ऐसा देश है मेरा के माध्यम से मैं आप तमाम पाठक से जुड़ने की भरपुर कोशिश कर रहा हूँ चूँकि मैं इस जगत में आपका नया साथी हूँ इसलिए आशा करता हूँ कलम के जरिये उभरे मेरे भावना के पुष्पों को जो मैं आपके हवाले करता हूँ उस पर अपनी प्रतिक्रिया के उपहार मुझे उपहार स्वरूप जरूर वापस करेंगे ताकि मैं आपके लिए कुछ बेहतर लिख सकूँ। ..................................आपकी टिप्पणियों की प्रतीक्षा में ...........................................आपका दोस्त """गंगेश"""
रविवार, 8 मई 2011
महफिल
वो रंज़ो गम का असर मेरे अंदर देख रहे थे,
हम फिर भी उनकी तरफ गुलाब फेंक रहे थे,
ख्वाबों में उनको छुपाना मुमकिन नहीं था,
हम फिर भी तिरछी निगाहों से उनकी तस्वीर देख रहे थे......
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वो समझा रहे थे उनको जो महफिले हुस्न थे ,
हमे चेहरे पे उनके मासूम अदा की तलाश थी,
साथ था महफ़िल का शोर ज़िन्दगी की तन्हाई भी थी,
हम बावफा समझ बैठे उन्हें जो बदमिजाज़ थे,
गर बेवफाई रास न आती उन्हें वो वफादार हो जाते,
वो बेवफा हो गए जो महफिले बहार थे,
सौगंध थी उनकी वफ़ा का जिसका ज़वाब नहीं था,
हम वफादार कैसे होते हम वफ़ा के गिरफ्तार थे।
.........................(गंगेश कुमार ठाकुर)
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