ऐसा देश है मेरा के माध्यम से मैं आप तमाम पाठक से जुड़ने की भरपुर कोशिश कर रहा हूँ चूँकि मैं इस जगत में आपका नया साथी हूँ इसलिए आशा करता हूँ कलम के जरिये उभरे मेरे भावना के पुष्पों को जो मैं आपके हवाले करता हूँ उस पर अपनी प्रतिक्रिया के उपहार मुझे उपहार स्वरूप जरूर वापस करेंगे ताकि मैं आपके लिए कुछ बेहतर लिख सकूँ। ..................................आपकी टिप्पणियों की प्रतीक्षा में ...........................................आपका दोस्त """गंगेश"""
रविवार, 13 फ़रवरी 2011
आजमाया जाए ?
पत्थरों को तरासकर भगवान बनाया है हमने,
क्यूँ न इंसानों पर भी ये आजमाया जाए ?
कुछ हासिल होगा इससे ये सोचना छोड़कर,
क्यूँ न अलग एक नया जहाँ बसाया जाए ?
कोशिशों से तो पत्थर भी दागदार हो जाता है,
क्यूँ न इंसानियत से घिसकर कुछ इंसान बनाया जाए ?
लहू गर्म हो धमनियों में कितना भी,
धमनियों से बाहर आते हीं जम जाता है,
क्यूँ न हैवानियत के बह रहे गर्म ज्वर को,
इंसानियत की हवा देकर जमाया जाए ?
इश्के मजहब की तमन्ना लिए,
जो शैतान घुमते हैं बेखौफ इस धरा पर,
क्यूँ न उसे इश्के इंसानियत का,
एक अनोखा पाठ पढ़ाया जाए ?
जो धर्म के नाम पर बाँटते हैं,
लोगों को और देश को,
क्यूँ न वैसे शख्सियत के अंदर,
देशभक्ति का ज्वार उठाया जाए ?
रास्तों पर चलते-चलते,
कितने हीं भटक जाते हैं राहगीर,
क्यूँ न इन भटके राहगीरों को,
मंजिल तक का रास्ता दिखाया जाए ?
जिन्दगी में दुख अपने,
समंदर की तरह गहरी हीं क्यों न हों,
चलो साहिल पर खड़े होकर,
एक जोरदार कहकहा लगाया जाए ?
पत्थरों को तरासकर भगवान बनाया है हमने,
क्यूँ न इंसानों को तरासकर उन्हें आजमाया जाए ?
------------------------------------------------------------------(गंगेश कुमार ठाकुर)
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