सोमवार, 1 फ़रवरी 2010

देश को ये क्या हो गया है ?

लाशो के ढेरो पर,
अग्नियो के फेरो पर,
राजनीतिको के डेरो पर,
अदालती कटघरों पर,
न्याय मानो सो गया हो,
देश को ये क्या हो गया है ?
जन-जन में आग लगी है,
कुआ सारा सुख रहा है,
अँधेरा राज्य छा गया है,
देश को ये क्या हो गया है ?
आंख भी न खुल रही है,
अत्याचार जोरो से चल रहा है,
किसी पर न विश्वास रहा है ,
देश को ये क्या हो गया है ?
राजनीती तो bd रही है ,
नयी कहानी गद रही है ,
महंगाई सर पर च रही है ,
लोकतंत्र किताबो में सद रही है ,
ये हाल यहाँ का हो रहा है ,
देश को ये क्या हो रहा है ?
घर-घर युद्ध का मैंदान है ,
आतंकवाद का बड़ता पायदान है,
देश की स्म्रिधि बिक रही है,
कलम इतिहास नई लिख रही है ,
देश को ये क्या हो गया है ?

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