शनिवार, 19 फ़रवरी 2011

पाकिस्तान और भारत की आजादी के 63 साल






पाकिस्तान और भारत ने अपनी आजादी के 63 वीं वर्षगांठ मना ली है, लेकिन इन 63 सालों में दोनों मुल्कों के सामाजिक परिदृश्य में जो बदलाव आया है उसकी विवेचना करने के बाद ही पता चल जाता है कि पाकिस्तान का समाज आज भी कितनी बुरी तरह से धार्मिक कट्टरवादिता का शिकार है या यूँ कहें की रूढ़िवाद ने पाकिस्तान की सामाजिक व्यवस्था की रीढ़ तोड़ ड़ाली है। इन 63 वर्षों में भारत तो धर्मनिरपेक्ष देश ही बना रहा लेकिन इस लंबे समयांतराल में पाकिस्तान न तो कभी धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र था और न ही उसकी सामाजिक दिशा-दशा से ऐसा महसूस होता है कि वह कभी धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र बन सकेगा।
4 जनवरी 2011 को पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के गवर्नर सलमान तासिर की हत्या उनके अंगरक्षक मुमताज हुसैन कादरी द्वारा 29 गोली मारकर कर दी जाती है। वो भी बस इस लिए क्योंकि पाकिस्तान में ईश निंदा कानून के विवाद को तूल देने के कारण पाकिस्तान की अदालत द्वारा मौत की सजा सुनाई गयी महिला आसिया बीबी के बचाव में सलमान तासीर आ खड़े हुए थे।सलमान तासीर ईश निंदा कानून को ‘काला कानून’ बताते हुए इसे निरस्त करने की मांग कर रहे थे।तासीर के मुताबिक यह कानून देश में अल्पसंख्यकों को परेशान करने में इस्तेमाल किया जा रहा था। तासीर की हत्या से भी बड़ी बात तो यह रही कि उसको दफनाने के वक्त जनाजे की नमाज अदा करने वाला एक भी मौलवी नहीं था। जबकि तासीर के जनाजे में लोगों की कोई कमी नहीं थी। जीते जी तो तासीर कठमुल्लों की फौज का विरोध करते और सहते रहे लेकिन मरने के बाद भी यह विरोध जारी रहा। यह पाकिस्तान की दहशतगर्दी का वह खौफनाक चेहरा है जिसे पूरी दुनियाँ जानती है। इन दहशतगर्द ताकतों का निशाना कभी-कभी भारत भी होता है लेकिन भारत को अभी तक इस वजह से कोई बड़ा नुकसान नही हुआ है।
इससे अलग कट्टरपंथी लोग सलमान तासीर की मौत पर जश्न मना रहे थे।तासीर की हत्या करने वाले कादरी को जब अदालत में लाया गया तो उसका स्वागत गुलाब की पंखुड़ियों से किया गया। अदालत के अन्दर कादरी पर फूल की वर्षा की जा रही थी और लोग कादरी को चूमने के लिए उछल रहे थे।
आज का पाकिस्तान, यहॉ के करप्ट नेता, अमेरिकी पैसे पर पलने वाली सेना और कट्टरपंथी विचारधारा वाले लोगों द्वारा चलाया जा रहा है।ऐसे में आजादी के 63 सालों के संघर्ष के बाद भी पाकिस्तान एक नाकाम मुल्क बनकर रह गया है।ऐसा नहीं है कि केवल सलमान तासीर ही पाकिस्तान में कट्टरपंथी गोली के शिकार हुए हैं बल्कि 63 सालों में पाकिस्तान में बड़े-छोटे सोलह राजनीतिक कत्ल हो चुके हैं।यह पाकिस्तान में बढ़ती दहशतगर्दी और देश की नाकाम राजनीतिक व्यवस्था का सूचक नहीं है तो और क्या है?
जहॉ भारत में आजादी के 63 सालों में गोली का जबाब मोमबत्ती से देने की परंपरा चल पड़ी है वहीं पाकिस्तान में कट्टरपंथी बंदूक और बमों को ज्यादा तादाद में अपना रहे हैं।इसका एक खास कारण भी है कि भारत में उदारवादी और आधुनिकतावादी विचारधारा रखने वाले मध्यमवर्गीय लोग काफी तादाद में हैं, पाकिस्तान में मध्यमवर्गीय लोगों का अभाव आज भी है। ऐसे में मध्यमवर्गीय लोग जो किसी भी देश की राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक धरातल तय करते हैं उनके न होने से या नाम मात्र होने से देश में कट्टरपंथी और रूढ़िवादी विचारधारा अपना जड़ मजबूत कर हीं लेगा। पाकिस्तान के साथ भी कुछ ऐसा हीं हुआ है। ऐसा नहीं है कि पाकिस्तान के हालात हमेशा से ऐसे हीं हैं। पाकिस्तान धर्मनिरपेक्ष देश तो कभी नहीं रहा लेकिन जुल्फिकार अली भुट्टो के शासन काल तक यह इतना कट्टर देश भी नही था।तानाशाह ज़िया उल हक के समय में जब पाकिस्तान को संपूर्ण इस्लामिक देश बनाने की मुहिम ने जोर पकड़ा तो देश में कठमुल्लों की फौज पनपने लगी। इसके बाद से हालात बिगड़ते गये और धीरे-धीरे सरकार के समकक्ष एक और व्यवस्था आ खड़ी हुई जिसे दहशतगर्द कहा जाता है हॉ वही कठमुल्लों की फौज। जो पाकिस्तान की सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक, धार्मिक और न जाने कितनी हीं चीजों की दिशा और दशा तय करने लगे हैं।
इससे अलग भारत में अगर चंद सिरफिरे लोग बंदूक या बम उठा भी लें तो ज्यादा फर्क नही पड़ता क्योंकि यहॉ उदारवादी विचारधारा ने अपना जड़ जमा रखा है। लेकिन पाकिस्तान में इन विचारधाराओं के संग जीने वाले चंद मुट्ठी भर लोग हैं जो इन कठमुल्लों द्वारा मार दिये जाते हैं या सरकार इनकी आवाज को दबा देती है।ऐसे में भारत जहॉ आज विश्व पटल पर एक ताकतवर शक्ति बनकर उभर रहा है वहीं पाकिस्तान में एक दूसरी धारा के शासन का वर्चस्व बढ़ता जा रहा है। अगर आने वाले समय में भी पाकिस्तान जैसे परमाणु शक्ति समपन्न देश की यही स्थिती रही तो दक्षिण एशिया ही नही पूरे विश्व के लिए यह मुल्क खतरा बन जायेगा।
पाकिस्तान और भारत की सामाजिक व्यवस्था का केवल यही तुलनात्मक तरीका नही है लेकिन इन दोनों देशों की केवल इसी तरह से तुलना करना इसलिए भी जरूरी है क्योंकि आने वाला समय पाकिस्तान के रूप में एक काल बनकर विश्व पटल पर नाचने वाला है। केवल भारत ही नही बल्कि विश्व का हर वो देश जो इस तरह की कट्टरपंथी और तानाशाही विचारधारा का विरोध करता है उसे एक दिन शायद पाकिस्तान की इस कट्टरपंथी विचारधारा के कारण उससे टकराने पर मजबूर होना पड़ेगा।


--------------------------------------------------------------(गंगेश कुमार ठाकुर):

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