ऐसा देश है मेरा के माध्यम से मैं आप तमाम पाठक से जुड़ने की भरपुर कोशिश कर रहा हूँ चूँकि मैं इस जगत में आपका नया साथी हूँ इसलिए आशा करता हूँ कलम के जरिये उभरे मेरे भावना के पुष्पों को जो मैं आपके हवाले करता हूँ उस पर अपनी प्रतिक्रिया के उपहार मुझे उपहार स्वरूप जरूर वापस करेंगे ताकि मैं आपके लिए कुछ बेहतर लिख सकूँ। ..................................आपकी टिप्पणियों की प्रतीक्षा में ...........................................आपका दोस्त """गंगेश"""
बुधवार, 23 मार्च 2011
चाहत
वो रास्ते का फूल, ये प्रेम की गली,
अच्छा हुआ जिन्दगी की, नाव चल पड़ी,
समझा के उनको देखा, तो आँख उनकी नम थी,
साहिल पे मैं खड़ा था, जिन्दगी बेदम थी,
रूसवाइयों का ड़र था, एहसास के सफर में,
संग में थी संगिनी, वो भी रंगे हिना में रंगी,
वो चाहते थे चाहत को, चाहतों का नाम दे दे,
चाहत भी कम जालिम नहीं, आया इल्जाम की सूरत में,
--------------------------------------------(गंगेश कुमार ठाकुर)
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