एक सवाल गौरी लंकेश की हत्या के बाद मेरे जेहन
में बार-बार उठा रहा है कि क्या पत्रकारों की भी दो जाति होती है...क्या पत्रकार
भी बड़े और छोटे होते हैं...क्या पत्रकारों की मौत पर विरोध दर्ज कराने का तरीका
अलग-अलग हो सकता है...क्या पत्रकारों की भी अलग-अलग श्रेणी होती है...क्या
संस्थानों और उनकी स्वयं की हैसियत के हिसाब से किसी पत्रकार के मौत पर विरोध का
स्तर तय किया जाता है...क्या पत्रकारों को भी राजनीतिक संरक्षण की जरूरत है...नहीं
तो फिर अलग-अलग जगहों पर मारे गए पत्रकारों की मौत के लिए विरोध के स्वर अलग-अलग
क्यों?
आपको बता दें कि गौरी लंकेश की हत्या के ठीक एक
दिन बाद बिहार में पत्रकार पंकज मिश्रा को गोली मारी गई लेकिन उसके विरोध के लिए
सड़कों पर ना तो लोग आए ना मीडिया के सूरमा अब आप समझ ही गए होंगे की मेरे अंदर
पत्रकारों को लेकर और पत्रकारिता को लेकर इतने सारे सवाल कैसे खड़े हो गए।
आपको नीचे ऐसे पत्रकारों की सूची और नाम मैं दे
रहा हूं जिनकी मौत की तारीखों को देखकर आप बता दीजिएगा की क्या इन पत्रकारों की
मौत पर ऐसा ही विरोध हुआ था जैसा गौरी लंकेश के मारे जाने पर हुआ था। फिर वो अपने
आप को पत्रकार कहती हैं जबकि उनके चाहने वाले पत्रकार ही उन्हें विचारधाराओं के
नाम के साथ जोड़कर उसका पोषक बताते हैं। लेकिन विरोध तो विरोध है वह करेंगे...
लेकिन उससे भी बेहतरीन बात यह है कि विरोध के लिए जो मंच वह तैयार करेंगे वहां
पत्रकार नहीं बोलेंगे बल्कि नेता और नए युग के भारत के टुकड़े करने के नारे लगाने
वाले नेता गौरी लंकेश की मौत पर लोगों का आह्वान करेंगे। एक पार्टी के उपाध्यक्ष
प्रधानमंत्री से इस मौत पर कुछ नहीं बोलने को लेकर सवाल करने लगेंगे...जबकि उनको
पता है कि जहां लोकेश की हत्या हुई उस राज्य में उनकी सरकार है। कानून और व्यवस्था
की जिम्मेदारी राज्य की होती है। सभी मिलकर इस मौत में हिंदू, संघ
और भगवा आतंकवाद जैसे शब्द जोड़कर अपना विरोध तो दर्ज करा रहे हैं। लेकिन किसी ने
कभी तब क्यों नहीं आवाज उठाई जब और पत्रकारों को नक्सलियों के हाथों मारा गया...जिन
नक्सलियों के ये वाम समर्थित पत्रकार सबसे बड़े पैरोकार बनते हैं...ये उनसे बेधड़क
जंगल में मिल आते हैं...
आप सलेक्टिव हो सकते हैं...लेकिन पत्रकारों की
अलग-अलग श्रेणी का निर्माण कर देना एक नई व्यवस्था के साथ विरोध के लिए भी मौत को
अलग-अलग नजरिए से देखना फिर बुद्धिजीवी बन जाना...कहां की बुद्धिमतता है...आप
विरोध करें तो सभी का करें समर्थन करें तो सभी का आप पत्रकार हैं ऐसे में आप किसी
विशेष विचारदारा से बंधकर नहीं रह सकते...आप दक्षिणपंथी विचाराधार के पोषक
हों...या फासिस्ट विचारधारा के...अब आप पत्रकार तो बिल्कुल नहीं हैं....बस आप एसी
बंगलों ऑफिसों में रहकर काम करनेवाले और कैमरे के सामने दिखनेवाले किरदार मात्र
हैं....
भारत में 1992 से लेकर अब तक 19
जाबाज पत्रकारों की जुबान को भ्रष्टाचार और अन्याय के विरूद्ध लड़ते वक्त
हमेशा-हमेशा के लिए बंद कर दी गई। यही नहीं अब तक हजारों पत्रकारों पर जानलेवा
हमले किये गये हैं। कई ऐसे मामले भी हैं जिन्हें प्रकाश में ही नहीं आने दिया गया।
दुर्भाग्यपूर्ण बात यह है कि पत्रकारों की निर्मम हत्या के मामले में अब तक न तो
किसी हत्यारे को सजा ही मिली है और न ही किसी न्याय की गुंजाइश ही की जा सकती है।
बता दें कि बीते साल में कमिटी टू प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट्स ने 42
पन्नों की एक रिपोर्ट पेश कर यह खुलासा किया था कि भारत में रिपोर्टरों को काम के
दौरान पूरी सुरक्षा अभी भी नहीं मिल पाती है। रिपोर्ट में खुलासा किया गया था कि 1992 के
बाद से भारत में 27 ऐसे मामले दर्ज हुए हैं जब पत्रकारों का उनके
काम के सिलसिले में क़त्ल किया गया। लेकिन किसी एक भी मामले में आरोपियों को सजा
नहीं हो सकी है।
13 मई 2016 को सीवान में
हिंदी दैनिक हिन्दुस्तान के पत्रकार राजदेव रंजन की गोली मारकर हत्या कर दी गई.
