सोमवार, 19 सितंबर 2011

ज़िंदगी को लिखा तो कर





संभावनाओं के बबंडर में तू क्यूँ उलझा है बेखबर
मंज़िल पास है देख उठाकर इधर बस एक नज़र
सोच को अपनी सरल कर और बस बढ़ता हीं जा
देख मंज़िल भागकर आयेगी तेरी तरफ किस कदर







हार के डर से घबराके जीना क्यूँ तुमने यूँ छोड़ा है
हार के जो जीत जाए वो है असली बाज़ीगर
मौत आ जाने के डर से तुमने खुशी क्यूँ छोड़ दी
आ जाऐ जो मौत तो दौड़कर इसे गले लगाया कर
मौत भी बेशर्म शरमा कर वापिस हो जाएगी
बख़्श देगी तुझे ज़िंदगी तू फ़िकर में वक्त न गंवाया कर







हवाओं का रूख बदलने की ताकत तुमने पाई है
आज़मा ले इसे अपनी कश्ती को भंवर में ड़ालकर
हाथ में पतवार है और जोश भरा है अंदर तेरे
तूफानों से लड़ने की एक पूरजोर कोशिश तो किया कर








तुमसे हीं दिन आवाद है रात तुमसे ही है हसीन
दिन की ख़ामोशी से रात के शोर से तू न घबराया कर
मातमों पर शेर लिख ज़िंदगी के गीत तू गा तो ले
लेखनी में ताकत आ जाऐगी तू ज़िंदगी को लिखा तो कर
................(गंगेश कुमार ठाकुर)

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