सोमवार, 29 जुलाई 2013

महिलाओं की असुरक्षा में हमने पाया चौथा स्थान, शर्म करो शैतान

http://boljantabol.com/2013/07/27/fourth-place-we-found-for-womens-insecurity/
महिलाओं की सुरक्षा के लिहाज से देखा जाए तो जिस तरह की घटनाऐं आए दिन भारत में घट रही हैं उसमें महिलाओं के सुरक्षा को लेकर अगर कोई रिपोर्ट आती है तो वो रिपोर्ट कहीं न कहीं सरकार द्वारा महिला सुरक्षा के लिए उठाए जा रहे कदमों पर उंगली उठाता नजर आता है। समय-समय पर महिला सुरक्षा को लेकर कानून बनाए जोते हैं और कानूनों में परिवर्तन भी किए जा रहे हैं। फिर भी देश में महिलाऐं असुरक्षित है। देश के हर कोने से महिलाओं के साथ दुष्कर्म, यौन प्रताड़ना, दहेज के लिए जलाया जाना, शारीरिक और मानसिक प्रताड़ना और स्त्रियों के खरीदफरोख्त के समाचार सुनने को मिलते रहते हैं। ऐसे में महिला सुरक्षा कानून का क्या मतलब रह जाता है इसे आप और हम बेहतर तरीके से सोच और जान सकते हैं। महिला अधिकारों के लिए काम करने वाले दो सौ से अधिक विशेषज्ञों ने एक सर्वे के ज़रिए भारत को महिलाओं के लिए बेहद असुरक्षित बताया । इस सर्वे की माने तो भारत में मानव तस्करी औऱ कन्या भ्रूण हत्या के मामले सबसे ज्यादा हैं। इस मामले में भारत अपने पड़ोसी देश पाकिस्तान से थोड़ा बहुत ही बेहतर है,  इस सूची में पाकिस्तान तीसरे स्थान पर है। अफगानिस्तान को तो महिलाओं के लिए दुनिया का सबसे खतरनाक देश माना गया है। लोकतांत्रिक गणराज्य कांगो इस सूची में दूसरे स्थान पर है और सोमालिया भारत के बाद पांचवे स्थान पर।
इस सर्वे में जो प्रश्न पुछे गए वो कुछ ऐसे मुद्दों पर थे जो इस प्रकार हैं खराब स्वास्थ्य सेवाओं की वजह से किस जगह पर महिलाओं की सबसे ज्यादा मौत होती है, कौन सी जगह पर महिलाएं सबसे ज्यादा शारीरिक हिंसा झेलती हैं, परंपरागत कारणों की वजह से कहां महिलाओं के साथ सबसे भेदभाव पूर्ण रवैया अपनाया जाता है। ऐसे प्रश्नों के जबाव इतने खतरनाक मिले जिसने भारत को महिलाओं की असुरक्षा के लिए चौथे स्थान पर ला दिया, सच में यह स्थिति सोचनीय है। भारत को इस सर्वे में मानव तस्करी, भेदभावपूर्ण रवैय्ये और सांस्कृतिक मामलों के लिए आड़े हाथों लिया गया। सर्वे के अनुसार भारत में लड़कों को लड़कियों से ज्यादा तबज्जो दी जाती है, जिस कारण देश में कन्या भ्रूण हत्या के मामले बढ़े हैं। भारत में आज भी बाल विवाह का प्रचलन है और देश में रूढ़ीवादी विचारधार समाप्त नहीं हो पाई है। भारत के पूर्व गृह सचिव के बयान को माने तो देश में करीब 100 मिलियन लोग, जिसमें महिलाओं और लड़कियों की संख्या सबसे ज्यादा है, भारत में मानव-तस्करी से जुड़े हुए हैं। यह अलग बात है कि दुनिया में ऐसे कई देश हैं, जिन्हें इस सूची में सबसे ऊंचाई पर होना चाहिए था। ये दुनिया के ऐसे देश हैं जहां एक महिला होना ही अपने आप में कठिनाई भरा औऱ खतरनाक है। ये अलग बात है कि भारत का स्थान ऐसे जगहों में रखा गया जो चिंता का विषय तो है लेकिन, फिर भी हैरानी इस बात से है कि क्यों दुनिया के कई अन्य देश जो भारत से भी खराब हालात में हैं विशेषज्ञों की नजर से बच निकले। मानव तस्करी के मामले में चीन भारत के बराबर है। जबकि जानकारी के अनुसार दक्षिण अफ्रीका में महिलाओं का सर्वाधिक शारीरिक शोषण होता है। लेकिन आश्चर्य की बात यह है कि इन देशों के नाम विशेषज्ञों की लिस्ट में नहीं थे।
हलांकि मानव तस्करी की समस्या से कुशलतापूर्वक निबटने के प्रयासों के लिए अमेरिकी विदेश मंत्रालय ने भारत की सराहना की है। अमेरिकी विदेश मंत्रालय का कहना है कि भारत इस अपराध से निबटने के लिए महत्वपूर्ण प्रयास कर रहा है। ऐसे में सरकार के लिए यह जरूरी है कि मानव तस्करी से जुड़े अपराधों के लिए देश में ज्यादा कठोर दंड के प्रावधान किए जाएं।
भारत में मानव तस्करी की समस्या में लाखों लोगों से गुलामी या बेगारी या मजदूरी करवाना सबसे अहम है। पुरुषों, महिलाओं और बच्चों से ऋण ना चुका पाने की स्थिति में ऐसे काम लिए जाते हैं और उनसे जबरन ईंट-भट्टों, चावल मिल, कृषि और कशीदाकारी का काम करवाया जाता है। जहां काम के साथ-साथ उनका यौन शोषण और शारीरिक एवं मानसिक शोषण भी किया जाता है।
अभी कुछ दिनों पहले दिल्ली की सड़क पर हुए सामूहिक बलात्कार और हरियाणा के एक आश्रयगृह की महिलाओं और बच्चों का यौन और शारीरिक शोषण जैसी घटना ने सरकार के सारे कानूनों की धज्जियां उड़ा कर रख दी। हरियाणा के पना घर नाम के आश्रयगृह मामले में तो राज्य पुलिस भी कथित तौर पर संलग्न थी।
पहले इस धारा में उर्द्धत था कि जो कोई एक शख्स को बतौर दास आयात, निर्यात, हटाता, खरीदता, बेचता अथवा दान देता है, अथवा दास बनाकर रखता है, उसको सात साल तक की जेल हो सकती है। ये संशोधन दंड संहिता के कानूनी बदलावों का एक हिस्सा था, जिसका उद्देश्य महिलाओं के खिलाफ अपराधों से निपटने हेतु भारतीय कानूनों में सुधार करना था।
मानव सस्करी भारत में 8 मिलियन अमेरिकी डॉलर तक का एक अवैध व्यापार हो गया है। हर साल लगभग 10,000  नेपाली महिलाएं कीमत देकर यौन शोषण के लिए भारत लाई जाती हैं। हर साल लगभग 20 से 25 हजार महिलाओं और बच्चों की बांग्लादेश से अवैध तस्करी हो रही है।वर्तमान समय में विश्व के बहुत से देशों को जिन चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है उनमें से एक, मानव तस्करी की समस्या है। विश्व स्तर पर प्रकाशित होने वाले कुछ आंकड़ों की माने तो पूरे विश्व में ढाई करोड़ से अधिक लोग, मानव तस्करी की भेंट चढ़ चुके हैं। बच्चों को भीख और चोरी जैसे काम के लिए तथा महिलाओं को यौन व्यापार तथा घरों में काम करने और पुरुषों को औद्योगिक केन्द्रों तथा अत्यधिक कठिन व हानिकारक कामों के लिए मानव तस्करी का शिकार बनाया जाता है। मानव तस्करी का सबसे अधिक कष्टकारक पहलू यह है कि अधिकांश मामलों में लोग स्वेच्छा से इसके लिए तैयार हो जाते हैं और उन्हें इसके परिणामों के बारे में सही जानकारी नहीं होती। संयुक्त राष्ट्रसंघ की रिपोर्ट पर गौर करे तो इतने अंकुश के बावजूद प्रत्येक वर्ष लगभग 40 लाख लोग मानव तस्करी की भेंट चढ़ जाते हैं। भारत में राजधानी दिल्ली में मानव तस्करी के बढ़ते मामलों के मद्देजनर सरकार ने सभी राज्यों में मानव तस्करी निरोधक सेल तथा हेल्पलाईन सेवा शुरू की है। नियंत्रण सेल को खोलने का एकमात्र मकसद यही है कि मानव तस्करी की घटनाओं को किसी तरह नियंत्रित किया जा सके। इसके लिए पुलिस विभाग द्वारा जनप्रतिनिधियों, अधिवक्ताओं, पत्रकारों व आमजनों से सहयोग लिया जा रहा है। सेल के लिए अलग से टोल फ्री फोन नंबर लगाए गए है, जिस पर फोन करके मानव तस्करी से संबंधित कोई भी सूचना दी जा सकती है। विश्व में बढ़ती मानव तस्करी की घटनाओं को रोकने के लिए वर्तमान में भारत ही नहीं, बल्कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी प्रयास जारी हैं, लेकिन इसके साथ ही अंतर्राष्ट्रीय नियमों को तहत इस अमानवीय व्यापार को रोकने के लिए कड़े प्रावधान व दंड की जरूरत है।

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