
ज़ज्बात के चंद छोटे-छोटे टुकड़े समेट लिये हैं मैंने,
अपनी आकांक्षाओं को दामन में लपेट लिया है मैंने।
अब अंजाम कुछ भी हो प्यार का या वफाई का,
हर उलझते रिश्तों में उलझकर जीना सीख लिया है मैंने।

पत्थरों को लाखों बार तरासा जाए या घिसा जाए,
दाग तो पड़ जाता है लेकिन भगवान नहीं बसते इसमें।
श्रद्धा की बात है इसलिए रोज फूल चढ़ाते हैं इन पत्थरों पर हम,
वरना भगवान और इंसान दोनों बसते हैं ऐ दोस्त मुझमे और तुझमे।

शिकायत लाख की जाए दगा की या की जाए बेवफाई की,
शिकायतों से नहीं बदलती आदतें दोस्त न तुझमे और न मुझमे ।
आँखों में मचलते सपनों का समंदर कितना भी गहरा क्यूँ न हो,
तड़पते रह जाते हैं इंसान प्यासे होकर खुद के देखे सपनों में।
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