मंगलवार, 9 जुलाई 2013

क्यों न की जाए जनता से सभी सुरक्षा रिपोर्ट साझा ?

भारत हमेशा या तो देश के अंदर के उग्रवाद से त्रस्त रहा है या बाहरी आतंकवादी हमले से, दोनों ही सूरत में अगर किसी को नुकसान होता है तो वह होता है देश की आम जनता को और उसकी शांति को। देश की भोली-भाली जनता इन आतंकियों के निशाने पर होती है। उन आतंकियों के आतंक फैलाने का मकसद भी देश की जनता को दहशत के साये में जीने को मजबूर करना ही है। देश की आजादी से अब तक जितने भी आतंकी हमले हुए उसका निशाना अगर कोई बना तो वह थी देश की आम जनता, जो या तो रोटी के जुगाड़ में सड़कों पर भाग रही थी या फिर वो बच्चे जो शिक्षा के लिए स्कूल जा रहे थे या वे लोग जो अपने ईलाज के लिए अस्पताल जाने की तैयारी कर रहे थे या फिर वे लोग जो अपने परिवार के साथ मिल खुशियां बांटने के लिए कहीं न कहीं घुम रहे थे या वो लोग जो घर पर त्योहारों में घर को रोशन करने की जुगत में बाजार से सामान लाने गए होते हैं ऐसे हर घर में आतंकी हमले ने मातम का वो शोर बरपाया की शांति पसंद देश की पूरी आवाम हिलने लगती थी, पूरा देश जल और दहल उठता था।
आतंकवाद का कोई मजहब नहीं होता और न ही आतंकी की कोई जात होती है। गुजरात में अक्षरधाम, बैंगलुरू, हैदराबाद, अजमेरशरीफ, दिल्ली, जम्मू और कश्मीर, मुंबई, अमरनाथ का आतंकी हमला हो या ऐसे देश के अंदर हुए और भी आतंकी हमले हों हर हमले में अगर मौत हुई तो सिर्फ और सिर्फ मानवता की, जान गई तो सिर्फ आम लोगों की, शांति भंग हुई तो सिर्फ देश की लेकिन हमारी सुरक्षा एजेंसियां हर हमले में इतनी चाकचौबंद रही की हमले के बाद हर बार उन्होंने ये बयान जरूर दिया कि देश में हो रहे हमले के बारे में उन्हें जानकारी थी और इसकी जानकारी पहले ही वो संबद्ध राज्य सरकार को दे चुके थे। अगर हरबार ये बात सही थी तो आखिर सुरक्षा में कहां चुक होती रही जिस कारण देश इन आतंकी हमलों का दंश झेलता रहा। हमले के बाद देश के प्रमुख शहरों की सुरक्षा व्यवस्था चुस्त कर दी जाती रही और फिर दो-तीन दिन बाद सुरक्षा के वही लचर इंतजाम पूरे देश में और खास कर इन शहरों में देखने को मिलते रहे। केंद्र की पुलिस और सेना बिना आदेश के इन समस्याओं से निपटने को तैयार नहीं हुई और राज्य सरकार सूचना मिलने के बाद भी तब तक का इंतजार करती रही जब तक कोई हमला हो न जाए। ऐसे में देश की आंतरिक सुरक्षा व्यवस्था पर खर्च हो रहे इतने रुपए का फायदा जनता को क्या मिल पा रहा है यह विचारनीय प्रश्न है। मामला देश की एकता, अखंडता, शांति और भाईचारे का है इसलिए देश के किसी भी हिस्से में हुए आतंकी कार्रवाई का असर समूचे देश के आवाम के मन पर पड़ता है पूरा देश दहशत का दंश झेल रहा होता है और इन आतंकियों के दहशत फैलाने के मंसूबे कामयाब हो जाते हैं। लेकिन सरकार केंद्र की हो या राज्य की इससे अलग दोनों मिलकर इस पर सियासी रोटी सेकने से बाज नहीं आते बाकी कसर दोनों जगहों पर विपक्ष में बैठी पार्टियां निकाल देती हैं। जो वक्त आत्मचिंतन और आत्ममंथन का होता है उस वक्त पर राजनीतिक रोटियां पकाई जा रही होती हैं। हो भी क्यूं नहीं आग जल रही हो तो कोई भी उसपर रोटी और हाथ दोनों सेक सकता है।
रविवार की सुबह देश जब नींद से जागा तो फिर दहशत के कालरूप से उसका सामना हो गया इस बार आतंकी हमला हुआ भी तो ऐसी जगह जो आंगन सदियों से शांति का प्रतीक है। महात्मा बुद्ध के शांत आंगन बोधगया में धमाका भी एक नहीं नौ। देश की जनता आंख मलते-मलते जगी और दहशत का ये तांडव सुन अंदर ही अंदर कांप गई। कांपे भी क्यूं नहीं बिहार के बोधगया में रविवार सुबह के साढ़े पांच बजे नौ सीरियल धमाके हुए। बिहार में ये पहला आतंकी हमला था और तो और मजे की बात ये है कि इस बार भी सुरक्षा एजेंसियों ने वही दावा किया जो वह हरबार करती रही है कि उन्होंने हमले की जानकारी पहले ही बिहार सरकार को दे दी थी। ऐसे में सुरक्षा में चूक चिंता का विषय नहीं आत्ममंथन का विषय है। हमले के ठीक बाद बिहार के मुख्यमंत्री नीतिश कुमार ने यह मान लिया की सुरक्षा एजेंसियों ने संबद्ध विभाग को आगाह कर दिया था हमले के हो जाने में चूक राज्य सरकार की है। अगर सुरक्षा एजेंसियां विल्कूल सही हैं तो क्यूं ना राज्य सरकारों को इस तरह के आतंकी हमले से निपटने में नाकाम करार करा कर सजा दी जाए। अगर आंतरिक सुरक्षा के मद्देनजर सुरक्षा एजेंसियों की रिपोर्ट को इसलिए साझा नहीं किया जाता कि यह देश की सुरक्षा का मामला है लेकिन बावजूद इसके भी सुरक्षा में सेंध लगती है और धमाके होते ही हैं तो क्यूं न एजेंसियों की रिपोर्ट को देश की आवाम के साथ साझा कर दिया जाए ताकि सुरक्षा में सैंध लगने से पहले आवाम खुद सचेत हो जाए और देश में हो रहे आतंकी हमलों का असर आम जनता पर न पड़े और न ही आम जनता को दहशत में डालने की आतंकियों की साजिश को कामयाब होने का मौका मिले।

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