuCEUzEtdimMxYWeq3bUS9nRDuckBXXIlfGUhs5JCig_5WJZ5Sz-_uSndJ-onwrjIMjyEKbtD2MjKKOR87saqAf8XsDk5pflDyYCtUJTjdRpPBIcBP/s1600/combined-logo-of-political-parties-650x330.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="162" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiliHoE7rAfeq1ozQfPRW8qt7eB42fuCEUzEtdimMxYWeq3bUS9nRDuckBXXIlfGUhs5JCig_5WJZ5Sz-_uSndJ-onwrjIMjyEKbtD2MjKKOR87saqAf8XsDk5pflDyYCtUJTjdRpPBIcBP/s320/combined-logo-of-political-parties-650x330.jpg" width="320" /></a></div>
<div style="background-color: white; border: 0px none; color: #333333; font-family: 'Droid Sans', Arial, Verdana, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 22px; list-style: none; outline: none; padding: 1em 0px; text-align: justify;">
<strong style="border: 0px none; list-style: none; margin: 0px; outline: none; padding: 0px;"><span style="border: 0px none; color: magenta; list-style: none; margin: 0px; outline: none; padding: 0px;"><a href="http://www.boljantabol.com/hindi/family-politics-on-indian-democracy/">http://www.boljantabol.com/hindi/family-politics-on-indian-democracy/</a></span></strong></div>
<div style="background-color: white; border: 0px none; color: #333333; font-family: 'Droid Sans', Arial, Verdana, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 22px; list-style: none; outline: none; padding: 1em 0px; text-align: justify;">
<strong style="border: 0px none; list-style: none; margin: 0px; outline: none; padding: 0px;"><span style="border: 0px none; color: magenta; list-style: none; margin: 0px; outline: none; padding: 0px;">पंद्रहवें लोकसभा चुनावों के बाद एक नारा चारो तरफ़ सुनाई देने लगा था। लगभग हर राजनीतिक दल यह कहने लगे थे कि अब युवा भारत का समय है और राजनीती में युवाओं को लाया जाना चाहिए और लाया जाएग। उस बार का लोकसभा चुनाव संम्पन्न हो गया और अच्छी संख्या में युवा संसद चुनकर संसद तक आ पहुंचे। इसके बाद शुरु हुआ दौर हर पार्टी द्वारा युवाओं को आगे लाने का। लेकिन जब ये युवा ब्रिगेड राजनीति के अखाडे से निकलकर जनता के सामने आई तो लगा यह युवा राजनीति नहीं ये तो राजतंत्र की वंशवाद परंपरा का लोकतांत्रिक रूप है। जब हमने युवा लोकतंत्र को ध्यान से देखा तो लगने लगा मानो वास्तविक लोकतंत्र परिवार की परंपरा को आगे चलाने का ही दूसरा नाम है। राहुल गाँधी , अखिलेश यादव, धर्मेन्द्र यादव, प्रिया दत्त, सचिन पायलट, जीतेंद्र प्रसाद ऐसे ही कई नाम इस फेहरिस्त में है जो राजनीति में सत्ता को नहीं अपने पूर्वजों की विरासत को संभालने आए हैं।</span></strong></div>
<div style="background-color: white; border: 0px none; color: #333333; font-family: 'Droid Sans', Arial, Verdana, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 22px; list-style: none; outline: none; padding: 1em 0px; text-align: justify;">
दरअसल यहां प्रश्न इनकी योग्यता या अयोग्यता का न होकर इनको राजनीति में तबज्जो और मौका दिए जाने को लेकर है। सवाल यहां लोकतंत्र के उस महान उद्देश्य का है जो शासन में जनता की अधिक से अधिक सहभागिता चाहता है। नेहरू-गांधी परिवार ने तो ये मान लिया है कि कांग्रेस की संपूर्ण सत्ता को इन्हीं का परिवार संभाल सकता है। कांग्रेस के बाकी नेता अब इस परिवार के मंत्री बन गए हैं ,जिनका अलग होना उनके अपने अस्तित्व को मिटा लेना या संकट की स्थिति में डाल लेना है। कमोवेश यह बात लगभग हर पार्टी में है, चाहे वह राष्ट्रीय स्तर की पार्टी हो या क्षेत्रीय स्तर की। राजनीति में इस तरह का परिवारवाद ये सामान्य मुद्दा नहीं बल्कि गहन सोच का विषय है कि आखिर जिस राजशाही, परिवारवाद और सामंतवाद से लड़कर हमने लोकतंत्र को स्थापित किया है वो इस तरह से एक सफल लोकतंत्र बन पाएगा फिर लोकतंत्र और राजतंत्र के बीच अंतर क्या रह जाएगा। बस भोली-भाली जनता के मतदान का अंतर ही तो होगा राजतंत्र और लोकतंत्र के बीच। वो भी ऐसा मतदान जिसमें जीतने वाला कोई भी राजा किसी न किसी परिवार से संबंध रखता हो। आमजन के लिए लोकतंत्र में केवल वोट देने का ही काम नहीं है , बल्कि उनमें योग्य व्यक्तियों को आगे आकर जनता का प्रतिनिधित्व करने की भी क्षमता है लेकिन उस क्षमता का महत्व इस लोकतंत्र की परिवारवादी व्यवस्था में मिलकर समाप्त हो जाता है। ऐसे में लोकतंत्र को परिवारवाद की राजनीति के सहारे उसी तरह जिंदा रखा गया है जैसे वेंटिलेसन पर किसी मनुष्य को जिंदा रखा जाता है। डॉक्टर अपने बेटे को डॉक्टर बना दे, इंजीनियर अपने बेटे को इंजीनियर बना दे या अध्यापक का बेटा अध्यापक बन जाये तो इससे किसी को कोई आपत्ति नहीं होगी ना ही किसी को सार्वजनिक रूप से इससे नुकसान होगा। लेकिन अगर किसी राजनीतिक नेता का बेटा या बेटी राजनीति में आ जाए तो सबको आपत्ति होगी क्योंकि देश में राजनीति एक व्यवसाय का रूप ले चुकी है जिस व्यवसाय के लिए योग्यता नहीं परिवार द्वार सिखाया गया राजनीति का पाठ जरूरी है। पूरे विश्व के लोकतांत्रिक इतिहास में भारत एक ऐसा देश है, जहां राजनीति में परिवारवाद की जड़ें गहरी धंसी हुई है। यहां एक ही परिवार के कई व्यक्ति लंबे समय से प्रधानमंत्री और केन्द्रीय राजनीति की धुरी रहे हैं। आजादी के तुरंत बाद शुरू हुई वंशवाद की यह अलोकतांत्रिक परंपरा अब काफी मजबूत रुप ले चुकी है। राष्ट्रीय राजनीति के साथ-साथ राज्य और स्थानीय स्तर पर इसकी जड़ें इतनी जम चुकी है कि देश का प्रजातंत्र परिवारतंत्र नजर आता है। इस परिवारतंत्र को कितना लोकतांत्रिक कहा जा सकता है, यह सवाल दिनों दिन बढ़ता जा रहा है।</div>
<div style="background-color: white; border: 0px none; color: #333333; font-family: 'Droid Sans', Arial, Verdana, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 22px; list-style: none; outline: none; padding: 1em 0px; text-align: justify;">
जवाहरलाल नेहरू से होते हुए इंदिरा गाँधी, संजय गांधी, राजीव गांधी, मेनका गांधी, सोनिया गांधी, प्रियंका गांधी, राहुल गांधी, वरुण गांधी जिस तरह से पारिवारिक सत्ता का फायदा लेते आए हैं और देश की राजनीति में अपनी खासी ठसक रखते हैं वो देश क्या विदेशों में भी किसी से छूपी नहीं है। महाराष्ट्र में ठाकरे परिवार का भी हाल राजनीति में कुछ ऐसा हा रहा है। उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायमसिंह के परिवार के लगभग बीस छोटे बड़े सदस्य केन्द्र या उत्तर प्रदेश की कुर्सियों पर विराजमान हैं। पंजाब में अकाली दल के प्रकाशसिंह बादल के एक दर्जन पारिवारिक लोग कुर्सियों पर काबिज हैं। हरियाणा में स्वर्गीय देवीलाल के पुत्र चौटाला जी और उनके बेटे राजनीति में हैं। कश्मीर में स्व. शेख अब्दुला के बाद उनके बेटे फारूख अब्दुला और उनके भी बेटे उमर अब्दुला क्रमश: केन्द्र व राज्य में काबिज है। कश्मीर में ही विरोधी नेता महबूबा मुफ्ती अपने पिता भूतपूर्व केन्द्रीय गृह मन्त्री की विरासत की मालकिन हैं। हिमांचल के भारतीय जनता पार्टी के वर्तमान मुख्यमंत्री के पुत्र अनुराग ठाकुर राष्ट्रीय युवा मोर्चा संभाल रहे हैं। हरियाणा के दो भूतपूर्व बड़े नेता चौधरी बंशीलाल व भजनलाल के वंशज राजनीति में सक्रिय हैं। बिहार के राजद के बड़े नेता लालू प्रसाद ने अपनी पत्नी राबड़ी देवी को चूल्हे से सीधे मुख्यमन्त्री बनाया था। उनके दो साले भी राजनीति मे अग्रणीय हैं। स्वर्गीय लालबहादुर शास्त्री जी के पुत्र, गोविन्दवल्लभ पन्त के पुत्र-पौत्र, मध्यप्रदेश के शुक्ला बन्धु अपने पिता की विरासत को लंबे समय तक संभालते रहे। उत्तराखंड के वर्तमान मुख्यमन्त्री अपने पिता हेमवतीनंदन की लीक पर हैं, उनकी बहन भी उत्तरप्रदेश में कॉग्रेस की कमान सम्हाले हुई हैं। चौधरी चरणसिंह के पुत्र एवं पौत्र उनके बताए मार्ग पर चल रहे हैं। वर्तमान लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार, बाबू जगजीवनराम की बेटी हैं। हारे हुए राष्ट्रपति उम्मीदवार संगमा लोकसभा के अध्यक्ष रह चुके हैं। बेटे को आसाम मे राज्य विधान सभा में और बेटी को लोकसभा में स्थान दिला कर आगे की राह तक रहे हैं। मध्यप्रदेश के राज घराने वाले सिंधिया परिवार की पीढ़ियां राजनीति की अग्रिम पंक्ति में सक्रिय हैं। दक्षिण में तमिलनाडू में करुनानिधि पुत्र एवं पुत्री, भतीजे व अन्य रिश्तेदारों के साथ राजनीति का सुख ले रहे हैं। केरल में स्वर्गीय करुणाकरण ने पुत्र मोह में बहुत खेल किया, और पार्टी से विद्रोह किया। कर्नाटक में स्वनामधन्य हरदनहल्ली देवेगौड़ा के बेटे का मुख्यमंत्री बनना और हटाया जाना ज्यादा पुराना मामला नहीं है। आन्ध्र में फिल्मों से आये राजनेता/मुख्यमन्त्री एन टी रामा राव की विरासत में पत्नी लक्ष्मी और दामाद चंद्रबाबू नायडू के राजकाज की बातें अब भी लोगों को याद हैं। आंध्र में ही पूर्व मुख्यमन्त्री राजशेखर रेड्डी के पुत्र जगन के हक की लड़ाई केवल कुर्सियों के लिए चली है। झारखंड में शिबूसोरेन का व उनके बेटे का राजनीतिक दांवपेंच सिर्फ कुर्सी के लिए चलता रहा है। एनसीपी नेता शरद पवार की बेटी राज्यसभा में और भतीजा विधान सभा में उनके आदर्शों का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। महिला आयोग की वर्तमान अध्यक्षा ममता शर्मा के ससुर लंबे समय तक राजस्थान में कई विभागों के मन्त्री रहे चुके हैं। राजस्थान के वर्तमान गृहमंत्री शांति धारीवाल के पिता भी अपने समय के बड़े नेता थे। इस प्रकार के कई राजनीतिकों के बेटे, भतीजे और भाई अपने बाप या दादा की वसीयत को सम्हाले हुए हैं। दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित, हरीश रावत, यशपाल आर्य, भूपेंद्रसिंह हुड्डा, उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमन्त्री कल्याणसिंह, इन सबके बेटे भी इसी राह पर हैं।</div>
<div style="background-color: white; border: 0px none; color: #333333; font-family: 'Droid Sans', Arial, Verdana, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 22px; list-style: none; outline: none; padding: 1em 0px; text-align: justify;">
भारतीय राजनीति में अगर परिवारवाद का विरोध करने वाले कोई राजनेता थे, तो वो थे राम मनोहर लोहिया। लोहिया का मानना था की राजनीति में वंशवाद नहीं होना चाहिए जिसमें नेतृत्व की क्षमता हो वो आगे बढ कर राजनीति को थाम ले साथ ही जनता के हित में काम करे ना की अपने और अपने परिवार के लिए। भारत में लोकतंत्र के बदलते इस मिजाज़ को लोग भले ही हलके तौर पर ले रहे हों या इसके दुष्परिणामों की तरफ निगाह ना डाल रहे हों , पर यकीनन ये ऐसा खतरा है जो लोकतंत्र की पुख्ता इमारत को विषैला बना देगा , क्योंकि परिवार-वाद का कहर बड़ी तेज़ी से इसमें ज़हर बो रहा है ! वंशवाद अगर इसी तरह भारतीय राजनीति में अपनी जड़े जमाता रहा तो आम आदमी का राजनीति में प्रवेश करने का सपना सपना बनकर रह जायेगा।</div>
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Gangesh Kumarhttp://www.blogger.com/profile/16191940284702061868noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7501581940666157180.post-36311914987874882022013-11-26T03:50:00.000-08:002013-11-26T03:52:50.036-08:00सुशासन में भी कुपोषण के शिकार बुनकर<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<a href="http://www.youtube.com/watch?v=au2fHPvooW0">http://www.youtube.com/watch?v=au2fHPvooW0</a><br />
<a href="http://www.boljantabol.com/hindi/silk-business-in-bhagalpur/">http://www.boljantabol.com/hindi/silk-business-in-bhagalpur/</a><br />
<strong style="background-color: white; border: 0px none; color: #333333; font-family: 'Droid Sans', Arial, Verdana, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 22px; list-style: none; margin: 0px; outline: none; padding: 0px;"><span style="border: 0px none; color: magenta; list-style: none; margin: 0px; outline: none; padding: 0px;">सिल्क कहीं इतिहास की किताबों में तो नहीं पढ़ा जाएगा ?</span></strong><br />
<strong style="background-color: white; border: 0px none; color: #333333; font-family: 'Droid Sans', Arial, Verdana, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 22px; list-style: none; margin: 0px; outline: none; padding: 0px;"><span style="border: 0px none; color: magenta; list-style: none; margin: 0px; outline: none; padding: 0px;"><br /></span></strong>
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<div style="background-color: white; border: 0px none; color: #333333; font-family: 'Droid Sans', Arial, Verdana, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 22px; list-style: none; outline: none; padding: 1em 0px; text-align: justify;">
<span style="border: 0px none; color: blue; list-style: none; margin: 0px; outline: none; padding: 0px;"><strong style="border: 0px none; list-style: none; margin: 0px; outline: none; padding: 0px;">दिल्ली के प्रगति मैदान में लगे विश्व व्यापार मेले में जब मैं अपनी टीम के साथ पहुंचा तो मेरी कौतुहल भरी नजरें बिहार भवन की तरफ थी कि शायद इस बार कुछ नया देखने को मिल जाए। अनायास ही मेरे कदम बिहार भवन की तरफ मुड़ गए अंदर प्रवेश किया तो लोगों के मुंह से तारीफों के पुल बांधे जा रहे थे। हृदय गदगद हो उठा लोग वहां की संस्कृति और खासकर भागलपुर के सिल्क की तारीफ करते नहीं अघा रहे थे। झट मैं भी अपनी टीम के साथ उसी स्टॉल पर पहुंच गया जो भागलपुर के बुनकरों द्वारा लगाया गया था। यकीन मानिए सारी खुशी दो मिनट में टांय-टांय फिस्स हो गई। बुनकरों के चेहरे पर परेशानी और उलझन के भाव स्पष्ट नजर आ रहे थे। </strong></span></div>
<div style="background-color: white; border: 0px none; color: #333333; font-family: 'Droid Sans', Arial, Verdana, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 22px; list-style: none; outline: none; padding: 1em 0px; text-align: justify;">
भागलपुर बिहार का वह जिला जिसे भारत ही नहीं संपूर्ण विश्व सिल्क नगरी के नाम से जानता है। आज ही नहीं इतिहास के पन्नों को पलट कर देखें तो महाभारत के काल से ही कर्ण की राजधानी रह चुका यह जिला आज भी अंग प्रदेश का हिस्सा है। इसीलिए इस जिले और इसके आसपास के जिले में बोली जाने वाली भाषा अंगिका है। भागलपुर का अर्थ है सौभाग्य का शहर। दुनिया के बेहतरीन सिल्क उत्पादक होने के कारण भागलपुर को सिल्क सिटी के रूप में भी जाना जाता है। यह पटना से 220 किमी पूर्व में और कोलकाता से 410 किलोमीटर उत्तर पश्चिम में स्थित गंगा नदी के तट पर ऐतिहासिक महत्व का एक शहर है। भागलपुर बिहार में पटना और गया के बाद तीसरा सबसे बड़ा शहर है। इस शहर में रेशम उद्योग सैकड़ों वर्ष पुराना है और रेशम उत्पादक कई पीढ़ियों से रेशम उत्पादन करते आ रहें है।</div>
<div style="background-color: white; border: 0px none; color: #333333; font-family: 'Droid Sans', Arial, Verdana, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 22px; list-style: none; outline: none; padding: 1em 0px; text-align: justify;">
यह वही जिला है जहां विक्रमशिला विश्वविद्यालय था जो एक समय विश्व के खासम-खास शिक्षण संस्थानों में से एक था। इसी जिले के सुलतानगंज प्रखंड से हर साल सावन के महीने में करोड़ों देशी और विदेशी कॉवरिये जल लेकर झारखंड में अवस्थित बाबा रावणेश्वर बैद्यनाथ धाम की यात्रा करते हैं। इसी शहर में एक मोहल्ला है चंपानगर जहां बिहुला और विषहरी की कहानी आज भी लोगों की जुबान पर है। भारतीय राजनीति में भी इस जिले ने अहम किरदार निभाया है और स्वतंत्रता संग्राम की लड़ाई से लेकर आज तक इस जिले की सक्रिय दखल भारतीय राजनीति में रही है। कभी कांग्रेस का गढ़ माना जानेवाला यह जिला पिछले कई सालों से भाजपा और उनकी सहयोगी पार्टी की झोली में रहा है। चाहे वह लोकसभा हो या विधानसभा की सीट। इतिहास की किताबों में इतनी सशक्त छवि रखने वाला यह जिला दो कारणों से आज भी लोगों के जेहन में अपने आप को जिंदा रखे हुए है। इसमें से एक तो आजादी के बाद का वो दर्दनाक मंजर है जिसने 1989 में इस शहर को मानो बंजर ही कर दिया था। किसी तरह से इस शहर ने अपना दिल मजबूत कर फिर से अपने आप को हरा भरा किया तो शहर की गलियों से उसकी अपनी पहचान गायब होने लगी। यानि भागलपुर का धाराशायी होता सिल्क उद्योग जिस पर बिहार सरकार की निगाह कभी नहीं पड़ी। सरकार के बड़े-बड़े वादे भी इस उद्योग को संभालने और बचाने में झूठे और बेमानी साबित होते रहे। बुनकरों ने इस उद्योग को आज भी अपने दम पर अपने कंधों पर जिंदा रखा है। गंगा की कल-कल, निश्छल और अविरल बहती धारा के किनारे बसे इस शहर में हिंदु और मुस्लिम दोनों ही जाति के लोग बड़े शान से रहते हैं। यह गंगा का वही क्षेत्र है जहां गंगा में डाल्फिन मछलियां पाई जाती हैं। सरकार के उदासिन रवैये के चलते गंगा से अब इस जीव के समाप्ती की भी शुरुआत हो गई है।</div>
<div style="background-color: white; border: 0px none; color: #333333; font-family: 'Droid Sans', Arial, Verdana, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 22px; list-style: none; outline: none; padding: 1em 0px; text-align: justify;">
आए दिन सिल्क सिटी बिजली संकट से परेशान है। अधिकारी भी ऊपर से ही बिजली न मिलने की दुहाई दे रहे हैं। लोगों की रातें काली हो रही हैं। इस शहर में बिजली संकट आपूर्ति घटने से ज्यादा बिजली की सप्लाई नियोजित तरीके से न होने के कारण गहराता है। इसी संकट ने हैंडलूम चलाने वाले बुनकरों के लिए भी समस्या खड़ी कर रखी है। बुनकरों को बिजली की अनुपलब्धता के चलते सिल्क का धागा तैयार करने और सिल्क के कपड़े तैयार करने में जिस तरह की असुविधा होती है वह तो बुनकर ही जानते हैं।</div>
<div style="background-color: white; border: 0px none; color: #333333; font-family: 'Droid Sans', Arial, Verdana, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 22px; list-style: none; outline: none; padding: 1em 0px;">
यह शहर बिना सड़क के बिहार की उपराजधानी बनने का सपना देख रहा है । शहर की लाइफ लाइन मानी जाने वाली एनएच-80 सहित लगभग सभी प्रमुख सड़कें जर्जर और खस्ताहाल हैं। इन सड़कों के निर्माण व मरम्मत पर पिछले कई साल में लाखों रुपये खर्च हो चुके हैं, पर स्थिति जस की तस बनी हुई है। शहर में सिल्क उद्योगों के बढ़ने में आनेवाली एक मुख्य बाधा यह भी है।</div>
<div style="background-color: white; border: 0px none; color: #333333; font-family: 'Droid Sans', Arial, Verdana, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 22px; list-style: none; outline: none; padding: 1em 0px; text-align: justify;">
यह वही शहर है जहां के राजा कर्ण ने अपना सबकुछ दान कर अपने दानवीर होने का प्रमाण दिया था। आज उसी शहर की जमीन विकास के लिए अपने राज्य के मुखिया का मुंह ताकता रहता है। पिछले कई सालों से बिजली की खराब स्थिति, सिल्क के कारीगरों की दुर्दशा, लचर ट्रैफिक व्यवस्था, बाइपास, रूक-रूक कर घिसटती चलती विमान सेवा, जर्जर एनएच, हाइकोर्ट की बेंच का गठन नहीं हो पाना, कहलगांव में फूड पार्क, अस्पताल, पर्यटन, मंजूषा चित्रकला आदि क्षेत्रों में विकास आज भी सपना बनकर रह गया है। कहलगांव की बिजली से जहां कई राज्य रौशन होते हैं वहीं भागलपुर में अंधेरा अपनी चरम पर है। पर्यटन के क्षेत्र में अपार संभावनाओं के बावजूद अभी तक विक्रमशिला विश्व विद्यालय को ही उसका उचित सम्मान नहीं मिल सका है। मंदार, अजगैबीनाथ और आसपास के जैन तीर्थ स्थलों को यदि विकसित किया जाए तो अंग के लोग अपनी विरासत पर गर्व करेंगे। यह शहर है जहां बाला लखिंदर, चांदो सौदागर, सती बिहुला और मंशा देवी की कीर्ति आज भी गाई जाती है। इसी के आधार पर आधारित है मंजूषा चित्रकला। यानि दानवीर कर्ण की भूमि को आज दान की नहीं, सरकार से उसके हक की मांग है।</div>
<div style="background-color: white; border: 0px none; color: #333333; font-family: 'Droid Sans', Arial, Verdana, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 22px; list-style: none; outline: none; padding: 1em 0px; text-align: justify;">
दिल्ली के प्रगति मैदान में लगे विश्व व्यापार मेले में जब मैं अपनी टीम के साथ पहुंचा तो मेरी कौतुहल भरी नजरें बिहार भवन की तरफ थी कि शायद इस बार कुछ नया देखने को मिल जाए। अनायास ही मेरे कदम बिहार भवन की तरफ मुड़ गए अंदर प्रवेश किया तो लोगों के मुंह से तारीफों के पुल बांधे जा रहे थे। हृदय गदगद हो उठा लोग वहां की संस्कृति और खासकर भागलपुर के सिल्क की तारीफ करते नहीं अघा रहे थे। झट मैं भी अपनी टीम के साथ उसी स्टॉल पर पहुंच गया जो भागलपुर के बुनकरों द्वारा लगाया गया था। यकीन मानिए सारी खुशी दो मिनट में टांय-टांय फिस्स हो गई। बुनकरों के चेहरे पर परेशानी और उलझन के भाव स्पष्ट नजर आ रहे थे। वो सहमे थे और शायद सिल्क के भविष्य और अपने रोजगार को लेकर ज्यादा चिंतित थे। इसी क्रम में मेरी बाचतीत एक सिल्क के व्यापारी से हुई जब उसकी समस्या सुनी तो पैरों के नीचे से जमीन खिसक गई। सचमुच मैं भी महसूस करने लगा की यही हाल रहा तो जल्द ही सिल्क इतिहास की किताबों में पठनीय अध्याय बनकर रह जाएगा। मायूस था सो सोचा सरकार तक उनकी बात पहुंचा दूं। सो, सबसे सशक्त माध्यम मुझे यही लगा, इसलिए आपलोगों से साझा कर रहा हूं। पहले वीडियो पर गौर फरमाईए फिर मेरे लेख पर। सचमुच आप भी सरकारी तंत्र और अफसरशाही के रवैये से इतना आहत हो जाएंगे कि उन्हें कोसे बिना नहीं रह पाएंगे। हालांकि हमारी जरूरत कोसने की नहीं बल्कि इस उद्योग को बचाने, संभालने और पोसने के लिए प्रयास करने की है। यानि बिहार में सुशासन भी भागलपुर के बुनकरों को कुपोषण से बचाने में नाकाम रहा ऐसे में अब उम्मीद की किरण बस हम और आप हैं। चलिए मिलकर एक सम्मलित प्रयास करते हैं ताकि एक बार फिर से इस उद्योग के सूखती जड़ में अमृत डाल पाएं।</div>
<strong style="background-color: white; border: 0px none; color: #333333; font-family: 'Droid Sans', Arial, Verdana, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 22px; list-style: none; margin: 0px; outline: none; padding: 0px;"><span style="border: 0px none; color: magenta; list-style: none; margin: 0px; outline: none; padding: 0px;"></span></strong><br />
<div class="clear" style="background-color: white; border: 0px none; clear: both; color: #333333; font-family: 'Droid Sans', Arial, Verdana, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 22px; list-style: none; margin: 0px; outline: none; padding: 0px;">
</div>
<div style="-webkit-text-stroke-width: 0px; background-color: white; border: 0px none; color: #333333; font-family: 'Droid Sans', Arial, Verdana, sans-serif; font-size: 15px; font-style: normal; font-variant: normal; font-weight: normal; letter-spacing: normal; line-height: 22px; list-style: none; margin: 0px; orphans: auto; outline: none; padding: 1em 0px; text-align: justify; text-indent: 0px; text-transform: none; white-space: normal; widows: auto; word-spacing: 0px;">
</div>
</div>
Gangesh Kumarhttp://www.blogger.com/profile/16191940284702061868noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7501581940666157180.post-64706965205231476042013-11-21T01:41:00.003-08:002013-11-21T01:41:55.460-08:00पोस्ट बॉक्स नंबर पर भी दो आर.टी.आई. के तहत सूचना<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />
<div style="text-align: justify;">
<b style="font-family: 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 13px; line-height: 18px;"><span style="color: magenta;">सूचना जब परोसने लगी मौत का खौफ तो पोस्ट बॉक्स नंबर पर लग गई अदालती मुहर</span></b></div>
<span class="text_exposed_show" style="background-color: white; display: inline;"><div style="text-align: justify;">
<span style="font-family: 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 13px; line-height: 18px;"><br /></span></div>
<b style="font-family: 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 13px; line-height: 18px;"><div style="text-align: justify;">
<b><span style="color: blue;">सरकार ने संविधान से पारित कराकर सूचना के अधिकार का उपयोग करने की आजादी तो लोगों को दे दी लेकिन लोगों की सुरक्षा इस कानून के इस्तेमाल की शुरुआत से ही अहम मुद्दा बनने लगा। 2005 से लेकर आजतक कई सामाजिक कार्यकर्ता जो सूचना के इस्तेमाल का उपयोग कर सरकारी और अफसरशाही भ्रष्टाचार को उजागर करने की कोशिश में लगे थे वो मौत के आगोश में चले गए। यानि सूचना मांगी और मौत मिली। सूचना के अधिकार कानून को देश के लोग मौत का हथियार कानून भी कहने लगे तो ज्यादा आश्चर्य की बात नहीं होगी क्योंकि सूचना मांगने वाला सत्तासिनों और अफसरशाहों से ज्यादा ताकतवर नहीं हो सकता खासकर उनसे जो भ्रष्ट हैं ऐसे में सूचना मांगना यानि अपनी हत्या के लिए खुद हथियार आंगने के बराबर ही तो हो गया है।</span></b></div>
</b></span><br />
<div style="text-align: justify;">
<span class="text_exposed_show" style="background-color: white; display: inline; font-family: 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 13px; line-height: 18px;"><b><span style="color: blue;"><br /></span></b></span></div>
<div class="separator" style="clear: both; text-align: justify;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgUacrVZGl9k5tfhV_gN7ySQgTsGE5Akeq3HRFyIL4RRD3RsbmRbp3syaOfzpimiTribb1kCz_i1CaYT-ureWu9WDII9oJ7ecETJSm-v2BdgiUaw_Rimhp7D4zNxIK9Ju4fbf-s1Kv9Fh9G/s1600/RTI-660x330.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="160" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgUacrVZGl9k5tfhV_gN7ySQgTsGE5Akeq3HRFyIL4RRD3RsbmRbp3syaOfzpimiTribb1kCz_i1CaYT-ureWu9WDII9oJ7ecETJSm-v2BdgiUaw_Rimhp7D4zNxIK9Ju4fbf-s1Kv9Fh9G/s320/RTI-660x330.jpg" width="320" /></a></div>
<div style="text-align: justify;">
<span class="text_exposed_show" style="background-color: white; display: inline; font-family: 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 13px; line-height: 18px;"><b><span style="color: blue;"><br /></span></b></span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span class="text_exposed_show" style="background-color: white; display: inline; font-family: 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 13px; line-height: 18px;"><b><span style="color: blue;"><br /></span></b></span></div>
<br />
<div style="text-align: justify;">
<span style="background-color: white; color: #37404e; font-family: 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 13px; line-height: 18px;">सूचना का अधिकार अधिनियम को भारत के संसद द्वारा जब जून, 2005 को इसके कानून बनने के 120 वें दिन बाद 12 अक्तूबर, 2005 को लागू किया गया तब इसका एक ही उद्देश्य था। वह था देश की आवाम तक सूचना का आदान-प्रदान करना जो वो चाहते हैं। भारत में भ्रटाचार को रोकने और समाप्त करने के लिये इसे बहुत ही प्रभावी कदम बताया गया। इस नियम के द्वारा भारत के सभी नागरिकों को सरकारी आंकड़ों, सूचनाओं और प्रपत्रों में दर्ज सूचना को देखने और उसे प्राप्त करने का अधिकार प्रदान किया गया। संविधान के अनुच्छेद 19(1) के तहत सूचना का अधिकार भारतीय नागरिकों के मौलिक अधिकारों का एक भाग है। अनुच्छेद 19(1) के अनुसार प्रत्येक नागरिक को बोलने व अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार दिया गया है। इसी को ध्यान में रखते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने अपने एक आदेश में कहा था कि भारत एक लोकतांत्रिक देश है यहां जनता मालिक है। इसलिए लोगों को यह जानने का पूरा अधिकार है कि सरकारें जो उनकी सेवा के लिए हैं, वह क्या कर रहीं हैं? यानि नागरिकों के पास यह जानने का अधिकार है कि उनका धन किस प्रकार खर्च हो रहा है या सरकार उनके हित के लिए किस तरह के काम कर रही है जो समाज और देश के हित में हो।</span></div>
<span class="text_exposed_show" style="background-color: white; display: inline; font-family: 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 13px; line-height: 18px;"><div style="text-align: justify;">
<span style="color: #37404e;">सरकार ने संविधान से पारित कराकर सूचना के अधिकार का उपयोग करने की आजादी तो लोगों को दे दी लेकिन लोगों की सुरक्षा इस कानून के इस्तेमाल की शुरुआत से ही अहम मुद्दा बनने लगा। 2005 से लेकर आजतक कई सामाजिक कार्यकर्ता जो सूचना के इस्तेमाल का उपयोग कर सरकारी और अफसरशाही भ्रष्टाचार को उजागर करने की कोशिश में लगे थे वो मौत के आगोश में चले गए। यानि सूचना मांगी और मौत मिली। सूचना के अधिकार कानून को देश के लोग मौत का हथियार कानून भी कहने लगे तो ज्यादा आश्चर्य की बात नहीं होगी क्योंकि सूचना मांगने वाला सत्तासिनों और अफसरशाहों से ज्यादा ताकतवर नहीं हो सकता खासकर उनसे जो भ्रष्ट हैं ऐसे में सूचना मांगना यानि अपनी हत्या के लिए खुद हथियार आंगने के बराबर ही तो हो गया है। आंकड़ों की माने तो वर्ष 2010 के बाद से 23 आर.टी.आई. कार्यकर्ताओं की हत्या हो चुकी है यह अपने आप में हैरत कर देनेवाली संख्या है। लोगों ने इस कानून का उपयोग करने में अपनी जान को जोखिम में डालने की हिम्मत नहीं की और जिन्होंने की उनका भी हाल कुछ ज्यादा अच्छा नहीं है। बड़े सामाजिक कार्यकर्ता या तो मार दिए जाते हैं या आरोपों के घेरे में फांस दिए जाते हैं यह सूचना की ताकत नहीं भ्रष्टाचार का बल बोलता है। सरकार और न्यायालय ने ऐसे कार्यकर्ताओं की सुरक्षा को लेकर कई बार चिंता जताई। न्यायालय की तरफ से इनकी सुरक्षा के लिए सरकार द्वार उचित व्यवस्था किए जाने के आदेश भा जारी किए गए लेकिन इन सब से होता क्या है एक कहावत है कि बिल्ली को दूध की रखवाली का जिम्मा सौंपा जाए तो वह पतीला चाट ही जाएगी। कुछ ऐसी ही व्यवस्था ने इस कानून को भी संदेहास्पद बना रखा था आप सुरक्षा की जिम्मेवारी उस पर सौंप रहे हैं जो कहीं न कहीं प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से इस भ्रष्टतंत्र का हिस्सा हैं ऐसे में वो अपने या अपने भ्रष्ट परिवार के बाकी भाईयों के गले में फंदा तो पड़ने नहीं देंगे। रही बात आप जिस को अपने भ्रष्टाचार की सूचना देने जा रहे हैं उस आवेदक का पूरा ब्यौरा आपके पास मौजुद है यानि आपको इसके सफाये के लिए पहले से पूरी सूचना दे दी गई है या तो आप सूचना इन्हें दें या अपनी सूचना से बचने के लिए इन्हें किसी अखबार की खबर बनवा दें। इस कानून के इसी परेशानी को देखते हुए कलकत्ता उच्च न्यायालय में अभिषेक गोयनका ने याचिका दायर कर कहा था कि आर.टी.आई. के तहत जानकारी मांगने वाले आवेदक की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए आवेदक की व्यक्तिगत जानकारी मांगे जाने पर रोक लगनी चाहिए। अदालत को भी गोयनका की बातों में दम लगा और अपने एक महत्वपूर्ण आदेश में कलकत्ता हाई कोर्ट ने कहा है की आर.टी.आई. के तहत जानकारी लेने के लिए अपनी व्यक्तिगत जानकारी देने की जरूरत नहीं है और आवेदक सिर्फ पोस्ट बॉक्स नंबर देकर भी जानकारी हासिल कर सकता है | याचिका में कहा गया था की वर्ष 2010 के बाद से 23 आर.टी.आई. कार्यकर्ताओं की हत्या हो चुकी है, इसिलए आवेदक को पोस्ट बॉक्स नंबर के जरिये भी जानकारी मांगने की छूट मिलनी चाहिए| चीफ जस्टिस ए.के. बनर्जी और जस्टिस डा. बास्क की बैंच ने याचिका पर सुनवाई करते हुए आदेश दिया की अगर आवेदक पते की जगह सिर्फ पोस्ट बॉक्स नंबर भी देता है तो उसको जानकारी उपलब्ध करायी जाए| बैंच ने कहा की आवेदक की सुरक्षा काफी महत्वपूर्ण विषय है और इसके लिए यह कदम उठाना आवश्यक है | कोर्ट ने अपने आदेश को केंद्र सरकार को भेजने का आदेश देते हुए कहा कि सरकार इस आदेश की प्रति और सूचना सभी विभागों को भी उपलब्ध करा दे |न्यायालय का यह फैसला सच में उनलोगों के लिए राहत लेकर आया है जो आजतक भ्रष्ट तंत्र की चक्की के दोनों पाटों के बीच पीसते आए हैं और जिंदगी के ड़र और मौत के खौफ ने उनके हाथ सूचना मांगने के लिए कलम उठाने से पहले ही बांध कर रख दिए हैं। अगर सरकार ने न्यायालय के इस फैसले को लागू कर दिया तो कई हाथ बंधन मुक्त हो जाएंगे और फिर भ्रष्टता की चरमता में कुछ तो विराम जरूर लगेगा।</span></div>
</span></div>
Gangesh Kumarhttp://www.blogger.com/profile/16191940284702061868noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7501581940666157180.post-78315326255143897142013-11-19T22:26:00.000-08:002013-11-19T22:27:09.260-08:00दरूआ हटा के रक्खीं, कल मुनियां पी लेले रहे<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<span style="background-color: magenta;"><br /></span>
<span style="background-color: white; font-family: 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; line-height: 18px;"><span style="color: red;">इस लेख के साथ एक वीडियो क्लिप भी लगाई गई है उस वीडियो को देखने के लिए कृपया आप इस लिंक पर क्लिक करें आशा है आप इसको देखकर लेख लिखने के उद्देश्य को बेहतर तरीके से समझ पाएंगे। </span></span><br />
<a href="http://www.boljantabol.com/hindi/wine-f/">http://www.boljantabol.com/hindi/wine-f/</a><br />
<a href="https://www.youtube.com/watch?v=7athqzZnSWc">https://www.youtube.com/watch?v=7athqzZnSWc</a><br />
<br />
<div style="background-color: white; border: 0px none; color: #333333; font-family: 'Droid Sans', Arial, Verdana, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 22px; list-style: none; margin: 0px; outline: none; padding: 0px;">
<b style="border: 0px none; color: magenta; list-style: none; margin: 0px; outline: none; padding: 0px; text-align: justify;">आर के पुरम के कनक दुर्गा कॉलोनी में जब हमारी टीम गई तो वहां हमने जो वीडियोग्राफी की वो कुछ ऐसी ही कहानी बयां कर रहा था।</b></div>
<div style="background-color: white; border: 0px none; color: #333333; font-family: 'Droid Sans', Arial, Verdana, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 22px; list-style: none; outline: none; padding: 1em 0px; text-align: justify;">
<b style="border: 0px none; color: magenta; list-style: none; margin: 0px; outline: none; padding: 0px;">————————————————————————————————-</b></div>
<div style="background-color: white; border: 0px none; color: #333333; font-family: 'Droid Sans', Arial, Verdana, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 22px; list-style: none; outline: none; padding: 1em 0px; text-align: justify;">
<span style="border: 0px none; color: magenta; list-style: none; margin: 0px; outline: none; padding: 0px;"><b style="border: 0px none; list-style: none; margin: 0px; outline: none; padding: 0px;">कभी दिल्ली में शाम के वक्त किसी ठेके के पास से गुजर कर तो देखिए जनाब ऐसा लगेगा मानो किसी सुपरहिट फिल्म के ओपनिंग के दिन के पहले शो के टिकट की खरीद के लिए टिकट खिड़की पर मारामारी हो रही हो। प्रशासन के दो चार लठैत वहां खड़े भीड़ को निहार रहे होते हैं ताकि इस अमृत की खरीद में कोई हंगामा न हो जाए। क्या अमीर क्या गरीब सभी लाईन में घुसक के खड़े होते हैं केवल ब्रांड अलग-अलग कीमत अलग, सामान तो नशे का हीं है यानि शराब।</b><b style="border: 0px none; list-style: none; margin: 0px; outline: none; padding: 0px;"></b></span></div>
<div style="background-color: white; border: 0px none; color: #333333; font-family: 'Droid Sans', Arial, Verdana, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 22px; list-style: none; outline: none; padding: 1em 0px; text-align: justify;">
<span style="border: 0px none; color: magenta; list-style: none; margin: 0px; outline: none; padding: 0px;"><b style="border: 0px none; list-style: none; margin: 0px; outline: none; padding: 0px;">————————————————————————————————-</b></span></div>
<div style="background-color: white; border: 0px none; color: #333333; font-family: 'Droid Sans', Arial, Verdana, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 22px; list-style: none; outline: none; padding: 1em 0px; text-align: justify;">
“अपनी दरूअन की बोतल जरा छुपा के रखल करीं, कल छोटकी ओकरा पानी समझकर पी लेले रहे। फिर वह टूटी-फूटी हिंदी में शुरू हो गई। पीने के लिए तो कबहु मना नहीं किया है, लेकिन कुत्ते वाली आदत क्यूं नहीं छोड़त हो तुम, रात पीवते के साथ जानवर बन जात हो, सुबह देखो तो केतना सुघड़ मानुस लागत हो। इहे हाल रहा ना त एक दिन बड़कवा भी घरे आने लगेगा पी के फिर जो मार-कुटाई होगी ऊ तुम्हीं देखना। अभी भी कह रहे हैं छोड़ दो इ सब तुम्हरे यही व्वहार के चलते तो ओकरे पांव आजकल घर में नहीं टीक रहे हैं, दिन भर आवारागर्दी करना शुरू कर दिया है ऊ। तुम्हरा क्या है जरा सा जगह देखी नहीं की घुसेड़ के रख दी बोतल फिर नशा हो जाता है तो जेने-तेने मुंह हफियाते फिरते हो। बाल-बचवन सब का तो मानो कौनो फिकरे नहीं है तुमको। अरे ऊ दरूआ बेटा पी लेता तो कौनो बात नहीं थी छुटकी तो औ-औ करके उलटी करने लगी थी। एक तो पानी की बोतल में पता नहीं कहां से देसी दरुआ ले आवत हो और समनवे में रख देवत हो। खुद तो नशे में टल्ली होकर गिरत-पड़त रहत हो और हम अगर कहत हैं तो फिर तो काल ही आ जावत है हम पर कम लात-घुस्सा मारत हो का।“</div>
<div style="background-color: white; border: 0px none; color: #333333; font-family: 'Droid Sans', Arial, Verdana, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 22px; list-style: none; outline: none; padding: 1em 0px; text-align: justify;">
“अरे बाबूजी कल का रख के गए रहें पानी वाला बोतलवा में आप, हम पी लेली तो लागल की एसिड़ रही गला से उतरे से पहले ही लागल की आगिन लग गईल, खूबे कोशिश करलीं पर उलटी हो गईल, दिनभर सर चकरावत रहल। का रही ऊ बोतलवा में अजबे गंदा महकत रहल ऊ।“</div>
<div style="background-color: white; border: 0px none; color: #333333; font-family: 'Droid Sans', Arial, Verdana, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 22px; list-style: none; outline: none; padding: 1em 0px; text-align: justify;">
“जा-जाके काम कर, देख के पीए के चाही ना। तोहरा पता नेखे चलल का की ओकरा में का बा। गंधो नेखे बुझाईल। तूं पीले काहे के नासपीटी। प्यास लागी त का कुछो उठा के पी लेबे। कि देख सुन के पीए के चाहीं। दोबारा कभी भी कुछ पीए से पहले देख लेवल करीं बुझले।“</div>
<div style="background-color: white; border: 0px none; color: #333333; font-family: 'Droid Sans', Arial, Verdana, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 22px; list-style: none; outline: none; padding: 1em 0px; text-align: justify;">
दिल्ली हिन्दुस्तान का दिल जहां अमीर से लेकर गरीब तक ऐसे जीते हैं मानो पैदा होते हीं दौड़ना सीख गए हों। तेज रफ्तार भागती-दौड़ती जिंदगी, वजह सिर्फ और सिर्फ रोटी का जुगाड़ लेकिन इस जुगाड़ के बीच न जाने कहां से लोगों को कच्ची-पक्की, पुरानी-नई, देसी-विदेशी, महंगी-सस्ती शराब को पीने का ख्याल मन में घर कर जाता है और लोग अपनी रोजमर्रा की जरूरतों को नजरअंदाज कर सेहत के प्रति थोड़ा कम निष्ठावान होकर भी अपनी शराब की ख्वाहिश को पूरा करने में जुट जाते हैं। अमीर एसी की ठंढी हवा में चारदिवारी के अंदर सोफे और कालिन से सजे कमरे की मेज पर शीशे के रंगीन ग्लासों में इसका मजा काजू, किशमिश और कीमती खाद्य पदार्थों के साथ ले रहा होता है तो गरीब इससे अलग मोहल्ले के नुक्कड़ पर लगे चाट-पकौड़ी के ठेले या फिर सुनसान गलियों या घर के खुले छत पर बैठकर रात या दिन के खाने के साथ देसी शराब को अंदर ढकेल रहा होता है। कभी दिल्ली में शाम के वक्त किसी ठेके के पास से गुजर कर तो देखिए जनाब ऐसा लगेगा मानो किसी सुपरहिट फिल्म के ओपनिंग के दिन के पहले शो के टिकट की खरीद के लिए टिकट खिड़की पर मारामारी हो रही हो। प्रशासन के दो चार लठैत वहां खड़े भीड़ को निहार रहे होते हैं ताकि इस अमृत की खरीद में कोई हंगामा न हो जाए। क्या अमीर क्या गरीब सभी लाईन में घुसक के खड़े होते हैं केवल ब्रांड अलग-अलग कीमत अलग, सामान तो नशे का हीं है यानि शराब। ऐसे में दोनों ही तरह के लोगों को फर्क नहीं पड़ता की इसका उनकी सेहत और समाज की सेहत पर क्या असर पड़ने वाला है। उनके बच्चे उनकी इस हरकत से किस तरह के समाज के निर्माण की सीख ले रहे हैं। बस उनको तो अपने नशे और मजे की फिक्र है। नशा नहीं तो मजा नहीं, सेहत और समाजिकता जाए भांड में।</div>
<div style="background-color: white; border: 0px none; color: #333333; font-family: 'Droid Sans', Arial, Verdana, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 22px; list-style: none; outline: none; padding: 1em 0px; text-align: justify;">
आर के पुरम के कनक दुर्गा कॉलोनी में जब हमारी टीम गई तो वहां हमने जो वीडियोग्राफी की वो कुछ ऐसी ही कहानी बयां कर रहा था। अनगिनत लोग देश में हरदिन केवल शराब पीने की वजह से मर रहे हैं लेकिन फिर भी आज तक सरकार के सारे कानून इसको रोकने में विफल है। शराब केवल निम्नवर्गीय समाज को ही दीमक की तरह नहीं चाट रहा बल्कि मध्यमवर्गीय समाज और उच्चवर्गीय समाज की कोई भी पार्टी इसके बिना अधूरी मानी जाती है। फिर मर्यादा के दायरे में जीनेवाले ये सभ्य समाज के लोग नशे में आकर जिस तरह से अमर्यादित व्यवहार करते हैं उससे सारा देश सारा समाज वाकिफ है। ऐसे में अगर देश की मर्यादा को बचाना है एक संपन्न देश बनाने का सपना साकार करना है देश को एक स्वस्थ छवि प्रदान करनी है और समाज के निर्माण के लिए आगे आनेवाले हमारे भविष्य का कुशल व्यक्तित्व निर्माण करना है तो समाज से इस गंदगी की जड़ों को उखाड़कर कोसों दूर फेंकना होगा ताकि समाज में सड़ांध पैदा करनेवाला यह पौधा पुन: न पनपने पाए।</div>
</div>
Gangesh Kumarhttp://www.blogger.com/profile/16191940284702061868noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7501581940666157180.post-72856370100718762642013-10-29T05:04:00.001-07:002013-10-29T05:04:49.708-07:00साहित्य शिरोमणी चले गए अब साहित्य संभालो भैया जी<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjlA9LSg35EKhQgh6Oj-E6EqzUfrcEqz7AQlf6RjMV9ghRqB7zCtyxxd3mo0ELlmJZNCdhQ-ZmBp-z2M_Xvu3fmLR6ncgUoAoiPv_45TJ5ifTsQO1V-3uW0RGeFTaV1qHxEwA_F0lC4Vzfq/s1600/rajendra.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjlA9LSg35EKhQgh6Oj-E6EqzUfrcEqz7AQlf6RjMV9ghRqB7zCtyxxd3mo0ELlmJZNCdhQ-ZmBp-z2M_Xvu3fmLR6ncgUoAoiPv_45TJ5ifTsQO1V-3uW0RGeFTaV1qHxEwA_F0lC4Vzfq/s1600/rajendra.jpg" /></a></div>
<div style="background-color: white; border: 0px none; color: #333333; font-family: 'Droid Sans', Arial, Verdana, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 22px; list-style: none; outline: none; padding: 1em 0px; text-align: justify;">
<strong style="border: 0px none; list-style: none; margin: 0px; outline: none; padding: 0px;"><span style="border: 0px none; color: magenta; list-style: none; margin: 0px; outline: none; padding: 0px;"><br /></span></strong></div>
<div style="background-color: white; border: 0px none; color: #333333; font-family: 'Droid Sans', Arial, Verdana, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 22px; list-style: none; outline: none; padding: 1em 0px; text-align: justify;">
<strong style="border: 0px none; list-style: none; margin: 0px; outline: none; padding: 0px;"><span style="border: 0px none; color: magenta; list-style: none; margin: 0px; outline: none; padding: 0px;">हंस के संपादक और साहित्य में खासी धौंस रखने वाले राजेंद्र यादव ने आखिरकार दुनिया को अलविदा कह दिया। तकरीबन 84 साल के राजेन्द्र यादव को अचानक सांस में तकलीफ हुई, जिसके बाद उन्हें अस्पताल में भर्ती कराने की कोशिश की गई लेकिन कोशिश नाकाम, उनकी सांसों ने साहित्य का और उनका दोनों का साथ छोड़ दिया।</span></strong> अस्पताल ले जाने के क्रम में ही उन्होंने दम तोड़ दिया। ख़ैर यह तो सच्चाई है कि एक दिन दुनिया से सबको जाना है लेकिन कुछ लोगों के जाने का ग़म हर किसी को होता है और राजेंद्र जी उनमें से एक थे जिनके जाने का ग़म शायद हम जैसे कई साहित्य प्रेमियों को अंदर तक झकझोर गया। हंस ने राजेंद्र जी के साथ-साथ जितने सावन गुजारे हम जैसे साहित्य प्रेमियों को उनमें से कई साल उस सावन का भरपूर आनंद उठाने का मौका भी दिया। साहित्य से अलग बिल्कुल बेबाक छवि, कोमल मन हमेशा प्यार और केवल प्यार बांटने वाले ऐसे लोग कम ही धरती पर पैदा होते हैं। प्रभात खबर के दीपावली विशेष अंक के लिए मुझे एक बार उनका साक्षात्कार का मौका मिला हालांकि बात पूरी नहीं हो पाई। कारण उनके पास व्यस्तता ही थी और वजह कुछ भी नहीं थी। हालांकि मैं उनके साक्षात्कार को अपने शब्दों के रंग से भरकर प्रभात खबर के पन्नों के हवाले तो नहीं कर सका लेकिन दूरभाष पर जिस तरह के आत्मीय बोध के साथ उन्होंने मुझे अपना आशीर्वाद दिया मैं धन्य होगा गया था। उन्होंने जिंदगी में मुझे खूब आगे बढ़ने और ढेरों तरक्की करने का प्यार भरा संदेश दिया और अपनी व्यस्तता का जिक्र करते हुए संबंध विच्छेद कर लिया। हालांकि उनके जीवन के बारे में पढ़ने और जानने का अवसर मुझे नहीं मिल पाया था लेकिन आज अगर उनके लिए मेरी तरफ से कोई श्रद्धांजलि होती तो शायद उनके बारे में पढ़कर और जानकर और आपसे साझा करके ही दी जा सकती थी सो मैंने अलग-अलग जगहों से उनको और उनके जीवन को पढ़ा और बतौर श्रद्धांजलि अपने हाथों से उन्हें अर्पित कर रहा हूं।</div>
