मंगलवार, 1 फ़रवरी 2011

दोस्ती



दोस्ती की खातिर जिन्दा हूँ,
दुश्मनी के सवालों पर शर्मिंदा हूँ,
जमाने ने पर काट ड़ाले हैं मेरे,
वरना मैं उड़ता हुआ एक परिंदा हूँ।
दोस्ती को अपने से दूर रख न सका,
जमाने की आँच पर चढ़कर भी पक न सका।
दोस्तों ने दे दी हमें दोस्ती की कसम,
पर फिर भी जमाने के जख्म ,
अपने दिल पर मैं सह न सका।
अब तो केवल दोस्ती याद रहती है,
ईश्वर से बस इतनी फरियाद होती है,
कि दोस्ती के इस चिराग को आबाद रखना,
मेरे दोस्त को हर ग़म से आज़ाद रखना।


---------------------------------------------------(गंगेश कुमार ठाकुर)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें