गुरुवार, 28 नवंबर 2013

‘आप’ ऐसे तो न थे?


70 साल के बुढ़े ने देश में भ्रष्टाचार के खिलाफ जिस तरह से लोगों को जगाया वह सचमुच ऐसा मंजर था मानो जयप्रकाश नारायण की वह क्रांति फिर से भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में कई नए चेहरे और एक नई शुरुआत के तौर पर लाई गई हो। लेकिन धीरे-धीरे सत्ता की भूख ने इस आंदोलन को भी दो टूकड़ों में विभक्त कर दिया। आंदोलन की फसल के बीज बोए जाने से उसके लहलहाने तक इसे काटने वाले हाथ कम और उसकी देखभाल करनेवाले हाथ ज्यादा दिख रहे थे। देश की आवाम भी इसमें सहयोग अपना भरपूर सहयोग दे रही थी, लेकिन सत्ता की भूख ऐसी भूख है जिसने इस आंदोलन के दो ऐसे टूकड़े किए कि इस आंदोलन की नाव पर सवारी करनेवाले लोग अपने में ही आरोप-प्रत्यारोप का घिनौना खेल खेलने लगे। खैर मामला सुलझा, एक हिस्से ने धीरे-धीरे ही सही अपने आंदलन को जारी रखा और दूसरा हिस्सा सत्ता में दखल देने के ख्याल से पार्टी बनाकर लोगों के बीच मत मांगने पहुंच गया। जनता को भी लगने लगा था कि कहीं न कहीं दोनों ही का उद्देश्य सही है। अगर कुछ बदलना है तो खुद को सत्ता में लाना होगा और अगर लोगों को जगाना है तो आंदोलन की जरूरत पड़ेगी।
लेकिन समय-समय पर इस पार्टी ’आप’ पर जिस तरह के आरोप लगने लगे उसने जनता के दिल से इन लोगों के प्रति हमदर्दी को कम करना शुरू कर दिया। हालांकि फिर भी जनता बदलाव की ख्वाहिशमंद थी सो, कहीं न वह अपना विश्वास ’आप’ में दिखा रही थी। पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव जारी था। दिल्ली जहां लोकतंत्र की जमीन तैयार की जाती है, जहां से पूरे देश की सत्ता के महाभारत का बिगुल फूंका जाता है, जहां से लोकतंत्र निकलकर विदेशी गलियों में हलचल पैदा करता है और जहां के लोकतंत्र की चर्चा के बिना विश्व की राजनीतिक चर्चा अधूरी रहती है। ऐसी धरती पर 4 नवंबर को चुनाव होना तय किया गया। पार्टियां चुनाव प्रचार में जुट गईं। शब्दों की तलवारें गरजने लगी। आरोप-प्रत्यारोप का भाला चुभोया जाने लगा। जुबान से गोलियों की बौछारें होने लगी। यानि राजनीतिक अखाड़े में जुबानी खून-खराबा शुरु हो गया। ऐसे में ’आप’ ने दिल्ली विधानसभा में अपने सत्तर प्रत्याशियों को सभी सीटों पर खड़ा करने का फैसला किया और फैसला भी इसलिए क्योंकि समाज बदलना था, देश बदलना था, सत्ता का सेमीफाईनल यहां से जीतकर देश से भ्रष्टाचार मिटाने का संकल्प की अपनी तैयारी का प्रदर्शन करना था। रास्ता और सोच बिल्कुल सटीक, एकदम ईमानदार सोच। लेकिन इस सोच को तब विराम लगा जब एक मीडिया हाऊस ने ’आप’ के उम्मीदवारों की जुबां और सोच की हकीकत को अपने कैमरे में एक स्टिंग के तौर पर कैद किया। फिर क्या था ईमानदार नेतृत्व भी सवालों के घेरे में। अब आखिर जनता करे भी तो क्या? वो एक ईमानदार नेतृत्व की राह देख रही थी, तो यहां भी धोखा ही मिला। देश में सत्ता का समीकरण जब भी तैयार होता है उसके पहले इतने कीचड़ उछाले जाते हैं कि जनता का भी दामन उनमें से अपने लिए प्रतिनिधियों का चुनाव करने में दागदार हो जाता है।
‘आम आदमी पार्टी’ एक बार फिर विवादों में आ गई। इस बार एक स्टिंग ऑपरेशन में पार्टी के कई खास चेहरे फंस गए। इनमें से दो चेहरे हैं जो पार्टी के बिल्कुल खास थे आर के पुरम से प्रत्याशी शाजिया इल्मी और कुमार विश्वास। स्टिंग ऑपरेशनों में इन दोनों पर धन लेने और धन लेने के लिए तैयार होने का आरोप लगाया गया। शाजिया पर आरोप है कि उन्होंने पार्टी की जगह वॉलेंटियर्स को कच्ची रसीदों पर चंदा देने की बात कही जबकि कुमार विश्वास पर आरोप लगे हैं कि उन्होंने शो के लिए पैसे लिए और पेमेंट चेक की जगह कैश में लिया। मीडिया सरकार नाम की संस्था ने शाजिया इल्मी और कुमार विश्वास के साथ-साथ आप पार्टी के कुछ और नेताओं का स्टिंग ऑपरेशन किया। हालांकि आप पार्टी ने मीडिया सरकार के इस स्टिंग को बेबुनियाद और गलत बताया है। मीडिया सरकार ने आप के सात और उम्मीदवारों का स्टिंग ऑपरेशन किया है। इस स्टिंग में कोंडली से आप के उम्मीदवार मनोज कुमार, संगम विहार के उम्मीदवार दिनेश मोहनिया, ओखला के उम्मीदवार इरफान उल्लाह खान, रोहतास नगर के उम्मीदवार मुकेश हुड्डा, पालम से आप उम्मीदवार भावना गौर, देवली के आप उम्मीदवार प्रकाश शामिल हैं। मीडिया सरकार ने दावा किया है कि आप पार्टी के ये नेता कायदे कानून को ताक पर रखकर पैसे के बदले हर उस काम के लिए तैयार हो गये थे जिसका आरोप ये दूसरे नेताओं पर लगाते रहते हैं। अब हकीकत क्या है इसका फैसला तो आप की तरफ से पार्टी के द्वारा दिए जानेवाले बयान पर ही निर्भर करता है। पार्टी के नेता अऱविंद केजरीवाल ने कहा है कि वो पूरा स्टिंग देखने के बाद हीं इस पर कोई फैसला करेंगे या बयान देंगे। हलांकि आप के संयोजक अरविंद केजरीवाल ने कहा कि भ्रष्टाचार से कोई समझौता नहीं होगा और किसी दोषी को बख्शा नहीं जाएगा। उन्होंने इस स्टिंग को पार्टी के खिलाफ साजिश करार दिया। वहीं स्टिंग ऑपरेशन की चपेट में आई ‘आप’ प्रत्याशी शाजिया इल्मी ने विधानसभा चुनाव से अपनी उम्मीदवारी वापस लेने की पेशकश की है। उनका कहना है कि वह नहीं चाहतीं कि उनकी वजह से पार्टी की बेदाग छवि को कोई नुकसान पहुंचे। जब तक इस पूरे मामले में वह पाक-साफ नहीं करार दी जातीं, वह चुनाव नहीं लड़ेंगीं। इसके पहले कांग्रेस और भाजपा भी एक वीडियो के मुद्दे पर अरविंद केजरीवाल की अगुवाई वाली आम आदमी पार्टी (आप) पर निशाना साधा चुकी है, जिसमें दिखाया गया है कि जनलोकपाल विधेयक की खातिर किए गए आंदोलन के दौरान इकट्ठा किए गए धन के आप द्वारा कथित गलत इस्तेमाल पर अन्ना हजारे अपनी नाराजगी जाहिर कर रहे हैं। हालांकि, अन्ना हजारे ने इस पर सफाई दी है कि केजरीवाल और उनके बीच किसी तरह का झगड़ा नहीं है़, सिर्फ मतभेद हैं, जिन्हें दूर किया जा सकता है। खैर मामले की हकीकत कुछ भी हो लेकिन जनता के लिए भरोसे का एक नाम बन गई ‘आप’ के लिए जनता तो बस इतना ही पुछती है कि ‘आप’ ऐसे तो न थे?

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें