रसोईघर में रखा बरतन
कमरे में पड़ा मेरा टेबल
बिछी हुई मेरी चारपाई
रातभर में कई बार
हिलने लगता था
और मैं चौंक कर
जग जाता था
ड़रने लगता था
ये सोचकर कि शायद..
भूकंप आ गया है
ये बहुत पहले की बात है
अब तो आदत सी हो गई है
हर रोज भूकंप के झटके से
दो-चार होना पड़ता है मुझे
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgK8YMcjU9sCMfkIBx2EL8jVX9XqLDlY-MXiyxw3LJagquALm9fqu8NUaosbm9UuvbF4EPtnPW6dw-_ijRi5yYh5S1sPodm65YmSSKtsPxPqTCCGPwDeM0zKQ7r3S1XTtpyUcfNCoJBz1iv/s320/3.jpg)
प्रकृति के इस कहर का
पता भी नहीं चलता अब तो
कब आया और कब चला गया
इसके महसूस न होने की
वजह कुछ खास हीं है
रेल की पटरी के ठीक किनारे के
एक मकान में रहता हूँ मैं
धड़-धड़ करके गुजरती
मेल, एक्सप्रेस, लोकल और मालगाड़ी
कई बार रात के वक्त
कुछ लम्हों के लिए
हलचल पैदा कर जाती है
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgsRZQvNdthy0kgL5lYxh7H853x_KSJwN7FktVU4ZqehIBHIg2m1JhlVS5cH0QtqfbcfxKjtufWyCVCEN-sGVFATdZyWllspzPqPeEgF5GY0hRP3QRVMTP1V7oEfaC55Dk0Q2T6uRfwDVe2/s320/2.jpg)
मेरे शांत जीवन में
हर रोज जब रात गहरी होती है
मैं अपने चित्त को शांत करने की
कोशिश करता रहता हूँ
नींद मेरी पलकों पर
उसी क्षण दस्तक दे रही होती है
तभी पिछले स्टेशन से
चलकर चली आ रही गाड़ी
मेरे मकान के बगल वाली
पटरी से होकर गुजर जाती है
हलचल पैदा कर जाती है
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgtATYOvzHjb5XcpiZ8Om7zzhe7d4nupX39kPUq0_4w_RhrDXhNFDfWo0jojScZVbhr3hW256uarnwxy-8AC53ByoJqqceHjYfFK3gD1XVJNGwDFdtraFhyphenhyphenRQ4Ybc749g-VzkrNiuET2PCQ/s320/1.jpg)
मेरे शांत चित्त और
नींद से बोझिल आँखों में
अब समझ गया हूँ मैं
कि भूकंप के आने की आहट
क्यूँ नहीं समझ पाता हूँ मैं
ये दर्द सिर्फ मेरा नहीं है
पटरी के दोनों तरफ
के घरों में रहनेवाले
सभी लोगों का है
जिनके जीवन में अब
हर रोज भूकंप दखल देती है
........................
(गंगेश कुमार ठाकुर)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें