गुरुवार, 3 जनवरी 2013

कैसा है लोकपाल से जनलोकपाल तक का सफर?


 

     

2011 से देश में सरकार के अंदर व्याप्त भ्रष्टाचार के खिलाफ अन्ना हजारे की अगुआई में एक आंदोलन की सुगबुगाहट ने सरकार की नींद हराम कर दी। धीरे-धीरे 43 साल से संसद के गर्भ में सोये लोकपाल विधेयक को जनलोकपाल विधेयक का नाम देकर जनता सरकार के भ्रष्ट कारगुजारियों के लिए सरकार से जनलोकपाल बिल की मांग लेकर सड़कों पर उतर आई। देश में जगह-जगह अनशन और धरणा- प्रदर्शन होने लगा। सरकार ने पहले तो अपनी सामंती ताकत के जोर पर इस आंदोलन को दबाने की कोशिश की लेकिन जनता ने तब भी सरकार के खिलाफ अपना अहिंसात्मक आंदोलन जारी रखा। जब सरकार के सामंती जोर पर सरकार की खुब थू-थू हुई तो सरकार को जनता के सामने झुकना पड़ा। देश की आवाम को सरकार ने भरोसा दिलवाया की सरकार जल्द ही जनता को उसकी मांग के मुताबिक तोहफा भेंट करेगी लेकिन पूर्व की तरह हीं सरकार ने इस बार भी बादा खिलाफी की और आज भी 2012 का साल बीत जाने और संसद का इस साल का आखरी सत्र बित जाने के बाद भी सरकार ने इस बिल को सदन के पटल पर नहीं रखा। सरकार और जनलोकपाल मानो दो ऐसी धूरी हो गई हैं जिनका मिलन कभी संभव ही नहीं है । सरकार को जनलोकपाल की कुछ बिन्दुओं पर आपत्ती थी। सरकार की इन आपत्तियों की वजह क्या थी वो आपको तब समझ आएगा जब आप यो समझ पाऐंगे की सरकार के लोकपाल ड्राफ्ट और जनलोकपाल के ड्राफ्ट में क्या अंतर था। आइए लोकपाल सो जनलोकपाल तक के सफर पे चलते हैं। 