<div style="background-color: white; border: 0px none; color: #333333; font-family: 'Droid Sans', Arial, Verdana, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 22px; list-style: none; outline: none; padding: 1em 0px; text-align: justify;">
राजेंद्र जी का जन्म 28 अगस्त 1929 को उत्तर प्रदेश के आगरा में हुआ था। साहित्य में शुरू से ही रूचि रखने वाले राजेंद्र जी ने 1951 में आगरा विश्वविद्यालय से एम.ए. हिंदी की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की थी। इसके बाद उन्होंने साहित्य को ही अपनी कर्मभूमि बनाकर इस क्षेत्र में उल्लेखनिए काम किया। सबसे महत्वपूर्ण योगदान उनका हंस पत्रिका को दोबारा शुरू करने में रहा। गौरतलब है कि इस पत्रिका को मशहूर साहित्यकार प्रेमचंद ने 1930 में प्रकाशित करना आरम्भ किया था। राजेंद्र जी ने हंस का पुर्नप्रकाशन 1986 में आरम्भ करके प्रेमचंद के विचारों को आगे बढ़ाया। 25 साल पहले संपादक के पद से इसकी शुरूआत करने वाले राजेंद्र जी अंतिम समय तक इसी पद पर बने रहे। कहा जा सकता है कि उन्होंने अपने योगदान के द्वारा इस पत्रिका से साहित्यिक मूल्यों को एक नई दिशा दी। साहित्य जगत से जुड़े लोग कहते हैं कि राजेंद्र जी की वजह से ही हंस का प्रकाशन हो पाया नहीं तो शायद इसका प्रकाशन नहीं हो पाता। आज अगर हिंदी साहित्य में हंस का नाम इतने सम्मान के साथ लिया जाता है तो उसका श्रेय निश्चित तौर पर राजेंद्र जी को ही जाता है। राजेंद्र जी पत्रिका में, मेरी-तेरी उसकी बात सम्पादकीय से हमेशा नये मुद्दों पर बात करते थे। निश्चित तौर पर यह पहली ऐसी पत्रिका है जिसके सम्पादकीय पर तमाम पत्र-पत्रिकाएं बहस करती हुई दिखाई देती थीं। इसके साथ ही समकालीन सृजन संदर्भ के अन्तर्गत भारत भारद्वाज द्वारा तमाम चर्चित पुस्तकों एवं पत्र-पत्रिकाओं पर चर्चा, मुख्तसर के माध्यम से साहित्य-समाचार तो बात बोलेगी के अन्तर्गत कार्यकारी संपादक संजीव के शब्द पत्रिका को धार देते हैं। कुल मिलाकर कहा जाए तो इस पत्रिका के माध्यम से लोग नए-नए विचारों से रूबरू होते थे। पत्रिका में इसके साथ ही कहानी, कविता, गज़ल, जैसी विधाएं भी हैं जो साहित्य को पढ़ने वालों को अलग अनुभव प्रदान करती हैं। यानि साफ़ तौर पर कहा जा सकता है कि राजेंद्र जी की वजह से ही इस पत्रिका का इतना विकास हो सका है।</div>
<div style="background-color: white; border: 0px none; color: #333333; font-family: 'Droid Sans', Arial, Verdana, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 22px; list-style: none; outline: none; padding: 1em 0px; text-align: justify;">
तमाम पहलूओं पर चर्चा करने के बाद इस बात का तो एहसास निश्चित तौर पर होता है कि राजेंद्र यादव हिन्दी साहित्य के बेहद मजबूत स्तंभ थे। राजेंद्र यादव ने न सिर्फ हंस पत्रिका को नई ऊंचाई दी बल्कि साहित्य के क्षेत्र में भी नए आयाम गढ़े। उपन्यास, कहानी, कविता और आलोचना पर राजेंद्र जी की बेहद अच्छी पकड़ थी। उनके उपन्यासों के नाम इस तरह से हैं- सारा आकाश, उखड़े हुए लोग, शह और मात, एक इंच मुस्कान, कुलटा, अनदेखे अनजाने पुल, मंत्र विद्ध, स्वरूप और संवेदना और एक था शैलेन्द्र। इसी तरह से उनके कहानी संग्रह थे- देवताओं की मूर्तियां, खेल खिलौने, जहां लक्ष्मी कैद है, छोटे-छोटे ताजमहल, किनारे से किनारे तक, टूटना, ढोल और अपने पार, वहां पहुंचने की दौड़। उनके द्धारा की गईं आलोचना- कहानी : अनुभव और अभिव्यक्ति, कांटे की बात – बारह खंड, प्रेमचंद की विरासत, अठारह उपन्यास, औरों के बहाने, आदमी की निगाह में औरत, वे देवता नहीं हैं, मुड़-मुड़के देखता हूं, अब वे वहां नहीं रहते और काश, मैं राष्ट्रद्रोही होता। उनका एकमात्र कविता संग्रह है-आवाज़ तेरी है। बहराहल राजेंद्र जी के जाने से जो क्षति साहित्य की हुई है उसकी पूर्ती करना फिलहाल मुमकिन नज़र नहीं आ रहा है। राजेंद्र यादव जी को शाईनलुक मीडिया की तरफ से अंतिम सलाम।</div>
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Gangesh Kumarhttp://www.blogger.com/profile/16191940284702061868noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7501581940666157180.post-1464556834866482622013-10-26T00:21:00.002-07:002013-10-26T00:21:32.686-07:00भारत, पश्चिमी देशों और इस्लामिक देशों में महिलाऐं<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="background-color: white; border: 0px none; color: #333333; font-family: 'Droid Sans', Arial, Verdana, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 22px; list-style: none; outline: none; padding: 1em 0px; text-align: justify;">
<strong style="border: 0px none; list-style: none; margin: 0px; outline: none; padding: 0px;"><span style="border: 0px none; color: magenta; list-style: none; margin: 0px; outline: none; padding: 0px;">गंगेश ठाकुर</span></strong></div>
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<strong style="border: 0px none; list-style: none; margin: 0px; outline: none; padding: 0px;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjTtctLgXFBBh-5GZrYD3LxoXZY-mcV0t-elO8WFx0wt4FogHGgg2iFrjond3RItFEFKmHW5Aouw7PivGpmCj3B5X7QXBky0mk4RMcYvORXHCXtxn3q2YPQfXgTdvpwyfwo8-rdIlZQMtgW/s1600/stop-313x330.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjTtctLgXFBBh-5GZrYD3LxoXZY-mcV0t-elO8WFx0wt4FogHGgg2iFrjond3RItFEFKmHW5Aouw7PivGpmCj3B5X7QXBky0mk4RMcYvORXHCXtxn3q2YPQfXgTdvpwyfwo8-rdIlZQMtgW/s320/stop-313x330.jpg" width="303" /></a></strong></div>
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<div style="background-color: white; border: 0px none; color: #333333; font-family: 'Droid Sans', Arial, Verdana, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 22px; list-style: none; outline: none; padding: 1em 0px; text-align: justify;">
<strong style="border: 0px none; list-style: none; margin: 0px; outline: none; padding: 0px;"><span style="border: 0px none; color: magenta; list-style: none; margin: 0px; outline: none; padding: 0px;">समाज की आधी आबादी के तौर पर अपनी सहभागिता निभानेवाली महिलाओं को हमेशा उनके अधिकारों और उचित स्थान के बारे में बातें तो की जाती हैं लेकिन फिर भी इस समय इस सभ्य समाज में महिलाओं को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। वर्तमान समय में लगभग सभी पश्चिमी देश महिलाओं के अधिकारों की सुरक्षा के बहाने संसार के सभी राष्ट्रों विशेषकर इस्लामी देशों पर महिलाओं के अधिकारों के हनन के मामले को लेकर आए दिन आरोप लगाते रहते हैं। एक शताब्दी से भी कम समय से पहले तक पश्चिम में महिलाएं अपने कई सारे व्यक्तिगत और समाजिक अधिकारों से वंचित थीं। यहां तक कि महिला अपनी कमाई से अर्जित धन, संपत्ति की भी मालकिन नहीं होती थीं। कई पश्चिमी देशों में महिलाएं मतदान जैसे अधिकार से भी अलग रखी गई थीं। पश्चिम के देशों में 19वीं शताब्दी के अंत में महिलाओं द्वारा अपने अधिकारों की प्राप्ति के लिए विभिन्न प्रदर्शन किये गए जिनसे महिलाओं के अधिकारों और उनकी स्वतंत्रता का रास्ता साफ हो पाया।</span></strong></div>
<div style="background-color: white; border: 0px none; color: #333333; font-family: 'Droid Sans', Arial, Verdana, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 22px; list-style: none; outline: none; padding: 1em 0px; text-align: justify;">
इस्लामी देशों में कमोवेश हर जगह महिलाओं को हमेशा उनके अधिकारों से वंचित रखने की परंपरा सी ही चली आ रही थी जो आज भी लगभग जस की तस बनी हुई है। इस्लामी क्रांति के एक वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामेनेई ने महिलाओं पर होने वाले अत्याचारों की ओर ध्यान दिलाते हुए कहा था कि, पश्चिम में महिला, एक इंसान होने से अधिक एक महिला है। पश्चिम के देशों ने महिला के अधिकारों के समर्थन के दावों के बावजूद उसे पुरूषों के हाथों की कठपुतली बना कर रख दिया, इनमें से सभी देशों ने केवल महिलाओं के यौन आकर्षण को ही उजागर किया। पश्चिमी संस्कृति तब भी महिला के नाम पर पुरूषों के हितों के लिए कार्यरत थी और महिला की स्वतंत्रता के बहाने महिला की सुन्दरता को बड़ी ही सरलता से पुरूष के अधिकार में रख देती थी। विश्व के सबसे सभ्य समाज के रूप में इतरानेवाले पश्चिमी देशों के समाज ने महिलाओं के अधिकारों की सुरक्षा के बहाने महिलाओं के मानवीय सम्मान को उससे छीन लिया और उसे कृत्रिम पुरूष बना दिया है। कहने के लिए तो इन देशों का और विश्व का महिलाकरण हो गया है किंतु अभी भी संसार पुरूष प्रधान है।</div>
<div style="background-color: white; border: 0px none; color: #333333; font-family: 'Droid Sans', Arial, Verdana, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 22px; list-style: none; outline: none; padding: 1em 0px; text-align: justify;">
पश्चिमी समाज में आज भी महिलाओं के विरुद्ध हिंसा बढ़ ही रही है। सर्वेक्षणों की मानें तो पता चलता है कि पश्चिम में आर्थिक विकास और प्रगति के साथ-साथ लैंगिक दृष्टि से महिलाओं को इनके समाज ने अनदेखा किया है। पश्चिमी देशों की विचारक महिलाओं की माने तो विभिन्न मिश्रित कार्यस्थलों में महिलाओं पर यौन उत्पीड़न तेज़ी से बढ़ता जा रहा है। यहां महिलाओं द्वारा दूसरी महिला की जान की सुरक्षा करने के बजाए स्वयं अपनी सुरक्षा की आवश्यकता जान पड़ती है। हालांकि इस समय पश्चिमी देशों के औद्योगिक समाज ने, महिलाओं और पुरूषों के बीच के प्राकृतिक और आंतरिक अंतरों को अनदेखा करते हुए, किसी भी कार्य को करने हेतु उनके लिए समान अवसर उपलब्ध कराए हैं। लेकिन फिर भी मुख्य बात यह है कि पुरूषों के बराबर कार्य करने के बावजूद महिलाओं को कम वेतन मिलता है। अमरीका जैसे देश में बड़ी संख्या में महिलाएं वेतन के लिए कार्य करती हैं किंतु उन्हें भेदभाव का सामना करना पड़ता है।</div>
<div style="background-color: white; border: 0px none; color: #333333; font-family: 'Droid Sans', Arial, Verdana, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 22px; list-style: none; outline: none; padding: 1em 0px; text-align: justify;">
पश्चिमी देशों में महिला उत्पीड़न का एक अन्य कारण परिवार में महिलाओं की भूमिका का कम होना या फिर समाप्त हो जाना है। पश्चिमी देशों की महिलाएं अब मातृत्व सुख, जीवनसाथी का सुख तथा परिवार के साथ रहने की भूमिका का उचित लाभ नहीं ले पाती हैं। पश्चिमी देशों की तुलना में इस्लाम धर्म में, महिला के संबंध में अलग किंतु वास्तविकता पर आधारित सोच है। इस्लाम में महिलाओं की समस्त विशेषताओं को सुरक्षित रखा गया है। धर्म के अनुसार कहीं भी यह वर्णित नहीं किया गया है कि महिला पुरूष जैसा सोचे या पुरूषों की तरह व्यवहार करे अर्थात महिला होने की विशेषता जो महिलाओं की प्राकृतिक व स्वभाविक विशेषता है उसे इस्लाम में सुरक्षित रखा गया है।</div>
<div style="background-color: white; border: 0px none; color: #333333; font-family: 'Droid Sans', Arial, Verdana, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 22px; list-style: none; outline: none; padding: 1em 0px; text-align: justify;">
इस्लामी विचारधारा में पुरूषों और महिलाओं के बीच लैंगिक दृष्टि से न्याय का ध्यान रखा गया है। न्याय का यहां सीधा सा अर्थ मनुष्य की क्षमताओं और योग्यताओं के आधार पर अवसर उपलब्ध कराना है। इस आधार पर पुरूषों और महिलाओं को वे काम हीं सौंपने की बात कही गई है जो उनके स्वभाव एवं योग्यताओं के साथ क्षमताओं के अनुकूल हों। इसी को ध्यान में रखते हुए वर्तमान समय में इस्लामी गणतंत्र ईरान में महिलाएं,वहां विभिन्न पदों पर कार्यरत हैं।</div>
<div style="background-color: white; border: 0px none; color: #333333; font-family: 'Droid Sans', Arial, Verdana, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 22px; list-style: none; outline: none; padding: 1em 0px; text-align: justify;">
लेकिन इससे अलग कई इस्लामिक देशों में महिलाओं की बात की जाए तो उन्हें किसी भी विषय पर क्या सही है अथवा क्या गलत इसके लिए नैतिकता या अपनी बुद्धि का प्रयोग करने की अनुमति नहीं है। इस्लाम में धर्म ग्रंथों कुरान व हदीस में लिखी हुई चीजें हीं नैतिकता का सबसे बड़ा प्रमाण है। धर्म के ठेकेदारों की माने तो कुरान व हदीस में लिखी हर बात सत्य है। हिन्दुओं के ग्रंथों में भी स्त्री के लिए यही सब कुछ लिखा हो सकता है पर बात यह है कि क्या हम अपने धर्म ग्रंथों पर आंख बंद कर विश्वास करते रहेंगे। भारत जैसे देश में स्त्री की दशा को उन्नत करने के लिए कई कानून संसद द्वारा बनाए जा चुके हैं जो किसी धर्मग्रंथ को आधार बनाकर नहीं तैयार किए गए बल्कि समाज में स्त्री की स्थिति का मूल्यांकन कर इसे तैयार किया गया है। परन्तु इस्लाम में स्त्री धर्म सुधार की कोई गुंजाइश नहीं रखी गई है यह केवल जडवादी मानसिकता के लोगों की सोच है जबकि ऐसा नहीं है। इनमें जिस सुधार की गुंजाईश भी है उसे भी कठमुल्लों की फौज ने और पेचीदा बना दिया है। ये ही वो कठमुल्ले लोग हैं जो कहते हैं कि कुरान व हदीस में किसी भी संशोधन की कोई जरूरत नहीं है। अच्छी चीजों के लिए तो सचमुच इसमें संशोधन की कोई जरूरत नहीं है।</div>
<div style="background-color: white; border: 0px none; color: #333333; font-family: 'Droid Sans', Arial, Verdana, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 22px; list-style: none; outline: none; padding: 1em 0px; text-align: justify;">
इन कठमुल्लों की माने तो इस्लाम में स्त्री के अधिकार उसके भरण पोषण और पुरुषों की सेवा तक ही सीमित हैं बशर्ते कि वह अपने पुरुष की आज्ञाओं का पालन करे। इस्लाम का सामान्य विश्वास है कि पुरुष स्त्री की अपेक्षा श्रेष्ठ होता है । इस्लाम में कट्टरवादी सोच का एक प्रमाण यह भी है कि स्त्रियों पर पर्दे का कानून लागू किया गया है। इस धर्म ने केवल पुरूष को तलाक का अधिकार दिया है। महिला को इस विषय में कोई अधिकार नहीं है । इस्लाम में महिला को केवल भरण पोषण का अधिकार दिया गया है।</div>
<div style="background-color: white; border: 0px none; color: #333333; font-family: 'Droid Sans', Arial, Verdana, sans-serif; font-size: 15px; line-height: 22px; list-style: none; outline: none; padding: 1em 0px; text-align: justify;">
इस्लाम धर्म में महिलाओं को लेकर कभी भी कोई गलत स्पष्टीकरण नहीं दिया गया है लेकिन कठमुल्लों ने महिलाओं के अधिकारों को अपने फायदे के लिए धर्म के नाम पर तोड़ मरोड़ कर पेश किया है। जो धर्म किसी महिला के वजन उठाने पर एतराज करता है वह उस पर जुल्म की इजाजत कैसे दे सकता है। जो लोग भी महिलाओं पर जुल्म करते हैं, उनका वास्ता उस धर्म से नहीं हो सकता, हालांकि वे अपने कारनामों को इस्लाम का हिस्सा बताकर इस धर्म को बदनाम करते हैं। इस धर्म को समझने के लिए सबसे पहले इसके संस्कृति विशेष और समाज विशेष की संरचना से अलग करके देखना होगा। अफगानिस्तान में अगर कुछ लोग अपनी शैली में जीवनयापन करते हैं तो इसकी वजह सामाजिक व्यवस्था, अफगानिस्तान की संस्कृति है न कि इस्लाम की। अगर औरतों पर जुल्म अफगानिस्तान में होता है तो वहां की संस्कृति इसके लिए जिम्मेदार है न कि इस्लाम धर्म, इस्लाम में तो हमेशा इसे रोकने पर जोर दिया गया है। कुरान की ज्यादातर आयतें महिला और पुरुष दोनों को संबोधित करते हुए हैं, कुरआन का दृष्टिकोण दोनों के लिए समान है, यह महिला और पुरुष में भेदभाव नहीं करता। कुरआन में कहा गया है कि- हमने महिला और पुरुष दोनों को एक समान आत्मा दी है, दोनों की महत्ता एक समान है। इस्लाम में तलाक की इजाजत भी तब है जबकि जीवनसाथी का तरीका धर्म के अनुसार न हो, वह आपके साथ एब्यूसिव हो, निर्दयी हो, जालिम हो और कुछ अन्य। तलाक का मसला बहुत संवेदनशील है, सामान्य जीवन में उसका ख्याल आना भी गुनाह माना गया है। ऐसे में धर्म के ठेकेदारों ने इस्लामिक देशों में जो महिलाओं के अधिकार तैयार किए है वह उनके अपने फायदे को ध्यान में रखकर, ना की धर्मग्रंथों को। वो महिलाओं को समान अधिकार नहीं देना चाहते तो यह उनके स्वफायदे की बात है, न कि समाज और धर्म के फायदे की पश्चिमी देशों के साथ भी कुछ ऐसी ही बात लागू होती है वहां भी सरकारी एजेंसियों द्वारा संचालित महिला अधिकार की बातें धर्मग्रंथों से निर्धारित नहीं की जाती बल्कि अपने फायदे के लिए तैयार की गई हैं। भारत में भी कमोवेश महिलाओं की बदतर स्थिति के लिए धर्मग्रंथ नहीं बल्कि कानून या सिस्टम की पेचीदगी जिम्मेवार है।</div>
</div>
Gangesh Kumarhttp://www.blogger.com/profile/16191940284702061868noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7501581940666157180.post-58212663970079029502013-10-22T22:03:00.004-07:002013-10-22T22:03:53.866-07:00अर्थहीन फैसला है जमीन जिसकी खनिज उसका <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="MsoNormal" style="text-align: justify;">
<o:p> </o:p><span style="font-family: Mangal;"><b><i><span style="color: magenta;">गंगेश कुमार ठाकुर</span></i></b></span></div>
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiBVK-zmLJgrWE44j4bZdRX5KT1SzZYCXsf9hXjpIWpTQw0ItF2D2Fgrr6y0ConqvB8oHDT1GL3WbGrhVNGaeGe4AJ_wGA3-4C923d0LZFHZvTvnVoXvYbbWV4Lj-vjj1Vojt0rK7VbOrA5/s1600/khanan.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiBVK-zmLJgrWE44j4bZdRX5KT1SzZYCXsf9hXjpIWpTQw0ItF2D2Fgrr6y0ConqvB8oHDT1GL3WbGrhVNGaeGe4AJ_wGA3-4C923d0LZFHZvTvnVoXvYbbWV4Lj-vjj1Vojt0rK7VbOrA5/s1600/khanan.jpg" /></a></div>
<div class="MsoNormal" style="text-align: justify;">
<span style="font-family: Mangal;"><b><i><span style="color: magenta;"><br /></span></i></b></span></div>
<div class="MsoNormal" style="text-align: justify;">
<span lang="HI" style="font-family: Mangal; mso-bidi-font-family: Mangal; mso-bidi-language: HI; mso-bidi-theme-font: minor-bidi;"> </span><o:p></o:p></div>
<br />
<div class="MsoNormal" style="text-align: justify;">
<span lang="HI" style="font-family: Mangal; mso-bidi-font-family: Mangal; mso-bidi-language: HI; mso-bidi-theme-font: minor-bidi;">विस्थापन देश के विकास का परिचायक है या नहीं ये तो नहीं पता पर अपनी राजनीति
चमकाने और ढेरों रुपया बटोरने का जरिया जरूर है। खनन के नाम पर लोगों से जमीन लो
और फिर जमीन के मालिकाना हक से भी उन्हें बेदखल कर दो। सरकार की इन्हीं नीतियों के
चलते आज कई ऐसे राज्यों में हाहाकार मचा हुआ है जो खनिज के मामले में शायद देश के
सबसे समृद्ध राज्य हैं। जहां जमीन के नीचे प्रकृति प्रदत्त अकूत खनिज संपदा छुपी
है। लेकिन जो जमीन का मालिक है वह इस खनिज का मालिक नहीं है। सरकार की नीतियों के
चलते ऐसे भूस्वामियों की रातों की नींद और दिन का चैन खो गया है। मैं भारखंड का
रहनेवाला हूं और जानता हूं कि प्रकृति ने अपने इस खनिज रूपी अनुपम उपहार को बांटने
के समय इस राज्य के साथ कोई भेदभाव नहीं किया था। बल्कि उसे हक से ज्यादा संपदा अपने
हाथों उपहार में प्रकृति ने दे डाला था। उच्चतम न्यायालय के अलग-अलग फैसले की माने
तो भारते के मूल निवासी आदिवासी हैं और अपने दूसरे हाल में दिए फैसले में न्यायलय
ने कहा कि जो भूस्वामी होगा वही जमीन के नीचे दबे खनिज का भी स्वामी होगा। दोनों
ही फैसले जनता के हक में थे। लेकिन फैसले को दरकिनार कर सरकार ने भूस्वामियों को
जमीन से बेदखल करने उन्हें नौकरी और पैसे का लालच देकर उनके संपदा का दोहन करने, उन्हें
विस्थापित करने का जो काम शुरू किया वह निश्चित तौर पर सरकार की उस मंशा का
परिचायक है जिसमें लोकतंत्र में जनता का, जनता के द्वारा, जनता के लिए शासन की बात
केवल मिथ्या ही लगती है। विकास के नाम पर देश के इन मूलनिवासियों के साथ जिस तरह
का व्यवहार किया जा रहा है वह शायद सरकार करेगी इसकी उम्मीद कतई नहीं थी। झारखंड
में एक जिला है गोड्डा जिसके अंतर्गत पड़ता है सरकार की कोल माईन्स परियोजना
राजमहल प्रोजक्ट(ईस्टर्न कोल फिल्ड लि.) परियोजना का विस्तार इसी जिले के ललमटिया
से हुआ है। जिले से राजमहल तक पहाडियां ही पहाडियां हैं और इनके नीचे और सपाट समतल
जमीन के नीचे भी भरा पड़ा है कोयले का अकूत भंडार। सरकार ने कनाडा सरकार के सहयोग से
यहां सर्वप्रथम खनन परियोजना की शुरुआत की लेकिन कनाडा सरकार के करार की समय सीमा
समाप्त होने पर सरकार ने परियोजना के संचालन की जिम्मेदारी अपने हाथ में ले ली। </span><span lang="HI" style="font-family: Mangal; mso-ascii-font-family: Mangal; mso-bidi-font-family: Mangal; mso-bidi-language: HI; mso-bidi-theme-font: minor-bidi; mso-hansi-font-family: Mangal;">आज तक सरकार स्वयं इस परियोजना का संचालन कर रही है परियोजना के संचालन के लिए
समय-समय पर सरकार कई बड़े पूंजीपतियों के हाथ में इसका अलग-अलग काम सौंपती रहती है
और उसका पूरा फायदा सरकार और पूंजीपति दोनों मिलकर उठाते हैं। सरकार को जनता की
परेशानी से असुविधा से कोई मतलब नहीं है हां पूंजीपतियों की सुविधा और असुविधा का
पूरा ख्याल सरकार जरूर रखती है। ललमटिया में जहां इस परियोजना का शुभारंभ किया गया
था वहां कुछ आदिवासियों के गांव थे तो कुछ निचली जाति के लोगों के। लोगों को नौकरी
और पैसे का लालच देकर पहले तो जमीन से विस्थापित किया गया और फिर धीरे-धीरे सरकार
ने अन्य लोगों को भी विस्थापित करने और परियोजना का और विस्तार करने की ओर कदम
बढ़ाया। भोली-भाली जनता को अंधेरे में रखकर उनकी जमीन पर अधिकार किया गया और फिर
सुविधाओं का लालच देकर उनका विस्थापन किया गया। आज भी वहां यही क्रम जारी है पर
न्यायलय के फैसले के बाद भी सरकार की नीतियों में बदलाव नहीं आया है। लोगों को
सरकार यह तक बताने से कतराती है कि उनका मूल अधिकार क्या है। जहां सरकार का बस
नहीं चलता वहां जबरन विस्थापन और अधिग्रहण का फार्मूला जरूर अमल में लाया जाता है।
समय-समय पर सरकार स्थानीय गुंडों का इस्तेमाल भी विस्थापन के लिए करती है ऐसे में
