रविवार, 17 जून 2012

मैं और तुम ही तो हम हैं

हर रोज तुम और मैं

कल्पनाओं के अथाह सागर में

एक दूसरे के ख्यालों के सहारे

कितने गोते लगाते थे

रोज मैं और तुम मिलकर

कैसे हम हो जाते थे

मेरे और तेरे सपने भी

एक दूसरे से घुलते-मिलते थे

जैसे एक दूसरे के लिए बने हों

तुम्हारे भीतर हर दिन मैं

अपने भविष्य के पलने-बढ़ने की

कल्पना करता रहता था

तुम भी मेरे इन सपनों को

सार्थक रूप देने के लिए

मेरे साथ मिलकर सपनों में

हकीकत के भाव पैदा करती थी

आज जब मैं तुमसे

थोड़ा सा दूर हुआ हूं

पता है मेरे सपनों का महल

दरकने लगा है

तुम्हारे समझाने की तमाम कोशिशें

अब मेरे दिल को उदास कर देती हैं

सोचो मैंने और तुमने तो

अभी केवल सपनों का रंग भरा है इनमें

अगर हकीकत का रंग भर देते

तो सच कहता हूं मर हीं जाता मैं

फिर इंतजार करता रहता तुम्हारा

वहां भी की शायद तुम आओगी

फिर मैं और तुम मिलकर

नए सपनों को एक साथ

घुलने-मिलने का मौका देंगे

फिर से मैं और तुम मिलकर

उस दूसरी दुनिया में भी हम हो जाएंगे

कितनी जरूरत है न मुझे

तुम्हारी और तुम्हारे सपनों की

इसलिए लौट आओ जल्दी

मेरी इस सुनहरी दुनिया में

क्योंकि तुम्हें नहीं पता

तुम्हारे और तुम्हारे सपनों के

न होने की वजह से ही

मेरे सपने मरे जा रहे हैं

संजीवनी है न तुम्हारे पास

ले आओ और ड़ाल दो

मेरे सपनों की जड़ में

वो फिर से जी उठें।


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