तहजीब के चंद किस्से,
इतिहास की किताबों में समा गये हैं।
या यूँ भी कह दूँ ,
कि शायद विचार के प्रश्न बन गये हैं।
सौ बार हो रहा है कुछ ऐसा,
कि रोती बिलखती औरतें,
कुछ भुखे नंगे और अपाहिज बच्चे,
कुछ घर से दुत्कार पाकर सहमे पड़े वृध्द,
तहजीब की मार झेलते-झेलते,
कुछ यूँ उकता गये हैं।
कुछ सूनी पड़ी गलियों में,
आवारा जानवर की तरह बिलबिला रहे हैं।
और ये क्या तहजीब बयां करने वाले,
ये चंद तहजीब के सौदागर,
तहजीब की आड़ लेकर,
बड़ी हीं तहजीब से,
संस्कृति,धर्म,एकता,अखंडता,अर्थ,समाज
सबों को काले नाग की तरह,
डँसते चले जा रहे हैं।
छलकती आँखों से आवाज लगाते,
ये चेहरे इन तहजीब वालों के लिए,
एक मजाक का प्रश्न हीं तो है............
करोड़ों की अटारी में पडे ये शेर,
जमीन पर पडे इन बेबश,लाचार
लोगों से तहजीब की जगह,
गुरेज किये जा रहे हैं।
और समाज के ये लुटेरे,
मंच पर खड़े-खड़े तहजीब-तहजीब चिल्ला रहे हैं।
जुर्रतें तो इनकी देख ली हमने,
अदावतें भी ये यूँ हीं निभाते जा रहे हैं।
इसलिए तो कहता हूँ मैं,
तहजीब के चंद किस्से,
इतिहास में गुम हो गये हैं।
....................................................................................(गंगेश कुमार ठाकुर)
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