जमीन जिसकी खनिज उसका जैसे न्यायालय के फैसले का क्या हश्र हो रहा होगा यह स्वतः
समझा जा सकता है। सरकार की इन्हीं नीतियों के विरोध में समय-समय पर यहां सरकार
विरोधी आवाजें उठती हैं लेकिन उसे बल प्रयोग द्वारा दबा दिया जाता है। ऐसे में इन
विस्थापित लोगों को सरकार विकास की धारा में शामिल तो नहीं कर रही है लेकिन, उनके
द्वारा विकसित सामाजिक व्यवस्था से पचासों साल पीछे जरूर धकेल रही है ताकि विरोध
के लिए फिर उन्हें पचास साल का लंबा सफर तय करना पड़े। <o:p></o:p></span></div>
</div>
Gangesh Kumarhttp://www.blogger.com/profile/16191940284702061868noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-7501581940666157180.post-86490871468967607632013-08-07T22:54:00.002-07:002013-08-07T22:54:44.965-07:00राजनीतिक बांसुरी पर देश की सुरक्षा का बेसुरा राग<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjGBFr71sNmn8LSBSasxdfPGO-f9OAFpsAb7bEeGBaDGaAEprgW0Zyz1lRPGFgqGW-F0j-YMcfwdeRbJvnLc7r77YXkM5F8V0l19-hXb_UmohIfU5QgsQPU_APPaFy60XKADwyXY61TzfrW/s1600/indo_pak_flags.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><b><img border="0" height="213" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjGBFr71sNmn8LSBSasxdfPGO-f9OAFpsAb7bEeGBaDGaAEprgW0Zyz1lRPGFgqGW-F0j-YMcfwdeRbJvnLc7r77YXkM5F8V0l19-hXb_UmohIfU5QgsQPU_APPaFy60XKADwyXY61TzfrW/s320/indo_pak_flags.jpg" width="320" /></b></a></div>
<a href="http://boljantabol.com/2013/08/08/homeland-security/"><b>http://boljantabol.com/2013/08/08/homeland-security/</b></a><br />
<div style="background-color: white; border: 0px none; color: #333333; font-family: 'Droid Sans', Arial, Verdana, sans-serif; font-size: 15px; list-style: none; outline: none; padding: 5px 0px; text-align: justify;">
<b>आर्थिक, सामरिक, राजनीतिक और सामाजिक सभी तरह से कमजोर होने और भारत से चार बार जंग हारने के बाद भी पाकिस्तान के पास आखिर कहां से इतनी ताकत आ गई है कि वह रह-रहकर भारत की सीमा में घुसने की कोशिश करता है। साथ ही यहां की सैन्य व्यवस्था को चौपट करने और भारत को युद्ध के लिए उकसाने की ताक में पाकिस्तान हमेशा आगे रहता है। यही हाल भारत के दूसरे पड़ोसी देश चीन का भी जो भारत की सीमा में घुसता चला आ रहा है और इतना ही नहीं पाकिस्तान भी कहीं न कहीं चीन की सह पर ही भारत के साथ इस तरह का व्यवहार करने की कोशिश कर रहा है। अमेरिका के साथ भी पाकिस्तान के रिश्ते काफी अच्छे हैं और पाक को अमेरिका भी अलग-अलग तरह से इस तरह की कार्रवाई के लिए अपनी सह देता रहता है। भारत से चार बार हार का मुंह देखने के बाद भी पाकिस्तान अगर इतनी जुर्रत कर पा रहा है तो उपरोक्त चीजें इसके लिए जिम्मेवार हैं। पाकिस्तान हर बार सीमा का उल्लंघन करने के बाद इसका दोष भारत के सर पर मढ़ता रहता है और वह कभी यह मानने को तैयार नहीं होता कि भारत की सीमा में घुसकर इस तरह के नापाक कार्रवाई में उसके सैनिक शामिल हैं। अभी कुछ महीने पहले पाकिस्तानी सैनिकों ने भारत की सीमा में घुसकर भारतीय सेना के दो जवानों की हत्या कर दी और उसका सर लेकर गायब हो गए पाकिस्तान ने फिर भी इसके लिए भारतीय सेना को ही दोषी ठहराया। अभी हाल में पाकिस्तान में आम चुनाव हुआ है और वहां प्रधानमंत्री के रूप में सत्ता पर नवाज शरीफ आसीन हुए हैं। नवाज के सत्ता संभालने से भारत को उम्मीद जगी थी कि भारत और पाक के रिश्ते शायद सुधरेंगे लेकिन पिछले एक महीने में पाकिस्तान ने भारत की सीमा में सात बार घुसपैठ करने की नाकाम कोशिश की कुछ दिन पहले भारतीय सेना की एक चौकी पर हमला कर पाक सेना के जवानों ने बिहार रेजिमेंट के पांच जवानों की हत्या कर दी। लेकिन भारत सरकार के उच्चायुक्त और सेना प्रमुख ने जब पाकिस्तान से इस कार्रवाई की बात पर नाराजगी जताई तो उलटा चोर कोतवाल को डांटे वाले फार्मूले पर चलते हुए पाकिस्तान ने अपनी सेना द्वार किए गए इस कार्रवाई से इनकार ही नहीं किया बल्कि यहां तक कह दिया कि भारतीय सेना के जवानों ने ही पाक सीमा पर गोलीवारी की जिसमें पाक सेना के दो जवान घायल हो गए। पाकिस्तान ने भारत पर सीजफायर के लगातार उल्लंघन का आरोप लगाते हुए भारतीय सेना पर हुए हमले से साफ इंकार कर दिया।</b></div>
<div style="background-color: white; border: 0px none; color: #333333; font-family: 'Droid Sans', Arial, Verdana, sans-serif; font-size: 15px; list-style: none; outline: none; padding: 5px 0px; text-align: justify;">
<b>पाकिस्तानी सेना द्वार लगातार किए जाने वाले हमले का जबाव नहीं दे पाने के पीछे भारतीय सेना की अपनी मजबूरी है। सेना के जवानों को इसका जबाव देने से पहले कई तरह की मंजूरी लेनी पड़ती है और मंजूरी के साथ आदेशों का पालन भी करना पड़ता है। इसमें रक्षा मंत्रालय के अफसरों से लेकर सेना के अफसरों और सरकार तक को लोग शामिल रहते हैं। पाकिस्तानी सेना का मामला इससे अलग है। वहां सेना को कई मामलों में सरकार से इजाजत लेने की जरूरत नहीं पड़ती है। पाकिस्तान में सेना जब चाहे सरकार का तख्तापलट कर अपनी सत्ता स्थापित कर लेती है। यहां सेना की सत्ता सरकार के समानातंर चलती है। पाकिस्तान में अब तक ग्यारह राष्ट्रपति हुए हैं जिनमें से पांच पाकिस्तानी सेना के जनरल थे। इनमें से चार ने सरकार का तख्तापलट कर अवैध रूप से सत्ता पर कब्जा किया था।</b></div>
<div style="background-color: white; border: 0px none; color: #333333; font-family: 'Droid Sans', Arial, Verdana, sans-serif; font-size: 15px; list-style: none; outline: none; padding: 5px 0px; text-align: justify;">
<b>दक्षिण एशिया के देशों में भारत का आर्थिक समृद्ध होना और सैन्य ताकतों से लैस होने से सिर्फ पाकिस्तान ही नहीं चीन भी घबराता है। इसलिए चीन कभी खुले तौर पर तो कभी छुपकर पाक को भारत के खिलाफ कार्रवाई करने में मदद देता है। भारत और कश्मीर के लिए नवाज शरीफ की नीतियां हमेशा से आक्रमक रही हैं। उन्हीं के शासनकाल में करगिल पर हमला हुआ था और अब पाकिस्तान के प्रधानमंत्री बनने के बाद सीमा पर पाकिस्तान की ओर से आतंकी, घुसपैठ और सेना की कार्रवाइयों में तेजी आई है।</b></div>
<div style="background-color: white; border: 0px none; color: #333333; font-family: 'Droid Sans', Arial, Verdana, sans-serif; font-size: 15px; list-style: none; outline: none; padding: 5px 0px; text-align: justify;">
<b>पाकिस्तान की सेना केवल इस तरह की कार्रवाई को अकेले अंजाम नहीं दे रही है बल्कि पाकिस्तान अलगाववादी और चरमपंथी ताकतों के इस्तेमाल भी इस तरह की कार्रवाई में भारत के खिलाफ कर रहा है। पाकिस्तान की ओर से केवल सीमा पर ही नहीं सीमा के अंदर घुसकर भी कई बार आतंकी वारदातों को अंजाम दिया गया है। मुंबई में हुए हमले के बाद भारत जिस तरह से पाकिस्तान को घेरने में नाकाम रहा उसके बाद से पाकिस्तान के हौसले और भी बुलंद हो गए और तब से अबतक पाकिस्तान देश के भीतर और सीमा पर अपनी नापाक हरकतें लगातार दोहराता आ रहा है।</b></div>
<div style="background-color: white; border: 0px none; color: #333333; font-family: 'Droid Sans', Arial, Verdana, sans-serif; font-size: 15px; list-style: none; outline: none; padding: 5px 0px; text-align: justify;">
<b>ये हमारे देश के सुरक्षा नियमों के पंगुपन का ही नतीजा है कि आज हमारे देश की सीमा सुरक्षित नहीं है। एक तरफ लगातार पाकिस्तान हमें उकसाने की कोशिश कर रहा है तो दूसरी तरफ चीन भी ऐसी हरकतों से बाज नहीं आ रहा। पाकिस्तान भारत को हमेशा से बांग्लादेश विभाजन के लिए दोषी मानता है और आज भी उसकी नजर भारत से अपने इस अपमान का बदला लेने पर टिकी हुई है। बांग्लादेश के अलग होने और पाकिस्तान द्वारा युद्ध हारने के बाद भारत एक शानदार सैन्य जीत को अपनी राजनीतिक जीत में नहीं बदल सका। उस समय करीब 93 हजार पाकिस्तानी सैनिक भारत के पास बंदी थे। अगर भारत चाहता तो शिमला समझौते में कश्मीर विवाद का निपटारा तब तरीके से किया जा सकता था। लेकिन भारत इस जीत का कूटनीतिक फायदा उठाने में नाकाम।</b></div>
<div style="background-color: white; border: 0px none; color: #333333; font-family: 'Droid Sans', Arial, Verdana, sans-serif; font-size: 15px; list-style: none; outline: none; padding: 5px 0px; text-align: justify;">
<b> पाकिस्तान द्वारा किए जा रहे इस नापाक हमले में भारत सरकार के नुमाइंदे देश के हित में कम और राजनीतिक लाभ के लिए इस मामले को ज्यादा तुल पकड़ाने में लगे हुए हैं। मामला आतंकवाद और राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ा हुआ भी हो तो भी हमारे नेता इसमें राजनीतिक नफा-नुकसान की बात सोचने से बाज नहीं आते। जम्मू-कश्मीर के पुंछ में पांच भारतीय सैनिकों की हत्या के बाद जो बात सामने आई वह इसका ताजा और स्पष्ट उदाहरण है। बीजेपी ने जहां लोकसभा और राज्यसभा में रक्षा मंत्री के बयान पर जमकर हंगामा किया वहीं कांग्रेस ने आंकड़े के जरिए यह साबित करने की कोशिश की कि एनडीए के शासनकाल में ज्यादा लोग और सैनिक आतंकवादी घटना के शिकार हुए। रक्षा मंत्री एंटनी संसद में अपने बयान में पाकिस्तानी सेना का बचाव करते सुने गए और हमले में शामिल लोगों को पाकिस्तानी सेना की वर्दी में बताया। संसद में जब इस मुद्दे पर यूपीए सरकार घिरने लगी तो बचाव के लिए कांग्रेस महासचिव और मीडिया विभाग के प्रमुख अजय माकन सोशल नेटवर्किंग साईट ट्विटर पर बचाव का पक्ष और आंकड़ों का विज्ञान लेकर सामने आ गए उन्होंने बीजेपी की तरफ निशाना साधकर लिखा कि जवानों की हत्या पर आज बीजेपी बोल रही है, लेकिन उसे अप्रैल 2001 में बांग्लादेश की सीमा पर 16 बीएसपी जवानों की मौत को याद करना चाहिए। 1998-2004 के बीच जम्मू कश्मीर में 6115 नागरिकों की हत्या हुई। यानी औसतन 874 सालाना मौत हुई। यूपीए सरकार के समय में पिछले साल सिर्फ 15 लोगों की मौत हुई है, जो कि दो दशक में सबसे कम है। एनडीए के शासनकाल में जम्मू-कश्मीर में कुल 23,603 आतंकी घटनाएं हुईं यानी औसतन 3,372 हर साल, जबकि यूपीए के अंदर पिछले साल 220 आतंकी घटनाएं हुईं। पिछले दो दशक में सबसे कम। अजय माकन ने आखिर में ट्वीट पर लिखा कि अगर इन आंकड़ों को देखा जाए तो यह साफ हो जाता है कि हमारी सरकार सुरक्षा को लेकर कितनी गंभीर है। राज्यसभा में विपक्ष के नेता अरुण जेटली ने इस ट्विट के जबाव में कहा कि, क्या अब हम 1962 तक जाएंगे या फिर यह बताएंगे कि कांग्रेस के शासनकाल में जम्मू-कश्मीर के काफी बड़े हिस्से पर पाकिस्तान और चीन ने कब्जा कर लिया है। भारत में बार-बार हो रहे आतंकवादी हमले और सीमा पर की जा रही घुसपैठ की कोशिश और मारे जा रहे सैनिकों के सवाल को जब तक राजनीतिक रंग में रंगा जाएगा पाकिस्तान और चीन इसी तरह से भारत को उसके घर में और उसकी सीमा में पहुंचकर क्षति पहुंचाता रहेगा। देश की आंतरिक और बाहरी सुरक्षा के मामले में अगर राजनीतिक से अलग देश की सेवा और शांति के भाव से नहीं सोचा गया तो जल्द ही देश को चीन और पाकिस्तान से एक और लड़ाई के लिए तैयार रहना पड़ेगा अभी पांच और दस की संख्या में सेना के जवान मारे जा रहे हैं तब शायद देश को लाखों की संख्या में अपने सैनिकों की बलि चढ़ानी पड़े।</b></div>
</div>
Gangesh Kumarhttp://www.blogger.com/profile/16191940284702061868noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-7501581940666157180.post-4083998083824292612013-07-31T05:33:00.002-07:002013-07-31T05:33:30.446-07:00तेलंगाना नहीं दिया जनता के पैरों के लिए चुनावी तेल दिया है<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="background-color: white; border: 0px none; color: #333333; font-family: 'Droid Sans', Arial, Verdana, sans-serif; font-size: 15px; list-style: none; outline: none; padding: 5px 0px; text-align: justify;">
आखिरकार यूपीए सरकार की नींद खुली और पृथक तेलंगाना राज्य के मुद्दे पर सरकार के नुमाइंदे एकजुट होकर रंगे सियार की तरह हुआ-हुआ करने लगे। सैकड़ों जान की कीमत चुकाने के बाद और 64 साल के संघर्ष के बाद आखिर सरकार तेलंगाना मुद्दे पर अब ही क्यों इतनी दयालु हुई यह प्रश्न विचार के लायक है। देश में 2014 में आम चुनाव है। एनडीए और यूपीए दोनों को अपने-अपने काम को लेकर चनता के दरबार में जाना है ऐसे में यूपीए सरकार के लिए तेलंगाना मुद्दा तुर्क का पत्ता ही तो था जिसे सरकार ने सही समय पर खोला और कहा कि सरकार को तेलंगाना बनाने में लगभग छह महीने का समय लगेगा। यानि यूपीए सरकार की उपलब्धियों में एक ताजातरीन उदाहरण चुनाव से ठीक पहले और भी जुड़ जाएगा और जनता जब तक इसे भूलेगी आम चुनाव में इसका फायदा यूपीए सरकार को मिल चुका होगा। इसी सोच के साथ संसद के पटल पर 1969 से धूल खा रही तेलंगाना की फाइल से सरकार ने धूल साफ करवा दी है ताकि जनता की नजर इस फाइल पर पड़ते ही उनकी आंखें चुंधिया जाए और तब तक सरकार इसका फायदा उठा ले जाए। तेलंगाना आंदोलन के इतिहास में 1969 का साल सबसे अहम है। इसी साल हैदराबाद और तेलंगाना के सभी इलाकों में अलग तेलंगाना राज्य की मांग को लेकर पहली बार हिंसक आंदोलन हुआ। आंध्रप्रदेश की राजनीति में तूफान आ गया और इस तूफान में आज तक तेलंगाना के मुद्दे पर प्रदेश की राजनीति को बांटे रखा। आंध्र प्रदेश के दोनों इलाकों को तो मिला दिया गया लेकिन दोनों में रहनेवाले के दिल कभी नहीं मिले। आंध्र प्रदेश के अंदर 23 जिले हैं जिसमें से 10 जिले जो वन संपदा और खनिज संपदा के प्रचुर भंडार के रूप में राज्य में है इसी को पृथक कर तेलंगाना राज्य की मांग शुरू की गई। खैर देश में हाल ही में अलग तीन राज्यों को देखा जाए तो लगेगा कि इनका अलग होना जरूरी भी था लेकिन राज्यों के अलग होने के बाद जिस तरह से वहां भ्रष्टाचार, लूट, बेरोजगारी, गरीबी, अशिक्षा जैसी समस्याओं का साम्राज्य पनपता गया उससे कहीं न कहीं लगने लगा कि देश के अन्य राज्यों से जिस उद्देश्य के साथ इन राज्यों को पृथक किया गया उसका किसी भी तरह से फायदा इन राज्यों को नहीं मिला।</div>
<div style="background-color: white; border: 0px none; color: #333333; font-family: 'Droid Sans', Arial, Verdana, sans-serif; font-size: 15px; list-style: none; outline: none; padding: 5px 0px; text-align: justify;">
अभी जिस क्षेत्र को तेलंगाना कहा जाता है वह कभी हैदराबाद प्रांत का हिस्सा था, जिसका विलय 17 सितंबर 1948 को भारत में हो गया। इसी हैदराबाद प्रांत को आंध्रप्रदेश राज्य में मिलाने का प्रस्ताव 1953 में पेश किया गया और हैदराबाद प्रांत के तत्कालीन मुख्यमंत्री बरगुला रामकृष्ण राव ने इस सिलसिले में कांग्रेस के केंद्रीय नेतृत्व के फैसले का समर्थन किया जबकि तेलंगाना क्षेत्र में इस फैसले का विरोध किया जा रहा था। विलय प्रस्ताव को स्वीकार करते हुए आंध्रप्रदेश विधानसभा ने 25 नवंबर 1955 को तेलंगाना के हितों की सुरक्षा करने का वादा किया और तेलंगाना क्षेत्र का विलय भी आंध्रप्रदेश में हो गया। तेलंगाना के हितों की रक्षा करने के लिए 20 फरवरी 1956 को तेलंगाना नेताओं तथा आंध्र नेताओं के बीच एक समझौता हुआ। बेजवाडा गोपाल रेड्डी और बरगुला रामकृष्ण राव ने इस समझौते पर हस्ताक्षर किया।</div>
<div style="background-color: white; border: 0px none; color: #333333; font-family: 'Droid Sans', Arial, Verdana, sans-serif; font-size: 15px; list-style: none; outline: none; padding: 5px 0px; text-align: justify;">
फिर, राज्य पुनर्गठन अधिनियम के तहत हैदराबाद प्रांत के तेलगू भाषी इलाकों को आंध्रप्रदेश के साथ मिलाकर 1 नवंबर 1956 को यह राज्य बन गया। तेलंगाना क्षेत्र के लोगों को इस विलय से डर था कि वे शिक्षा और नौकरियों के मामले में पिछड़ जाएंगे। उनका डर कहीं न कहीं सही साबित हुआ और दोनों क्षेत्रों में यह अंतर अब भी बना हुआ है। सांस्कृतिक रूप से देखा जाए तो दोनों क्षेत्रों में खासा अंतर है। आंध्रप्रदेश में जहां दक्षिण भारतीय संस्कृति का रंग भरा हुआ है वहीं तेलंगाना पर उत्तर भारतीय संस्कृति का असर है।</div>
<div style="background-color: white; border: 0px none; color: #333333; font-family: 'Droid Sans', Arial, Verdana, sans-serif; font-size: 15px; list-style: none; outline: none; padding: 5px 0px; text-align: justify;">
साठ के दशक से अलग तेलंगाना राज्य की मांग को लेकर उस्मानिया विश्वविद्यालय के छात्रों ने आंदोलन की शुरुआत कर दी बाद में इसमें अन्य लोगों ने भी अपनी हिस्सेदारी निभाई। इस आंदोलन के दौरान पुलिस गोलीबारी और लाठी चार्ज में तीन सौ से अधिक छात्र मारे गए। उसी दौरान तेलंगाना प्रजा राज्यम पार्टी के प्रमुख नेता एम चेन्ना रेड्डी ने जय तेलंगाना का नारा दिया। बाद में एम चेन्ना रेड्डी ने अपनी पार्टी का कांग्रेस में विलय कर लिया जिससे आंदोलन कमजोर पड़ने लगा। इसके बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने रेड्डी को आंध्र प्रदेश का मुख्यमंत्री बना दिया और इस आंदोलन ने पूरी तरह से दम तोड़ दिया। लेकिन, साल 2001 में तेलुगू देशम पार्टी के के चंद्रशेखर राव ने एक बार फिर तेलंगाना आंदोलन में नई जान फूंक दी और अपनी नई पार्टी तेलंगाना राष्ट्र समिति के नाम से गठित कर लिया। उन्होंने पृथक तेलंगाना राज्य के गठन के लिए छात्रों के साथ मिलकर आंदोलन की पुन: शुरुआत कर दी। तब से लगातार इस आंदोलन में थम-थम कर ही सही नया मोड़ आता रहा और नतीजा यह हुआ कि दिसंबर 2009 में पृथक तेलंगाना राज्य के गठन की मांग को लेकर के चंद्रशेखर राव ने आमरण अनशन शुरू कर दिया। अनशन के 11वें दिन उनकी हालत बिगड़ने लगी जिससे घबराकर नौ दिसंबर 2009 की रात तत्कालीन गृहमंत्री पी. चिंदबरम ने पृथक तेलंगाना राज्य के गठन की घोषणा कर दी। बाद में नाटकीय तरीके से अपनी कार्यशैली के अनुसार चलते हुए यूपीए सरकार अपनी घोषणा से मुकर गई और तेलंगाना आंदोलन ने एक बार फिर जोर पकड़ लिया। इसके बाद तो हालात इतने बदतर हो गए कि उस्मानिया और वारंगल विश्वविद्यालय के छात्रों समेत समूचा तेलंगाना हिंसक आंदोलन पर उतर आया। कुछ आंदोलनकारियों ने आत्मदाह तक कर लिया और कई अन्य आंदोलन की बलिवेदी पर चढ़ गए। सितंबर 2011 में तेलंगाना क्षेत्र के सरकारी कर्मचारियों ने 42 दिन की हड़ताल की जिससे राज्य भर के लोगों को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा। आखिरकार सरकार के आश्वासन के बाद 25 अक्टूबर को हड़ताल समाप्त हो गई लेकिन आंदोलन जारी रहा। तेलंगाना आंदोलनकारियों को वर्ष 2014 में होने वाले लोकसभा चुनावों के मद्देनजर पृथक राज्य के गठन की उम्मीद बनी रही। कांग्रेस सरकार ने भी अपनी चाल के अनुसार 2014 के लोकसभा चुनाव से पहले अलग तेलंगाना राज्य के गठन का लालीपॉप तेलंगाना के लोगों के हाथों में थमा दिया। केन्द्र ने सत्तारूढ़ यूपीए की समन्वय समिति और कांग्रेस कार्यसमिति की तरफ से मंजूरी देकर पृथक तेलंगाना राज्य बनने का रास्ता साफ कर दिया लेकिन, यूपीए सरकार के एकाएक इस फैसले पर लोगों की नजर टेढ़ी होने लगी है। यूपीए के अनुसार दोनों ही राज्यों के लिए हैदराबाद संयुक्त राजधानी होगी और इसे केन्द्र शासित क्षेत्र का दर्जा दिया जाएगा।</div>
<div style="background-color: white; border: 0px none; color: #333333; font-family: 'Droid Sans', Arial, Verdana, sans-serif; font-size: 15px; list-style: none; outline: none; padding: 5px 0px; text-align: justify;">
क्या छोटे राज्यों के निर्माण से विकास का मॉडल तैयार किया जा सकता है? क्या विकास के लिए छोटे और पृथक राज्यों को बनाने की जरूरत है? क्या इससे पहले बने सारे राज्य जो अन्य राज्यों से पृथक हुए हैं उनमें विकास की रोशनी दिख रही है? क्या बड़े राज्यों से ज्यादा विकास अभी के छोटे राज्यों में दिख रहा है? क्या अमेरिका के मॉडल पर छोटे राज्यों के निर्माण की पद्धति हमारे देश के लिए उपयुक्त है? क्या हमारा राजनीतिक और सामाजिक दायरा अमेरिका के राजनीतिक और सामाजिक दायरे जैसा है? ये कुछ ऐसे सवाल हैं जिनके जबाव मात्र से स्पष्ट हो जाएगा की भारत में अपने राजनीतिक फायदे के लिए हर सरकार समय-समय पर छोटे राज्यों के निर्माण का कार्य करती रही है। अगर ऐसा नहीं है तो तेलंगाना से पहले विदर्भ के साथ कई और राज्य हैं जिनको पृथक करने की मांग चल रही है लेकिन सरकार उन्हें अलग क्यों नहीं कर रही है? अगर पृथक राज्य विकास की परिभाषा गढ़ता है तो क्या विकास के लिए इन राज्यों को अलग होने का हक नहीं है?</div>
<div style="background-color: white; border: 0px none; color: #333333; font-family: 'Droid Sans', Arial, Verdana, sans-serif; font-size: 15px; list-style: none; outline: none; padding: 5px 0px; text-align: justify;">
अगर छोटे राज्यों के निर्माण से समस्या समाप्त हो जाएगी और देश में राजनीतिक स्थिरता का माहौल बना रहेगा तो देश के सारे बड़े राज्यों से उठ रही छोटे राज्यों की मांग को मानकर छोटे पृथक राज्य बना दिए जाए। अगर छोटे राज्य विकास का मॉडल तैयार करते हैं तो महाराष्ट्र का विकास सबसे कम और त्रिपुरा और नागालैंड जैसे राज्यों का विकास सबसे ज्यादा होना चाहिए। यानि राज्यों के पृथक करने के पीछे किसी विकास की परिभाषा काम नहीं करती बल्कि राजनीति के फायदे का कारोबार चलता है। अगर 2014 का आम चुनाव नहीं होता तो यूपीए द्धारा तेलंगाना को पृथक करने की घोषणा के लिए और भी लंबा इंतजार करना पड़ता। पूर्व में इस मामले पर यूपीए द्वारा जिस तरह से विरोध और धोखाधड़ी की गई है उससे भी यह मानने में तकलीफ हो रही है कि शायद यूपीए की सरकार बनने के बाद इस मामले को फिर से ठंडे बस्ते में न डाल दिया जाए। किसी भी राज्य के उत्थान और पतन के लिए वहां के राजनीतिक और प्रशासनिक हालत जिम्मेदार होते हैं यदि राजनीतिक स्थिरता हो तो राज्य का विकास बहुत तेजी से होने लगता है। ऐसे में सरकार के लिए पृथक तेलंगाना मंजूरी जनता को तेल लगाना है यानि राजनीतिक फायदे के लिए जनता की सेवा।</div>
</div>
Gangesh Kumarhttp://www.blogger.com/profile/16191940284702061868noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7501581940666157180.post-11423583131227942302013-07-29T01:32:00.001-07:002013-07-29T01:32:07.210-07:00महिलाओं की असुरक्षा में हमने पाया चौथा स्थान, शर्म करो शैतान<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<a href="http://boljantabol.com/2013/07/27/fourth-place-we-found-for-womens-insecurity/">http://boljantabol.com/2013/07/27/fourth-place-we-found-for-womens-insecurity/</a><br />
<div style="background-color: white; border: 0px none; color: #333333; font-family: 'Droid Sans', Arial, Verdana, sans-serif; font-size: 15px; list-style: none; outline: none; padding: 5px 0px; text-align: justify;">
