मंगलवार, 15 जनवरी 2013

न जाने क्या-क्या?




लोगों से मिलते-जुलते
हाथ मिलाते गले लगाते
खुशी बांटते खुशी मनाते
मिलती है कितनी खुशियां
पर दु:ख तब होता है
जब यही आत्मीयता
बन जाता है रोजगार
जरूरत और इस्तेमाल का माल
लोगों का सामने से रोना
संवेदनाओं का हथियार चलाना
रिश्तों की माला पिरोना
माला के धागे को
बिना सोचे ही तोड़ देना
बिखेर देना उसमें पिरोए मोती
पता भी नहीं चलता
कब चल जाए ये हथियार
संभल भी नहीं सकता इंसान
मिल जाती है
उसे जीते जी मौत
आंसू की कितनी बूंदें
लहू की तरह गिर पड़ती है
जीते-जागते इंसान को
फिर मिलती है खौफनाक मौत
सचमुच की मौत से
ज्यादा खौफनाक है
जीते जी मरना
संवेदना का हथियार लिए
ये हथियार पसंद लोग
बेखौफ होकर चलाते हैं इसे
निर्दयी हो जाते हैं वह
क्योंकि जीती-जागती मौत
नहीं दिखती किसी को
हत्यारे नहीं कहलाते वह
सिर्फ कहलाते हैं
जरूरतमंद, परेशान
जीते जी मरनेवाला
कहलाता है                          
मूर्ख, बेवकुफ
न जाने क्या-क्या?



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