43 सालों से लोकपाल विधेयक कानून का रूप नहीं ले पाया।

स्कैंडीनेवियाई देशों में स्थापित किए गए ओम्बुड्समैन की तर्ज पर भारतीय लोकपाल की परिकल्पना की गई। स्वीडन में ओम्बुड्समैन की स्थापना 1809 में ही की जा चुकी थी। इसके तुरंत बाद कई देशों में अधिकारी वर्ग के रवैये से लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा के लिए इस तरह की संस्था का सूत्रपात किया गया। 'ओम्बुड्समैन' एक स्वीडिश शब्द है जिसका मतलब 'विधायिका द्वारा नियुक्त एक ऐसा अधिकारी जो प्रशासकीय और न्यायिक प्रक्रियाओं से संबंधित शिकायतों का निपटारा करे।'  60 के दशक की शुरुआत में देश के प्रशासनिक ढांचे में जड़ जमाते भ्रष्टाचार से यहां पर स्कैंडीनेवियाई देशों के जैसे ओम्बुड्समैन की जरूरत महसूस की गई। मोरारजी देसाई की अध्यक्षता में पांच जनवरी 1966 को प्रशासकीय सुधार आयोग का गठन किया गया। इस आयोग ने अपनी सिफारिशों में एक द्वि-स्तरीय प्रणाली के गठन की वकालत की। इस द्वि-स्तरीय प्रणाली के तहत केंद्र में एक लोकपाल और राज्यों में लोकायुक्तों की स्थापना पर जोर दिया गया था। सरकार ने पहला लोकपाल और लोकायुक्त विधेयक 1968 में पेश किया।  विधेयक कानून नहीं बन सका सरकारें आती गईं और जाती गईं, लेकिन भ्रष्टाचार से लड़ने की दृढ़ इच्छाशक्ति की कमी के चलते पिछले 43 सालों से लोकपाल विधेयक कानून का रूप नहीं ले पाया।  1968 में पहली बार इस विधेयक को चौथी लोकसभा में पेश किया गया। इस सदन से यह विधेयक 1969 में पारित भी हो गया लेकिन राज्यसभा में अटका रहा। इसी बीच लोकसभा के भंग हो जाने के चलते यह विधेयक पहली बार में ही समाप्त हो गया। इस विधेयक को एक बार नए सिरे से 1971, 1977, 1985, 1989, 1996, 1998, 2001, 2005 और हाल ही में 2008 में संसद में पेश किया गया, लेकिन हर बार इसे किसी न किसी वजह के चलते फंसना पड़ा। हर बार पेश करने के बाद इस विधेयक में सुधार के लिए या तो किसी संयुक्त संसदीय समिति या गृह मंत्रालय की विभागीय स्थायी समिति के पास भेजा गया और जब तक इस विधेयक पर सरकार कोई अंतिम निर्णय ले पाती सदन ही भंग हो गया। 
प्रधानमंत्री, मंत्री और सांसदों के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामलों पर कार्रवाई की ताकत देने वाला लोकपाल विधेयक कई बार सरकार द्वारा सदन में पेश किया गया। लेकिन हर बार विधेयक के औंधे मुंह गिरने की वजह दृढ़ राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी के अलावा हमारे राजनेताओं के मंसूबों की भी पोल खोलती है।  संक्षिप्त समय वाली इंद्रकुमार गुजराल की सरकार ने भी इस विधेयक को पेश करने का साहस दिखाया। 1996 में पेश किया गया यह विधेयक पांचवीं बार गिरा अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने 1998 में और 2001 में इसे पारित कराने का असफल प्रयास किया सितंबर 2004 में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने भरोसा दिलाया कि कांग्रेस के नेतृत्व वाली संप्रग सरकार इस विधेयक को अमल में लाने के लिए समय नष्ट न करते हुए शीघ्र लाएगी। यह बात और है कि बहुदलीय सरकार की व्यवस्था में पारदर्शिता से परहेज के दबाव ने अभी तक इस विधेयक का मार्ग प्रशस्त नहीं किया है।

जन लोकपाल बिल भारत में नागरिक समाज द्वारा प्रस्तावित भ्रष्टाचारनिरोधी बिल का मसौदा है। यह सशक्त जन लोकपाल के स्थापना का प्रावधान करता है जो चुनाव आयुक्त की तरह स्वतंत्र संस्था होगी। जन लोकपाल के पास भ्रष्ट राजनेताओं एवं नौकरशाहों पर बिना किसी से अनुमति लिए ही अभियोग चलाने की शक्ति होगी। भ्रष्टाचार विरोधी भारत (इंडिया अगेंस्ट कर्पशन) नामक गैर सरकारी सामाजिक संगठन ने इसका निर्माण किया। संतोष हेगड़े, वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण, मैग्सेसे पुरस्कार विजेता सामाजिक कार्यकर्ता अरविंद केजरीवाल ने यह बिल भारत के विभिन्न सामाजिक संगठनों और जनता के साथ व्यापक विचार विमर्श के बाद तैयार किया था। इसे लागु कराने के लिए सुप्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता और गांधीवादी अन्ना हजारे के नेतृत्व में 2011 में अनशन शुरु किया गया। 16 अगस्त में हुए जन लोकपाल बिल आंदोलन 2011 को मिले व्यापक जन समर्थन ने मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली भारत सरकार को संसद में प्रस्तुत सरकारी लोकपाल बिल के बदले एक सशक्त लोकपाल के गठन के लिए सहमत होना पड़ा।
जन लोकपाल बिल के मुख्य बिन्दु
·                    इस नियम के अनुसार केंद्र में लोकपाल और राज्यों में लोकायुक्त का गठन होगा।
·                    यह संस्था निर्वाचन आयोग और उच्चतम न्यायालय की तरह सरकार से स्वतंत्र होगी।
·                    किसी भी मुकदमे की जांच तीन महिने के भीतर पूरी होगी। सुनवाई अगले छह महिने में पूरी होगी।
·                    भ्रष्ट नेता, अधिकारी या न्यायाधीश को एक साल के भीतर जेल भेजा जाएगा।
·                    भ्रष्टाचार के कारण से सरकार को जो नुकसान हुआ है अपराध साबित होने पर उसे दोषी से वसूला जाएगा।
·                    अगर किसी नागरिक का काम तय समय में नहीं होता तो लोकपाल दोषी अधिकारी पर जुर्माना लगाएगा जो शिकायतकर्ता को क्षतिपूर्ति के तौर पर मिलेगा।
·                    लोकपाल के सदस्यों का चयन न्यायाधीश, नागरिक और संवैधानिक संस्थाएं मिलकर करेंगी। नेताओं का कोई हस्तक्षेप नहीं होगा।
·                    लोकपाल/ लोक आयुक्तों का काम पूरी तरह पारदर्शी होगा। लोकपाल के किसी भी कर्मचारी के खिलाफ शिकायत आने पर उसकी जांच दो महीने में पूरी कर उसे बर्खास्त कर दिया जाएगा।
·                    सीवीसी, विजिलेंस विभाग और सीबीआई के ऐंटि-करप्शन विभाग का लोकपाल में विलय हो जाएगा।
·                    लोकपाल को किसी भी भ्रष्ट जज, नेता या अफसर के खिलाफ जांच करने और मुकदमा चलाने के लिए पूरी शक्ति और व्यवस्था होगी।
जनलोकपाल बिल की मुख्य शर्तें
1.  इस कानून के अंतर्गत, केंद्र में लोकपाल और राज्यों में लोकायुक्त का गठन होगा।
2.  यह संस्था निर्वाचन आयोग और सुप्रीम कोर्ट की तरह सरकार से स्वतंत्र होगी। कोई भी नेता या सरकारी अधिकारी की जांच की जा सकेगी
3.  भ्रष्टाचारियों के खिलाफ कई सालों तक मुकदमे लंबित नहीं रहेंगे। किसी भी मुकदमे की जांच एक साल के भीतर पूरी होगी। ट्रायल अगले एक साल में पूरा होगा और भ्रष्ट नेता, अधिकारी या न्यायाधीश को दो साल के भीतर जेल भेजा जाएगा।
4.  अपराध सिद्ध होने पर भ्रष्टाचारियों द्वारा सरकार को हुए घाटे को वसूल किया जाएगा।
5.  यदि किसी नागरिक का काम तय समय सीमा में नहीं होता, तो लोकपाल जिम्मेदार अधिकारी पर जुर्माना लगाएगा और वह जुर्माना शिकायतकर्ता को मुआवजे के रूप में मिलेगा।
