मंगलवार, 26 नवंबर 2013

सुशासन में भी कुपोषण के शिकार बुनकर

http://www.youtube.com/watch?v=au2fHPvooW0
http://www.boljantabol.com/hindi/silk-business-in-bhagalpur/
सिल्क कहीं इतिहास की किताबों में तो नहीं पढ़ा जाएगा ?


दिल्ली के प्रगति मैदान में लगे विश्व व्यापार मेले में जब मैं अपनी टीम के साथ पहुंचा तो मेरी कौतुहल भरी नजरें बिहार भवन की तरफ थी कि शायद इस बार कुछ नया देखने को मिल जाए। अनायास ही मेरे कदम बिहार भवन की तरफ मुड़ गए अंदर प्रवेश किया तो लोगों के मुंह से तारीफों के पुल बांधे जा रहे थे। हृदय गदगद हो उठा लोग वहां की संस्कृति और खासकर भागलपुर के सिल्क की तारीफ करते नहीं अघा रहे थे। झट मैं भी अपनी टीम के साथ उसी स्टॉल पर पहुंच गया जो भागलपुर के बुनकरों द्वारा लगाया गया था। यकीन मानिए सारी खुशी दो मिनट में टांय-टांय फिस्स हो गई। बुनकरों के चेहरे पर परेशानी और उलझन के भाव स्पष्ट नजर आ रहे थे। 
भागलपुर बिहार का वह जिला जिसे भारत ही नहीं संपूर्ण विश्व सिल्क नगरी के नाम से जानता है। आज ही नहीं इतिहास के पन्नों को पलट कर देखें तो महाभारत के काल से ही कर्ण की राजधानी रह चुका यह जिला आज भी अंग प्रदेश का हिस्सा है। इसीलिए इस जिले और इसके आसपास के जिले में बोली जाने वाली भाषा अंगिका है। भागलपुर का अर्थ है सौभाग्य का शहर। दुनिया के बेहतरीन सिल्क उत्पादक होने के कारण भागलपुर को सिल्क सिटी के रूप में भी जाना जाता है। यह पटना से 220 किमी पूर्व में और कोलकाता से 410 किलोमीटर उत्तर पश्चिम में स्थित गंगा नदी के तट पर ऐतिहासिक महत्व का एक शहर है। भागलपुर बिहार में पटना और गया के बाद तीसरा सबसे बड़ा शहर है। इस शहर में रेशम उद्योग सैकड़ों वर्ष पुराना है और रेशम उत्पादक कई पीढ़ियों से रेशम उत्पादन करते आ रहें है।
यह वही जिला है जहां विक्रमशिला विश्वविद्यालय था जो एक समय विश्व के खासम-खास शिक्षण संस्थानों में से एक था। इसी जिले के सुलतानगंज प्रखंड से हर साल सावन के महीने में करोड़ों देशी और विदेशी कॉवरिये जल लेकर झारखंड में अवस्थित बाबा रावणेश्वर बैद्यनाथ धाम की यात्रा करते हैं। इसी शहर में एक मोहल्ला है चंपानगर जहां बिहुला और विषहरी की कहानी आज भी लोगों की जुबान पर है। भारतीय राजनीति में भी इस जिले ने अहम किरदार निभाया है और स्वतंत्रता संग्राम की लड़ाई से लेकर आज तक इस जिले की सक्रिय दखल भारतीय राजनीति में रही है। कभी कांग्रेस का गढ़ माना जानेवाला यह जिला पिछले कई सालों से भाजपा और उनकी सहयोगी पार्टी की झोली में रहा है। चाहे वह लोकसभा हो या विधानसभा की सीट। इतिहास की किताबों में इतनी सशक्त छवि रखने वाला यह जिला दो कारणों से आज भी लोगों के जेहन में अपने आप को जिंदा रखे हुए है। इसमें से एक तो आजादी के बाद का वो दर्दनाक मंजर है जिसने 1989 में इस शहर को मानो बंजर ही कर दिया था। किसी तरह से इस शहर ने अपना दिल मजबूत कर फिर से अपने आप को हरा भरा किया तो शहर की गलियों से उसकी अपनी पहचान गायब होने लगी। यानि भागलपुर का धाराशायी होता सिल्क उद्योग जिस पर बिहार सरकार की निगाह कभी नहीं पड़ी। सरकार के बड़े-बड़े वादे भी इस उद्योग को संभालने और बचाने में झूठे और बेमानी साबित होते रहे। बुनकरों ने इस उद्योग को आज भी अपने दम पर अपने कंधों पर जिंदा रखा है। गंगा की कल-कल, निश्छल और अविरल बहती धारा के किनारे बसे इस शहर में हिंदु और मुस्लिम दोनों ही जाति के लोग बड़े शान से रहते हैं। यह गंगा का वही क्षेत्र है जहां गंगा में डाल्फिन मछलियां पाई जाती हैं। सरकार के उदासिन रवैये के चलते गंगा से अब इस जीव के समाप्ती की भी शुरुआत हो गई है।