महिलाओं की सुरक्षा के लिहाज से देखा जाए तो जिस तरह की घटनाऐं आए दिन भारत में घट रही हैं उसमें महिलाओं के सुरक्षा को लेकर अगर कोई रिपोर्ट आती है तो वो रिपोर्ट कहीं न कहीं सरकार द्वारा महिला सुरक्षा के लिए उठाए जा रहे कदमों पर उंगली उठाता नजर आता है। समय-समय पर महिला सुरक्षा को लेकर कानून बनाए जोते हैं और कानूनों में परिवर्तन भी किए जा रहे हैं। फिर भी देश में महिलाऐं असुरक्षित है। देश के हर कोने से महिलाओं के साथ दुष्कर्म, यौन प्रताड़ना, दहेज के लिए जलाया जाना, शारीरिक और मानसिक प्रताड़ना और स्त्रियों के खरीदफरोख्त के समाचार सुनने को मिलते रहते हैं। ऐसे में महिला सुरक्षा कानून का क्या मतलब रह जाता है इसे आप और हम बेहतर तरीके से सोच और जान सकते हैं। महिला अधिकारों के लिए काम करने वाले दो सौ से अधिक विशेषज्ञों ने एक सर्वे के ज़रिए भारत को महिलाओं के लिए बेहद असुरक्षित बताया । इस सर्वे की माने तो भारत में मानव तस्करी औऱ कन्या भ्रूण हत्या के मामले सबसे ज्यादा हैं। इस मामले में भारत अपने पड़ोसी देश पाकिस्तान से थोड़ा बहुत ही बेहतर है, इस सूची में पाकिस्तान तीसरे स्थान पर है। अफगानिस्तान को तो महिलाओं के लिए दुनिया का सबसे खतरनाक देश माना गया है। लोकतांत्रिक गणराज्य कांगो इस सूची में दूसरे स्थान पर है और सोमालिया भारत के बाद पांचवे स्थान पर।</div>
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इस सर्वे में जो प्रश्न पुछे गए वो कुछ ऐसे मुद्दों पर थे जो इस प्रकार हैं खराब स्वास्थ्य सेवाओं की वजह से किस जगह पर महिलाओं की सबसे ज्यादा मौत होती है, कौन सी जगह पर महिलाएं सबसे ज्यादा शारीरिक हिंसा झेलती हैं, परंपरागत कारणों की वजह से कहां महिलाओं के साथ सबसे भेदभाव पूर्ण रवैया अपनाया जाता है। ऐसे प्रश्नों के जबाव इतने खतरनाक मिले जिसने भारत को महिलाओं की असुरक्षा के लिए चौथे स्थान पर ला दिया, सच में यह स्थिति सोचनीय है। भारत को इस सर्वे में मानव तस्करी, भेदभावपूर्ण रवैय्ये और सांस्कृतिक मामलों के लिए आड़े हाथों लिया गया। सर्वे के अनुसार भारत में लड़कों को लड़कियों से ज्यादा तबज्जो दी जाती है, जिस कारण देश में कन्या भ्रूण हत्या के मामले बढ़े हैं। भारत में आज भी बाल विवाह का प्रचलन है और देश में रूढ़ीवादी विचारधार समाप्त नहीं हो पाई है। भारत के पूर्व गृह सचिव के बयान को माने तो देश में करीब 100 मिलियन लोग, जिसमें महिलाओं और लड़कियों की संख्या सबसे ज्यादा है, भारत में मानव-तस्करी से जुड़े हुए हैं। यह अलग बात है कि दुनिया में ऐसे कई देश हैं, जिन्हें इस सूची में सबसे ऊंचाई पर होना चाहिए था। ये दुनिया के ऐसे देश हैं जहां एक महिला होना ही अपने आप में कठिनाई भरा औऱ खतरनाक है। ये अलग बात है कि भारत का स्थान ऐसे जगहों में रखा गया जो चिंता का विषय तो है लेकिन, फिर भी हैरानी इस बात से है कि क्यों दुनिया के कई अन्य देश जो भारत से भी खराब हालात में हैं विशेषज्ञों की नजर से बच निकले। मानव तस्करी के मामले में चीन भारत के बराबर है। जबकि जानकारी के अनुसार दक्षिण अफ्रीका में महिलाओं का सर्वाधिक शारीरिक शोषण होता है। लेकिन आश्चर्य की बात यह है कि इन देशों के नाम विशेषज्ञों की लिस्ट में नहीं थे।</div>
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हलांकि मानव तस्करी की समस्या से कुशलतापूर्वक निबटने के प्रयासों के लिए अमेरिकी विदेश मंत्रालय ने भारत की सराहना की है। अमेरिकी विदेश मंत्रालय का कहना है कि भारत इस अपराध से निबटने के लिए महत्वपूर्ण प्रयास कर रहा है। ऐसे में सरकार के लिए यह जरूरी है कि मानव तस्करी से जुड़े अपराधों के लिए देश में ज्यादा कठोर दंड के प्रावधान किए जाएं।</div>
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भारत में मानव तस्करी की समस्या में लाखों लोगों से गुलामी या बेगारी या मजदूरी करवाना सबसे अहम है। पुरुषों, महिलाओं और बच्चों से ऋण ना चुका पाने की स्थिति में ऐसे काम लिए जाते हैं और उनसे जबरन ईंट-भट्टों, चावल मिल, कृषि और कशीदाकारी का काम करवाया जाता है। जहां काम के साथ-साथ उनका यौन शोषण और शारीरिक एवं मानसिक शोषण भी किया जाता है।</div>
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अभी कुछ दिनों पहले दिल्ली की सड़क पर हुए सामूहिक बलात्कार और हरियाणा के एक आश्रयगृह की महिलाओं और बच्चों का यौन और शारीरिक शोषण जैसी घटना ने सरकार के सारे कानूनों की धज्जियां उड़ा कर रख दी। हरियाणा के पना घर नाम के आश्रयगृह मामले में तो राज्य पुलिस भी कथित तौर पर संलग्न थी।</div>
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पहले इस धारा में उर्द्धत था कि जो कोई एक शख्स को बतौर दास आयात, निर्यात, हटाता, खरीदता, बेचता अथवा दान देता है, अथवा दास बनाकर रखता है, उसको सात साल तक की जेल हो सकती है। ये संशोधन दंड संहिता के कानूनी बदलावों का एक हिस्सा था, जिसका उद्देश्य महिलाओं के खिलाफ अपराधों से निपटने हेतु भारतीय कानूनों में सुधार करना था।</div>
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मानव सस्करी भारत में 8 मिलियन अमेरिकी डॉलर तक का एक अवैध व्यापार हो गया है। हर साल लगभग 10,000 नेपाली महिलाएं कीमत देकर यौन शोषण के लिए भारत लाई जाती हैं। हर साल लगभग 20 से 25 हजार महिलाओं और बच्चों की बांग्लादेश से अवैध तस्करी हो रही है।वर्तमान समय में विश्व के बहुत से देशों को जिन चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है उनमें से एक, मानव तस्करी की समस्या है। विश्व स्तर पर प्रकाशित होने वाले कुछ आंकड़ों की माने तो पूरे विश्व में ढाई करोड़ से अधिक लोग, मानव तस्करी की भेंट चढ़ चुके हैं। बच्चों को भीख और चोरी जैसे काम के लिए तथा महिलाओं को यौन व्यापार तथा घरों में काम करने और पुरुषों को औद्योगिक केन्द्रों तथा अत्यधिक कठिन व हानिकारक कामों के लिए मानव तस्करी का शिकार बनाया जाता है। मानव तस्करी का सबसे अधिक कष्टकारक पहलू यह है कि अधिकांश मामलों में लोग स्वेच्छा से इसके लिए तैयार हो जाते हैं और उन्हें इसके परिणामों के बारे में सही जानकारी नहीं होती। संयुक्त राष्ट्रसंघ की रिपोर्ट पर गौर करे तो इतने अंकुश के बावजूद प्रत्येक वर्ष लगभग 40 लाख लोग मानव तस्करी की भेंट चढ़ जाते हैं। भारत में राजधानी दिल्ली में मानव तस्करी के बढ़ते मामलों के मद्देजनर सरकार ने सभी राज्यों में मानव तस्करी निरोधक सेल तथा हेल्पलाईन सेवा शुरू की है। नियंत्रण सेल को खोलने का एकमात्र मकसद यही है कि मानव तस्करी की घटनाओं को किसी तरह नियंत्रित किया जा सके। इसके लिए पुलिस विभाग द्वारा जनप्रतिनिधियों, अधिवक्ताओं, पत्रकारों व आमजनों से सहयोग लिया जा रहा है। सेल के लिए अलग से टोल फ्री फोन नंबर लगाए गए है, जिस पर फोन करके मानव तस्करी से संबंधित कोई भी सूचना दी जा सकती है। विश्व में बढ़ती मानव तस्करी की घटनाओं को रोकने के लिए वर्तमान में भारत ही नहीं, बल्कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी प्रयास जारी हैं, लेकिन इसके साथ ही अंतर्राष्ट्रीय नियमों को तहत इस अमानवीय व्यापार को रोकने के लिए कड़े प्रावधान व दंड की जरूरत है।</div>
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Gangesh Kumarhttp://www.blogger.com/profile/16191940284702061868noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7501581940666157180.post-64435232978638617052013-07-19T03:30:00.002-07:002013-07-19T03:30:27.923-07:00इतिहास और पुस्तकों से है प्यार तो यहां घुम आइए सरकार<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="background-color: white; border: 0px none; color: #333333; font-family: 'Droid Sans', Arial, Verdana, sans-serif; font-size: 15px; list-style: none; outline: none; padding: 5px 0px; text-align: justify;">
<b>रज़ा पुस्तकालय में उनकी मूल्यवान सम्पत्ति के रूप में कई ताड़ (खजुर) के पत्तों पर लिखी गई पांडुलिपिया है, उनमें से कई तेलगू, संस्कृत, कन्नड़, सिनहाली और तमिल भाषा में है। इसलिए अगर आपको विश्व के पुरातन साहित्य, समाज, दर्शन, धर्म, कला, संस्कृति को जानना है तो आपको यहां पर आना होगा। आप कभी भी इस पुस्तकालय में आकर इन चीजों से अपने आप को मिला सकते हैं। इसलिए कहता हूं इतिहास और पुस्तकों से है प्यार तो यहां घुम आइए सरकार।</b></div>
<div style="background-color: white; border: 0px none; color: #333333; font-family: 'Droid Sans', Arial, Verdana, sans-serif; font-size: 15px; list-style: none; outline: none; padding: 5px 0px; text-align: justify;">
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<b><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgnw9glJcgk5R0iBMCH90-tn3aO-a8ZL-nBhvTYPdsWW-IEsSgKSi4vjE7ARX2jWRa1x9XJrB5qU9-3100ytBey3Wi6t9AxxT_k8ofp7HU1BlCD_8lHNG4Yg_7dUMtF1xqnBylq77JtQk6s/s1600/raza.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgnw9glJcgk5R0iBMCH90-tn3aO-a8ZL-nBhvTYPdsWW-IEsSgKSi4vjE7ARX2jWRa1x9XJrB5qU9-3100ytBey3Wi6t9AxxT_k8ofp7HU1BlCD_8lHNG4Yg_7dUMtF1xqnBylq77JtQk6s/s1600/raza.jpg" /></a></b></div>
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<div style="background-color: white; border: 0px none; color: #333333; font-family: 'Droid Sans', Arial, Verdana, sans-serif; font-size: 15px; list-style: none; outline: none; padding: 5px 0px; text-align: justify;">
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<div style="background-color: white; border: 0px none; color: #333333; font-family: 'Droid Sans', Arial, Verdana, sans-serif; font-size: 15px; list-style: none; outline: none; padding: 5px 0px; text-align: justify;">
हिंदी फिल्मों में चाकू-छूरी के लिए प्रसिद्ध और लोगों की जुबान पर हमेशा बसे रहने वाले रामपूरी को कौन नहीं जानता जी हां साहब यह रामपुरी इसी जिले की देन है। हालांकि उत्तर प्रदेश के इस जिले ने कई सारे फनकारों, कलाकारों और प्रतिभा सम्पन्न लोगों से देश को नवाजा। उत्तर प्रदेश राज्य का यह जिला नवाबों की नगरी के नाम से भी जाना जाता है। यहां के प्रमुख पर्यटन स्थलों में से है रामपुर किला, रामपुर राज़ पुस्तकालय और कोठी खास बाग। इस शहर का कुल क्षेत्रफल 2367 वर्ग किलोमीटर है। यह जिला बरेली जिले के पूर्व, मुरादाबाद जिले के पश्चिम, बादौन जिले के दक्षिण और उधम सिंह नगर जिले के उत्तर में पड़ता है। रामपुर की स्थापना नवाब फैजुल्लाह खान ने की थी। उन्होंने 1774-1794 तक यहाँ शासन किया।</div>
<div style="background-color: white; border: 0px none; color: #333333; font-family: 'Droid Sans', Arial, Verdana, sans-serif; font-size: 15px; list-style: none; outline: none; padding: 5px 0px; text-align: justify;">
रामपुर नगर ही इस ज़िले का प्रशासनिक केंद्र है तथा यह कोसी के बाएँ किनारे पर स्थित है। रामपुर नगर में उत्तरी रेलवे का स्टेशन भी है। रामपुर का चाकू उद्योग प्रसिद्ध है। चीनी, वस्त्र तथा चीनी मिट्टी के बरतन के उद्योग भी नगर में हैं। रामपुर नगर में अरबी भाषा की शिक्षा के लिए एक महाविद्यालय है। रामपुर रज़ा पुस्तकालय, इन्डो इस्लामी शिक्षा और कला का खाज़ाना है! नवाब फैज़ उल्ला ख़ान द्वारा 1774 में स्थापित किए गए केंद्र पर उनकी विरासत को संग्रहित कर पुस्तकालय का गठन कर दिया गया। बहूमूल्य पांडुलिपियों के साथ ऐतिहासिक दस्तावेज़ों, मुग़ल काल के लघु चित्रों, किताबों और कला के अन्य सामानों को नवाब के तोषाख़ाने के बगल में रखा गया है। नवाब यूसुफ अली ख़ान ‘नाजि़म एक साहित्यिक व्यक्ति और उर्दू के प्रसिद्व कवि मिर्ज़ा ग़लिब के शिष्य थे। उन्होंने पुस्तकालय में एक अलग विभाग बनाया और उसके नवनिर्मित कमरों में संग्रहित सामानों को स्थानांतरित कर दिया। नवाब ने जाने मान ज्ञात सुलेखकों, प्रकाश डालने वाले विद्वानों, जिल्द चढ़ाने वालों को कश्मीर और भारत के अन्य भागों से आमंत्रित किया बाद में नवाबों द्वारा सग्रंह को लगातार समृद्ध किया जाता रहा।</div>
<div style="background-color: white; border: 0px none; color: #333333; font-family: 'Droid Sans', Arial, Verdana, sans-serif; font-size: 15px; list-style: none; outline: none; padding: 5px 0px; text-align: justify;">
रामपुर रज़ा पुस्तकालय दुनिया की एक शानदार, सांस्कृतिक विरासत और ज्ञान का खजाना है। यह बहुत दुर्लभ और बहुमूल्य पांडुलिपियों, ऐतिहासिक दस्तावेज़ों, इस्लामी सुलेखों के नमूनों, लघुचित्रों, खगोलीय उपकरणों, अरबी और फारसी भाषा में दुर्लभ सचित्र काम के अलावा 60,000 मुद्रित पुस्तकों के संग्रह के लिए जाना जाता है। कहते हैं प्रथम स्वत्रन्त्रता संग्राम के बाद 1857 में प्रख्यात कवियों, लेखकों और विद्वानों की एक बड़ी संख्या रामपुर आकर बस गयी थी। नवाब कल्बें अली खान 1865-1887ने यहां पुस्तकालय में दुर्लभ पांडुलिपियों, पेंटिग्स, और इस्लामी सुलेखों के नमूनों के संग्रह में गहरी रूचि दिखाई, वह खुद एक प्रख्यात विद्वान और कवि थे, उन्होंने दुर्लभ हस्तलिपियों, पेंटिग्स और मुग़ल और अवध पुस्तकालयों के कला के टुकड़ों को संरक्षित करने के लिए एक समिति बनायी। यह समिति पांडुलिपियों की जाँच किया करते थी। जब नवाब हज यात्रा करने गए तो वहाँ से क़ुरान मजीद की अद्वितीय चर्मपत्र 7वीं शताब्दी ई. की हिजरी 661 जिसको जनाब हज़रत अली की हस्तलिपि माना जाता हैं साथ लाए, इस प्रकार पुस्तकालय संग्रह को अत्यधिक समृद्ध किया गया।</div>
<div style="background-color: white; border: 0px none; color: #333333; font-family: 'Droid Sans', Arial, Verdana, sans-serif; font-size: 15px; list-style: none; outline: none; padding: 5px 0px; text-align: justify;">
नवाब हामिद अली खानन ने राज सिंहासन पर बैठने से पहले कई देशों का दौरा किया वह अत्यन्त शिक्षित और एक विपुल भवन निर्माता थे, उन्होंने प्रभावशाली महलों, किला प्राचीर और राज्य इमारतों का रामपुर राज्य में निर्माण कराया। उन्होंने 1904 में किले के अन्दर इन्डो-यूरोपियन शैली में हामिद मंजिल नाम से एक शानदार हवेली का निर्माण कराया। इसके बाद रज़ा पुस्तकालय 1957 में एक शानदार इमारत में स्थानांनतरित कर दिया गया। भारत में सन 1949 में रामपुर राज्य के विलय के बाद पुस्तकालय के प्रबंधन को एक ट्रस्ट के द्वारा जारी और नियनित्रत किया गया जिसे 1951 में 06 अगस्त को बनाया गया था ट्रस्ट का प्रबन्घन जुलाई 1975 तक जारी रहा। भारत सरकार के शिक्षा और वैज्ञानिक अनुसंघान के राज्यमंत्री प्रो.एस.नुरूल हसन बार बार पुस्तकालय आये और इस अनमोल विरासत की उपेक्षित हालत का गम्भीरता से अवलोकन किया उनके कहने पर बेहतर प्रबन्घन के लिए उपयुक्त उपायों को लागू कर के वित्तीय अनुदान प्रदान किया, परिणाम के रूप में 1975 में भारत सरकार ने संसद के अघिनियम के तहत पूर्ण घन कोष और प्रबन्घन अपने अघीन कर लिया तब पुस्तकालय केन्द्रीय सरकार द्वारा नियन्त्रण में ले लिया गया। अब यह पुस्तकालय एक राष्ट्रीय महत्व की संस्था के रूप में भारत सरकार के सांस्कृतिक विभाग के अधीन एक स्वायत्त संस्था के रूप में हैं और पुरी तरह केन्द्र सरकार द्वारा वित्त पोषित है। पुस्तकालय में कई पुरानी कला वस्तुएं और दुर्लभ खगोलीय उपकरण है। संग्रह में सबसे पुराना उपकरण सिराज दमिश्क का हिजरी 615 (1215 ई.) में बनाया (ग्रहों की स्थिति जानने वाला) खगोलीय उपकरण है। पुस्तकालय में तेरहवीं शताब्दी ई. के बगदाद के प्रवीण लेखक ‘याकूत-अल-मुस्ता के द्वारा लिखे क़ुरान की प्रति है। यह सोने और कीमती लाजवर्द पत्थर रंग में अलंकृत है। रामपुर रज़ा पुस्तकालय को कलात्मक मूल्य के महान साहित्य की एक सौ पचास सचित्र पांडुलिपियों के अघिकार का गौरव प्राप्त है। ये चित्र समकालीन जीवन शेली, कला, वास्तुकला, रीतिरिवाज और आभूषण इसके अलावा स्थलाकृतिक विवरण, वनस्पति, जीव और परम्परागत संगीत वाद्य आदि पर प्रकाश डालता है। बाल्मीकि की एक अनूठी सचित्र रामायण सुमेर चन्द द्वारा फारसी में अनुवादित की गई, हिजरी सन् 1128(1715-16ई.) में फारूख सियार के शासनकाल में जिसकी प्रति भी यहां सुरक्षित है। उल्लेखनीय संस्कृत पांडुलिपियों में से, प्रबोघ चक्रवर्ती का व्याकरण पर कार्य का उल्लेख कर सकते है, यह बैजनाथ देव चौहान वंशी द्वारा लिखति है और गिरघारी लाल मिश्रा द्वारा लिपिक है। रज़ा लाइबेरी संग्रह का एक और घ्यान आकर्षित करने वाला पहलू है, फारसी लिपि में लिखी हज़ारों हिन्दी पांडुलिपियां यहां रखी हैं। मलिक महाजन की मघुमती की पुरी किताब हाल ही में पुस्तकालय द्वारा प्रकाशित साथ ही संरक्षित भी की गयी है इसके अलावा मलिक मुहम्मद जायसी की पद्मावत फारसी अनुवाद के साथ पुस्तकालय के संग्रह की खासियत है। रज़ा पुस्तकालय में उनकी मूल्यवान सम्पत्ति के रूप में कई ताड़ (खजुर) के पत्तों पर लिखी गई पांडुलिपिया है, उनमें से कई तेलगू, संस्कृत, कन्नड़, सिनहाली और तमिल भाषा में है। इसलिए अगर आपको विश्व के पुरातन साहित्य, समाज, दर्शन, धर्म, कला, संस्कृति को जानना है तो आपको यहां पर आना होगा। आप कभी भी इस पुस्तकालय में आकर इन चीजों से अपने आप को मिला सकते हैं। इसलिए कहता हूं इतिहास और पुस्तकों से है प्यार तो यहां घुम आइए सरकार।</div>
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Gangesh Kumarhttp://www.blogger.com/profile/16191940284702061868noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7501581940666157180.post-47842187739465948762013-07-19T03:24:00.002-07:002013-07-19T03:24:33.351-07:00बच्चे मरे हैं सियासत नहीं शोक मनाओ<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="background-color: white; border: 0px none; color: #333333; font-family: 'Droid Sans', Arial, Verdana, sans-serif; font-size: 15px; list-style: none; outline: none; padding: 5px 0px; text-align: justify;">
<b><i>सरकार की मिड-डे मील योजना की पोल खुलने के बाद इस पर अफसोस कम और सियासत ज्यादा होने लगी है। साहनुभूति के शब्द नहीं बोले जा रहे लेकिन आरोपों की खंजर चलाई जा रही है। सत्ता के लोभ और नीजी लाभ के मद में अंधे ये लोग मासूमों की मौत को भी सियासत का अखाड़ा समझ उस पर कुश्ती खेल रहे हैं। दु:ख इनको मासूमों की मौत का नहीं है परेशानी विपक्ष के साजिश से जुड़ी हुई है। वाह रे देश जहां सत्ता मासूमों के मौत पर भी खेल खेलती है। ऐसे देश में लोकतंत्र का अर्थ ही खोता जा रहा है लोकतंत्र धीरे-धीरे सियासीतंत्र में तब्दील होता जा रहा है।</i></b></div>
<div style="background-color: white; border: 0px none; color: #333333; font-family: 'Droid Sans', Arial, Verdana, sans-serif; font-size: 15px; list-style: none; outline: none; padding: 5px 0px; text-align: justify;">
<b><i><br /></i></b></div>
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgiItvd_pzbyDOJk62nZD5itB_4Tm9N7Dz26_qWLxx84XHnqM30ktpqU3zmMdrjz4hEIYptuZ21FfgzsWeup1oq_lmMoZtw1Te8NsEbNSWDy69NYlj36-1sjl4xyIVmBCD6_QHfKsUl0Bfw/s1600/mid+day.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgiItvd_pzbyDOJk62nZD5itB_4Tm9N7Dz26_qWLxx84XHnqM30ktpqU3zmMdrjz4hEIYptuZ21FfgzsWeup1oq_lmMoZtw1Te8NsEbNSWDy69NYlj36-1sjl4xyIVmBCD6_QHfKsUl0Bfw/s1600/mid+day.jpg" /></a></div>
<div style="background-color: white; border: 0px none; color: #333333; font-family: 'Droid Sans', Arial, Verdana, sans-serif; font-size: 15px; list-style: none; outline: none; padding: 5px 0px; text-align: justify;">
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<div style="background-color: white; border: 0px none; color: #333333; font-family: 'Droid Sans', Arial, Verdana, sans-serif; font-size: 15px; list-style: none; outline: none; padding: 5px 0px; text-align: justify;">
केंद्र सरकार की मिड-डे मील योजना हमेशा से विवादों में रही। केंद्र सरकार द्वारा देश के सभी राज्यों में चलाई जा रही इस योजना में केंद्र और राज्य दोनों सरकारों की भागीदारी है पर इसकी देख-रेख का काम राज्य सरकारों का ही है। केंद्र सरकार इस योजना को चलाने के लिए राज्यों को अपनी तरफ से अनुदान देती है। जब से इस योजना की शुरुआत हुई इस योजना की कई खामियां उजागर होकर सामने आ गई। मिड-डे मील या मध्याह्न भोजन योजना के तहत सरकार द्वारा देश के तमाम बच्चों को स्कूल में दोपहर के भोजन का प्रावधान बनाया गया। लेकिन राज्यों में इसके पालन के साथ कई ऐसे मामले घटित हुए जिसने सरकार के इस योजना के कार्यान्वयन की शैली पर सवाल खड़े कर दिए।</div>
<div style="background-color: white; border: 0px none; color: #333333; font-family: 'Droid Sans', Arial, Verdana, sans-serif; font-size: 15px; list-style: none; outline: none; padding: 5px 0px; text-align: justify;">
मिड डे मील योजना की शुरुआत साल 1995 में हुई लेकिन अधिकतर राज्यों ने इस योजना के नाम पर मासिक आधार पर कच्चा अनाज देना शुरु किया। अदालत ने 28 नवंबर 2002 को इसका संज्ञान लेते हुए आदेश दिया कि बच्चों को योजना के तहत पकाया हुआ भोजन दिया जाय।<br style="border: 0px none; list-style: none; margin: 0px; outline: none; padding: 0px;" />फिर इस योजना में संशोधन साल 2004 के सितंबर में हुआ और इसे सभी जगह लागू कर दिया गया। इस योजना के तहत केंद्र सरकार ने सभी सरकारी विद्यालयों, स्थानीय निकायों द्वारा संचालित स्कूलों और सरकारी सहायता प्राप्त स्कूलों के कक्षा एक से पांच तक के छात्रों को पकाया हुआ भोजन देने के लिए प्रति छात्र प्रतिदिन एक रुपये का खर्च अपनी तरफ से देना मंजूर किया। इस योजना का सरकार के पास जब ऑडिट रिपोर्ट पहुंचा तो इसकी ढ़ेर सारी खामियां उजागर हुई। इसमें सबसे मुख्य खामी यह भी है कि शिक्षकों को भोजन पकाने के काम की देखभाल करने में काफी समय खर्च करना पड़ता है और इससे उनके अध्यापन के कार्य असर पड़ता है।</div>
<div style="background-color: white; border: 0px none; color: #333333; font-family: 'Droid Sans', Arial, Verdana, sans-serif; font-size: 15px; list-style: none; outline: none; padding: 5px 0px; text-align: justify;">
इस योजना के प्रभाव में आने के बाद से देश की तमाम जनता जो खासकर गरीब तबके से थे वो अपने बच्चों को शिक्षा के उद्देश्य से नहीं केवल दोपहर के भोजन पाने के लिए स्कूल भेजने लगे। बच्चे दोपहर के भोजन के बाद शायद ही स्कूलों में दिखते होंगे ऐसा हर जगह देखा जाने लगा। देश में जिस तरह के हालात हैं ऐसे में गरीब बच्चों के लिए शिक्षा से ज्यादा जरूरी एक वक्त का भोजना था चाहे वह स्कूल को आधे वक्त का समय देकर ही क्यों न पाया जाए।</div>
<div style="background-color: white; border: 0px none; color: #333333; font-family: 'Droid Sans', Arial, Verdana, sans-serif; font-size: 15px; list-style: none; outline: none; padding: 5px 0px; text-align: justify;">
हाल ही में बिहार के एक सरकारी प्राथमिक विद्यालय में इस योजना की वो कड़वी सच्चाई बयां कर दी जो शायद लोग जानकर भी चुप थे। इस योजना के तहत दिए गए विषाक्त भोजन ने 27 बच्चों की जान ले ली और लगभग सौ बच्चे की हालत गंभीर हो गई। देश में इस त्रासदी से बवाल नहीं मचा लेकिन सियासत का खेल जरूर शुरू हो गया केंद्र और राज्य सरकार अपने बयानों में एक दूसरे की निंदा करते नहीं अघाए। केंद्र और राज्य में विपक्षी पार्टियां और अन्य दल भी निजी लाभ के लिए आरोप-प्रत्यारोप का खेल खेलने लगे। लेकिन इस पूरे प्रकरण में आम लोगों के लिए इनकी सोच नदारद थी। बिहार के शिक्षा मंत्री पीके शाही ने अपने बयान से मीडिया में सनसनी फैला दी कि बच्चों के खाने में जहर मिला हुआ था, जिसकी वजह से इतनी बड़ी संख्या में बच्चे मौत की नींद सो गए। आनन-फानन में प्राथमिक विद्यालय की प्रिंसिपल का पहले तबादला किया गया और बाद में उन्हें सस्पैंड करने का निर्णय लिया गया। बिहार के छपरा में हुए इस मानवीय त्रासदी में 22 बच्चों की मौत के बाद केंद्र सरकार की ओर से भी सफाई के शब्द मीडिया के कैमरे में कैद हुए। केंद्र सरकार ने बताया की सरकार की तरफ से इसी साल मार्च महीने में बिहार को चेतावनी दी गई थी कि राज्य में बच्चों को घटिया खाना परोसा जा रहा है। मानव संसाधन मंत्रालय ने अपनी रिपोर्ट में कई शिकायतों हवाला भी दिया और साथ ही साथ कहा कि उनके द्वारा बिहार में घटिया भोजन दिए जाने पर निगरानी कमेटी बनाने को कहा गया था। लेकिन बिहार सरकार इससे उलट इस मामले में विपक्षी दलों की साजिश का रोना रोने लगी। राज्य के शिक्षा मंत्री पी के शाही ने अपने बयान में कहा कि गांववालों ने बताया कि एक पार्टी विशेष के सक्रिय कार्यकर्ता अर्जुन राय के किराना दुकान से स्कूल में सामग्री की आपूर्ति की जाती है। अर्जुन राय उस स्कूल की प्रभारी हेड मिस्ट्रेस मीना देवी के पति हैं और एक बडे़ राजनेता के करीबी हैं।</div>
<div style="background-color: white; border: 0px none; color: #333333; font-family: 'Droid Sans', Arial, Verdana, sans-serif; font-size: 15px; list-style: none; outline: none; padding: 5px 0px; text-align: justify;">
बात केवल छपरा में मिड-डे मील खाने से 27 बच्चों की मौत के बाद हंगामे की होती तो कोई बात नहीं थी इसी बीच गया और मधुबनी में भी मिड डे मील मासूमों पर कहर बनकर टूटा। गया में मिड डे मील खाने से एक बच्चे की मौत हो गई और 22 बीमार हो गए। दूसरी तरफ मधुबनी में 50 से ज्यादा बच्चों की तबीयत बिगड़ गई। इनमें से सात बच्चों को तत्काल हॉस्पिटल में भर्ती काराया गया। उधर, देश के दूसरे कोने से महाराष्ट्र के एक स्कूल से भी 31 बच्चों के मिड-डे मील खाने के बाद बीमार पड़ने की खबर आ गई। जिसने केंद्र सरकार की इस योजना और इसके सुरक्षा उपायों के सारे पोल खोल दिए। सरकारी स्कूलों में छात्रों की संख्या बढ़े इसके लिए दोपहर में उन्हें खाना खिलाना शुरू किया गया था, अब जब यही भोजन खा कर बच्चों की जान जा रही है तो सवाल उठता है कि यह महज एक हादसा है या फिर स्कूलों की बदइंतजामी का नतीजा। </div>
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Gangesh Kumarhttp://www.blogger.com/profile/16191940284702061868noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7501581940666157180.post-3578972011923733072013-07-09T02:59:00.001-07:002013-07-09T02:59:47.767-07:00देश में व्याप्त है राजनीतिक विकलांगता<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="background-color: white; border: 0px none; color: #333333; font-family: 'Droid Sans', Arial, Verdana, sans-serif; font-size: 13px; line-height: 19px; list-style: none; outline: none; padding: 1em 0px; text-align: justify;">
आम चुनाव नजदीक आ जाए तो देश में राजनीतिक सरगर्मी शुरू हो जाती है। ऐसे में राजनीतिक दलों के बीच शुरू होती है सरकार बनाने के लिए पार्टियों को जोड़ने-तोड़ने और गठबंधन तैयार करने का काम। कुछ साल पहले तक देश में केवल बड़ी पार्टयों का बोलबाला था ऐसे में सत्ता में हस्तक्षेप चाहे पक्ष में रहकर हो या विपक्ष में बैठकर बड़ी राजनीतिक पार्टियां ही ऐसा कर पाती थी। आज देश के राजनीतिक हालात में कुछ बदलाव आया है देश राजनीतिक अस्थिरता के दौर से गुजर रहा है और इसका एक ही कारण है देश में बिछा हुआ छोटी और क्षेत्रीय पार्टयों का जाल। जो अपना हित साधने के लिए सरकार के उपर हमेशा दवाब बनाते हैं और नतीजा देश में राजनीतिक अस्थिरता के रूप में सामने आता है। देश की राजनीतिक सत्ता के पक्ष और विपक्ष दोनों ही तरफ इन पार्टियों का दखल बराबर का होता है और दोनों के राजनीतिक भविष्य का निर्धारण यही पार्टियां करती हैं। देश आज महंगाई, भ्रष्टाचार जैसे कई समस्याओं से जूझ रहा है तो इसके जिम्मेवार ये क्षेत्रीय दल ही है। जो सरकार के निर्णय लेने की क्षमता पर अंकुश लगाए बैठे रहते हैं। जिनके हाथ में सत्ता की लगाम होती है। ऐसे में गठबंधन की वैसाखी के सहारे चलने वाले लोकतंत्र से किस तरह की भलाई की उम्मीद की जा सकती है।</div>
<div style="background-color: white; border: 0px none; color: #333333; font-family: 'Droid Sans', Arial, Verdana, sans-serif; font-size: 13px; line-height: 19px; list-style: none; outline: none; padding: 1em 0px; text-align: justify;">
देश आज जिस तरह से अस्थिरता की स्थिति में पहुंच गया है विश्व में जेस तरह से उसकी साख गिर रही है। तमाम मुद्दों पर जिस तरह से उसको विश्व के कई देशों का दवाब झेलना पड़ रहा है और वह विरोध करने से कतरा रही है उसका एक ही कारण गठबंधन की राजनीति, सरकार गिराने की हर समय होती कवायद और देश में पनपी सामाजिक अस्थिरता है जो इन क्षेत्रीय और छोटी पार्टियों की वजह से आई हैं। देश की राष्ट्रीय राजनीति हो या राज्य की राजनीति एक पार्टी के शासन का युग समाप्त हो गया है और गठबंधन की सरकार का जमाना चल पड़ा है। हर पार्टी का ध्यान चुनाव से पहले और चुनाव के बाद के मोर्चेबंदी पर रहती है। कांग्रेस गठबंधन की राजनीति की पक्षधर नहीं रही है, लेकिन इसे भी हकीकत को स्वीकार करना पड़ा है और आज वह यूपीए नाम के एक गठबंधन का नेतृत्व कर रही है, जिसमें फिलहाल आठ दल शामिल हैं। वे हैं कांग्रेस, एनसीपी, नेशनल कान्फ्रेंस, राष्ट्रीय लोकदल, इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग, केरल कांग्रेस (मणि), सिक्किम डेमोक्रेटिक फ्रंट और ऑल इंडिया डेमोक्रेटिक फ्रंट। पिछले पांच साल के गठबंधन के कार्यकाल में कांग्रेस ने आधे दर्जन से ज्यादा सहयोगियों से अपना हाथ भी धोया है।</div>
<div style="background-color: white; border: 0px none; color: #333333; font-family: 'Droid Sans', Arial, Verdana, sans-serif; font-size: 13px; line-height: 19px; list-style: none; outline: none; padding: 1em 0px; text-align: justify;">
कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी गठबंधन राजनीति के पक्ष में कभी नहीं थे। लेकिन बिहार विधानसभा में अपनी हार की स्थिति को देखते हुए गांधी ने गठबंधन की राजनीति को अपनाने में ही अपना भलाई समझा। पिछले लोकसभा चुनाव में बिहार और उत्तर प्रदेश में उन्होंने पार्टी को अकेले मैदान में उतारने का फैसला किया था। देश भर में कांग्रेस को मजबूत बनाने के लिए युवाओं को जोड़ने के अभियान में वो लग गए थे, लेकिन इस अभियान से उन्हें कोई सफलता नहीं मिली। बाद के चुनावों से पता चला कि उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्यों में पार्टी अपने बूते कुछ नहीं कर सकती। इसलिए अब राहुल भी गठबंधन की राजनीतिक विवशता को स्वीकार कर चुके हैं। कांग्रेस अब यूपीए को और भी विस्तार देने की रणनीति बनाने में जुटी हुई है।</div>
<div style="background-color: white; border: 0px none; color: #333333; font-family: 'Droid Sans', Arial, Verdana, sans-serif; font-size: 13px; line-height: 19px; list-style: none; outline: none; padding: 1em 0px; text-align: justify;">
पूर्वी भारत के चुनाव में कांग्रेस चाहती है कि कुछ पूर्व के कुछ राज्य इसके कब्जे में आ जाएं। फिलहाल इस समय देश भर में ऐसे 14 प्रदेश हैं, जहां कांग्रेस अकेली या अपने सहयोगियों के साथ शासन कर रही है। कांग्रेस झारखंड में भी झारखंड मुक्ति मोर्चा की सरकार बना रही है। वह सरकार में उसके साथ तो होगी ही, वहां की 14 लोकसभा सीटों में से अधिकांश पर वह झामुमो के समर्थन से चुनाव लड़ेगी।<br style="border: 0px none; list-style: none; margin: 0px; outline: none; padding: 0px;" />बिहार में कांग्रेस जनता दल (यू) के साथ बेहतर संबंध बनाने पर उतारू है। वह राज्य को बेहतर वित्तीय पैकेज देकर लालच में डाल रही है। खुद प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने नीतीश कुमार को सेकुलर होने का प्रमाण पत्र दे दिया है। विधानसभा में विश्वासमत पाने के दौरान कांग्रेस ने नीतीश सरकार के पक्ष में मतदान किया था। यदि जद (यू) चुनाव पूर्व यूपीए का सहयोगी नहीं भी बना, तो चुनाव बाद सहयोगी के रूप में मोर्चे में उसके आने की संभावना बनी रहेगी। पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस पहले तो कांग्रेस के साथ थी। लेकिन कुछ मुद्दों पर सरकार के साथ कहासूनी के बाद दोनों ने गठबंधन समाप्त कर लिया। चुनाव के पहले उसके साथ गठबंधन की इस समय तो कोई संभावना नहीं दिखाई दे रही है, पर चुनाव के बाद वह फिर कांग्रेस के साथ आ सकती है। असम में कांग्रेस और भी मजबूत होकर उभर रही है, क्योंकि वहां की मुख्य विपक्षी पार्टी असम गण परिषद अपनी समाप्ति के कगार पर है।</div>
<div style="background-color: white; border: 0px none; color: #333333; font-family: 'Droid Sans', Arial, Verdana, sans-serif; font-size: 13px; line-height: 19px; list-style: none; outline: none; padding: 1em 0px; text-align: justify;">
उड़ीसा में कांग्रेस का नवीन पटनायक के बीजू जनता दल से सीधा मुकाबला है। पटनायक के बराबरी का कोई नेता आज कांग्रेस के पास नहीं है। फिर भी वहां कांग्रेस ज्यादा से ज्यादा सीटें जीतने की कोशिश कर रही है। कमोबेश यही हालात बीजेपी के भी हैं किसी ने एनडीए गठबंधन का साथ छोड़ा है तो कोई अब भी उसके साथ खड़ा है बिहार में जनता दल (यू) जो गठबंधन की सबसे बड़ी सहयोगी थी उसने एनडीए से गठबंधन समाप्त कर लिया है। चुनाव के बाद क्या स्थिति बनती है यह तो वक्त ही बताएगा लेकिन देश में राजनीतिक स्थिरता का दौर अब कल की ही बात रहेगी यह निश्चित है क्योंकि राजनीति में जिस तरह का दखल क्षेत्रीय पार्टियों का हो गया है उससे स्पष्ट पता चलता है कि भारत जैसे वृहत लोकतांत्रिक देश में राजनीतिक स्थिरता अब बस सपना है जिसका हकीकत से अब कोई वास्ता नहीं है। अब देश बैसाखी के सहारे ही चलने को मजबूर हो गया है यानि देश में राजनीतिक विकलांगता का दौर आ गया है।</div>
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Gangesh Kumarhttp://www.blogger.com/profile/16191940284702061868noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7501581940666157180.post-71573228176230467892013-07-09T02:58:00.002-07:002013-07-09T02:58:28.578-07:00क्यों न की जाए जनता से सभी सुरक्षा रिपोर्ट साझा ?<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="background-color: white; border: 0px none; color: #333333; font-family: 'Droid Sans', Arial, Verdana, sans-serif; font-size: 13px; line-height: 19px; list-style: none; outline: none; padding: 1em 0px; text-align: justify;">
<b>भारत हमेशा या तो देश के अंदर के उग्रवाद से त्रस्त रहा है या बाहरी आतंकवादी हमले से, दोनों ही सूरत में अगर किसी को नुकसान होता है तो वह होता है देश की आम जनता को और उसकी शांति को। देश की भोली-भाली जनता इन आतंकियों के निशाने पर होती है। उन आतंकियों के आतंक फैलाने का मकसद भी देश की जनता को दहशत के साये में जीने को मजबूर करना ही है। देश की आजादी से अब तक जितने भी आतंकी हमले हुए उसका निशाना अगर कोई बना तो वह थी देश की आम जनता, जो या तो रोटी के जुगाड़ में सड़कों पर भाग रही थी या फिर वो बच्चे जो शिक्षा के लिए स्कूल जा रहे थे या वे लोग जो अपने ईलाज के लिए अस्पताल जाने की तैयारी कर रहे थे या फिर वे लोग जो अपने परिवार के साथ मिल खुशियां बांटने के लिए कहीं न कहीं घुम रहे थे या वो लोग जो घर पर त्योहारों में घर को रोशन करने की जुगत में बाजार से सामान लाने गए होते हैं ऐसे हर घर में आतंकी हमले ने मातम का वो शोर बरपाया की शांति पसंद देश की पूरी आवाम हिलने लगती थी, पूरा देश जल और दहल उठता था।</b></div>
<div style="background-color: white; border: 0px none; color: #333333; font-family: 'Droid Sans', Arial, Verdana, sans-serif; font-size: 13px; line-height: 19px; list-style: none; outline: none; padding: 1em 0px; text-align: justify;">
<b>आतंकवाद का कोई मजहब नहीं होता और न ही आतंकी की कोई जात होती है। गुजरात में अक्षरधाम, बैंगलुरू, हैदराबाद, अजमेरशरीफ, दिल्ली, जम्मू और कश्मीर, मुंबई, अमरनाथ का आतंकी हमला हो या ऐसे देश के अंदर हुए और भी आतंकी हमले हों हर हमले में अगर मौत हुई तो सिर्फ और सिर्फ मानवता की, जान गई तो सिर्फ आम लोगों की, शांति भंग हुई तो सिर्फ देश की लेकिन हमारी सुरक्षा एजेंसियां हर हमले में इतनी चाकचौबंद रही की हमले के बाद हर बार उन्होंने ये बयान जरूर दिया कि देश में हो रहे हमले के बारे में उन्हें जानकारी थी और इसकी जानकारी पहले ही वो संबद्ध राज्य सरकार को दे चुके थे। अगर हरबार ये बात सही थी तो आखिर सुरक्षा में कहां चुक होती रही जिस कारण देश इन आतंकी हमलों का दंश झेलता रहा। हमले के बाद देश के प्रमुख शहरों की सुरक्षा व्यवस्था चुस्त कर दी जाती रही और फिर दो-तीन दिन बाद सुरक्षा के वही लचर इंतजाम पूरे देश में और खास कर इन शहरों में देखने को मिलते रहे। केंद्र की पुलिस और सेना बिना आदेश के इन समस्याओं से निपटने को तैयार नहीं हुई और राज्य सरकार सूचना मिलने के बाद भी तब तक का इंतजार करती रही जब तक कोई हमला हो न जाए। ऐसे में देश की आंतरिक सुरक्षा व्यवस्था पर खर्च हो रहे इतने रुपए का फायदा जनता को क्या मिल पा रहा है यह विचारनीय प्रश्न है। मामला देश की एकता, अखंडता, शांति और भाईचारे का है इसलिए देश के किसी भी हिस्से में हुए आतंकी कार्रवाई का असर समूचे देश के आवाम के मन पर पड़ता है पूरा देश दहशत का दंश झेल रहा होता है और इन आतंकियों के दहशत फैलाने के मंसूबे कामयाब हो जाते हैं। लेकिन सरकार केंद्र की हो या राज्य की इससे अलग दोनों मिलकर इस पर सियासी रोटी सेकने से बाज नहीं आते बाकी कसर दोनों जगहों पर विपक्ष में बैठी पार्टियां निकाल देती हैं। जो वक्त आत्मचिंतन और आत्ममंथन का होता है उस वक्त पर राजनीतिक रोटियां पकाई जा रही होती हैं। हो भी क्यूं नहीं आग जल रही हो तो कोई भी उसपर रोटी और हाथ दोनों सेक सकता है।</b></div>
<div style="background-color: white; border: 0px none; color: #333333; font-family: 'Droid Sans', Arial, Verdana, sans-serif; font-size: 13px; line-height: 19px; list-style: none; outline: none; padding: 1em 0px; text-align: justify;">
<b>रविवार की सुबह देश जब नींद से जागा तो फिर दहशत के कालरूप से उसका सामना हो गया इस बार आतंकी हमला हुआ भी तो ऐसी जगह जो आंगन सदियों से शांति का प्रतीक है। महात्मा बुद्ध के शांत आंगन बोधगया में धमाका भी एक नहीं नौ। देश की जनता आंख मलते-मलते जगी और दहशत का ये तांडव सुन अंदर ही अंदर कांप गई। कांपे भी क्यूं नहीं बिहार के बोधगया में रविवार सुबह के साढ़े पांच बजे नौ सीरियल धमाके हुए। बिहार में ये पहला आतंकी हमला था और तो और मजे की बात ये है कि इस बार भी सुरक्षा एजेंसियों ने वही दावा किया जो वह हरबार करती रही है कि उन्होंने हमले की जानकारी पहले ही बिहार सरकार को दे दी थी। ऐसे में सुरक्षा में चूक चिंता का विषय नहीं आत्ममंथन का विषय है। हमले के ठीक बाद बिहार के मुख्यमंत्री नीतिश कुमार ने यह मान लिया की सुरक्षा एजेंसियों ने संबद्ध विभाग को आगाह कर दिया था हमले के हो जाने में चूक राज्य सरकार की है। अगर सुरक्षा एजेंसियां विल्कूल सही हैं तो क्यूं ना राज्य सरकारों को इस तरह के आतंकी हमले से निपटने में नाकाम करार करा कर सजा दी जाए। अगर आंतरिक सुरक्षा के मद्देनजर सुरक्षा एजेंसियों की रिपोर्ट को इसलिए साझा नहीं किया जाता कि यह देश की सुरक्षा का मामला है लेकिन बावजूद इसके भी सुरक्षा में सेंध लगती है और धमाके होते ही हैं तो क्यूं न एजेंसियों की रिपोर्ट को देश की आवाम के साथ साझा कर दिया जाए ताकि सुरक्षा में सैंध लगने से पहले आवाम खुद सचेत हो जाए और देश में हो रहे आतंकी हमलों का असर आम जनता पर न पड़े और न ही आम जनता को दहशत में डालने की आतंकियों की साजिश को कामयाब होने का मौका मिले।</b></div>
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Gangesh Kumarhttp://www.blogger.com/profile/16191940284702061868noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7501581940666157180.post-63391164955554655752013-07-09T02:55:00.002-07:002013-07-09T02:55:37.994-07:00किस दवाब में डूब रही है अर्थव्यवस्था ?<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="background-color: white; border: 0px none; color: #333333; font-family: 'Droid Sans', Arial, Verdana, sans-serif; font-size: 13px; line-height: 19px; list-style: none; outline: none; padding: 1em 0px; text-align: justify;">
<b>भारत की सरकार आर्थिक विकास नीति की सफलता पर अपने पीठ थपथपाने से पीछे नहीं रहती चाहें देश में हालात कैसे भी हो। देश की बड़ी जनसंख्या एक वक्त के भोजन के लिए तरस रही है तो दूसरी तरफ ऐसे भी लोग हैं जिनको दोनों वक्त का भोजन नहीं मिल पा रहा। शिक्षा का अभाव, स्वास्थ्य की अव्यवस्था, बेरोजगारी, गरीबी जैसी कई समस्याओं से निपटने के लिए सरकार रोज नई योजनाओं को संसद के पटल से देश के नागरिकों तक पहुंचाने की कोशिश करती देखी जा सकती है। लेकिन देश के हालात में परिवर्तन न के बराबर इसका एक ही कारण है योजनाओं को बना देने, लागू कर देने के बाद भी उसका पालन सही तरीके से नहीं हो पाना। देश की सरकार को जनता नहीं कार्पोरेटर चलाते हैं, यहां लोकतंत्र नहीं कार्पोतंत्र है अगर भरोसा न हो तो 2जी, 3 जी, प्रत्यक्ष विदेशी निवेश जैसे मामले आपको इस पर भरोसा दिला सकते हैं। जहां जनता की चिंता सरकार को बिल्कुल नहीं थी चिंता थी तो केवल कार्पोरेट घराने की यह केवल वर्तमान सरकार की बात नहीं है देश में आज तक जितनी सरकारें बनी सब जनता के द्वारा चुने गए और कार्पोरेटरों के इशारे पर चलते रहे। सभी सरकारी नीतियां हमें उत्पादों का आदी बनाने के लिए बनाई जाती हैं। हम आज जिन विदेशी उत्पादों का इस्तेमाल कर रहे हैं या उसके इस्तेमाल के आदी हो गए हैं उस पर देश की संसद और सरकार कुछ वर्षों पहले ही अपनी मुहर लगा चुकी होती है और फिर कंपनी को अपने उत्पादों के साथ बाजार में उतरने की सलाह दी जाती है ताकि लोग धीरे-धीरे इसके आदी बनें इनमें से अधिकतर विदेशी उत्पाद होते हैं। जो सनै-सनै देसी उत्पादों से आपको दूर करते चले जाते हैं और देसी कंपनियां नुकसान में चलने लगती है उधर विदेशी कंपनियों द्वारा अपने मुनाफे का बड़ा हिस्सा सरकार को, अपने प्रचार प्रसार के लिए और अपनी लॉबिंग के उपर खर्च करना पड़ता है। जिसके लिए वो जनता के ऊपर मूल्य वृद्धि कर दवाब बनाते हैं और नतीजा महंगाई जो आज देश को दीमक की तरह चाट कर खोखला करता चला जा रहा है। अभी देश में बढ़ती महंगाई को कम करने और आर्थिक विकास को गति देने के लिए प्रयासरत संप्रग सरकार अपने तमाम प्रयासों के बावजूद देशी-विदेशी निवेशकों का भरोसा जीत पाने में विफल रही है, जिसका नतीजा डॉलर के मुकाबले रुपये की कीमत कम होना है। विदेशी निवेशक जहां भारत में निवेश करने के प्रति उत्साहित नहीं दिखते हैं वहीं देसी निवेशकों को भी सुरक्षा के दृष्टिकोण से भारत से ज्यादा विदेश में निवेश करने का फायदा नजर आ रहा है। इस कारण आज देश से देसी उत्पादों का निर्यात लगातार घट रहा है वहीं आयात का बोझ देश पर बढ़ता जा रहा है, जिसका प्रभाव बढ़ते व्यापार घाटे के रूप में हमारे सामने है। अपनी गलत आर्थिक और राजनीतिक नीतियों की वजह से संप्रग सरकार आज खुद तो फंसी ही है देश की तमाम जनता को भी उसने महंगाई के भंवर जाल में उलझा दिया है। रुपए की कीमत दिनोंदिन गिरती चली जा रही है। विदेशी मुद्रा भंडार में हमारे पास बस इतनी मुद्रा बची है जिससे हम सात माह तक ही अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति कर पाने में सक्षम हैं।</b></div>
<div style="background-color: white; border: 0px none; color: #333333; font-family: 'Droid Sans', Arial, Verdana, sans-serif; font-size: 13px; line-height: 19px; list-style: none; outline: none; padding: 1em 0px; text-align: justify;">
<b>ऐसी स्थिति में सरकार के अर्थव्यवस्था को बचाने के लिए जो तरीका बचा है वह यह कि वह विदेशी निवेशकों को किसी तरह भरोसा दिलाए कि सरकार आर्थिक सुधार के काम को छोड़ेगी नहीं और इस दिशा में वह तेजी से काम करेगी। आनेवाले आम चुनावों को देखते हुए निवेशक वर्तमान सरकार पर बहुत भरोसा नहीं दिखा पा रहे हैं और उन्हें केंद्र में बनने वाली अगली सरकार का इंतजार है। देश की हिलती अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए सरकार को कड़े और नीतिगत फैसले लेने होंगे लेकिन सामने चुनाव हो तो ऐसी संभावना कम होती है। सरकार आर्थिक अनिश्चितता के इस माहौल में निवेशकों को भरोसा दिलाना चाहती है, इसके लिए सरकार कुछ क्षेत्रों में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की सीमा बढ़ाना चाहती है। इसके लिए सरकार ने फिलहाल टेलीकॉम में शत-प्रतिशत एफडीआइ को मंजूरी देने का निर्णय भी लिया है। वहीं देसी उद्योगपतियों के हित में गैस, कोयला आदि के दामों में वृद्धि करने का निर्णय भी लिया गया है।</b></div>
<div style="background-color: white; border: 0px none; color: #333333; font-family: 'Droid Sans', Arial, Verdana, sans-serif; font-size: 13px; line-height: 19px; list-style: none; outline: none; padding: 1em 0px; text-align: justify;">
<b>देश की सरकार अमेरिकी दबाव में ईरान से तेल का आयात घटा रही है और गैस व कोयले पर निर्भरता बढ़ा रही है। ऐसे में गैस और कोयले के बढ़े दाम से कुछ निजी उद्योगपतियों को तो लाभ होगा, जबकि दूसरे उद्योगों पर इसका विपरीत प्रभाव पड़ेगा और देश के राजकोष पर इससे दबाव बढ़ेगा। जिसका विपरीत असर महंगाई के रूप में सामने आएगा। यही नहीं घरेलू मांग घटेगी तथा निर्यात प्रभावित होगा। बेहतर यही होगा कि ऊर्जा कीमतों में वृद्धि का फैसला सरकार खुद करने के बजाय किसी स्वतंत्र एजेंसी को सौंप दे ताकि किसी दबाव में आकर देश के लिए अहितकर निर्णय नहीं लिया जाए। अभी ऐसा लगता है कि सरकार उद्योगपतियों के आगे झुक गई है और वह देश के आगे के हितों के लिए सही निर्णय ले पाने में अक्षम है। सरकार को चाहिए कि वह ऐसे निर्णय ले, जिससे आम आदमी पर महंगाई का बोझ कम पड़े और व्यापार असंतुलन के साथ राजकोषीय दबाव भा समाप्त हो। इसके लिए तत्काल काम करने की आवश्यकता है अन्यथा सरकार न तो अर्थव्यवस्था को पटरी पर ला सकेगी और न ही अपनी चुनावी नैया पार लगा सकेगी।</b></div>