6.  अगर आपका राशन कार्ड, मतदाता पहचान पत्र, पासपोर्ट आदि तय समय सीमा के भीतर नहीं बनता है या पुलिस आपकी शिकायत दर्ज नहीं करती तो आप इसकी शिकायत लोकपाल से कर सकते हैं और उसे यह काम एक महीने के भीतर कराना होगा। आप किसी भी प्रकार के भ्रष्टाचार की शिकायत लोकपाल से कर सकते हैं जैसे सरकारी राशन की कालाबाजारी, सड़क बनाने में गुणवत्ता की अनदेखी, पंचायत निधि का दुरुपयोग। लोकपाल को इसकी जांच एक साल के भीतर पूरी करनी होगी। सुनवाई अगले एक साल में पूरी होगी और दोषी को दो साल के भीतर जेल भेजा जाएगा।
7.  क्या सरकार भ्रष्ट और कमजोर लोगों को लोकपाल का सदस्य नहीं बनाना चाहेगी? ये मुमकिन है क्योंकि लोकपाल के सदस्यों का चयन न्यायाधीशों, नागरिकों और संवैधानिक संस्थानों नेताओं द्वारा किया जाएगा। इनकी नियुक्ति पारदर्शी तरीके से और जनता की भागीदारी से होगी।
8.  अगर लोकपाल में काम करने वाले अधिकारी भ्रष्ट पाए गए तो? लोकपाल / लोकायुक्तों का कामकाज पूरी तरह पारदर्शी होगा। लोकपाल के किसी भी कर्मचारी के खिलाफ शिकायत आने पर उसकी जांच अधिकतम दो महीने में पूरी कर उसे बर्खास्त कर दिया जाएगा।
9.  मौजूदा भ्रष्टाचार निरोधक संस्थानों का क्या होगा? सीवीसी, विजिलेंस विभाग, सीबीआई की भ्रष्टाचार निरोधक विभाग (अंटी कारप्शन डिपार्टमेंट) का लोकपाल में विलय कर दिया जाएगा। लोकपाल को किसी न्यायाधीश, नेता या अधिकारी के खिलाफ जांच करने व मुकदमा चलाने के लिए पूर्ण शक्ति और व्यवस्था भी होगी। सभी बिन्दुओ कि समय सीमा ज्यादा है।
सरकारी बिल और लोकपाल बिल में मुख्य अंतर
अगस्त से शुरु हुए मानसून सत्र में सरकार ने जो विधेयक प्रस्तुत किया वह कमजोर और जन लोकपाल के सर्वथा विपरीत था। अन्ना हज़ारे ने इसके खिलाफ अपने पूर्व घोषित तिथि 16 अगस्त से पुनः अनशन पर जाने की बात दुहराई। 16 अगस्त को सुबह साढ़े सात बजे जब वे अनशन पर जाने के लिए तैयारी कर रहे थे, उन्हें दिल्ली पुलिस ने उन्हें घर से ही गिरफ्तार कर लिया। उनके टीम के अन्य लोग भी गिरफ्तार कर लिए गए। इस खबर ने आम जनता को उद्वेलित कर दिया और वह सड़कों पर उतरकर सरकार के इस कदम का अहिंसात्मक प्रतिरोध करने लगी। दिल्ली पुलिस ने अन्ना को मजिस्ट्रेट के सामने पेश किया। अन्ना ने रिहा किए जाने पर दिल्ली से बाहर रालेगाँव चले जाने या तीन दिन तक अनशन करने की बात अस्वीकार कर दी। उन्हें सात दिनों के न्यायिक हिरासत में तिहाड़ जेल भेज दिया गया। शाम तक देशव्यापी प्रदर्शनों की खबर ने सरकार को अपना कदम वापस खींचने पर मजबूर कर दिया। दिल्ली पुलिस ने अन्ना को सशर्त रिहा करने का आदेश जारी किया। मगर अन्ना अनशन जारी रखने पर दृढ़ थे। बिना किसी शर्त के अनशन करने की अनुमति तक उन्होंने रिहा होने से इनकार कर दिया। 17 अगस्त तक देश में अन्ना के समर्थन में प्रदर्शन होता रहा। दिल्ली में तिहाड़ जेल के बाहर हजारों लोग डेरा डाले रहे। 17 अगस्त की शाम तक दिल्ली पुलिस रामलीला मैदान में और सात दिनों तक अनशन करने की इजाजत देने को तैयार हुई। अन्ना को राम्लीला मैदान मैं 15 दिन कि अनुमति मिली।
सरकारी लोकपाल के पास भ्रष्टाचार के मामलों पर ख़ुद या आम लोगों की शिकायत पर सीधे कार्रवाई शुरु करने का अधिकार नहीं होगा। सांसदों से संबंधित मामलों में आम लोगों को अपनी शिकायतें राज्यसभा के सभापति या लोकसभा अध्यक्ष को भेजनी पड़ेंगी। वहीं प्रस्तावित जनलोकपाल बिल के तहत लोकपाल ख़ुद किसी भी मामले की जांच शुरु करने का अधिकार रखता है। इसमें किसी से जांच के लिए अनुमति लेने की ज़रूरत नहीं है सरकार द्वारा प्रस्तावित लोकपाल को नियुक्त करने वाली समिति में उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, दोनो सदनों के नेता, दोनो सदनों के विपक्ष के नेता, क़ानून और गृह मंत्री होंगे। वहीं प्रस्तावित जनलोकपाल बिल में न्यायिक क्षेत्र के लोग, मुख्य चुनाव आयुक्त, नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक, भारतीय मूल के नोबेल और मैग्सेसे पुरस्कार के विजेता चयन करेंगे ।

