ऐसा देश है मेरा के माध्यम से मैं आप तमाम पाठक से जुड़ने की भरपुर कोशिश कर रहा हूँ चूँकि मैं इस जगत में आपका नया साथी हूँ इसलिए आशा करता हूँ कलम के जरिये उभरे मेरे भावना के पुष्पों को जो मैं आपके हवाले करता हूँ उस पर अपनी प्रतिक्रिया के उपहार मुझे उपहार स्वरूप जरूर वापस करेंगे ताकि मैं आपके लिए कुछ बेहतर लिख सकूँ। ..................................आपकी टिप्पणियों की प्रतीक्षा में ...........................................आपका दोस्त """गंगेश"""
मंगलवार, 21 फ़रवरी 2012
तुम तो यू हीं देखो मुझको
नैना तेरे बोझिल क्यूं हैं
मैं तो तुम में खो जाउंगा
तेरा मेरा जब हो मिलना
सब जग सूना तेरे बिन है
अब सब रातें तुम बिन सूनी
रात गई और बात गई है
तुम खुश हो जाओ मेरे सजना
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बुत परस्त था मैं बुत परस्ती करता रह गया
बुतखाने में हरवक्त मेरा आना जाना रह गया
बुत बनकर रह गई तू मेरे बुतखाने में
मैं बुत तराश न बन पाया न तेरा बुतखाना बना पाया
तू बुत बे पीर बन बैठी और मैं बन बैठा तेरा बुत शिकन
अब हर रोज बुतखाने में मेरा आना जाना रह गया ।
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शरमाते हुए देखा था तुमको
हसीनों की महफिल से मैं था बेगाना
तुम आई तो लगने लगा था मुझे
ये महफिल है कुछ जाना पहचाना
तुम दूर खड़ी थी ये सोचकर
तुम्हें मैं चोर नजरों से देख लूंगा
गजब की अदा थी तेरी हर अदा में
ये दिल था दिवाना और ये मौसम सुहाना
.......................................... (गंगेश ठाकुर)
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