ऐसा देश है मेरा के माध्यम से मैं आप तमाम पाठक से जुड़ने की भरपुर कोशिश कर रहा हूँ चूँकि मैं इस जगत में आपका नया साथी हूँ इसलिए आशा करता हूँ कलम के जरिये उभरे मेरे भावना के पुष्पों को जो मैं आपके हवाले करता हूँ उस पर अपनी प्रतिक्रिया के उपहार मुझे उपहार स्वरूप जरूर वापस करेंगे ताकि मैं आपके लिए कुछ बेहतर लिख सकूँ। ..................................आपकी टिप्पणियों की प्रतीक्षा में ...........................................आपका दोस्त """गंगेश"""
मंगलवार, 8 नवंबर 2011
धरती के गर्भ में
हो गई है धरती
अब एकदम बांझ
मानो कोख उजड़ गई हो
किसी माँ की
और नहीं बन पाऐगी
वह माँ कभी
ऐसा महसूस
करने लगी है वह
नहीं फूटकर निकलता हैं
पौधा धरती के गर्भ से
चाहे उसके गर्भ में
कितनी हीं गहराई में
डाल दिया जाए दाना
उजड़ गये हैं खलिहान
सूख गई है क्यारियाँ
फट गई है ज़मीन बीचोंबीच
मानो सीता
समाना चाहती हो इसमें
उसी जमीन पर माथा टेके
पड़ा है एक बच्चा
झाँकना चाहता है
धरती के गर्भ में
देखना चाहता है
क्यूँ नहीं निकल रहा है
पौधा धरती के गर्भ से बाहर
पीछे बैठा गिद्ध
निहार रहा है
अपनी भूखी नज़र से
उस हाड़-माँस के लोथडे को
लेकिन वह पास नहीं जा रहा
लगता है उसे
ज़िंदा है वह शरीर
प्रकृति के नियमों से खेलना
बच्चा हो या बड़ा
सभी को भारी पड़ता है
धरती के गर्भ में
झाँकने की कोशिश ने
छीन ली है उसकी ज़िंदगी
आज धरती के साथ
एक और कोख
उजड़ गई है
ड़ाल गई है वो माँ
अपने सपूत को
उसी धरती के गर्भ में
इस उम्मीद के साथ
की कभी तो इस धरती की
कोख से निकलेगा
उनके लाल जैसा कोई पौधा
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