मंगलवार, 30 अगस्त 2011

जनलोकपाल आखिर जीत लोकतंत्र की


(गंगेश कुमार ठाकुर)





अन्ना तुम संघर्ष करो हम तुम्हारे साथ हैं, के नारों से जब देश का कोना-कोना गुंजायमान हो गया, तब केन्द्र सरकार की नींद खुली । 42 वर्षों से संसद के गर्भ में सो रहा लोकपाल बिल जनता की मांग बनकर जनलोकपाल बिल के रूप में सरकार के आगे मंडराने लगा । अन्ना के दुसरे आह्वान के बाद जो जनसैलाब उमड़ा उस जनसैलाब का बस एक ही मकसद था, देश को भ्रष्टाचार से मुक्त कराना । इस आंदोलन की कमान अन्ना एवं उनकी सिविल सोसायटी के कार्यकर्त्ताओं के हाथ में थी । 16 अगस्त से शुरू अन्ना के इस आन्दोलन ने आखिरकार अपना असर दिखाया और 27 अगस्त को अन्ना और देश की जनता को इस आंदोलन से अप्रत्याशित सफलता हाथ लगी । 36 वर्ष पहले जयप्रकाश नारायण के आंदोलन में भी यही मुद्दा आम जनभावना के रूप में उभर कर सामने आया था, और तात्कालिन कांग्रेस सरकार के हाथ से सत्ता खिसक गई थी ।






इस आंदोलन की खासियत यह रही की इसकी अगुआई करने वाला व्यक्ति किसी राजनीतिक पार्टी का नुमाइंदा नहीं बल्कि एक 74 साल का आम भारतीय नागरिक था । सरकार ने आंदोलन के शुरूआत में हीं अन्ना को गिरफ्तार कर अपने पैर पर कुल्हाड़ी मारने का काम कर लिया, क्योंकि सरकार नहीं समझ पाई थी की एक आम नागरिक के आह्वान पर देश की आवाम इस तरह उसके साथ खड़ी हो जायेगी । देश की जनता ने इस आंदोलन में जिस शांति और संयम का परिचय दिया उसने अन्ना के इस आंदोलन और अनशन को सचमुच सत्याग्रह का रूप दे दिया ।







इस आंदोलन में जहां देश की तमाम जनता अन्ना के साथ थी, वहीं कुछ राजनीतिक पार्टीयों ने अपने स्वार्थ के लिए ही सही सरकार का खुलकर विरोध किया और अन्ना के आंदोलन को सही ठहराया । अन्ना के इस आंदोलन की शुरूआत देश की राजधानी दिल्ली से हुई और यहां से होते हुए यह आंदोलन देश के गली, मुहल्ले, सड़कों तक में भारत माता की जय, वंदे मातरम् जैसे नारों और हाथ में लहराते तिरंगे के साथ विशाल काफिले में बदलती चली गई, जिसकी कल्पना शायद सरकार भी नहीं कर पाई थी । इतने बड़े जनआंदोलन को देखकर सरकार समझ गई कि गलती से हीं सही उसने अन्ना को गिरफ्तार करवाकर कुल्हाड़ी पर पैर दे मारा है । सरकार यह भी जानती थी कि हर विरोध एक दिन विद्रोह का रूप ले लेती है जिसका स्पष्ट अनुमान सरकार को मिस्त्र, युगांडा, लीबिया, बहरीन, यमन जैसे कई देश के ताजा जनविरोधों से लग चुका था, यह अलग बात है कि इन देशों में लोकतांत्रिक व्यवस्था नहीं थी, लेकिन यहां जनविरोध का कारण लोकतंत्रीय व्यवस्था को स्थापित करना था ।





सरकार के सामने सबसे बड़ी चुनौती थी देश की जनता को भ्रष्टाचार से मुक्ति दिलाने की, सरकार के पास इसका कोई वैकल्पिक रास्ता नहीं था, और अन्ना के सिविल सोसायटी ने अगर सरकार को इससे निपटने के लिए जनलोकपाल का रास्ता दिखाया भी तो सरकार इनके कुछ मुद्दों से इत्तफाक नहीं रखती थी । आनन-फानन में सरकार ने अन्ना के जनलोकपाल बिल से अलग एक सरकारी लोकपाल बिल बनाकर संसद की स्टेंडिंग कमेटी के पास भेज दिया, क्योंकि कोई भी पार्टी देश में सशक्त लोकपाल के पक्ष में नहीं थी । अन्ना के आंदोलन ने देश भर की जनता को सरकार के इस मनसूबे से अवगत करा दिया, चूंकि भ्रष्टाचार देश की हर व्यवस्था में दीमक की तरह लग चुका है, इसलिए हरेक राजनीतिक पार्टीयों को सशक्त लोकपाल के आ जाने के नाम से हीं खतरा महसूस होने लगा था । सरकार प्रधानमंत्री को जनलोकपाल के दायरे से बाहर रखने की बात कर रही थी, सरकारी कर्मचारियों के सभी वर्गों को भी सरकार इसके दायरे में नहीं लाना चाहती थी, जबकि जनता को स्पष्ट पता है कि भ्रष्टाचार यहीं से शुरू होता है, ऐसे में अन्ना के साथ मिलकर जनता ने सरकारी लोकपाल का विरोध करना शुरू कर दिया ।







सरकार और अन्ना के बीच इन्हीं मुद्दों को लेकर सरकारी लोकपाल बनाम जनलोकपाल की तकरार शुरू हो गई । कई उतार-चढ़ावों के बीच से गुजरते, और अन्ना के 12 दिनों के अनशन के बाद संसद के दोनों सदनों में जनलोकपाल के उन मुद्दों पर लंबी बहस चली जिस पर जनलोकपाल सिविल सोसायटी और सरकार आमने सामने खड़े थे । अंतत: 40 पार्टीयों वाली मौजूदा संसद ने जनलोकपाल के उन मुद्दों को अपनी स्वीकृति प्रदान कर दी जिन को मानने से सरकार इनकार करती रही, संसद का यह ऐतिहासिक फैसला जनता के लिए उसकी जीत का जश्न मनाने का पैगाम लेकर आया । जनता के संघर्ष और इस जीत से यह स्पष्ट हो गया है कि लोकतंत्र में जनता ही संप्रभू है । हलांकि, यह सही है कि जनता को अन्ना के साथ किये गये संघर्ष का सकारात्मक परिणाम मिला है, लेकिन यह जनता कि आधी जीत है । सबसे बड़े लोकतांत्रिक व्यवस्था वाले इस देश में जनता की मांगों का संसद ने जो सम्मान किया है, इससे संसद की गरिमा निश्चित रूप से दोगुनी हुई है इसमें कोई शक नहीं है, भारतीय संसद के ऐसे ऐतिहासिक फैसले को लोकतंत्र की जीत के रूप में देखना बिल्कुल उचित होगा ।
........................................(गंगेश कुमार ठाकुर )

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