ऐसा देश है मेरा के माध्यम से मैं आप तमाम पाठक से जुड़ने की भरपुर कोशिश कर रहा हूँ चूँकि मैं इस जगत में आपका नया साथी हूँ इसलिए आशा करता हूँ कलम के जरिये उभरे मेरे भावना के पुष्पों को जो मैं आपके हवाले करता हूँ उस पर अपनी प्रतिक्रिया के उपहार मुझे उपहार स्वरूप जरूर वापस करेंगे ताकि मैं आपके लिए कुछ बेहतर लिख सकूँ। ..................................आपकी टिप्पणियों की प्रतीक्षा में ...........................................आपका दोस्त """गंगेश"""
शुक्रवार, 9 सितंबर 2011
रात की बारिश
रात को नींद ने
आँखों पर दस्तक देना शुरू किया
अचानक
सरसराती हवा की आवाज
और टिप-टिप बारिश की बूंदों ने
मुझे उठकर
खिड़की से बाहर झाँकने पर
विवश कर दिया
रात भर मैं
इसी ख्वाहिश में
जागता रहा कि
अगर सुबह तक
बारिश यूँ ही होती रही
तो इसमें छप्पा खेलूँगा
बारिश के देवता ने
मेरी ये फ़रियाद सुन ली
सुबह तक बारिश
बिना अवरोध के जारी रहा
मैंने आँखों-आँखों में
सारी रात गुजार दी
इसलिए निकल आया
अपने छत पर
छप्पा खेलने
बारिश के जमे पानी
और आसमान से गिरते बूँदों के बीच
छत पर आया तो हैरान था
पेड़-पौधे फूल और कलियाँ सभी
आकाश की तरफ सर उठाये
स्वागत कर रहे थे बरसात का
सुबह की मद्धिम धूप में
अपनी ऊंघ तोड़ने वाले ये
पूरी रात नहीं सोये थे
मुझे लगने लगा
पूरी रात कमरे के अंदर रहकर
मैंने बहुत कुछ खो दिया
उसी नुकसान की भरपाई के लिए
बड़ी तन्मयता के साथ
छप्पा खेलने लगा मैं
सामने सड़क पर
गाड़ियों की गुर्र-गुर्र और पी-पी
समझ गया
बारिश देव की हीं मेहरबानी है
सड़कें पानीमय हो गई थी
कुछ लोग अपनी खिड़की और बालकनी से
दूसरी तरफ हाथ बढ़ाकर
अंदर खींच रहे थे अपना हाथ
और वैसे हीं आनंद ले रहे थे
बारिश के इस मंज़र का
जैसा आनंद मैं
छप्पा करके ले रहा था
गर्मी के तपन से
जलते तन के लिए
वरदान थी वो बारिश
लेकिन मेरे लिए
रात की वह बारिश
केवल बारिश नहीं थी़
उन बारिश की बूँदों में मेरे लिए
प्रेमिका का प्रेम था
माँ की ममता थी
पिताजी का दुलार था
और न जाने
कितने अनजान रिश्तों की
अबुझ सी, लेकिन सुखद छुअन थी ।
.........................(गंगेश कुमार ठाकुर)
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