बुधवार, 23 मार्च 2011

चाहत















वो रास्ते का फूल, ये प्रेम की गली,
अच्छा हुआ जिन्दगी की, नाव चल पड़ी,





समझा के उनको देखा, तो आँख उनकी नम थी,
साहिल पे मैं खड़ा था, जिन्दगी बेदम थी,





रूसवाइयों का ड़र था, एहसास के सफर में,
संग में थी संगिनी, वो भी रंगे हिना में रंगी,





वो चाहते थे चाहत को, चाहतों का नाम दे दे,
चाहत भी कम जालिम नहीं, आया इल्जाम की सूरत में,





--------------------------------------------(गंगेश कुमार ठाकुर)



कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें