गुरुवार, 1 दिसंबर 2011

तौबा करता हूँ कुछ सामानों से


तौबा करता हूँ कुछ सामानों से,
जैसे कि मैं तौबा करता हूँ ,
समाज के तुगलकी फरमानों से,
तौबा है जंगपसन्द इंसानों से,
तौबा है मुल्क की बर्बादी से,
तौबा है दुश्मन फरियादी से,
तौबा है दहशतगर्द वादी से,
तौबा है उफनते जज्बातों से,
तौबा है जलती बुझती साखों से,
तौबा है सत्ता के अंधे गलियारों से,
तौबा है कानून के झुठे खिदमतगारों से,
तौबा है झुठे रिश्ते नातेदारों से,











तौबा है इज्ज़त के सौदागरों से,
तौबा है देश के हर एक गद्दारों से,
तौबा है धर्म के ठेकेदारों से,
तौबा है पैसे के बने हारों से,
तौबा है जुर्म कर रहे हाथों से,
तौबा है भूखी नंगी आँखों से,
तौबा है खुन से सने हाथों से,
तौबा है बेवजह की बातों से,
तौबा है बारूद की उठती बू से,
तौबा है इंसानियत के बहते लहू से,
तौबा है गोलियों की माला से,
तौबा है अनसुलझी हर पहेली से,
तौबा है गदर फैलानेवाले गद्दारों से,










तौबा है जनता के झुठे खिदमतगारों से,
तौबा करता हूँ लाशों के व्यापारों से,
तौबा है मुफ्त की सौगातों से,
तौबा है अनछुए हर रिश्ते से,
तौबा है राजा रानी के किस्सों से,
तौबा है भटकते उलझते दरिंदों से,
तौबा है गरीबों से छिनते चंद दानों से,
तौबा है दुश्मनी के सभी सामानों से,
तौबा अगर नहीं करता हूँ तो बस,
दोस्त से, धरती माँ से, सुलझे रिश्तों से,
समाज से, देश से और अपनी सदभावना से।
.............................(गंगेश कुमार ठाकुर)

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