गुरुवार, 5 अप्रैल 2012

खुशियाँ रोती है



ये मेरी जिंदगी की वो हकीकत है जिसे बयां करने में मुझे वक्त ने लंबा इंतजार करवाया मैं समय का गुलाम हूं सो अपनी धड़कनों को काबू करता रहा पता नहीं कैसे वेदना की ये बूंदें आंखों से बहकर स्वत: कागज पर आकार लेने लगीं जब मैं इस भंवर से बाहर आया तो सोचा चलूं आपको भी इससे मिलवा दूं ।


छोटा सा था तो कुछ चीजें मांगी थी मैंने
चंद किस्से, चंद बातें
कुछ जिंदगी जीने के नुस्खे और थोड़ा प्यार
पता है कैसे मिली थी ये सब
हर कदम पर ठोकरें खाई
जिंदगी जीने के तमाम नुस्खे मिल गए
मशवरे के रूप में
हर दिन कुछ खोता गया
फटकार मिलती रही बातें बनकर
हर रात रोता रहा तो
सोने को लोरियां और थपकियां मिली
किस्से, कहानियां बनकर
भूख जब-जब लगी
तो मां के हाथों का बना वो खाना
मिलता रहा प्यार बनकर
भाई बहन की थालियों से भी
झपटकर प्यार छिना था मैंने
अब जब बड़ा हो गया हूं
इन सब के मायने बदलते चले गए हैं
अब बस इन्हीं पूरानी चीजों को
रोज नए रंग में पलते बढ़ते देखता हूं
कुछ स्थिर, कुछ शांत, कुछ उथली, कुछ छिछली







पर एक नए चीज की जरूरत
महसूस करने लगा हूं मैं
पता है किसकी ?
खुशियों की
खुब मांगा, खुब ढूंढा
पता है खुशी खुद रो रही थी
कहा मैं तो हर रोज बाजार में बिकती हूं
पैसे पास है तो खरीद लाओ
असमर्थ था, खरीद नहीं सकता था
क्योंकि मैंने इससे पहले कभी भी
ये सबकुछ पैसे से नहीं खरीदा था
डर लगता था, कहीं कुछ बुरा ना खरीद लूं
इसलिए अब, बचपन के उन्हीं चंद
पाए टूकड़ों को जोड़कर
अपने लिए खुशियां बना रहा हूं
अगर वो बन पाई
तो आप सब में भी बाटूंगा ।

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