बुधवार, 7 अगस्त 2013

राजनीतिक बांसुरी पर देश की सुरक्षा का बेसुरा राग

http://boljantabol.com/2013/08/08/homeland-security/
आर्थिक, सामरिक, राजनीतिक और सामाजिक सभी तरह से कमजोर होने और भारत से चार बार जंग हारने के बाद भी पाकिस्तान के पास आखिर कहां से इतनी ताकत आ गई है कि वह रह-रहकर भारत की सीमा में घुसने की कोशिश करता है। साथ ही यहां की सैन्य व्यवस्था को चौपट करने और भारत को युद्ध के लिए उकसाने की ताक में पाकिस्तान हमेशा आगे रहता है। यही हाल भारत के दूसरे पड़ोसी देश चीन का भी जो भारत की सीमा में घुसता चला आ रहा है और इतना ही नहीं पाकिस्तान भी कहीं न कहीं चीन की सह पर ही भारत के साथ इस तरह का व्यवहार करने की कोशिश कर रहा है। अमेरिका के साथ भी पाकिस्तान के रिश्ते काफी अच्छे हैं और पाक को अमेरिका भी अलग-अलग तरह से इस तरह की कार्रवाई के लिए अपनी सह देता रहता है। भारत से चार बार हार का मुंह देखने के बाद भी पाकिस्तान अगर इतनी जुर्रत कर पा रहा है तो उपरोक्त चीजें इसके लिए जिम्मेवार हैं। पाकिस्तान हर बार सीमा का उल्लंघन करने के बाद इसका दोष भारत के सर पर मढ़ता रहता है और वह कभी यह मानने को तैयार नहीं होता कि भारत की सीमा में घुसकर इस तरह के नापाक कार्रवाई में उसके सैनिक शामिल हैं। अभी कुछ महीने पहले पाकिस्तानी सैनिकों ने भारत की सीमा में घुसकर भारतीय सेना के दो जवानों की हत्या कर दी और उसका सर लेकर गायब हो गए पाकिस्तान ने फिर भी इसके लिए भारतीय सेना को ही दोषी ठहराया। अभी हाल में पाकिस्तान में आम चुनाव हुआ है और वहां प्रधानमंत्री के रूप में सत्ता पर नवाज शरीफ आसीन हुए हैं। नवाज के सत्ता संभालने से भारत को उम्मीद जगी थी कि भारत और पाक के रिश्ते शायद सुधरेंगे लेकिन पिछले एक महीने में पाकिस्तान ने भारत की सीमा में सात बार घुसपैठ करने की नाकाम कोशिश की कुछ दिन पहले भारतीय सेना की एक चौकी पर हमला कर पाक सेना के जवानों ने बिहार रेजिमेंट के पांच जवानों की हत्या कर दी। लेकिन भारत सरकार के उच्चायुक्त और सेना प्रमुख ने जब पाकिस्तान से इस कार्रवाई की बात पर नाराजगी जताई तो उलटा चोर कोतवाल को डांटे वाले फार्मूले पर चलते हुए पाकिस्तान ने अपनी सेना द्वार किए गए इस कार्रवाई से इनकार ही नहीं किया बल्कि यहां तक कह दिया कि भारतीय सेना के जवानों ने ही पाक सीमा पर गोलीवारी की जिसमें पाक सेना के दो जवान घायल हो गए। पाकिस्तान ने भारत पर सीजफायर के लगातार उल्लंघन का आरोप लगाते हुए भारतीय सेना पर हुए हमले से साफ इंकार कर दिया।
पाकिस्तानी सेना द्वार लगातार किए जाने वाले हमले का जबाव नहीं दे पाने के पीछे भारतीय सेना की अपनी मजबूरी है। सेना के जवानों को इसका जबाव देने से पहले कई तरह की मंजूरी लेनी पड़ती है और मंजूरी के साथ आदेशों का पालन भी करना पड़ता है। इसमें रक्षा मंत्रालय के अफसरों से लेकर सेना के अफसरों और सरकार तक को लोग शामिल रहते हैं। पाकिस्तानी सेना का मामला इससे अलग है। वहां सेना को कई मामलों में सरकार से इजाजत लेने की जरूरत नहीं पड़ती है। पाकिस्तान में सेना जब चाहे सरकार का तख्तापलट कर अपनी सत्ता स्थापित कर लेती है। यहां सेना की सत्ता सरकार के समानातंर चलती है। पाकिस्तान में अब तक ग्यारह  राष्ट्रपति हुए हैं जिनमें से पांच पाकिस्तानी सेना के जनरल थे। इनमें से चार ने सरकार का तख्तापलट कर अवैध रूप से सत्ता पर कब्जा किया था।
दक्षिण एशिया के देशों में भारत का आर्थिक समृद्ध होना और  सैन्य ताकतों से लैस होने से सिर्फ पाकिस्तान ही नहीं चीन भी घबराता है। इसलिए चीन कभी खुले तौर पर तो कभी छुपकर पाक को भारत के खिलाफ कार्रवाई करने में मदद देता है। भारत और कश्मीर के लिए नवाज शरीफ की नीतियां हमेशा से आक्रमक रही हैं। उन्हीं के शासनकाल में करगिल पर हमला हुआ था और अब पाकिस्तान के प्रधानमंत्री बनने के बाद सीमा पर पाकिस्तान की ओर से आतंकी, घुसपैठ और सेना की कार्रवाइयों में तेजी आई है।
पाकिस्तान की सेना केवल इस तरह की कार्रवाई को अकेले अंजाम नहीं दे रही है बल्कि पाकिस्तान अलगाववादी और चरमपंथी ताकतों के इस्तेमाल भी इस तरह की कार्रवाई में भारत के खिलाफ कर रहा है। पाकिस्तान की ओर से केवल सीमा पर ही नहीं सीमा के अंदर घुसकर भी कई बार आतंकी वारदातों को अंजाम दिया गया है। मुंबई में हुए हमले के बाद भारत जिस तरह से पाकिस्तान को घेरने में नाकाम रहा उसके बाद से पाकिस्तान के हौसले और भी बुलंद हो गए और तब से अबतक पाकिस्तान देश के भीतर और सीमा पर अपनी नापाक हरकतें लगातार दोहराता आ रहा है।
ये हमारे देश के सुरक्षा नियमों के पंगुपन का ही नतीजा है कि आज हमारे देश की सीमा सुरक्षित नहीं है। एक तरफ लगातार पाकिस्तान हमें उकसाने की कोशिश कर रहा है तो दूसरी तरफ चीन भी ऐसी हरकतों से बाज नहीं आ रहा। पाकिस्तान भारत को हमेशा से बांग्लादेश विभाजन के लिए दोषी मानता है और आज भी उसकी नजर भारत से अपने इस अपमान का बदला लेने पर टिकी हुई है। बांग्लादेश के अलग होने और पाकिस्तान द्वारा युद्ध हारने के बाद भारत एक शानदार सैन्य जीत को अपनी राजनीतिक जीत में नहीं बदल सका। उस समय करीब 93 हजार  पाकिस्तानी सैनिक भारत के पास बंदी थे। अगर भारत चाहता तो शिमला समझौते में कश्मीर विवाद का निपटारा तब तरीके से किया जा सकता था। लेकिन भारत इस जीत का कूटनीतिक फायदा उठाने में नाकाम।
 पाकिस्तान द्वारा किए जा रहे इस नापाक हमले में भारत सरकार के नुमाइंदे देश के हित में कम और राजनीतिक लाभ के लिए इस मामले को ज्यादा तुल पकड़ाने में लगे हुए हैं। मामला आतंकवाद और राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ा हुआ भी हो तो भी हमारे नेता इसमें राजनीतिक नफा-नुकसान की बात सोचने से बाज नहीं आते। जम्मू-कश्मीर के पुंछ में पांच भारतीय सैनिकों की हत्या के बाद जो बात सामने आई वह इसका ताजा और स्पष्ट उदाहरण है। बीजेपी ने जहां लोकसभा और राज्यसभा में रक्षा मंत्री के बयान पर जमकर हंगामा किया वहीं कांग्रेस ने आंकड़े के जरिए यह साबित करने की कोशिश की कि एनडीए के शासनकाल में ज्यादा लोग और सैनिक आतंकवादी घटना के शिकार हुए। रक्षा मंत्री एंटनी संसद में अपने बयान में पाकिस्तानी सेना का बचाव करते सुने गए और हमले में शामिल लोगों को पाकिस्तानी सेना की वर्दी में बताया। संसद में जब इस मुद्दे पर यूपीए सरकार घिरने लगी तो बचाव के लिए कांग्रेस महासचिव और मीडिया विभाग के प्रमुख अजय माकन सोशल नेटवर्किंग साईट ट्विटर पर बचाव का पक्ष और आंकड़ों का विज्ञान लेकर सामने आ गए उन्होंने बीजेपी की तरफ निशाना साधकर लिखा कि  जवानों की हत्या पर आज बीजेपी बोल रही है, लेकिन उसे अप्रैल 2001 में बांग्लादेश की सीमा पर 16 बीएसपी जवानों की मौत को याद करना चाहिए। 1998-2004 के बीच जम्मू कश्मीर में 6115 नागरिकों की हत्या हुई। यानी औसतन 874 सालाना मौत हुई। यूपीए सरकार के समय में पिछले साल सिर्फ 15 लोगों की मौत हुई है, जो कि दो दशक में सबसे कम है। एनडीए के शासनकाल में जम्मू-कश्मीर में कुल 23,603 आतंकी घटनाएं हुईं यानी औसतन 3,372 हर साल, जबकि यूपीए के अंदर पिछले साल 220 आतंकी घटनाएं हुईं। पिछले दो दशक में सबसे कम। अजय माकन ने आखिर में ट्वीट पर लिखा कि अगर इन आंकड़ों को देखा जाए तो यह साफ हो जाता है कि हमारी सरकार सुरक्षा को लेकर कितनी गंभीर है। राज्यसभा में विपक्ष के नेता अरुण जेटली ने इस ट्विट के जबाव में कहा कि, क्या अब हम 1962 तक जाएंगे या फिर यह बताएंगे कि कांग्रेस के शासनकाल में जम्मू-कश्मीर के काफी बड़े हिस्से पर पाकिस्तान और चीन ने कब्जा कर लिया है। भारत में बार-बार हो रहे आतंकवादी हमले और सीमा पर की जा रही घुसपैठ की कोशिश और मारे जा रहे सैनिकों के सवाल को जब तक राजनीतिक रंग में रंगा जाएगा पाकिस्तान और चीन इसी तरह से भारत को उसके घर में और उसकी सीमा में पहुंचकर क्षति पहुंचाता रहेगा। देश की आंतरिक और बाहरी सुरक्षा के मामले में अगर राजनीतिक से अलग देश की सेवा और शांति के भाव से नहीं सोचा गया तो जल्द ही देश को चीन और पाकिस्तान से एक और लड़ाई के लिए तैयार रहना पड़ेगा अभी पांच और दस की संख्या में सेना के जवान मारे जा रहे हैं तब शायद देश को लाखों की संख्या में अपने सैनिकों की बलि चढ़ानी पड़े।

2 टिप्‍पणियां: