ऐसा देश है मेरा के माध्यम से मैं आप तमाम पाठक से जुड़ने की भरपुर कोशिश कर रहा हूँ चूँकि मैं इस जगत में आपका नया साथी हूँ इसलिए आशा करता हूँ कलम के जरिये उभरे मेरे भावना के पुष्पों को जो मैं आपके हवाले करता हूँ उस पर अपनी प्रतिक्रिया के उपहार मुझे उपहार स्वरूप जरूर वापस करेंगे ताकि मैं आपके लिए कुछ बेहतर लिख सकूँ। ..................................आपकी टिप्पणियों की प्रतीक्षा में ...........................................आपका दोस्त """गंगेश"""
मंगलवार, 22 फ़रवरी 2011
ममता और प्यार
माँ ने ममता दी है अपनी,
पापा ने भी प्यार दिया,
बहन भाई ने हाथ बढ़ाकर,
सपनों का संसार दिया,
दो आँखें भगवान ने दे दी,
सपने खुलकर देखने को,
दो पैरों से खुद चलकर देखा,
संसार के हर बंधते बंधन को,
अकेलापन न कभी खला है,
आशीर्वाद इनका साथ चला है,
उनकी मैं क्या कीर्ति भुला दूँ,
जिसने मुझको जन्म दिया है,
न तो वो होते न तो मैं होता,
न ये सपनों भरा संसार संजोता,
कुछ न फिर मेरी कहानी होती,
न संघर्ष भरी ये जिन्दगानी होती,
न ये भाई होते न ये बहनें होती,
न ये छोटा सा प्यारा परिवार होता,
खुद मैं हीं न होता इसका हिस्सा,
तो क्या मुझे कुछ परवाह होता,
अब तो सब कुछ देख रहा हूँ,
जीवन संग चलना सीख रहा हूँ,
निर्झर सी होकर ये चली जा रही है,
अल्हड़ सी होकर भी इठला रही है,
मौसम की तरह ये बदलती जा रही है,
पग हमेशा मेरा बढ़ाते जा रही है,
नित नये रिश्ते ये बनाते जा रही है,
पर मेरा तो बस चलना काम है,
रिश्ते-नाते सब ईनाम हैं,
इनसबों के साथ जिन्दगी खुश है,
अगर न नये रिश्ते-नाते होते,
जीवन तो उजड़ी बगिया होती,
हर दिन पतझड़ का मौसम होता,
हर रात हवा की गति थम सी जाती,
फिर क्या रहता जीवन का मतलब,
फिर क्या रहता इसका मकसद,
क्योंकि सारे मतलब रिश्ते बनाता है,
दुश्मनी की हर गहराई पाटता है,
बातों का हीं सारा मौल होता है,
इसी से जीवन में तौल होता है,
कितना वजनी यह ममता और प्यार है,
जिससे नपता सारा संसार है।
----------------------------------------------------(गंगेश कुमार ठाकुर)
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें