हथियार बनाकर बंदों को
व्यापार बनाकर चंदों को
गुनहगार बताकर जनता को
जो देश को लूटा करते हैं
संविधान की किताबों में
ऐसे नेता हीं सजते हैं
संसद में संग्राम कराकर
जनता को खुलेआम लड़ाकर
मंदिर तुड़वाकर, मस्जिद गिरवाकर
गुरुद्वारे में हमला करवाकर
जो देश की शांति छिनते हैं
संसद की कुर्सी पर
ऐसे नेता हीं फलते हैं
मंहगाई को आसमान छुआकर
गरीबों को बेईमान बताकर
पैसे को विदेशों में छुपाकर
अंधों के हाथ लालटेन थमाकर
गली-गली में आग जलाकर
अपने घर बैठ जो हँसते हैं
सत्ता के गलियारों में
ऐसे नेता हीं मिलते हैं
आनाज गोदामों में सड़ाकर
भूखों को भूखे मरवाकर
भड़काकर, हाथों में हथियार थमाकर
जंगल में उनको मरवाकर
आतंकवादियों में उनको गिनवाकर
अपनी बहादूरी पर जो इतराते हैं
जनता का आशीर्वाद पाकर
ऐसे नेता हीं देश चलाते हैं।
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