ऑफिस से लौट रहे राजदेव को नजदीक से गोली मारी गई थी. इस मामले की जांच सीबीआई कर
रही है.
मई 2015 में मध्य प्रदेश में व्यापम घोटाले की
कवरेज करने गए आजतक के विशेष संवाददाता अक्षय सिंह की संदिग्ध परिस्थितियों में
मौत हो गई. अक्षय सिंह की झाबुआ के पास मेघनगर में मौत हुई. मौत के कारणों का अभी
तक पता नहीं चल पाया है.
जून 2015 में मध्य
प्रदेश में बालाघाट जिले में अपहृत पत्रकार संदीप कोठारी को जिंदा जला दिया गया.
महाराष्ट्र में वर्धा के करीब स्थित एक खेत में उनका शव पाया गया.
साल 2015 में ही उत्तर
प्रदेश के शाहजहांपुर में पत्रकार जगेंद्र सिंह को जिंदा जला दिया गया. आरोप है कि
जगेंद्र सिंह ने फेसबुक पर उत्तर प्रदेश के पिछड़ा वर्ग कल्याण मंत्री राममूर्ति
वर्मा के खिलाफ खबरें लिखी थीं.
साल 2013 में मुजफ्फरनगर
दंगों के दौरान नेटवर्क18 के पत्रकार राजेश वर्मा की गोली लगने
से मौत हो गई.
आंध्रप्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार एमवीएन शंकर की 26
नवंबर 2014 को हत्या कर दी गई. एमवीएन आंध्र में तेल माफिया के खिलाफ लगातार
खबरें लिख रहे थे.
27 मई 2014 को ओडिसा के
स्थानीय टीवी चैनल के लिए स्ट्रिंगर तरुण कुमार की बड़ी बेरहमी से हत्या कर दी गई.
हिंदी दैनिक देशबंधु के पत्रकार साई रेड्डी की
छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित बीजापुर जिले में संदिग्ध हथियारबंद लोगों ने हत्या
कर दी थी.
महाराष्ट्र के पत्रकार और लेखक नरेंद्र दाभोलकर
की 20 अगस्त 2013 को मंदिर के सामने उन्हें बदमाशों ने
गोलियों से भून डाला.
रीवा में मीडिया राज के रिपोर्टर राजेश मिश्रा
की 1 मार्च 2012 को कुछ लोगों ने हत्या कर दी थी.
राजेश का कसूर सिर्फ इतना था कि वो लोकल स्कूल में हो रही धांधली की कवरेज कर रहे
थे.
मिड डे के मशहूर क्राइम रिपोर्टर ज्योतिर्मय डे
की 11 जून 2011 को हत्या कर दी गई. वे अंडरवर्ल्ड से जुड़ी कई
जानकारी जानते थे.
डेरा सच्चा सौदा प्रमुख गुरमीत राम रहीम के
खिलाख आवाज बुलंद करने वाले पत्रकार रामचंद्र छत्रपति की सिरसा में हत्या कर दी
गई. 21 नवंबर 2002 को उनके दफ्तर में घुसकर कुछ लोगों ने
उनको गोलियों से भून डाला.
छत्तीसगढ़ में रायपुर में मेडिकल की लापरवाही
के कुछ मामलों की खबर जुटाने में लगे उमेश राजपूत को उस समय मार दिया गया जब वो
अपने काम को अंजाम दे रहे थे।
समय नाम मीडिया आउटलेट
स्थान
27 फरवरी 1992 बक्षी तिरथ सिंह हिंद समाज धुरी पंजाब
27 फ़रवरी 1999 शिवानी भटनागर द इंडियन
एक्सप्रेस नई दिल्ली
13 मार्च 1999 इरफान हुसैन आउटलुक नई दिल्ली
10 अक्टूबर 1999 एन.ए. लालरुहु शान मणिपुर
18 मार्च 2000 अधीर
राय फ्रीलांस
देवघर, झारखंड
31 जुलाई 2000 वी. सेल्वराज नक्केरियन पेरामबलुर तमिलनाडु
20 अगस्त 2000 थूनोजाजम ब्रजमानी सिंह मणिपुर न्यूज़ इम्फाल, मणिपुर
21 नवंबर 2002 राम चंदर छत्रपति पूर्ण सच सिरसा
हरियाणा
7 सितंबर 2013 राजेश वर्मा आईबीएन 7 मुजफ्फरनगर, उत्तर प्रदेश
6 दिसंबर 2013 साई रेड्डी देशबंधु
बीजापुर जिला
27 मई 2014 तारुन कुमार आचार्य संबाद और कनक टीवी
खल्लीकोट गंजम जिला,ओडिशा
26 नवंबर 2014 एम. वी. एन. शंकर आंध्र प्रभा चिलाकल्यिरिपेट
आंध्र प्रदेश
8 जून 2015
जगेंद्र सिंह फ्रीलांस शाहजहांपुर उत्तर प्रदेश
5 सितंबर 2017 गौरी लंकेश कन्नड़ अखबार बेंगलूरू