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Gangesh Kumarhttp://www.blogger.com/profile/16191940284702061868noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7501581940666157180.post-81792107936299061052013-07-09T02:54:00.001-07:002013-07-09T02:54:03.779-07:00चुनाव से पहले चुनावी खेल शुरू<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="background-color: white; border: 0px none; color: #333333; font-family: 'Droid Sans', Arial, Verdana, sans-serif; font-size: 13px; line-height: 19px; list-style: none; outline: none; padding: 1em 0px; text-align: justify;">
<b>यूपीए सरकार ने अपने कार्यकाल के दसवें वर्ष में प्रवेश कर लिया है। पिछले नौ वर्षों में देश की दशा और दिशा में व्यापक परिवर्तन आया है। जनता महंगाई और भ्रष्टाचार जैसी समस्याओं से त्रस्त है। यूपीए सरकार उठाए गए कुछ ठोस कदम ने देश में पनप रही समस्याओं को सुलझाने की कोशिश तो की पर वो तकरीबन इसमें विफल ही रहे। जनता सरकार के काम से संतुष्ट हो पाई या नहीं ये तो 2014 के चुनाव के नतीजे के बाद ही पता चल पाएगा। अपने पूरे कार्यकाल में सरकार ने जनता के लिए जो कुछ भी किया उसके लिए उसकी जिम्मेदारी बनती है कि वह जनता के सामने अपने किए गए कार्य का लेखा-जोखा प्रस्तुत करे साथ ही विपक्ष की भी यह जिम्मेदारी बनती है कि उसने जनता के हित को ध्यान में रखते हुए सरकार के कामकाज का कितना विरोध और सहयोग किया इसका ब्यौरा प्रस्तुत करे क्योंकि उसे भी जनता ने ही चुनकर भेजा है।</b></div>
<div style="background-color: white; border: 0px none; color: #333333; font-family: 'Droid Sans', Arial, Verdana, sans-serif; font-size: 13px; line-height: 19px; list-style: none; outline: none; padding: 1em 0px; text-align: justify;">
<b>यूपीए सरकार ने अपने कार्यकाल के शुरुआती दौर में गांव से शहर की ओर रोजगार की तलाश में भाग रहे लोगों को मनरेगा योजना के तहत रोजगार का अधिकार दिया। लोगों को अपने घरों के नजदीक ही गारंटी से रोजगार मिलने की संभावना दिखने लगी, लेकिन सरकार की इस योजना के फलीभूत होने से पहले ही इस योजना को भ्रष्टाचार का दीमक चाटने लगा। सरकार आज आम चुनाव से पहले अपनी उपलब्धि गिनाने में मशगूल है जगह-जगह सड़कों पर सरकार के कामों की होर्डिंग और पोस्टर दिख जाएंगे, लेकिन उनकी इस योजना का सफल रूप देखने को इन दस सालों में नहीं मिल पाया।</b></div>
<div style="background-color: white; border: 0px none; color: #333333; font-family: 'Droid Sans', Arial, Verdana, sans-serif; font-size: 13px; line-height: 19px; list-style: none; outline: none; padding: 1em 0px; text-align: justify;">
<b>सरकार ने चुनाव के पहले जनता की नजर में अपनी छवि को दुरुस्त करने के लिए खाद्य सुरक्षा योजना, प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण, महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना, सभी को सामाजिक सेवाएं प्रदान करने और वितरण खामियों को पूरी तरह से दूर करने के लिए ‘आधार’ संख्या योजना और इसे सुलभता से उपलब्ध कराने हेतु भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण की स्थापना, राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन, जवाहर लाल नेहरु शहरी नवीकरण मिशन, कौशल विकास मिशन, राजीव गांधी विद्युतीकरण योजना, स्कूलों में मध्याह्न भोजन योजना, सूचना का अधिकार और शिक्षा का अधिकार लागू करने के लिए विधेयक लाना ऐसी कुछ प्रमुख पहलें चुनाव से पहले कर दी, जो यूपीए सरकार के द्वारा जनता को दिया गया लालीपॉप ही तो है।</b></div>
<div style="background-color: white; border: 0px none; color: #333333; font-family: 'Droid Sans', Arial, Verdana, sans-serif; font-size: 13px; line-height: 19px; list-style: none; outline: none; padding: 1em 0px; text-align: justify;">
<b>यूपीए गठबंधन की नींव इस सोच के साथ रखी गई कि गरीबों को भोजन का अधिकार मिले, जिससे देश में भूखे पेट लोग ना सोएं और कुपोषण जैसी बीमारी से किसी की मौत ना हो, इसके अलावा सरकार की मंशा किसानों को उनकी जमीन का अधिकार देने के लिये मजबूत भूमि अधिग्रहण कानून बनाने की थी, लेकिन सरकार के गठन के साथ ही इसमें रोड़ा अटकना शुरू हो गया सरकार के लगभग सभी मंत्री पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे। अपनी साख बचाने के लिए सरकार ने यूपीए2 के कार्यकाल में ही कई बार मंत्रीमंडल में लोगों को बदला और कई बार इसका विस्तार किया। सरकार अपने सहयोगी दलों की नाराजगी और उनको मनाने में ही ज्यादा उलझी रही, सरकार से सहयोगी दल टूटते तो फिर सरकार चलाने के लिए दूसरे दसों के समर्थन की कवायद शुरू की जाती ऐसे में सरकार से विकास और विकास योजना के कार्यान्वयन की उम्मीद जनता को करनी ही नहीं चाहिए। यूपीए-2 सरकार अपनी शुरुआत के दिनों से ही विवादों और घोटालों के भंवर में घिरती रही। कॉमनवेल्थ गेम्स घोटाला, 2जी, 3जी, कोल ब्लॉक आवंटन, आदर्श सोसायटी घोटाला, हैलिकॉप्टर सौदा और सीबीआई पर दबाव बनाने जैसे आरोप ने सरकार के दामन को दागदार कर दिया।<br style="border: 0px none; list-style: none; margin: 0px; outline: none; padding: 0px;" />इन सब वजहों से प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की छवि धूमिल हुई।<br style="border: 0px none; list-style: none; margin: 0px; outline: none; padding: 0px;" />देश में महंगाई का स्तर आसमान छूने लगा सरकार बढ़ती महंगाई पर रोक लगा पाने में नाकाम रही। विदेश नीति के मामले में भी सरकार की कमजोरी उजागर होकर सामने आ गई। पाकिस्तान, चीन, श्रीलंका और मालदीव जैसे देशों के साथ हमारी कूटनीति कमजोर साबित हुई। चीन द्वारा भारतीय सीमा में लगातार घुसपैठ और बीजिंग में दिल्ली की शिकायतों पर ध्यान न दिया जाना भी सरकार की नाकामी माना जाएगा। इतनी खामियों के बावजूद यूपीए सरकार ने अपनी उपलब्धियों की जानकारी लोगों तक पहुंचाने के लिए भारत निर्माण कैंपेन शुरू कर दी। सरकार जिस तरह से खाद्य सुरक्षा विधेयक पर जल्दीबाजी दिखा रही थी उससे स्पष्ट हो गया कि सरकार मध्यावधि चुनाव के मूड में है और वह जानती है कि अगर चुनाव जल्दी नहीं कराए गए तो इन योजना को लागू करने का फायदा भी यूपीए को नहीं मिल पाएगा। इसी का नतीजा यह हुआ कि कैबिनेट ने भोजन का अधिकार बिल लागू करने के लिए अध्यादेश के प्रस्ताव को हरी झंडी दे दी। यह अध्यादेश प्रति व्यक्ति प्रति माह 3, 2 और 1 रूपये किलो के मूल्य पर पांच किलो चावल, गेहूं या मोटे अनाज की गारंटी देगा। यह जनता की भावना को जीतने का कांग्रेसी तरीका है। राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के हस्ताक्षर के बाद अध्यादेश लागू हो जाएगा। इससे देश की दो तिहाई आबादी को एक से तीन रूपये किलो की सब्सिडी मूल्यों पर हर महीने पांच किलो अनाज का कानूनी हक मिल जाएगा।</b></div>
<div style="background-color: white; border: 0px none; color: #333333; font-family: 'Droid Sans', Arial, Verdana, sans-serif; font-size: 13px; line-height: 19px; list-style: none; outline: none; padding: 1em 0px; text-align: justify;">
<b>कांग्रेस ऐसे समय पर इस तरह के निर्णय ले रही है जब चुनाव के लिए मात्र दस महीने बचे हैं। बिल लागू होने से इस योजना का फायदा लेने वाले लोग कम से कम चुनाव तक तो सरकार के काम को याद रख सकते हैं। वैसे भी प्यार, राजनीति और जंग में सब कुछ जायज़ है। यानि सरकार द्वारा अब उन्हीं योजनाओं को पारित कराने और लागू कराने की ओर ध्यान दिया जा रहा है जिससे सीधे तौर पर आम चुनावों में सरकार को और उनकी सहयोगी पार्टियों को फायदा मिल पाए। यकीन मानिए यूपीए2 सरकार ने चुनाव से पहले ही चुनाव के लिए सियासी शतरंज बिछाना शुरू कर दिया है और अभी सारे मोहरे भी सरकार के हाथ में ही हैं।</b></div>
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Gangesh Kumarhttp://www.blogger.com/profile/16191940284702061868noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7501581940666157180.post-24390376507905661982013-07-09T02:52:00.001-07:002013-07-09T02:52:50.504-07:00प्राकृतिक आपदा से मानवता का क्या लेना-देना<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="background-color: white; border: 0px none; color: #333333; font-family: 'Droid Sans', Arial, Verdana, sans-serif; font-size: 13px; line-height: 19px; list-style: none; outline: none; padding: 1em 0px; text-align: justify;">
<b>भारत में बच्चों की जो पहली पाठशाला घर से शुरू होती है उसमें अक्षरों, शब्दों से ज्यादा मानवता का पाठ पढ़ाया जाता है। शायद यही वजह है कि विश्व के हर देश के नागरिक भारत से मानवता का पाठ सिखने के लिए यहां आते हैं। लेकिन ग्लोबलाइजेशन के बाद भारत की सभ्यता और संस्कृति में जिस तरह का परिवर्तन हुआ उसका स्पष्ट और ताजा उदाहरण हाल ही में उत्तराखंड में आई आपदा पर मर रही मानवता बनकर उभरी। देश के किसी भी कोने से लोगों के लिए दुआओं के हाथ नहीं उठे और अगर उठे भी तो इतने की वो नाममात्र के थे। सहायता के नाम पर अगर देश के कोने-कोने से कुछ चीजें भेजी भी गई तो उसमें भी राजनीति जिस राज्य ने सहायता दी वह अपने राज्य के लोगों को बचाने के लिए या उनकी सहायता करने के लिए दी। यानि सारा खेल वोट बैंक की राजनीति के नाम। लोग सहायता भी नाम और शोहरत बटोरने के लिए कर रहे थे ताकि इसका फायदा उनको और उनकी पार्टी को आगामी लोकसभा और विधानसभा चुनाव में मिल पाए। आमजन महंगाई की मार से त्रस्त है इसलिए उसके हाथ भी अपनी आवश्यकता की पूर्ति में ही उठते हैं लोगों की सहायता तो तब होगी जब उनके पास इस महंगाई से लड़ने के बाद कुछ बच पाएगा।</b></div>
<div style="background-color: white; border: 0px none; color: #333333; font-family: 'Droid Sans', Arial, Verdana, sans-serif; font-size: 13px; line-height: 19px; list-style: none; outline: none; padding: 1em 0px; text-align: justify;">
<b>ये बात बहुत पहले की नहीं है, जब देश के किसी हिस्से में आई आपदा पर पूरे देश के लोग सहायता के लिए दौड़ पड़ते थे। लोग गांव-गांव, शहर-शहर, दरवाजे-दरवाजे घूम कर पैसा, कपड़ा, बर्तन, दवा तथा रोजाना इस्तेमाल के अन्य सामान इकट्ठा करते थे और फिर इन सामानों को राहत एवं पुनर्वास के काम में लगी स्वयंसेवी एजेंसियों के द्वार आपदा पीड़ितों तक पहुंचाते थे, लेकिन पिछले कुछ सालों में स्थिति बदल गई है। अब सहायता के लिए कोई राष्ट्रव्यापी पहल नहीं होती। उत्तराखंड में तबाही और बर्बादी बहुत बड़े पैमाने पर हुई है। अनुमान के मुताबिक मृतक संख्या कई हजार तक है। अरबों की संपत्ति नष्ट हो गई। फिर भी देश में प्रतिक्रिया एकदम सुस्त। सहायता के प्रयास हुए भी तो सिर्फ व्यक्तिगत स्तर पर , पूरा देश इसमें शामिल नहीं होता दिखा। दक्षिण और पूर्व के राज्यों ने तो अपनी सहायता ना के बराबर दी। उत्तराखंड सरकार और केंद्र सरकार ने भी सहायता के लिए कार्रवाई बहुत देर से शुरू की। आपदा आने के पंद्रह दिन बाद भी हजारों लोग विभिन्न जगहों पर फंसे हुए हैं, लेकिन बहस मदद के लिए नहीं, बल्कि इस बात के लिए हो रही है कि इस आपदा का दोष किसके सर मढ़ा जाए मानव के या प्रकृति के। निश्चित रूप से यह आपदा मानवसृजित ही थी, कारण बहुत साफ है। लगातार जंगलों और पहाड़ों को काटा गया और ये सबकुछ किया भी गया तो केवल अपने फायदे के लिए या फिर नौकरशाही के आदेशों का पालन करने के लिए। नदियों की साफ-सफाई के नाम पर करोड़ों खर्च किए गए लेकिन नदियां साफ तो नहीं हुई मानचित्र की तरह ही वास्तविकता में लकीरों की तरह बनती चली गई। राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन बोर्ड भी अपनी परीक्षा में अनुतीर्ण हुआ और इसका नुकसान हुआ आम जन मानस को। राजनीतिक दलों ने आपदा का राजनीतिकरण करने के अलावा कुछ भी नहीं किया। औपचारिकता बस प्रधानमंत्री राहत कोष में दान देने की अपील कर दी गई। आश्चर्यजनक रूप से किसी दूसरे देश ने भी उत्तराखंड में फंसे हुए लोगों को बाहर निकालने के लिए मदद की कोई पेशकश नहीं की।</b></div>
<div style="background-color: white; border: 0px none; color: #333333; font-family: 'Droid Sans', Arial, Verdana, sans-serif; font-size: 13px; line-height: 19px; list-style: none; outline: none; padding: 1em 0px; text-align: justify;">
<b>ऐसे में इस आपदा का विश्लेषण करें तो हम जिस नतीजे पर पहुंचे वह यह कि देश की और देश के लोगों की संवेदनशीलता खत्म हो चुकी है। आपदा पीड़ितों को बचाने की बारी आई तो पश्चिम बंगाल और गुजरात की सरकारें अपने-अपने राज्य के लोगों को बचाने में लग गईं। फिर इस आपदा में उत्ताराखंड के लोगों का व्यवहार भी अमानवीय रहा। उदाहरण सामने आए कि दुकानदारों ने रोजाना इस्तेमाल की चीजों का मनमाना दाम वसूला। बिस्कुट का एक पैकेट दो सौ रुपये में बेचा गया। पाव-रोटी सौ रुपये में बिकी। लूटपाट और महिलाओं के साथ छेड़खानी की वारदातें हुईं। यहां तक कि साधु और संतों ने भी मृत लोगों के पैसे और जेवरात झपटे। अगर इस राष्ट्रीय विपदा की घड़ी में किसी ने काबिलेतारीफ काम किया तो वह थी हमारी सेना और वायुसेना जो हमेश से अपने कर्तव्य का पालन पूरी निष्ठा और भरोसे के साथ करती आई है। सेना एवं वायुसेना के जवानों ने फंसे लोगों को केवल बाहर ही नहीं निकाला बल्कि लोगों को भोजन और ठहरने की जगह भी उपलब्ध कराई।</b></div>
<div style="background-color: white; border: 0px none; color: #333333; font-family: 'Droid Sans', Arial, Verdana, sans-serif; font-size: 13px; line-height: 19px; list-style: none; outline: none; padding: 1em 0px; text-align: justify;">
<b>यह बात स्पष्ट तौर पर इशारा करती है कि भारत हृदयविहीन देश बन गया है। पिछले कुछ सालों में इसके लोगों में नैतिक मूल्यों का भरपूर पतन हुआ है। कमजोर विकास और निराशाजनक भविष्य की यह हालत राजनीतिक दलों के कारण बनी है। राजनीतिक दलों ने पूरे भारत की तस्वीर को सामने रखे बगैर या हर क्षेत्र या हर इलाके की बात सोचे बिना सिर्फ अपने धन और कुर्सी की चिंता की है। भारत के पास अपनी सभ्यता, संस्कृति, मानवीय संवेदना और नैतिक मूल्यों को बचाए रखने के बहुत ज्यादा अवसर नहीं हैं। जिस गति से हमारे नैतिक मूल्यों का पतन हो रहा है उससे बड़े पैमाने पर हमारी बर्बादी सुनिश्चित है।</b></div>
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Gangesh Kumarhttp://www.blogger.com/profile/16191940284702061868noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7501581940666157180.post-56940578302173471742013-07-09T02:51:00.002-07:002013-07-09T02:51:40.128-07:00हमारे बच्चे क्या देख पाएंगे प्रकृति की खूबसूरती ?<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="background-color: white; border: 0px none; color: #333333; font-family: 'Droid Sans', Arial, Verdana, sans-serif; font-size: 13px; line-height: 19px; list-style: none; outline: none; padding: 1em 0px; text-align: justify;">
<b style="border: 0px none; list-style: none; margin: 0px; outline: none; padding: 0px;">गंगेश ठाकुर </b><b style="border: 0px none; list-style: none; margin: 0px; outline: none; padding: 0px;"></b></div>
<div style="background-color: white; border: 0px none; color: #333333; font-family: 'Droid Sans', Arial, Verdana, sans-serif; font-size: 13px; line-height: 19px; list-style: none; outline: none; padding: 1em 0px; text-align: justify;">
<b>मनुष्य को ईश्वर ने जो सबसे बेहतरीन तोहफा दिया है उसका नाम है पर्यावरण। इस तोहफे की सजाने संभालने का काम मनुष्य सहजता से कर लें, इसलिए हमारे धर्म में धरती को माता, नदियों को देवी और वृक्षों को देवता की संज्ञा दी है। वट सावित्री, हरियाली अमावस्या जैसे त्योहार मनाने की परंपरा वृक्षों का महत्व बताने के लिए ही प्रारंभ की गई होंगी। हर धर्म का एक ही उद्देश्य है वह है पर्यावरण और प्रकृति की रक्षा करने का सबक देना। अगर धर्म के इन सिद्धांतों का हमने आधा भी पालन किया होता तो शायद आज हमें अपनी धरती पर आने वाले संकटों की चिंता ना सता रही होती। धर्म के माध्यम से प्रकृति की रक्षा करने के स्थान पर हमने कई बार धर्म के नाम पर इससे उल्टा व्यवहार किया है।</b></div>
<div style="background-color: white; border: 0px none; color: #333333; font-family: 'Droid Sans', Arial, Verdana, sans-serif; font-size: 13px; line-height: 19px; list-style: none; outline: none; padding: 1em 0px; text-align: justify;">
<b>वर्ल्ड अर्थ डे यानि कि विश्व धरा दिवस पर हम यदि धर्म की आड़ में प्रकृति को पहुंच रहे नुकसान की गंभीरता को स्वीकार करें तो यह दिन मनाना हमारे लिए सार्थक होगा। किसी भी धर्म के अनुसार केवल मिट्टी, पीतल, तांबे या चांदी की प्रतिमा को ईश्वर का स्वरूप मानकर पूजा की जाती है यानि कि प्लास्टर ऑफ पेरिस की बनी प्रतिमाओं का पूजन करने के बाद, हमें पूजन का वास्तविक फल प्राप्त नहीं होता है। ऐसा हम नहीं धार्मिक व्याख्या ही कह रही है। ऐसे में प्लास्टर ऑफ पेरिस से बनी प्रतिमा को जल में विसर्जित कर हम केवल जल को नहीं बल्कि अपने आप को और साथ ही साथ जलचर, थलचर सभी जीव जंतुओं को धीरे-धीरे मौत की तरफ ले जा रहा हैं। पहले केवल मिट्टी की प्रतिमाओं को ही जलस्त्रोतों में विसर्जित किया जाता था। इन प्रतिमाओं को प्राकृतिक ढंग से तैयार किये गए रंगों से रंगा जाता था। जब ये प्रतिमाएं जलस्त्रोतों में विसर्जित की जाती, तो जल के भीतर इनका पूर्ण अपघटन हो जाता था। जिससे जलस्त्रोत को जरा भी हानि नहीं पहुंचती थी। लेकिन आज के परिदृश्य में देखे तो प्लास्टर ऑफ पेरिस की बनी और ऑयल पेंट से पोती गई प्रतिमाएं पानी में पूर्ण रूप से अपघटित नहीं हो पाती है।</b></div>
<div style="background-color: white; border: 0px none; color: #333333; font-family: 'Droid Sans', Arial, Verdana, sans-serif; font-size: 13px; line-height: 19px; list-style: none; outline: none; padding: 1em 0px; text-align: justify;">
<b>हमेशा ही हंसता, मुस्कुराता, खिलखिलाता बचपन देखकर मन आनंदित हो उठता है पर पर्यावरण की स्थिति देख आनेवाले बचपन के भविष्य हेतु मन चिंतित हो उठता है पूरा विश्व आज पर्यावरण प्रदूषण ग्लोबल वार्मिंग जैसी समस्याओं से जूझ रहा है । ये समस्यायें जहॉ दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है वहीं यह मुंह फाड़े हमारे पर्यावरण और विकास को निगलती जा रही हैं । हमने अपने विकास के नाम की ऐसी खाई खोद खुद के लिए खोद दी कि हमारे पर्यावरण का हर कोना प्रदूषित हो गया। हम सब यह जानते हैं किन्तु हमेशा अंजान बनकर बार-बार वही करते हैं जो हमें नहीं करना चाहिए । अगर हम गणना शुरू कर दें तो पृथ्वी के निर्माण के बाद से हमारे किवास के प्रारंभ से अब तक की दुर्घटनाओं पर गौर करें तो दुर्घटनाएं इतनी की पूरी लाइब्रेरी बन जाए और इसके लिए जिम्मेवार कौन सिर्फ हम और सिर्फ हम। विकास और प्रकृति को एक साथ कदम से कदम मिलाकर चलाने की कोशिश करनी होगी और प्रकृति और पर्यावरण इन शब्दों के महत्व को समझना और समझाना होगा । ताकि भविष्य अंधकारमय होने से बचा रहे । आज पर्यावरण प्रदुषण और प्रकृति के साथ किए गए हमारे भेदभाव ने स्थिति को इतना विकराल रूप धारण करने पर मजबूर कर दिया है कि हम थोड़े से असावधान हुए नहीं और बड़ी-बड़ी घटनायें घट जाती हैं। हाल ही में उत्तराखंड में आए प्राकृतिक आपदा के लिए भी हम ही जिम्मेवार थे पहाड़ों को उपनी सुविधा के लिए जिस तरह हमने उजाड़ा था उसका खामियाज ही तो हमें भुगतना पड़ा। प्रकृति मानवता पर कहर बनकर गिरी और देखते ही देखते उत्तराखंड तबाह हो गया। आदमी की छेड़-छाड़ से प्रकृति इतनी ख़फा हो जाती है कि वह खुद अपनी बची सुंदरता भी उजाड़ देना चाहती है प्रकृति का कुछ ऐसा ही तांडव हाल ही में उत्तराखंड में हुआ है। प्रदूषण का अर्थ है प्राकृतिक संतुलन में दोष पैदा हो जाना है शुद्ध वायु, शुद्ध जल, शुद्ध खाद्य पदार्थ और शांत वातावरण का न मिलना ही प्रदूषण है। हमारा पर्यावरण सबसे अधिक प्रभावित हमारे बालजीवन को ही करता है। बालकों की जिज्ञासा और सीखने की ललक उन्हें पर्यावरण और प्रकृति के प्रति आकर्षित करती हैं। उषा की लालिमा, लता-विटपों-वृक्षों की हरीतिमा, सरिता का कलकल नाद, धरा से अंबर का मिलन कराने की चेष्टा करने वाली पर्वत श्रेणियाँ बालकों के बालपन को जहाँ आह्लादित करती हैं वहीं उनके हृदय में भावनाओं तथा संवेदनाओं को जन्म देती हैं।</b></div>
<div style="background-color: white; border: 0px none; color: #333333; font-family: 'Droid Sans', Arial, Verdana, sans-serif; font-size: 13px; line-height: 19px; list-style: none; outline: none; padding: 1em 0px; text-align: justify;">
<b>आज जमीन के गर्भ से विभिन्न खनिजों को प्राप्त करने के लिए और भूमि तथा पवर्तों को खोद डाला गया है और यह उत्खनन कार्य द्रुत गति से हुआ ही जा रहा है, जंगलों के वृक्षों को काट डाला गया है और बड़ी तेजी के साथ अभी भी काटा जा रहा है, सरिता के स्वच्छ जल में कारखानों की गंदगी को मिला दिया गया है और दिन-ब-दिन गंदगी बढ़ती ही जा रही है। क्या हमारे इन कामों से प्रकृति का क्षरण और पर्यावरण का विनाश नहीं हो रहा है? हम इतने स्वार्थी हो गए हैं कि प्रकृति से सिर्फ कुछ न कुछ चाहते हैं और जिस प्रकृति से हमें कुछ न कुछ मिल रहा है उसकी प्रकृति के सन्तुलन के विषय में कुछ भी नहीं सोचते। आज हममें से अधिकतर लोगों की आनेवाले वंशजों के लिए या अभी के वर्तमान वंशजों के लिए प्रकृति का सौन्दर्य दर्शन दुर्लभ हो गया है क्योंकि हमने अपने चारों ओर सीमेंट और कंक्रीट का जंगल बना डाला है। पर्यावरण सदैव से मानव तथा उसके जीवन को प्रभावित करता रहा था, करता रहा है और करता रहेगा। हमारे पर्यावरण का अस्तित्व प्रकृति के कारण ही संभव है किन्तु दु:ख की बात है कि आधुनिकता की दौड़ में अंधे होकर हम प्रकृति को ही नष्ट किए जा रहे हैं। प्रकृति नष्ट होगी तो पर्यावरण भी प्रदूषित होकर नष्ट हो जाएगी जिसका परिणाम मानव के नाश के रूप में ही दृष्टिगत होगा। मानव का पूर्ण नाश तो जब होगा तब होगा, किन्तु प्रकृति के नाश तथा पर्यावरण के प्रदूषण ने हमारे बच्चों के बचपन का नाश करना अभी से ही जारी कर दिया है। यदि हमें हमारे बच्चों के बचपन को बचाना है तो हमें हमारे पर्यावरण को बचाना ही होगा।</b></div>