राज्यसभा के सभापति या स्पीकर से अनुमति

सरकारी लोकपाल के पास भ्रष्टाचार के मामलों पर ख़ुद या आम लोगों की शिकायत पर सीधे कार्रवाई शुरु करने का अधिकार नहीं होगा। सांसदों से संबंधित मामलों में आम लोगों को अपनी शिकायतें राज्यसभा के सभापति या लोकसभा अध्यक्ष को भेजनी पड़ेंगी। वहीं प्रस्तावित जनलोकपाल बिल के तहत लोकपाल ख़ुद किसी भी मामले की जांच शुरु करने का अधिकार रखता है। इसमें किसी से जांच के लिए अनुमति लेने की ज़रूरत नहीं है। सरकारी विधेयक में लोकपाल केवल परामर्श दे सकता है। वह जांच के बाद अधिकार प्राप्त संस्था के पास इस सिफ़ारिश को भेजेगा। जहां तक मंत्रीमंडल के सदस्यों का सवाल है इस पर प्रधानमंत्री फ़ैसला करेंगे। वहीं जनलोकपाल सशक्त संस्था होगी। उसके पास किसी भी सरकारी अधिकारी के विरुद्ध कार्रवाई की क्षमता होगी। सरकारी विधेयक में लोकपाल के पास पुलिस शक्ति नहीं होगी। जनलोकपाल न केवल प्राथमिकी दर्ज करा पाएगा बल्कि उसके पास पुलिस फ़ोर्स भी होगी।

अधिकार क्षेत्र सीमित

अगर कोई शिकायत झूठी पाई जाती है तो सरकारी विधेयक में शिकायतकर्ता को जेल भी भेजा जा सकता है। लेकिन जनलोकपाल बिल में झूठी शिकायत करने वाले पर जुर्माना लगाने का प्रावधान है।
सरकारी विधेयक में लोकपाल का अधिकार क्षेत्र सांसद, मंत्री और प्रधानमंत्री तक सीमित रहेगा. जनलोकपाल के दायरे में प्रधानमत्री समेत नेता, अधिकारी, न्यायाधीश सभी आएँगे।
लोकपाल में तीन सदस्य होंगे जो सभी सेवानिवृत्त न्यायाधीश होंगे। जनलोकपाल में 10 सदस्य होंगे और इसका एक अध्यक्ष होगा। चार की क़ानूनी पृष्टभूमि होगी, बाक़ी का चयन किसी भी क्षेत्र से होगा।



