सोमवार, 28 फ़रवरी 2011

देश को ये क्या हो गया है ?











लाशों के ढेरों पर,
अग्नियों के फेरों पर,
राजनीतिको के डेरों पर,
अदालती कटघरों पर,
न्याय मानो सो गया हो,
देश को ये क्या हो गया है ?
जन-जन में आग लगी है,
कुआँ सारा सुख रहा है,
अँधेरा राज्य छा गया है,
देश को ये क्या हो गया है ?
आंख भी न खुल रही है,
अत्याचार जोरों से चल रहा है,
किसी पर न विश्वास रहा है ,
देश को ये क्या हो गया है ?
राजनीती तो बढ़ रही है ,
नयी कहानी गढ़ रही है ,
महंगाई सर पर चढ़ रही है ,
लोकतंत्र किताबो में सड़ रही है ,
ये हाल यहाँ का हो रहा है ,
देश को ये क्या हो गया है ?
घर-घर युद्ध का मैदान है ,
आतंकवाद का बढ़ता पायदान है,
देश की समृधि बिक रही है,
कलम इतिहास नई लिख रही है ,
ये हाल यहाँ का हो रहा है,
देश को ये क्या हो गया है ?


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