रविवार, 12 दिसंबर 2010

दिल्ली में प्रशासन सुस्त वारदाती बैखोफ

देश की राजधानी दिल्ली में लूटमार, हत्या, बलात्कार, के साथ हीं अन्य वारदातों का सिलसिला दिन पर दिन बढ़ता जा रहा है । लेकिन प्रशासन इन वारदातों पर अंकुश लगाने में सक्षम नजर नहीं आ रही है। कुछ मुद्दे को सुलझाने में पुलिस कामयाब तो हो गई है लेकिन वारदातों को रोकने में पुलिस अपनी क्षमता का पूरा इस्तेमाल नहीं कर पा रही है। चाहे मामला धौला कुऑ में हुए गैंगरेप का हो या सीमापुरी में हुए बलात्कार का किसी-किसी मामले में पुलिस को औसत सफलता मिली,वहीं अधिकतर मामलों में पुलिस को हाथ मलना पड़ रहा है। पुलिस की लाख कोशिशों के बाबजुद भी अपहरण, लूटमार, हत्या, बलात्कार जैसे मामले रूकने का नाम हीं नहीं ले रही हैं। अभी तो ब्लैडमेन का कहर दिल्ली के मंगोलपुरी इलाके में जारी है। पुलिस ने कुछ दिन पहले इस मामले दोषियों के पकड़े जाने की बात कही थी, लेकिन पुलिस का यह दावा तब खोखला नजर आने लगा जब मंगोलपुरी इलाके में इस घटना की पुनरावृति तीन लड़कियों के साथ फिर हो गई। पुलिस इन वारदातों को रोकने में नाकामयाब रही है, लेकिन पुलिस इन मामसों में अपनी भुमिका भी स्पष्ट नहीं कर पा रही है। दबी जुबान से हीं सही पुलिस वाले अपने नये आका बी के गुप्ता के बारे में यह तक कहने लगे हैं की इन्होंने शुभ मुहुर्त्त में पदभार हीं नहीं ग्रहण किया है, इसलिए वारदातों का सिलसिला रूकने का नाम हीं नहीं ले रहा है। पुलिस महकमे के आला अफसरों से लेकर नीचे तक के सारे कर्मचारी अपनी भुमिका निभाने से या तो कतराते हैं या उन्हें उनका जमीर कभी इस कार्य के लिए प्रेरित हीं नहीं करता। ऐसे में जब पुलिस महकमा अपनी जिम्मेवारियों से मुँह मोड़ने लगती है, तो देश की राजधानी में जंगल राज सा माहौल महसुस होना स्वभाविक लगता है। जनता तो अब यह कहने से नहीं हिचकती कि दिल्ली से अब ड़र लगता है। पुलिस महकमा इतनी सारी वारदातों से कुछ सिख पाया है ऐसा नहीं लगता, क्योंकि सुल्तानपुरी से अगवा कर एक मासुम लड़की से बलात्कार की वारदात आज भी सामने आया है।ऐसे में दिल्ली पुलिस महकमे के आला अफसरों और कर्मचारियों को अपनी जिम्मेवारियों को समझने की जरुरत है। ताकि वारदातों पर अंकुश लगे और देश की राजधानी दिल्ली की जनता खौफ के अंधेरे भंवर से बाहर आ सके।

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