चयनकर्ताओं में अंतर
सरकार द्वारा प्रस्तावित लोकपाल को नियुक्त करने वाली समिति में उपराष्ट्रपति. प्रधानमंत्री, दोनो सदनों के नेता, दोनो सदनों के विपक्ष के नेता, क़ानून और गृह मंत्री होंगे। वहीं प्रस्तावित जनलोकपाल बिल में न्यायिक क्षेत्र के लोग, मुख्य चुनाव आयुक्त, नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक, भारतीय मूल के नोबेल और मैग्सेसे पुरस्कार के विजेता चयन करेंगे। लोकपाल की जांच पूरी होने के लिए छह महीने से लेकर एक साल का समय तय किया गया है। प्रस्तावित जनलोकपाल बिल के अनुसार एक साल में जांच पूरी होनी चाहिए और अदालती कार्यवाही भी उसके एक साल में पूरी होनी चाहिए।
सरकारी लोकपाल विधेयक में नौकरशाहों और जजों के ख़िलाफ़ जांच का कोई प्रावधान नहीं है। लेकिन जनलोकपाल के तहत नौकरशाहों और जजों के ख़िलाफ़ भी जांच करने का अधिकार शामिल है।

सज़ा और नुक़सान की भरपाई

सरकारी लोकपाल विधेयक में दोषी को छह से सात महीने की सज़ा हो सकती है और धोटाले के धन को वापिस लेने का कोई प्रावधान नहीं है। वहीं जनलोकपाल बिल में कम से कम पांच साल और अधिकतम उम्र क़ैद की सज़ा हो सकती है। साथ ही धोटाले की भरपाई का भी प्रावधान है।
ऐसी स्थिति मे जिसमें लोकपाल भ्रष्ट पाया जाए, उसमें जनलोकपाल बिल में उसको पद से हटाने का प्रावधान भी है। इसी के साथ केंद्रीय सतर्कता आयुक्त, सीबीआई की भ्रष्टाचार निरोधक शाखा सभी को जनलोकपाल का हिस्सा बनाने का प्रावधान भी है।
वार्ता में सरकार कुछ मुद्दों पर सहमत हो गई थी।
·                    प्रधानमंत्री लोकपाल के दायरे में।
·                    न्यायपालिका के लिए अलग कानून।
·                    सीबीआई का एंटी करप्शन सेल लोकपाल के अधीन काम करेगा।
किंतु कई विषयों पर सहमती नहीं बन पाई थी।
·                    जूनियर कर्मचारियों को लोकपाल के दायरे में लाने पर।
·                    राज्यों में एक साथ लोकायुक्त की नियुक्ति।
·                    हर काम की अवधि तय करना, न होने पर अफसर का वेतन काटे।
इसके साथ ही अन्ना के सहयोगी कुछ शर्तों पर सरकार की मंजूरी भी चाहते थे।
·                    स्थाई समिति के पास नहीं, सीधा संसद में पेश हो जन लोकपाल बिल।
·                    सरकारी बिल स्थायी समिति से वापस लिया जाए या रद्द हो।
·                    यूपीए व कांग्रेस लिखित में दे, सदन में समर्थन का आश्वासन।
·                    जन लोकपाल बिल इसी सत्र में पारित हो, जरूरत हो तो सत्र आगे बढ़े।
सरकार जनलोकपाल के मसौदे से बिल्कुल इत्तफाक नहीं रखती है जिसकी वजह से लोकपाल बिल और जनलोकपाल बिल सरकार के लिए एक तरह की जंग बन गया है। सरकार संसद की सर्वोच्चता की बात करता है, जबकि संसद के सदस्यों का चयन जनता करती है ऐसे में जनता सर्वोच्च शक्ति है। लोकपाल को सरकार क्यों नहीं प्रभाव में आने देना चाहती यह स्पष्ट रूप से पता चलता है कि संसद अपने ऊपर एक और संस्था खड़ी नहीं करना चाहती । सरकार और संसद अगर ऐसा नहीं करना चाहती तो इसके पीछे स्पष्ट तौर पर संसद के सदस्यों की अपनी गलतियों को उजागर न होने देने की मानसिकता है। जिसका परिचय भारतीय संविधान के सदस्य कर रहे हैं। खैर देखना यह है कि सरकारी लोकपाल कानून का रूप ले पाता है या जनता का बिल जनलोकपाल कानून बनकर देश की जनता के सामने सरकार का जनता से किया गया वादा पूरा करने का उदाहरण पेश करता है।

1 टिप्पणी:

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