ऐसा देश है मेरा के माध्यम से मैं आप तमाम पाठक से जुड़ने की भरपुर कोशिश कर रहा हूँ चूँकि मैं इस जगत में आपका नया साथी हूँ इसलिए आशा करता हूँ कलम के जरिये उभरे मेरे भावना के पुष्पों को जो मैं आपके हवाले करता हूँ उस पर अपनी प्रतिक्रिया के उपहार मुझे उपहार स्वरूप जरूर वापस करेंगे ताकि मैं आपके लिए कुछ बेहतर लिख सकूँ। ..................................आपकी टिप्पणियों की प्रतीक्षा में ...........................................आपका दोस्त """गंगेश"""
शनिवार, 19 मार्च 2011
समंदर के किनारे
समंदर के इस किनारे मैं उस किनारे वो बेवस खड़ी थी
वो भी एक अनजान, अनोखी, अनकही घड़ी थी
समंदर की लहरों के संग ज़ज्बात के चंद थपेड़े लग रहे थे हमें
मैं दूर किनारे खड़ा अपने दिल में पलते अरमानों को समझा रहा था
वो दूर दूसरे किनारे पर खड़ी फफक-फफक कर रोती जा रही थी
चंद पलों के साथ आँखों में मिलन के सपनों में वो खोती जा रही थी
चंद कदमों का फासला लगने लगा था समंदर के दोनों किनारों के बीच
दोनों के फासलों के बीच में लेकिन तन्हाइयों की लंबी दीवार खड़ी थी
दोनों इस पशोपेश में थे कि कौन पहले चुप्पी की दीवार गिराये
कौन पहले बीच की तन्हाइयों की दीवार को खत्म करने का रास्ता सुझाये
साथ मेरे था रंग और रोशनी लिऐ पूरी चाँदनी रात का आलम
लेकिन चाँदनी का रंग चेहरे पर अपने समेटे वो उस पार खड़ी थी
समंदर से उठ रहे हवा के हल्के-हल्के झोंके मचलते जा रहे थे
दोनों को एक दूसरे की छुअन के एहसास से सिहरन सी हो रही थी
समंदर का शोर मानो कि जैसे सिमटता हीं जा रहा था
दोनों के बीच का फासला भी मानो ख्व़ाबों में मिटता हीं जा रहा था
आँखों में बस दोनों के एकदूसरे को जी भर कर दीदार की ललक थी
जज्बात के चंद उलझे हुए तारों को समेटने की एक कसक थी
सरकता हीं जा रहा था अशांत समंदर का शोर दोनों तरफ बराबर
एक पूरजोर पानी के शोर के साथ लहरों का बवंड़र बीच में आ गया था
दोनों बदहवास खड़े थे किनारों पर एक दूसरे में खो जाने की ख्वाहिश लिए
समंदर की तड़पती लहरें उठी और हमारा सब कुछ समा गया इसकी आगोश में ।
----------------------------------(गंगेश कुमार ठाकुर)
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