मंगलवार, 9 जुलाई 2013

चुनाव से पहले चुनावी खेल शुरू

यूपीए सरकार ने अपने कार्यकाल के दसवें वर्ष में प्रवेश कर लिया है। पिछले नौ वर्षों में देश की दशा और दिशा में व्यापक परिवर्तन आया है। जनता महंगाई और भ्रष्टाचार जैसी समस्याओं से त्रस्त है। यूपीए सरकार उठाए गए कुछ ठोस कदम ने देश में पनप रही समस्याओं को सुलझाने की कोशिश तो की पर वो तकरीबन इसमें विफल ही रहे। जनता सरकार के काम से संतुष्ट हो पाई या नहीं ये तो 2014 के चुनाव के नतीजे के बाद ही पता चल पाएगा। अपने पूरे कार्यकाल में सरकार ने जनता के लिए जो कुछ भी किया उसके लिए उसकी जिम्मेदारी बनती है कि वह जनता के सामने अपने किए गए कार्य का लेखा-जोखा प्रस्तुत करे साथ ही विपक्ष की भी यह जिम्मेदारी बनती है कि उसने जनता के हित को ध्यान में रखते हुए सरकार के कामकाज का कितना विरोध और सहयोग किया इसका ब्यौरा प्रस्तुत करे क्योंकि उसे भी जनता ने ही चुनकर भेजा है।
यूपीए सरकार ने अपने कार्यकाल के शुरुआती दौर में गांव से शहर की ओर रोजगार की तलाश में भाग रहे लोगों को मनरेगा योजना के तहत रोजगार का अधिकार दिया। लोगों को अपने घरों के नजदीक ही गारंटी से रोजगार मिलने की संभावना दिखने लगी, लेकिन सरकार की इस योजना के फलीभूत होने से पहले ही इस योजना को भ्रष्टाचार का दीमक चाटने लगा। सरकार आज आम चुनाव से पहले अपनी उपलब्धि गिनाने में मशगूल है जगह-जगह सड़कों पर सरकार के कामों की होर्डिंग और पोस्टर दिख जाएंगे, लेकिन उनकी इस योजना का सफल रूप देखने को इन दस सालों में नहीं मिल पाया।
सरकार ने चुनाव के पहले जनता की नजर में अपनी छवि को दुरुस्त करने के लिए खाद्य सुरक्षा योजना, प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण, महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना, सभी को सामाजिक सेवाएं प्रदान करने और वितरण खामियों को पूरी तरह से दूर करने के लिए ‘आधार’ संख्या योजना और इसे सुलभता से उपलब्ध कराने हेतु भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण की स्थापना, राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन,  जवाहर लाल नेहरु शहरी नवीकरण मिशन, कौशल विकास मिशन, राजीव गांधी विद्युतीकरण योजना, स्कूलों में मध्याह्न भोजन योजना, सूचना का अधिकार और शिक्षा का अधिकार लागू करने के लिए विधेयक लाना ऐसी कुछ प्रमुख पहलें चुनाव से पहले कर दी, जो यूपीए सरकार के द्वारा जनता को दिया गया लालीपॉप ही तो है।
यूपीए गठबंधन की नींव इस सोच के साथ रखी गई कि गरीबों को भोजन का अधिकार मिले, जिससे देश में भूखे पेट लोग ना सोएं और कुपोषण जैसी बीमारी से किसी की मौत ना हो, इसके अलावा सरकार की मंशा किसानों को उनकी जमीन का अधिकार देने के लिये मजबूत भूमि अधिग्रहण कानून बनाने की थी, लेकिन सरकार के गठन के साथ ही इसमें रोड़ा अटकना शुरू हो गया सरकार के लगभग सभी मंत्री पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे। अपनी साख बचाने के लिए सरकार ने यूपीए2 के कार्यकाल में ही कई बार मंत्रीमंडल में लोगों को बदला और कई बार इसका विस्तार किया। सरकार अपने सहयोगी दलों की नाराजगी और उनको मनाने में ही ज्यादा उलझी रही, सरकार से सहयोगी दल टूटते तो फिर सरकार चलाने के लिए दूसरे दसों के समर्थन की कवायद शुरू की जाती ऐसे में सरकार से विकास और विकास योजना के कार्यान्वयन की उम्मीद जनता को करनी ही नहीं चाहिए। यूपीए-2 सरकार अपनी शुरुआत के दिनों से ही विवादों और घोटालों के भंवर में घिरती रही। कॉमनवेल्थ गेम्स घोटाला, 2जी, 3जी, कोल ब्लॉक आवंटन, आदर्श सोसायटी घोटाला, हैलिकॉप्टर सौदा और सीबीआई पर दबाव बनाने जैसे आरोप ने सरकार के दामन को दागदार कर दिया।
इन सब वजहों से प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की छवि धूमिल हुई।
देश में  महंगाई का स्तर आसमान छूने लगा सरकार बढ़ती महंगाई पर रोक लगा पाने में नाकाम रही। विदेश नीति के मामले में भी सरकार की कमजोरी उजागर होकर सामने आ गई। पाकिस्तान, चीन, श्रीलंका और मालदीव जैसे देशों के साथ हमारी कूटनीति कमजोर साबित हुई। चीन द्वारा भारतीय सीमा में लगातार घुसपैठ और बीजिंग में दिल्ली की शिकायतों पर ध्यान न दिया जाना भी सरकार की नाकामी माना जाएगा। इतनी खामियों के बावजूद यूपीए सरकार ने अपनी उपलब्धियों की जानकारी लोगों तक पहुंचाने के लिए भारत निर्माण कैंपेन शुरू कर दी। सरकार जिस तरह से खाद्य सुरक्षा विधेयक पर जल्दीबाजी दिखा रही थी उससे स्पष्ट हो गया कि सरकार मध्यावधि चुनाव के मूड में है और वह जानती है कि अगर चुनाव जल्दी नहीं कराए गए तो इन योजना को लागू करने का फायदा भी यूपीए को नहीं मिल पाएगा। इसी का नतीजा यह हुआ कि कैबिनेट ने भोजन का अधिकार बिल लागू करने के लिए अध्यादेश के प्रस्ताव को हरी झंडी दे दी। यह अध्यादेश प्रति व्यक्ति प्रति माह 3, 2 और 1 रूपये किलो के मूल्य पर पांच किलो चावल, गेहूं या मोटे अनाज की गारंटी देगा। यह जनता की भावना को जीतने का कांग्रेसी तरीका है। राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के हस्ताक्षर के बाद अध्यादेश लागू हो जाएगा। इससे देश की दो तिहाई आबादी को एक से तीन रूपये किलो की सब्सिडी मूल्यों पर हर महीने पांच किलो अनाज का कानूनी हक मिल जाएगा।
कांग्रेस ऐसे समय पर इस तरह के निर्णय ले रही है जब चुनाव के लिए मात्र दस महीने बचे हैं। बिल लागू होने से इस योजना का फायदा लेने वाले लोग कम से कम चुनाव तक तो सरकार के काम को याद रख सकते हैं। वैसे भी प्यार, राजनीति और जंग में सब कुछ जायज़ है। यानि सरकार द्वारा अब उन्हीं योजनाओं को पारित कराने और लागू कराने की ओर ध्यान दिया जा रहा है जिससे सीधे तौर पर आम चुनावों में सरकार को और उनकी सहयोगी पार्टियों को फायदा मिल पाए। यकीन मानिए यूपीए2 सरकार ने चुनाव से पहले ही चुनाव के लिए सियासी शतरंज बिछाना शुरू कर दिया है और अभी सारे मोहरे भी सरकार के हाथ में ही हैं।

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