शरबती इन आँखों के लिए,
हम जिये तो क्या जिये,
हो गया अँधेरा अब तो,
रोशनी में भी पीये तो क्या पीयें,
कफन तो चन्द रुपये में मिला,
जिंदगी तो लाख की थी मिटा दिया,
सारा जीवन बेच डाला हमने यूँ मगर,
अब बसर बेहोश होकर क्यूँ करें,
शुन्य का मतलब अगर मैं जाता समझ,
खाक में मिलती चिता से लेता लिपट,
कमबख्त ख्वाईश न रहती आखिरी मगर,
कि आखिर जिये तो किसके लिए जियें।
-------------------------------------------------------------------------(गंगेश कुमार ठाकुर)
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