गुरुवार, 8 दिसंबर 2011

सर्दियों की धूप और तुम


सर्दियों में खिल उठी गुनगुनी धूप
कितना आनंद देती है ना
मनभावन लगता है कितना
सर्दियों की सुबह की धूप का
ये आसमां पर खिलने का अंदाज
मानों हजारों जुदाई के लम्हों के बाद
मिला हो मिलन का एक लम्हा





मैं महसूस करने लगता हूँ तुम्हें,
धूँध वाली वह सुबह
मानो तुम्हारी यादों की
तस्वीर धूँधली पड़ गई हो जैसे
और धूप के खिलते हीं
तुम्हारी वह धूँधली तस्वीर
स्पष्ट होने लगती है मेरे अंदर





सर्दी के सुबह की वह ठंढ़ी हवा
मानो तुम्हारे छुअन की तरह
मेरे पूरे जिस्म को कंपकंपा देती है
दिन में सर्द हवाओं के साथ
धूप की वह गुनगुनी तपन
मानो तेरे और मेरे सांसों के मिलन की गवाह
बन जाती हो जैसे
जिसमें जिस्म में कंपन हो सिहरन होती है
लेकिन मन के अंदर एक तपन हो सुकूँ होती है







शाम को सूरज का वह लाव-लश्कर
समेट कर जल्दी अस्त होने की कोशिश
ऐसा लगता है मानो तुम आई
और वापिस जा रही हो कुछ हीं क्षणों में
शाम की छत पर कुहरे के मध्य
धीरे-धीरे फैलते रात के आँचल में
चाँद का वो चमकना
मानो तुम दूर कहीं बैठी हो मुझसे
और मैं उन धूँधले मध्य में भी
स्पष्ट देख पा रहा हूँ
तुम्हारा वो चमकता चेहरा
जिस पर दुधिया रंग पसरा पड़ा है







कितना मायावी है न सर्दी का यह मौसम
हर मौसम से अलग
यह तुम्हारे होने या न होने
दोनों ही अर्थों को सार्थक करता रहता है
काश तुम होती तो भी
यह मौसम उतना हीं हसीन होता
जितना आज तुम्हारा मेरे पास न होने पर
यह हसीन है तुम्हारी याद में
सर्दी के मौसम में गुनगुनी खिली धूप
के साथ आई यह सुबह...........

1 टिप्पणी:

  1. यादों के एहसासों को सर्दियों के मौसम से जोड़कर बहुत ही सुंदर शब्दों से सजाया है आपने भावपूर्ण रचना ... http://mhare-anubhav.blogspot.com/इसके अलावा एक और ब्लॉग आपकी पसंद पर भी आपका हार्दिक स्वागत है

    जवाब देंहटाएं