ऐसा देश है मेरा के माध्यम से मैं आप तमाम पाठक से जुड़ने की भरपुर कोशिश कर रहा हूँ चूँकि मैं इस जगत में आपका नया साथी हूँ इसलिए आशा करता हूँ कलम के जरिये उभरे मेरे भावना के पुष्पों को जो मैं आपके हवाले करता हूँ उस पर अपनी प्रतिक्रिया के उपहार मुझे उपहार स्वरूप जरूर वापस करेंगे ताकि मैं आपके लिए कुछ बेहतर लिख सकूँ। ..................................आपकी टिप्पणियों की प्रतीक्षा में ...........................................आपका दोस्त """गंगेश"""
गुरुवार, 1 दिसंबर 2011
तौबा करता हूँ कुछ सामानों से
तौबा करता हूँ कुछ सामानों से,
जैसे कि मैं तौबा करता हूँ ,
समाज के तुगलकी फरमानों से,
तौबा है जंगपसन्द इंसानों से,
तौबा है मुल्क की बर्बादी से,
तौबा है दुश्मन फरियादी से,
तौबा है दहशतगर्द वादी से,
तौबा है उफनते जज्बातों से,
तौबा है जलती बुझती साखों से,
तौबा है सत्ता के अंधे गलियारों से,
तौबा है कानून के झुठे खिदमतगारों से,
तौबा है झुठे रिश्ते नातेदारों से,
तौबा है इज्ज़त के सौदागरों से,
तौबा है देश के हर एक गद्दारों से,
तौबा है धर्म के ठेकेदारों से,
तौबा है पैसे के बने हारों से,
तौबा है जुर्म कर रहे हाथों से,
तौबा है भूखी नंगी आँखों से,
तौबा है खुन से सने हाथों से,
तौबा है बेवजह की बातों से,
तौबा है बारूद की उठती बू से,
तौबा है इंसानियत के बहते लहू से,
तौबा है गोलियों की माला से,
तौबा है अनसुलझी हर पहेली से,
तौबा है गदर फैलानेवाले गद्दारों से,
तौबा है जनता के झुठे खिदमतगारों से,
तौबा करता हूँ लाशों के व्यापारों से,
तौबा है मुफ्त की सौगातों से,
तौबा है अनछुए हर रिश्ते से,
तौबा है राजा रानी के किस्सों से,
तौबा है भटकते उलझते दरिंदों से,
तौबा है गरीबों से छिनते चंद दानों से,
तौबा है दुश्मनी के सभी सामानों से,
तौबा अगर नहीं करता हूँ तो बस,
दोस्त से, धरती माँ से, सुलझे रिश्तों से,
समाज से, देश से और अपनी सदभावना से।
.............................(गंगेश कुमार ठाकुर)
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें