ऐसा देश है मेरा के माध्यम से मैं आप तमाम पाठक से जुड़ने की भरपुर कोशिश कर रहा हूँ चूँकि मैं इस जगत में आपका नया साथी हूँ इसलिए आशा करता हूँ कलम के जरिये उभरे मेरे भावना के पुष्पों को जो मैं आपके हवाले करता हूँ उस पर अपनी प्रतिक्रिया के उपहार मुझे उपहार स्वरूप जरूर वापस करेंगे ताकि मैं आपके लिए कुछ बेहतर लिख सकूँ। ..................................आपकी टिप्पणियों की प्रतीक्षा में ...........................................आपका दोस्त """गंगेश"""
शनिवार, 24 मार्च 2012
एहसास
अजनबी सी थी वो
ख़्यालों में आती रहती थी
वो हसीन थी पर पर्दा नशीं थी
कल हकीकत में सामने आयी
खु़दा की कसम मैं घबरा गया
वो रोज-रोज सोचना उसके बारे में
क्या पता ?
कब मुझे दिवाना बना गया
अब सोचता हूं ये दिवानापन है
या है जादू उसकी नजरों का
जाम छलका भी नहीं आंखों से
पूरा मैखान बहक गया
वहां अब कोई कहां
पैमाने की फ़िक्र करता है
उसकी शोख नज़रें हीं तो
जाम का पैमाना बन गया
शराबोर हो चुका था मैखाना
उसके बेपर्दा हो जाने के ख़्यालों में
वो हकीकत में होती
तो कयामत ही मुमकिन थी
अच्छा हुआ की दिन चढ़े
दीदार किया है मैंने
बेपर्दा उस पर्दा नशीं का
ख़ुदा की कसम
वरना उस रात
कदम मेरे भी बहक जाते ।
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बहक रहे हैं आप भी सर..
जवाब देंहटाएंकविता ने प्रवाह को अपने आगोश में समय हुआ है
सुन्दर प्रयास.