ऐसा देश है मेरा के माध्यम से मैं आप तमाम पाठक से जुड़ने की भरपुर कोशिश कर रहा हूँ चूँकि मैं इस जगत में आपका नया साथी हूँ इसलिए आशा करता हूँ कलम के जरिये उभरे मेरे भावना के पुष्पों को जो मैं आपके हवाले करता हूँ उस पर अपनी प्रतिक्रिया के उपहार मुझे उपहार स्वरूप जरूर वापस करेंगे ताकि मैं आपके लिए कुछ बेहतर लिख सकूँ। ..................................आपकी टिप्पणियों की प्रतीक्षा में ...........................................आपका दोस्त """गंगेश"""
शुक्रवार, 13 मई 2011
हर रोज नये ढ़ंग से जीता हूँ मैं,
हर रोज नये ढ़ंग से जीता हूँ मैं,
जरा मेरे ज़िन्दा रहने का अंदाज़ तो देखिये,
रास्ते खुद बनाता हूँ सफर में अपनी मंजिल तक,
जरा रूककर मेरे बसर का सलिका तो देखिये,
तबाह हो रहा हूँ हर दिन मैं अपने ग़म के हाथों से,
जरा रूककर मेरे ग़म का सबब तो पुछिये,
बड़ी मुश्किल में हूँ हमराज बनके उनकी उल्फत का,
आप पीछे मुड़कर मेरी मुहब्बत का असर तो देखिये,
अँधेरों से नही लगता ड़र कितना भी चलता हूँ मैं,
ड़र उजालों में मुझे खुद की परछाई से होती है,
हौसले से उड़ानों का बड़ा ही गहरा नाता है,
मैं तूफानों में दिये की रोज लौ जलाता हूँ,
सितारों की जरूरत चाँद संग जैसे फलक को है,
मुझे भी हर पल जरूरत आप की महसुस होती।
........................(गंगेश कुमार ठाकुर )
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