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Gangesh Kumarhttp://www.blogger.com/profile/16191940284702061868noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7501581940666157180.post-72015061652074201052013-07-09T02:49:00.002-07:002013-07-09T02:49:59.280-07:00आखिर क्यों हो रहा जैव परिवर्धित बीज का विरोध ?<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="background-color: white; border: 0px none; color: #333333; font-family: 'Droid Sans', Arial, Verdana, sans-serif; font-size: 13px; line-height: 19px; list-style: none; outline: none; padding: 1em 0px; text-align: justify;">
<b>जैव परिवर्धित बीज स्वास्थ्य के लिए घातक होते हैं। कृषि संबंधी संसदीय स्थायी समिति ने भी जैव परिवर्धित बीज को कटघरे में खड़ा कर दिया है। जीएम बीज मुक्त बिहार की ओर से आयोजित एक प्रेस कांफ्रेंस में जब यह बात कही गई थी, तब देश के तमाम लोगों को पता भी नहीं था कि आखिर ये जीएम प्रौद्योगिकी से तैयार बीज हैं क्या। हलांकि जीएम फसलों से किसानों को कोई मदद नहीं मिली है और कानूनी अनुमित के बगैर ही आम आदमी को जीएम सीड से उत्पादित फूड खिलाया जा रहा है ये बात सत्य है। तेल, रिफाइंड और दूध उत्पादों का उत्पादन जीएम प्रौद्योगिकी के जरिए ही किया जा रहा है और हम इसे खाने को मजबूर हैं।</b></div>
<div style="background-color: white; border: 0px none; color: #333333; font-family: 'Droid Sans', Arial, Verdana, sans-serif; font-size: 13px; line-height: 19px; list-style: none; outline: none; padding: 1em 0px; text-align: justify;">
<b>जीएम प्रौद्योगिकी के द्वारा बीजों का उत्पादन करने वाली कंपनियों की माने तो जेनेटेकली मॉडीफाइड सीड के इस्तेमाल से खाद्यान्नों की उपज और गुणवत्ता को प्रभावित किए बगैर बायोफ्यूल की मांग की जा सकती है। इन बीजों के इस्तेमाल से खाद्यान्नों के उत्पादन को सुधारने के साथ इससे बायोफ्यूल की मांग को भी पूरा किए जाने में भी मदद मिल सकती है। लेकिन यह किस हद तक सही है यह समय के साथ ही पता चल पाएगा। कंपनी यह तक मानती है कि इन बीजों के इस्तेमाल से अनाजों की बढ़ती कीमतों पर भी नकेल कसा जा सकता है क्योंकि इन बीजों के जरिए खाद्यान की कमी को उत्पादन द्वारा पूरा किया जा सकता है।</b></div>
<div style="background-color: white; border: 0px none; color: #333333; font-family: 'Droid Sans', Arial, Verdana, sans-serif; font-size: 13px; line-height: 19px; list-style: none; outline: none; padding: 1em 0px; text-align: justify;">
<b>लेकिन इन सब बातों से अलग आमजन के स्वास्थ्य के बारे में सोचा जाए तो स्पष्ट समझ में आ जाएगा कि तेज और अंधे वैश्वीकरण के दुष्प्रभाव के परिणाम दिखाई देने लगे हैं। कृषि मंत्रालय की स्थायी संसदीय समिति की रिपोर्ट ने तय किया है कि आनुवंशिक तौर से परिवर्धित बीजों से उपजाई गयी फसलें मनुष्य व अन्य सभी जीव- जंतुओं के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल असर डाल रही हैं। भेड़ों पर किए परीक्षण में जब इन्हें बीटी कपास के बीज खिलाए गए तो इनके गुर्दे, फेफड़े, जननांग और हृदय के वजन व आकार में आश्चर्यजनक कमी देखने में आई। देश में लाखों टन बीटी कपास के बीजों का खाद्य तेलों के निर्माण में उपयोग हो रहा है। जाहिर है, तेल मनुष्य के शरीर पर दुष्प्रभाव छोड़ रहा होगा। इसके बावजूद हैरानी इस बात पर है कि आनुवंशिक अभियांत्रिकी अनुमोदन समिति ने बीटी बैंगन के उत्पादन की मंजूरी दे दी जबकि इसके व्यावसायिक उपयोग का दो साल पहले जबरदस्त विरोध हुआ था। देश की कुल कपास कृषि भूमि में 93 फीसदी खेती बीटी बीजों से ही हो रही है, इसका चलन 2002 में शुरू हुआ था। उस समय केंद्र में राजग गठबंधन सरकार थी। तब भी कपास के इन संशोधित बीजों के इस्तेमाल की मंजूरी का विरोध हुआ था। बीटी बीजों का सबसे बड़ा और प्रमुख दुखद पहलू यह है कि ये बीज एक बार चलन में आ जाते हैं तो परंपरागत बीजों का वजूद ही समाप्त कर देते हैं। बीटी कपास के बीज पिछले एक दशक से चलन में हैं। जांचों से तय हुआ है कि कपास की 93 फीसदी परंपरागत खेती को कपास के ये बीटी बीज खत्म कर चुके हैं।</b></div>
<div style="background-color: white; border: 0px none; color: #333333; font-family: 'Droid Sans', Arial, Verdana, sans-serif; font-size: 13px; line-height: 19px; list-style: none; outline: none; padding: 1em 0px; text-align: justify;">
<b>दरअसल भारत के कृषि और डेयरी उद्योग को काबू में लेना अमेरिका की प्राथमिकताओं में शामिल है। जिससे यहां के बड़े और बुनियादी जरूरत वाले बाजार पर उसका कब्जा हो जाए। इसलिए जीएम प्रौद्योगिकी से जुड़ी कंपनियां और चंद कृषि वैज्ञानिक भारत समेत दुनिया में बढ़ती आबादी का बहाना बनाकर इस तकनीक के द्वारा खाद्य सुरक्षा की गारंटी का भरोसा दिलाते हैं। लेकिन बिना जीएम बीजों का इस्तेमाल किए ही पिछले एक दशक में हमारे खाद्यान्नों के उत्पादन में पांच गुना बढ़ोतरी दर्ज की गई है। जाहिर है, हमारे परंपरागत बीज उन्नत किस्म के हैं और वे भरपूर फसल पैदा करने में सक्षम हैं। हमें जरूरत है उनके भंडारण की समुचित व्यवस्था दुरुस्त करने की। ऐसा न होने के कारण हर साल हमारा लाखों टन खाद्यान्न खुले में पड़ा रहने की वजह से सड़ जाता है।</b></div>
<div style="background-color: white; border: 0px none; color: #333333; font-family: 'Droid Sans', Arial, Verdana, sans-serif; font-size: 13px; line-height: 19px; list-style: none; outline: none; padding: 1em 0px; text-align: justify;">
<b>केन्द्रीय ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश ने भी पोषण और कृषि के क्षेत्रों के विशेषज्ञों की एक सभा में ऐसी कृषि व्यवस्था का विरोध किया और स्पष्ट तौर पर कहा था कि देश में प्रथम हरित क्रांति और आज की हरित क्रांति के बीच काफी अंतर आ चुका है। भारत में पहली हरित क्रांति के लिए गेहूं और धान की नई किस्में मैक्सिको स्थित सिम्मिट और फिलिपींस स्थित आइआरआइ से आई, पर आज ऐसा नहीं हैं। फसल की नई किस्में मोंसेंटो और सिंजेंटा से आ रही है। ये वे दो विशाल कंपनियां हैं, जो जीएम से परिवर्तित फसलों की सबसे बड़ी प्रायोजक हैं। आज खेल का तरीका कुछ नया हो गया है। जयराम रमेश खुद जीएम बीजों के इस्तेमाल से हो रही खेती का विरोध करते दिखे। जयराम रमेश ने कृषि एवं पर्यावरण मंत्री रहते हुए बीटी बैंगन पर रोक लगाई थी। कुछ समय पहले ही पर्यावरण संगठन ग्रीनपीस ने अपनी एक रिपोर्ट में बताया था कि किस तरह जीएम फसलों का नकारात्मक असर शरीर के रोग प्रतिरोधात्मक तंत्र पर पड़ता है। लेकिन इसके बावजूद हमारे देश में जैवसुरक्षा आकलन की प्रक्रिया में पर्याप्त सावधानी नहीं बरती जा रही। देश-विदेश के लोग पहले से ही हमारी कृषि के क्षेत्र में कामयाबी पर हैरान होते रहे हैं। ऐसे में देश में जीएम बीज को लाने की जरूरत नहीं है इसलिए केंद्र सरकार को अपनी जीएम बीज नीति पर फिर से विचार करना चाहिए।</b></div>
</div>
Gangesh Kumarhttp://www.blogger.com/profile/16191940284702061868noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7501581940666157180.post-4211172667746035032013-03-29T04:29:00.003-07:002013-03-29T04:29:20.827-07:00 यमुना<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; mso-ascii-font-family: "Times New Roman"; mso-bidi-language: HI; mso-hansi-font-family: "Times New Roman";">साफ हो गई यमुना अब तो</span><o:p></o:p></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; mso-ascii-font-family: "Times New Roman"; mso-bidi-language: HI; mso-hansi-font-family: "Times New Roman";">पानी केवल गंदा है</span><o:p></o:p></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; mso-ascii-font-family: "Times New Roman"; mso-bidi-language: HI; mso-hansi-font-family: "Times New Roman";">करोड़ों घुल गए इस पानी में</span><o:p></o:p></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; mso-ascii-font-family: "Times New Roman"; mso-bidi-language: HI; mso-hansi-font-family: "Times New Roman";">ये कैसा गोरखधंधा है</span><o:p></o:p></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; mso-ascii-font-family: "Times New Roman"; mso-bidi-language: HI; mso-hansi-font-family: "Times New Roman";">नाले में बदल गई</span><o:p></o:p></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; mso-ascii-font-family: "Times New Roman"; mso-bidi-language: HI; mso-hansi-font-family: "Times New Roman";">कृष्ण की यमुना माई है</span><o:p></o:p></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; mso-ascii-font-family: "Times New Roman"; mso-bidi-language: HI; mso-hansi-font-family: "Times New Roman";">साफ हो गई यमुना अब तो</span><o:p></o:p></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; mso-ascii-font-family: "Times New Roman"; mso-bidi-language: HI; mso-hansi-font-family: "Times New Roman";">कागज पर हुई सफाई है</span><o:p></o:p></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; mso-ascii-font-family: "Times New Roman"; mso-bidi-language: HI; mso-hansi-font-family: "Times New Roman";">कागज पर नदी उफन रही </span><o:p></o:p></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; mso-ascii-font-family: "Times New Roman"; mso-bidi-language: HI; mso-hansi-font-family: "Times New Roman";">पैसे से पानी डलवाई है</span><o:p></o:p></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; mso-ascii-font-family: "Times New Roman"; mso-bidi-language: HI; mso-hansi-font-family: "Times New Roman";">पानी काला है गंदा है</span><o:p></o:p></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; mso-ascii-font-family: "Times New Roman"; mso-bidi-language: HI; mso-hansi-font-family: "Times New Roman";">ये तो प्रभु की माया है</span><o:p></o:p></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; mso-ascii-font-family: "Times New Roman"; mso-bidi-language: HI; mso-hansi-font-family: "Times New Roman";">सरकार ने कौन सा</span><o:p></o:p></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; mso-ascii-font-family: "Times New Roman"; mso-bidi-language: HI; mso-hansi-font-family: "Times New Roman";">आसमान से पानी बरसाया है</span><o:p></o:p></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; mso-ascii-font-family: "Times New Roman"; mso-bidi-language: HI; mso-hansi-font-family: "Times New Roman";">आसमान है गंदा तो</span><o:p></o:p></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; mso-ascii-font-family: "Times New Roman"; mso-bidi-language: HI; mso-hansi-font-family: "Times New Roman";">बारिश भी गंदी ही होगी</span><o:p></o:p></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; mso-ascii-font-family: "Times New Roman"; mso-bidi-language: HI; mso-hansi-font-family: "Times New Roman";">यमुना की तो पहले से ही</span><o:p></o:p></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; mso-ascii-font-family: "Times New Roman"; mso-bidi-language: HI; mso-hansi-font-family: "Times New Roman";">कर रखी साफ सफाई है</span><o:p></o:p></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; mso-ascii-font-family: "Times New Roman"; mso-bidi-language: HI; mso-hansi-font-family: "Times New Roman";">सावधान, इस तरफ दो ध्यान</span><o:p></o:p></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; mso-ascii-font-family: "Times New Roman"; mso-bidi-language: HI; mso-hansi-font-family: "Times New Roman";">तस्वीर निकाल कर रख लो तुम</span><o:p></o:p></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; mso-ascii-font-family: "Times New Roman"; mso-bidi-language: HI; mso-hansi-font-family: "Times New Roman";">बच्चे न शिकायत कर बैठे</span><o:p></o:p></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; mso-ascii-font-family: "Times New Roman"; mso-bidi-language: HI; mso-hansi-font-family: "Times New Roman";">हमें युमना नहीं दिखाई है</span><o:p></o:p></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; mso-ascii-font-family: "Times New Roman"; mso-bidi-language: HI; mso-hansi-font-family: "Times New Roman";">सरकार लगी है सफाई पर</span><o:p></o:p></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; mso-ascii-font-family: "Times New Roman"; mso-bidi-language: HI; mso-hansi-font-family: "Times New Roman";">युमना की कायापलट होगी</span><o:p></o:p></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; mso-ascii-font-family: "Times New Roman"; mso-bidi-language: HI; mso-hansi-font-family: "Times New Roman";">इस बार जो पैसा खर्च हुआ</span><o:p></o:p></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; mso-ascii-font-family: "Times New Roman"; mso-bidi-language: HI; mso-hansi-font-family: "Times New Roman";">यमुना और संकुचित होगी</span><o:p></o:p></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; mso-ascii-font-family: "Times New Roman"; mso-bidi-language: HI; mso-hansi-font-family: "Times New Roman";">दिल्ली के नक्शे में</span><o:p></o:p></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; mso-ascii-font-family: "Times New Roman"; mso-bidi-language: HI; mso-hansi-font-family: "Times New Roman";">एक लकीर बनकर ये इतराएगी।<o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNormal" style="line-height: 200%;">
<br /></div>
</div>
Gangesh Kumarhttp://www.blogger.com/profile/16191940284702061868noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7501581940666157180.post-73092883508411213242013-03-29T04:27:00.002-07:002013-03-29T04:27:36.437-07:00त्रिवेणी<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 14.0pt; mso-ascii-font-family: "Times New Roman"; mso-bidi-language: HI; mso-hansi-font-family: "Times New Roman";">1)हर बार समझना तेरे होने का मतलब</span><span style="font-size: 14.0pt; mso-bidi-font-family: Mangal; mso-bidi-language: HI;"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 14.0pt; mso-ascii-font-family: "Times New Roman"; mso-bidi-language: HI; mso-hansi-font-family: "Times New Roman";"> तेरे होने की खुशी तुझे
खोने का ग़म</span><span style="font-size: 14.0pt; mso-bidi-font-family: Mangal; mso-bidi-language: HI;"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 14.0pt; mso-ascii-font-family: "Times New Roman"; mso-bidi-language: HI; mso-hansi-font-family: "Times New Roman";"> जैसे रास्ते बदल गए
और मंजिल वहीं खड़ी</span><span style="font-size: 14.0pt; mso-bidi-font-family: Mangal; mso-bidi-language: HI;"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 14.0pt; mso-ascii-font-family: "Times New Roman"; mso-bidi-language: HI; mso-hansi-font-family: "Times New Roman";">2)नींद से सोना और सपनों में खोना</span><span style="font-size: 14.0pt; mso-bidi-font-family: Mangal; mso-bidi-language: HI;"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 14.0pt; mso-ascii-font-family: "Times New Roman"; mso-bidi-language: HI; mso-hansi-font-family: "Times New Roman";"> हर रात में जगना
और हर दिन को रोना</span><span style="font-size: 14.0pt; mso-bidi-font-family: Mangal; mso-bidi-language: HI;"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 14.0pt; mso-ascii-font-family: "Times New Roman"; mso-bidi-language: HI; mso-hansi-font-family: "Times New Roman";"> मौत का पैगाम है
या मौत का सामान है</span><span style="font-size: 14.0pt; mso-bidi-font-family: Mangal; mso-bidi-language: HI;"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 14.0pt; mso-ascii-font-family: "Times New Roman"; mso-bidi-language: HI; mso-hansi-font-family: "Times New Roman";">3)सिर्फ सियासत ही नहीं न सिर्फ दोस्ती ही सही</span><span style="font-size: 14.0pt; mso-bidi-font-family: Mangal; mso-bidi-language: HI;"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 14.0pt; mso-ascii-font-family: "Times New Roman"; mso-bidi-language: HI; mso-hansi-font-family: "Times New Roman";"> भरोसा खुद पर हो
और खुद पर भरोसा ही न हो</span><span style="font-size: 14.0pt; mso-bidi-font-family: Mangal; mso-bidi-language: HI;"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 14.0pt; mso-ascii-font-family: "Times New Roman"; mso-bidi-language: HI; mso-hansi-font-family: "Times New Roman";"> दफ़न होते ख़्वाब
हैं या दफ़न होती सोच है</span><span style="font-size: 14.0pt; mso-bidi-font-family: Mangal; mso-bidi-language: HI;"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 14.0pt; mso-ascii-font-family: "Times New Roman"; mso-bidi-language: HI; mso-hansi-font-family: "Times New Roman";">4)आज पैमानों से कैसे माप ली है ज़िंदगी</span><span style="font-size: 14.0pt; mso-bidi-font-family: Mangal; mso-bidi-language: HI;"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 14.0pt; mso-ascii-font-family: "Times New Roman"; mso-bidi-language: HI; mso-hansi-font-family: "Times New Roman";"> एक इकाई बना डाली
ज़िंदगी के माप की</span><span style="font-size: 14.0pt; mso-bidi-font-family: Mangal; mso-bidi-language: HI;"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 14.0pt; mso-ascii-font-family: "Times New Roman"; mso-bidi-language: HI; mso-hansi-font-family: "Times New Roman";"> मानो रास्ते की
लंबाई का अंदाजा ले रहा है कोई</span><span style="font-size: 14.0pt; mso-bidi-font-family: Mangal; mso-bidi-language: HI;"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 14.0pt; mso-ascii-font-family: "Times New Roman"; mso-bidi-language: HI; mso-hansi-font-family: "Times New Roman";">5) सहर में शहर का कुछ अटपटा अंदाज़ है</span><span style="font-size: 14.0pt; mso-bidi-font-family: Mangal; mso-bidi-language: HI;"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 14.0pt; mso-ascii-font-family: "Times New Roman"; mso-bidi-language: HI; mso-hansi-font-family: "Times New Roman";"> शाम के ढलने पर
अंधेरा घना छाया हुआ</span><span style="font-size: 14.0pt; mso-bidi-font-family: Mangal; mso-bidi-language: HI;"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 14.0pt; mso-ascii-font-family: "Times New Roman"; mso-bidi-language: HI; mso-hansi-font-family: "Times New Roman";"> मौत का पैगाम है
या धमाकों ने ये मंज़र पैदा किया</span><span style="font-size: 14.0pt; mso-bidi-font-family: Mangal; mso-bidi-language: HI;"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 14.0pt; mso-ascii-font-family: "Times New Roman"; mso-bidi-language: HI; mso-hansi-font-family: "Times New Roman";">6)सियासत की आफत में सिपाही जान से गया</span><span style="font-size: 14.0pt; mso-bidi-font-family: Mangal; mso-bidi-language: HI;"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 14.0pt; mso-ascii-font-family: "Times New Roman"; mso-bidi-language: HI; mso-hansi-font-family: "Times New Roman";"> जान से गया था वो
या जान के गया</span><span style="font-size: 14.0pt; mso-bidi-font-family: Mangal; mso-bidi-language: HI;"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 14.0pt; mso-ascii-font-family: "Times New Roman"; mso-bidi-language: HI; mso-hansi-font-family: "Times New Roman";"> जान देकर कुछ तो
सीखा उस नाचीज़ ने</span><span style="font-size: 14.0pt; mso-bidi-font-family: Mangal; mso-bidi-language: HI;"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 14.0pt; mso-ascii-font-family: "Times New Roman"; mso-bidi-language: HI; mso-hansi-font-family: "Times New Roman";">7)सरफरोशी की तमन्ना में सर पे बांधा है कफन</span><span style="font-size: 14.0pt; mso-bidi-font-family: Mangal; mso-bidi-language: HI;"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 14.0pt; mso-ascii-font-family: "Times New Roman"; mso-bidi-language: HI; mso-hansi-font-family: "Times New Roman";"> बंदूकें गरजी, तलवारें
चली, धुआं हुआ, शोला उठा</span><span style="font-size: 14.0pt; mso-bidi-font-family: Mangal; mso-bidi-language: HI;"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 14.0pt; mso-ascii-font-family: "Times New Roman"; mso-bidi-language: HI; mso-hansi-font-family: "Times New Roman";"> सन्नाटा सा सड़क
पर या गलियों में है शोर मातम का</span><span style="font-size: 14.0pt; mso-bidi-font-family: Mangal; mso-bidi-language: HI;"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 14.0pt; mso-ascii-font-family: "Times New Roman"; mso-bidi-language: HI; mso-hansi-font-family: "Times New Roman";">8) चिरागों को जलाने पर अंधेरा दूर होता ही नहीं</span><span style="font-size: 14.0pt; mso-bidi-font-family: Mangal; mso-bidi-language: HI;"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 14.0pt; mso-ascii-font-family: "Times New Roman"; mso-bidi-language: HI; mso-hansi-font-family: "Times New Roman";"> रात को छोड़ो दिन
में उजाला ढूंढना पड़ता यहां</span><span style="font-size: 14.0pt; mso-bidi-font-family: Mangal; mso-bidi-language: HI;"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 14.0pt; mso-ascii-font-family: "Times New Roman"; mso-bidi-language: HI; mso-hansi-font-family: "Times New Roman";"> किसी ने चिरागों
को फ़कत पानी से जो जलाया है</span><span style="font-size: 14.0pt; mso-bidi-font-family: Mangal; mso-bidi-language: HI;"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNormal">
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Gangesh Kumarhttp://www.blogger.com/profile/16191940284702061868noreply@blogger.com0