आए दिन सिल्क सिटी बिजली संकट से परेशान है। अधिकारी भी ऊपर से ही बिजली न मिलने की दुहाई दे रहे हैं। लोगों की रातें काली हो रही हैं। इस शहर में बिजली संकट आपूर्ति घटने से ज्यादा बिजली की सप्लाई नियोजित तरीके से न होने के कारण गहराता है। इसी संकट ने हैंडलूम चलाने वाले बुनकरों के लिए भी समस्या खड़ी कर रखी है। बुनकरों को बिजली की अनुपलब्धता के चलते सिल्क का धागा तैयार करने और सिल्क के कपड़े तैयार करने में जिस तरह की असुविधा होती है वह तो बुनकर ही जानते हैं।
यह शहर बिना सड़क के बिहार की उपराजधानी बनने का सपना देख रहा है । शहर की लाइफ लाइन मानी जाने वाली एनएच-80 सहित लगभग सभी प्रमुख सड़कें जर्जर और खस्ताहाल हैं। इन सड़कों के निर्माण व मरम्मत पर पिछले कई साल में लाखों रुपये खर्च हो चुके हैं, पर स्थिति जस की तस बनी हुई है। शहर में सिल्क उद्योगों के बढ़ने में आनेवाली एक मुख्य बाधा यह भी है।
यह वही शहर है जहां के राजा कर्ण ने अपना सबकुछ दान कर अपने दानवीर होने का प्रमाण दिया था। आज उसी शहर की जमीन विकास के लिए अपने राज्य के मुखिया का मुंह ताकता रहता है। पिछले कई सालों से बिजली की खराब स्थिति, सिल्क के कारीगरों की दुर्दशा, लचर ट्रैफिक व्यवस्था, बाइपास, रूक-रूक कर घिसटती चलती विमान सेवा, जर्जर एनएच, हाइकोर्ट की बेंच का गठन नहीं हो पाना, कहलगांव में फूड पार्क, अस्पताल, पर्यटन, मंजूषा चित्रकला आदि क्षेत्रों में विकास आज भी सपना बनकर रह गया है। कहलगांव की बिजली से जहां कई राज्य रौशन होते हैं वहीं भागलपुर में अंधेरा अपनी चरम पर है। पर्यटन के क्षेत्र में अपार संभावनाओं के बावजूद अभी तक विक्रमशिला विश्व विद्यालय को ही उसका उचित सम्मान नहीं मिल सका है। मंदार, अजगैबीनाथ और आसपास के जैन तीर्थ स्थलों को यदि विकसित किया जाए तो अंग के लोग अपनी विरासत पर गर्व करेंगे। यह शहर है जहां बाला लखिंदर, चांदो सौदागर, सती बिहुला और मंशा देवी की कीर्ति आज भी गाई जाती है। इसी के आधार पर आधारित है मंजूषा चित्रकला। यानि दानवीर कर्ण की भूमि को आज दान की नहीं, सरकार से उसके हक की मांग है।
दिल्ली के प्रगति मैदान में लगे विश्व व्यापार मेले में जब मैं अपनी टीम के साथ पहुंचा तो मेरी कौतुहल भरी नजरें बिहार भवन की तरफ थी कि शायद इस बार कुछ नया देखने को मिल जाए। अनायास ही मेरे कदम बिहार भवन की तरफ मुड़ गए अंदर प्रवेश किया तो लोगों के मुंह से तारीफों के पुल बांधे जा रहे थे। हृदय गदगद हो उठा लोग वहां की संस्कृति और खासकर भागलपुर के सिल्क की तारीफ करते नहीं अघा रहे थे। झट मैं भी अपनी टीम के साथ उसी स्टॉल पर पहुंच गया जो भागलपुर के बुनकरों द्वारा लगाया गया था। यकीन मानिए सारी खुशी दो मिनट में टांय-टांय फिस्स हो गई। बुनकरों के चेहरे पर परेशानी और उलझन के भाव स्पष्ट नजर आ रहे थे। वो सहमे थे और शायद सिल्क के भविष्य और अपने रोजगार को लेकर ज्यादा चिंतित थे। इसी क्रम में मेरी बाचतीत एक सिल्क के व्यापारी से हुई जब उसकी समस्या सुनी तो पैरों के नीचे से जमीन खिसक गई। सचमुच मैं भी महसूस करने लगा की यही हाल रहा तो जल्द ही सिल्क इतिहास की किताबों में पठनीय अध्याय बनकर रह जाएगा। मायूस था सो सोचा सरकार तक उनकी बात पहुंचा दूं। सो, सबसे सशक्त माध्यम मुझे यही लगा, इसलिए आपलोगों से साझा कर रहा हूं। पहले वीडियो पर गौर फरमाईए फिर मेरे लेख पर। सचमुच आप भी सरकारी तंत्र और अफसरशाही के रवैये से इतना आहत हो जाएंगे कि उन्हें कोसे बिना नहीं रह पाएंगे। हालांकि हमारी जरूरत कोसने की नहीं बल्कि इस उद्योग को बचाने, संभालने और पोसने के लिए प्रयास करने की है। यानि बिहार में सुशासन भी भागलपुर के बुनकरों को कुपोषण से बचाने में नाकाम रहा ऐसे में अब उम्मीद की किरण बस हम और आप हैं। चलिए मिलकर एक सम्मलित प्रयास करते हैं ताकि एक बार फिर से इस उद्योग के सूखती जड़ में अमृत डाल पाएं।

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