वहीं पूर्व आप नेता योगेंद्र यादव की इस बात में भी दम है कि अगर तोमर की डिग्रियां फर्जी नहीं हैं तो उन्हें सार्वजनिक कर डंके की चोट पर आरोप नकारने में दिक्कत क्या है। उन्होंने कहा था कि कोर्ट के पीछे यह सारे मामले को क्यों छिपाया जा रहा है। इस मामले में तोमर का बचाव कर रहे आप नेताओं में आत्मविश्वास का अभाव नजर आना भी फर्जी डिग्री आरोपों को पुख्ता कर रहा है। कुमार विश्वास से लेकर आशुतोष तक कोई भी आप नेता डिग्री सच होने को लेकर बयान देने से बचता ही नजर आ रहा है। डिग्री की सच्चाई पर सिर्फ इतना ही कहा जा रहा है कि यह तो कोर्ट तय करेगी कि सच्चे और झूठे दो तरह के दस्तावेजों में से सही कौन है। संदेश तो यही जा रहा है कि यह सारे आप नेता सिर्फ तोमर की गिरफ्तारी की प्रक्रिया में खामी निकाल रहे हैं और केंद्र के मंत्रियों स्मृति ईरानी और निहालचंद के मुद्दों को उछालकर अपने घर में मौजूदा कमियों को छिपा रहे हैं। एक बात और ध्यान देने की है कि मंगलवार को कोर्ट के रिमांड देने तक आशुतोष और कुमार विश्वास काफी आक्रामक तरीके से पुलिस के रवैये पर प्रहार कर रहे थे। लेकिन तोमर की रिमांड का फैसला आते ही उनके तेवर कुछ ढीले पड़ गए। रिमांड देने का मतलब यही निकाला जाने लगा कि कहीं न हीं कोर्ट दिल्ली पुलिस की तरफ से पेश किए गए साक्ष्यों से संतुष्ट है और इसके आधार पर आगे की जांच को जरूरी समझ रहा है। यही वजह है कि आप नेताओं ने अपनी आक्रामकता में कमी कर ली और शीर्ष न्यायपालिका का दरवाजा खटखटाने की बात करने लगे।
उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया से पूछा गया तो उन्होंने तोमर के कॉलेज से दिए गए शपथपत्र को सामने कर कह दिया कि इसमें साफ है कि तोमर एलएलबी की तीनों कक्षाओं में उपस्थित रहे थे और परीक्षाओं में उत्तीर्ण भी हुए थे। लेकिन इससे पहले के राममनोहर लोहिया अवध यूनिवर्सिटी की बीएससी डिग्री के फर्जी होने को लेकर जो आरटीआई के दस्तावेज सामने आए थे उस पर सिसोदिया चुप रह गए थे। यह सारा कुछ यही संकेत देता है कि आप नेताओं के भरोसे में ही कमी है और शायद उन्हें समझ में आ रहा है कि उनका बचाव कमजोर पड़ रहा है।

यही वजह है कि इस पूरे घटनाक्रम को सारे आप नेता एलजी और केंद्र बनाम केजरीवाल सरकार का रंग देने में जुटे हुए हैं। डिग्री विवाद पर केंद्रित करने से ज्यादा आप नेता इसे भ्रष्टाचार पर केजरीवाल के वार का नतीजा बता रहे हैं। सिसोदिया ने कहा भी कि सीएनजी घोटाले की फाईल दोबारा खोले जाने की चर्चा के बाद ही तोमर विवाद को और हवा दी जा रही है। तोमर की गिरफ्तारी को भ्रष्टाचार के खिलाफ मोर्चा खोल रही केजरीवाल सरकार के विरुद्ध बदले की कार्रवाई निरूपित करने में भी आप नेता जुटे हुए हैं। एसीबी के मुखिया को बदले जाने को लेकर भी आप सरकार टकराव की मुद्रा में आ गई थी। कहा जाने लगा था कि एसीबी को अपने निष्ठावान के सुपुर्द कर एलजी भ्रष्टाचारियों को बचाने की कवायद में जुटे हैं। एक तरफ केजरीवाल निराधार आरोप लगाकार यह कोशिश करते हैं कि सभी उसका यकीन बिना सुबूत के कर लें, वहीं दूसरी तरफ तोमर के खिलाफ आ रहे साक्ष्यों को नकारते हुए उनकी गिरफ्तारी को बदले की कार्रवाई बता रहे हैं।
बहरहाल, विवादों के बीच पिस रही दिल्ली की जनता तो समझ ही रही है कि केजरीवाल और उनकी टीम हर मसले पर सियासत चमकाने की कोशिश भी कर रही है। बड़ा सवाल यह है कि क्या इससे दिल्ली में कामकाज ठप नहीं पड़ गया है और जनता हलकान नहीं हो रही है। जवाब भी साफ है कि विवादों की वजह से जनता को परेशानी हो रही है और विकास की गति मंद हो रही है।
सवाल यह है कि केजरीवाल हर मुद्दे पर केंद्र से टकराव की नौबत क्यों ला रहे हैं। माना जा रहा है कि उनका निशाना आगे तक है। दिल्ली तो बस एक पड़ाव था और अब पंजाब और दूसरे सूबों में भी आप के पैर जमाने की कोशिश के तहत ही केजरीवाल यह संदेश दे रहे हैं कि वही अकेले भ्रष्टाचार के खिलाफ जंग लड़ने वाले हैं और बाकी सभी इसे बढ़ावा देने वाले हैं। लेकिन तेामर प्रकरण पर केजरीवाल को सफाई देना मुश्किल होगा क्योंकि फर्जी डिग्री मामले में दिल्ली के मुख्यमंत्री उनका बचावकर खुद बुरी तरह फंस गए हैं। तोमर का जुर्म अगर साबित हुआ तो इसकी आंच केजरीवाल पर जरूर आएगी।
गंगेश कुमार ठाकुर
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